सरोवर विज्ञान की महती आवश्यकता  (Limnology in Hindi)

सरोवर विज्ञान की महती आवश्यकता  (Limnology in Hindi)
सरोवर विज्ञान की महती आवश्यकता  (Limnology in Hindi)

शनैः शनैः लुप्त हो रही पनघट संस्कृति के अनेक रोचक दृष्टान्तों से हमारा लोक साहित्य हिलोरे ले रहा है। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक पानी का उपयोग करता है। जबसे पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है तबसे पानी किसी न किसी रूप में निरंतर खर्च हो रहा है। इसके अतिरिक्त बढ़ती हुई जनसंख्या, सभ्यता के विकास के साथ-साथ सुख-सुविधाओं में वृद्धि, औद्योगीकरण तथा कृषि कार्यों में पानी के उपयोग ने इस खर्च को इतना बढ़ा दिया है कि शुद्ध मीठे पानी की मात्रा कम होती जा रही है और दिनों-दिन यह एक विकट समस्या बन गई है।

पृथ्वी की उत्पत्ति और मानवीय सभ्यता के विकास की कहानी में जल की अहम भूमिका रही है। बिना जल के जीव जगत की कल्पना भी संभव नहीं है। पानी और प्राण वायु जीवन रक्षा के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व हैं। जल पृथ्वी की सतह के 71 प्रतिशत भाग को ढकता है। सतही जल का 97 प्रतिशत भाग लवणी समुद्र, 2.4 प्रतिशत ग्लेशियर और ध्रुवीय बर्फ की टोपी, और 0.6 प्रतिशत अन्य सतही जल स्रोत जैसे नदी, झील, तालाब तथा पोखर है, आमतौर पर देखा जाए तो विश्वस्तर पर खारे पानी का ही बाहुल्य है, जो 97 फीसद है जबकि मीठे पानी का मानवोपयोगी जल स्रोत मात्र 0.6 प्रतिशत ही है। हमारे मीठे पानी के स्रोत मुख्यतः नदी, जलाशय, झील, तालाब एवं पोखर आदि हैं जो कि दिनों-दिन घटते जा रहे हैं जो चिंता का विषय हैं।

अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ से ही जल पर महत्वपूर्ण शोध कार्य शुरू हुए परन्तु मीठे पानी के जलाशयों एवं झीलों में एकत्रित जल का सम्पूर्ण अध्ययन स्विट्जरलैंड स्थित लूसर्न विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक फोरेल ने किया। उन्होंने गत शताब्दी के प्रारंभ में सर्वप्रथम सरोवर विज्ञान (Limnology) नामक विषय की संपूर्ण स्थापना की। इसी कारण वैज्ञानिक एफए फोरेल को इस विज्ञान का जनक माना जाता है। फोरेल ने सरोवर विज्ञान के अंतर्गत नदियों, झीलों, जलाशयों, पोखरों, सरोवरों एवं ऐसे मीठे पानी के जलस्रेतों  के संपूर्ण अध्ययन का समावेश किया। जल के भौतिक व रासायनिक गुणों के साथ-साथ जीव-जन्तुओं के क्रिया-कलापों से जुड़ी अवधारणाओं की समीक्षा फोरेल के बाद भी पश्चिम के कई वैज्ञानिकों ने की।

क्या है सरोवर विज्ञान?

सरोवर विज्ञान (Limnology) अपने आप में एक अनूठा विषय है, क्योंकि इसमें विज्ञान के कई पहलुओं का समागम समन्वित रूप में किया गया है। अतः सरोवर विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविकीय गुणों के साथ-साथ जलाशयों के भौगोलिक एवं मौसम जलवायु से सम्बन्धित सभी तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। शुद्ध जल पीने के अतिरिक्त दैनिक, कार्यों, उद्योग धंधों, सफाई, कृषि आदि कार्यो में प्रयोग होता है। शुद्ध जल में यदि किसी प्रकार की मिलावट हो जाये तो इसकी उपयोगिता आंशिक अथवा पूर्ण रूप से नष्ट हो जाती है। इसे ही प्रदूषित जल कहते हैं। और वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिकीकरण एवं अन्य मानवकृत कारणों से जहाँ प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बेरहमी से हो रहा है। वहाँ जलवायु एवं मृदा निरंतर प्रदूषण की चपेट में आ रहे हैं। देश की प्रमुख नदियाँ भीषण रूप से प्रदूषित होती जा रही हैं। इसमें नदियों में उपस्थित जलचरों की जैव विविधता का जीवन दुर्लभ होता जा रहा है। इसी प्रकार वस्त्र उद्योगों से निकले अपशिष्ट पदार्थ एवं अन्य औद्योगिक कचरे से जल स्रोतों का भी पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है।

विकसित और विकासशील देश जल प्रदूषण की समस्या से प्रभावित हैं और इसके निवारण के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास चलाये जा रहे हैं। अनुमान है कि संसार में 25 हजार व्यक्ति प्रतिदिन जल से उत्पन्न होने वाले पेचिस, हैजा, पीलिया तथा पेट के रोग होते हैं। नन्हें बच्चों में जन्म से ही दुर्बलता अपंगता तथा विचित्र लाइलाज बीमारियां देखी जाती हैं। मलेरिया भी ठहरे हुए गंदे पानी में पैदा होने वाले मच्छरों से होता है। प्रदूषित जल मानव मात्र के लिए ही नहीं वरन्‌ जलीय जीवों के लिए भी हानिकारक होता जा रहा है। जल प्रदूषण मानव उपयोगिता व जल जीवों की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि प्रदूषित जल मानव व जल जीवों के जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। प्रदूषित जलाशयों, नदियों में खरपतवार को नियंत्रित करने तथा प्रदूषक तत्वों को कम करके जल को उपयोगी बनाने में सरोवर विज्ञान द्वारा अर्जित ज्ञान सहायक है।

ऐसे अध्ययन से लाभ उठाकर बड़े-बड़े जलाशयों में जलीय-जीव संपदा का वैज्ञानिक तरीके से संरक्षण प्रदान करना संभव है। सरोवर विज्ञान के अध्ययन से ज्ञात होता है कि जल सभी जीवों के लिए एक आवश्यक विलायक है। सरोवर विज्ञान के अंतर्गत जल के भौतिक व रासायनिक तथा जैविकीय गुणों के अध्ययन का समावेश किया गया है।

औद्योगिकीकरण में पानी के अधिक उपयोग से शुद्ध मीठे पानी की मात्रा कम होती जा रही है,फोटो;- विज्ञान प्रगति, फरवरी 2016

जल के रासायनिक और भौतिक गुण

जल के जैविक गुण

पृथ्वी पर जल जीवन से भरा है। जल के जैविक गुणों के अंतर्गत जल की जैव-विविधता का ज्ञान अर्जित किया जाता हैं। जैव-विविधता से तात्पर्य है जल में जीवों, पादप प्लवकों व जन्तु प्लवकों, मछलियों की

प्रजातियों की गुणात्मक एवं मात्रात्मक की जानकारी। जैवविविधता की अधिकता व कमी से भी पता लगाया जाता है कि जल कितना शुद्ध है। यदि जल में पाए जाने वाले पादप प्लवक व जन्तु प्लवक, नितलक जीवों, मछलियों व अन्य जीव-जंतुओं की विविधता गुणात्मक एवं मात्रात्मक तौर पर अच्छी है तो ऐसा जल प्रदूषण मुक्त माना जाता है। जल पारितंत्र एक आश्चर्यजनक उपहार है, जिसके विस्तृत संपदा में अनंत स्रोत विद्यमान हैं। लम्बे समय से इसके महत्व को जानने के बावजूद इस पारितंत्र में दुनिया के सभी जल स्रोत के वर्तमान संकट व खतरे आज भी शामिल हैं, ऐसी स्थिति में वैज्ञानिक तरीके से जल प्रबंधन कराने में सरोवर विज्ञान से सहायता मिलती है। जल संसाधनों का उपयोग मानव प्राचीन समय से करता आ रहा है।

जलीय तंत्र में खाद्य श्रृंखला ,फोटो;- विज्ञान प्रगति, फरवरी 2016

जलीय पारिस्थितिक तंत्र में जलीय जीवों की भूमिका

किसी भी जलीय तंत्र में उपस्थित विभिन्न जलीय जीव अनेकों भोजन श्रृंखलाओं के माध्यम से एक-दूसरे पर आश्रित हैं और ऐसी अनेक भोजन श्रृंखलाओं से मिलकर जटिल भोजन श्रृंखलाओं का जलचर की

अपनी अहम भूमिका है। इनमें साहचर्य एवं सुसंगति के साथ-साथ परभक्षी भोज्य जीवों के अन्तर्सम्बन्ध भी निहित हैं। “जीवों जीवस्य भोजनम्” की उक्ति किसी भी पर्यावरण तंत्र का मूल आधार है, क्योंकि पर्यावरण तंत्र में उपस्थित विभिन्न जीव भोजन श्रृंखला के माध्यम से एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

जल चक्र

उपनिषद बताते हैं कि नदियों का जल सागर में मिलता है, वे सागर से जोड़ती हैं, मेघ वाष्प बनकर आकाश में छा जाते हैं और बरसात करते हैं। यहीं वर्षा का जल पुनः नदियों में मिलता है। आदिकाल से यह चक्र अनवरत चल रहा है। इसी जल में जीवन पनपता है। इसी चक्र को वैज्ञानिक रूप से हाइड्रोलॉजिक चक्र के नाम से भी जाना जाता है। सरोवर वैज्ञानिक बताते हैं कि मृदा जल, सतह जल, भूजल और पौधे वायुमंडल के बीच जल मंडल के भीतर जल का निरंतर आदान-प्रदान होना ही जल चक्र कहलाता है।

सरोवर विज्ञान की महती आवश्यकता 

हर साल पांच वर्ष से कम उम्र के 50 हजार से डेढ़ लाख बच्चों की मौत का कारण दूषित पानी है। देश के 32211 गांव फ्लोराइड युक्त पानी और 4000 गांव आर्सेनिक, नाइट्रेट, लेड जैसे घातक रसायनों से युक्त पानी पीने को मजबूर हैं। भारत की ज्यादातर प्रमुख नदियों का 80 प्रतिशत पानी दूषित और पीने योग्य नहीं हैं। नदियों के जल को दूषित करने वाले खतरनाक जैविक रसायन बहाने वाले देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्र जल संसाधन विकास की रिपोर्ट के अनुसार पेयजल गुणवत्ता में भारत का 120 वाँ स्थान है।

जल उपलब्धता में भारत का स्थान 133 वाँ है। धरती की तीन चौथाई सतह पर मौजूद पानी में ज्यादातर पानी खारा है। सरोवर विज्ञान द्वारा जल प्रबंधन कर मौजूदा समस्याओं का स्थायी समाधान एवं जल का अधिकतम उपयोग संभव है। इसीलिए जल को रोकने हेतु सरोवर विज्ञान की मानव हित में महती आवश्यकता है।

भयावह परिस्थिति से बचने का एकमात्र उपाय है कि सरोवर विज्ञान को अपनाएं जिससे पानी का भौतिकीय रासायनिक एवं जैविकीय दृष्टि से शुद्धिकरण कर पीने योग्य पानी बनाया जा सके। सरोवर विज्ञान के सिद्धांतों को तथा जल संग्रहण प्रणाली को अपनाकर सरोवर विज्ञान के महत्व को समझा जा सकता है। शुद्ध जल का उपयोग हम कहां-कहां नहीं करते। मानव जीवन के हर पल में इसकी जरूरत पड़ती है। जल का संरक्षण एवं इसे प्रदूषण से बचाने में सरोवर विज्ञान के महत्वों को जीवन के हर पहलुओं में समझा जा सकता है, जो निम्नलिखित प्रकार से हैं :

आज के समय में ये सब नदियाँ, झीलें, जलाशय या ग्रामीण पोखर आदि जीवनदायिनी स्रोत हैं। सब आज प्रदूषण की चपेट में आ गये हैं। इन सब स्रोत को बचाना हमारे लिए एक चुनौती है। आज के इस जल संकट का सरोवर विज्ञान एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा जल स्रोत पर मंडराते हुए संकट से बचा जा सकता है। मानव जीवन के लिए तालाब, पोखर, नदियाँ, जलाशयों को बचाना आज की चुनौती है। यदि हमें संकटों से उबरना है तथा मानव अस्तित्व को बचाना है तो सरोवर विज्ञान को अपनाना होगा। सरोवर विज्ञान द्वारा कुशलतापूर्वक प्रबंधन कर वर्षा जल का संग्रहण कर पुनः तालाब, पोखरों, नदियों, जलाशयों को जिन्दा करें तथा मीठे पानी के इन भंडारों को मानव अस्तित्व के भविष्य के लिए बचायें।

संपर्क सूत्र

  • औद्योगिकीकरण,के कारण प्रदूषित होता जल,फोटो;- विज्ञान प्रगति, फरवरी 2016

  • फोटो;- विज्ञान प्रगति, फरवरी 2016

  • जल के रासायनिक और भौतिक गुणों की जांच करते हुए,फोटो;- विज्ञान प्रगति, फरवरी 2016

    • डॉ. निरंजन सारंग, वैज्ञानिक, सरोवर विज्ञान एवं मात्स्यिकी, 
    • कामधेनु विश्वविद्यालय, मात्स्यिकी महाविद्यालय, 
    • कवर्धा, जिला-कबीरधाम - 491995, छत्तीसगढ़, 
    • मो. : 09424128915; ईमेल : saranglimno@yahoo.com
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