प्राकृतिक जल स्रोतों के घटते प्रवाह को बढ़ाने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि जल स्रोत के ऊपरी क्षेत्र में पड़ने वाली सभी प्रकार की भूमि (आरक्षित वन, पंचायती वन, सिविल व निजी भूमि) में पशु चुगान व मानव हस्तक्षेप पूर्ण रूप से बंद करके उक्त भूमि का संरक्षण व संवर्धन किया जाए। जल समेट क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप पूर्णरूप से बन्द करके उस क्षेत्र में वर्षा के जल का अवशोषण बढ़ाने के लिए किये गये उपचारों का जल स्रोत अभयारण्य विकास कहते हैं। अंग्रेजी में ‘अभयारण्य’ के लिए ‘सेक्चुअरी’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। अभयारण्य (अभव+अरण्य) का तात्पर्य जलस्रोत को ऐसा पवित्र स्थान बनाने से हैं जिसका पर्यावरण पूर्णरूप से संरक्षित व प्रदूषण रहित रहे।
जल स्रोत के समेट क्षेत्र के सातत्यपूर्ण संरक्षण व विकास के लिए निम्न चरणों में कार्य करना आवश्यक है :
1. स्रोत के जल समेट क्षेत्र के विकास हेतु गाँव का चयन
2. चयनित गाँव की जल उपलब्धता और खपत आँकलन
3. जल स्रोत के समेट क्षेत्र का सीमांकन
4. जल स्रोत के समेट क्षेत्र का मानचित्रण
5. जल समेट क्षेत्र का सूक्ष्म नियोजन
1. जल समेट क्षेत्र का उपचार
(अ) सामाजिक उपाय
(ब) अभियान्त्रिक उपाय
(स) वानस्पतिक उपचार
2. जल स्रोत का जीर्णोद्धार व रख-रखाव
1. अनुश्रवण, मूल्यांकन एवं प्रभाव आँकलन
जल स्रोत समेट क्षेत्र का सातत्यपूर्ण सरंक्षण एवं संवर्धन ग्रामवासियों की सामूहिक सहमति एवं सहभागिता द्वारा ही सुनिश्चित हो सकती है। अतः एक सफल जल स्रोत अभयारण्य विकास का माॅडल तैयार करने के लिए ऐसे गाँव का चयन करना आवश्यक है जिनमें आपसी तालमेल अच्छा हो, जिनकी विकास कार्यों से सहभागिता हो तथा जो अपने जल संसाधनों के प्रति संवेदनशील हों। जल स्रोत अभयारण्य विकास के लिये गाँव का चयन करते समय निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखना आवश्यक हैः
i.. पानी की समस्या कम अथवा अधिक है।
ii. स्रोत से जल प्रवाह की पूर्व व वर्तमान की स्थिति।
iii. स्रोतों पर निर्भरता/दबाव।
iv. अन्य स्रोतों की उपलब्धता।
v. स्रोत के रख-रखाव की स्थिति।
vi.पानी एकत्र करने में लगने वाला समय/स्रोत से दूरी।
vii. जल स्रोत विवादित अथवा अविवादित।
i. संस्था से गाँव की दूरी पहुँचने मे लगा समय बस अथवा पैदल।
ii. अध्ययन, क्रियान्वयन, अनुश्रवण व मूल्यांकन में लगने वाला समय
i. जल समेट क्षेत्र का भूउपयोग व स्वामित्व की स्थिति।
ii. समेट क्षेत्र का ढाल व मिट्टी की गहराई।
iii. समेट क्षेत्र में चट्टानों की स्थिति।
iv. भू आद्रता व भू क्षरण की दर।
v. जल समेट का सीमांकन आसानी से चिन्हित किया जा सके।
vi. वानस्पतिक आवरण के पुनर्उत्पादन की सम्भावनायें।
vii. जल समेट पर लोगों की निर्भरता/दबाव।
i. ग्राम वासियों की रूचि, जागरूकता का स्तर।
ii. गाँव में संस्था/सरकारी विभाग द्वारा किये गये कार्यों की स्थिति।
iii. गुटीय राजनीति का स्तर।
iv. संस्था व गाँव का आपसी सम्बन्ध।
v. महिलाओं की स्थिति व जागरूकता का स्तर।
vi. आपसी विवाद व विवाद निपटारण की प्रक्रिया।
गांव के चयन के आधार व प्रक्रिया का विवरण तालिका-1 में दिया गया है।
गाँव के चयन के उपरान्त चयनित गाँव में जल की स्थिति का आँकलन करना आवश्यक है क्योंकि वर्षभर मौसम के अनुसार गाँव में पानी की उपलब्धता कम या ज्यादा होती रहती है। जैसे वर्षा व जाड़ों के मौसम में घरेलू उपयोग के लिए पानी की अधिकता रहती है जबकि गर्मियों के मौसम में पानी की कमी होने लगती है। जल की उपलब्धता व खपत मुख्यतः उस गाँव में स्थित विभिन्न जल स्रोतों में जल की मात्रा एवं गुणवत्ता व उस गाँव द्वारा जल के उपयोग, वितरण एवं रख-रखाव की स्थिति पर निर्भर करती है। पानी की उपलब्धता एवं खपत के आधार पर गाँव का सम्पूर्ण ‘पानी बजट’ बनाना आवश्यक है इसके लिए गाँव की निम्न जानकारी आवश्यक हैः
i. गाँव की कुल मानव व पशुओं की संख्या तथा वार्षिक वृद्धि दर।
ii. गाँव में उपलब्ध कुल जल स्रोतों (नौले, धारे, कुएँ, गधेरे, नदियाँ) की संख्या।
iii. जल स्रोतों की प्रकृति (सदाबहार अथवा मौसमी)
iv. मौसम के अनुसार जल स्रोतों से जल बहाव की मात्रा तथा कुल उपलब्ध जल की मात्रा।
v. वर्षा के जल को संग्रहित करने के तरीके तथा उपयोग।
vi. प्रति परिवार विभिन्न घरेलू उपयोग (पेयजल, भोजन बनाने, बर्तन एवं कपड़े धोने, नहाने, घर की सफाई, शौचालय) हेतु जल की खपत लीटर प्रति दिन।
vii. प्रति परिवार पशुओं के पीने व नहलाने के उपयोग में लाये गये जल की मात्रा।
viii. वर्षभर विभिन्न ऋतुओं (वर्षा, गर्मी, जाड़ों) में पानी की खपत।
ix. दैनिक उपयोग हेतु जल स्रोत से जल भरकर घर में एकत्र किया जाता है अथवा स्रोत पर ही जाकर विभिन्न क्रिया-कलाप सम्पन्न किये जाते हैं।
x. गाँव के स्रोतों से बाहरी क्षेत्र को जल आपूर्ति अथवा बाहरी स्रोतों द्वारा उक्त गाँव के लिए जल आपूर्ति की गणना।
जल स्रोत में वर्षभर जल प्रवाह एक समान नहीं रहता अतः स्रोत का जल प्रवाह मापने के लिए सबसे कम प्रवाह वाले (मई, जून) व सबसे अधिक प्रवाह वाले (अक्टूबर) महीनों में जल स्रोत का प्रवाह माप कर औसत जल प्रवाह ज्ञात करते हैं। इसके बाद वर्ष भर स्रोत से कितना प्रवाह हुआ ज्ञात कर लेत हैं।
इस आधार पर गाँव के हर स्रोत (नौले, धारे, पाईप लाइन) के पानी की प्रवाह की दर निकाल लेते हैं।
गाँव के पानी की खपत की गणना उस गाँव में समस्त मनुष्यों व पशुओं द्वार वर्षभर में किये गये पानी के उपयोग के आधार की जाती है।
(कुल पानी की खपत = मनुष्यों द्वारा उपयोग + पशुओं द्वारा उपयोग)
इस आधार पर हम तय कर सकते हैं कि उस गाँव में पानी की अधिकता है अथवा कमी है। यह आँकलन गाँव की जल प्रबन्ध योजना तैयार करने में सहायक होती है।
पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्रोत के वास्तविक जल समेट क्षेत्र का सीमांकन करना काफी कठिन होता है इसलिए स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर जल समेट क्षेत्र का सहभागी सर्वेक्षण करना आवश्यक होता है क्योंकि ग्रामवासी अपने पीढ़ियों के अनुभवों के आधार पर जल समेट क्षेत्र में आए परिवर्तनों, पानी के प्रवाह में आई कमी के कारणों का पता लगा सकते हैं। गाँव के बुजुर्गों/अनुभवी व्यक्तियों के साथ जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र का सघन-भ्रमण करके जल समेट क्षेत्र का सीमांकन करते हैं। सीमांकन करते समय यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि कितने भू क्षेत्र में पड़ने वाली वर्षा का अवशोषण उस स्रोत में जल के प्रवाह को प्रभावित करता है। इसके उपरान्त जल समेट का कुल क्षेत्रफल निकाल लेते हैं।
जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र का सघन भ्रमण व सीमांकन करने के पश्चात समूह चर्चा द्वारा जल स्रोत का मानचित्रण करते हैं ताकि सभी ग्रामवासी अपने स्रोत के जल समेट क्षेत्र को भली-भाँति समझ लें।
जल समेट क्षेत्र के मानचित्रण की प्रक्रिया सर्वप्रथम क्षेत्र की दिशा ज्ञात कर उत्तर दिशा को अंकित कर लेते हैं। इसके उपरान्त जल स्रोत की स्थिति व जल समेट क्षेत्र का सीमांकन चिन्हित कर लेते हैं। इसके उपरान्त जल समेट क्षेत्र का भू उपयोग, दबाव क्षेत्र, मिट्टी के प्रकार, चट्टानी क्षेत्र, भू स्खलन, आवास, सड़क, नालों की स्थिति को चिन्हित करते हैं।
जल समेट क्षेत्र के मानचित्र में निम्न बिन्दुओं की स्थिति को चिन्हित करना आवश्यक हैः
i. जल स्रोत के समेट क्षेत्र की सीमाएँ तथा इस सीमा के चारों ओर पड़ने वाले गाँवों, नदी, नालों, जंगल, पहाड़ियों आदि का नाम अंकित करना।
ii. जल स्रोत को चिन्हित करना।
iii. जल समेट क्षेत्र के अन्तर्गत स्थित स्थाई वस्तुएँ जैसे- मकान, स्कूल, मंदिरों, पंचायत घर, रास्ते, नाला, नहर आदि।
iv. कृषि के अन्तर्गत सिंचित व असिंचित भूमि।
v. वनों के अन्तर्गत क्षेत्र तथा वनों के प्रकार - पंचायती वन, सिविल सोयम वन, आरक्षित वन क्षेत्र।
vi. सामूहिक गौचर व परती भूमि।
vii. वनस्पति प्रजातियाँ तथा वनों पर दबाव के क्षेत्र।
viii. भू क्षरण व भू स्खलन वाले क्षेत्र।
ix. मिट्टी के प्रकार व चट्टानी क्षेत्र।
गाँव में जल समेट क्षेत्र का मानचित्रण करने के साथ ही ग्राम पंचायत/विकासखण्ड/जनपद स्तर पर उपलब्ध मानचित्र एवं भारतीय सर्वेक्षण विभाग के विभाग के भू पत्रक मानचित्र (Toposheet) की सहायता से उस क्षेत्र का सूक्ष्म भौगोलिक (जलागम क्षेत्र का सीमांकन, भूमि उपयोग, ढलान तीव्रता, भू क्षरण श्रेणी,) भू भौतिकीय (जलधाराएँ, गधेरे, ढालू क्षेत्र, जल विभाजक) एवं भूगर्भीय (चट्टानों की संरचना एवं स्थिति) मानकों का सर्वेक्षण कर लेना भी आवश्यक है।
जल स्रोत समेट क्षेत्र का सामूहिक मानचित्र बनाने के उपरान्त, उक्त क्षेत्र का निम्न बिन्दुओं पर गहन अध्ययन करना आवश्यक हैः
i. जल समेट क्षेत्र के अन्तर्गत भूमि उपयोग की स्थिति।
ii. अधिवास, सड़क, सामाजिक, धार्मिक व सरकारी संस्थाओं की स्थिति।
iii. निजी भूमि के अन्तर्गत सिंचित, असिंचित कृषि भूमि, परती भूमि व फलोद्यान की स्थिति।
iv. सामूहिक भूमि के अन्तर्गत आरक्षित वन, वन पंचायत, सिविल सोयम वन, चारागाह, निजी वन की स्थिति व प्रबन्धन।
v. जल समेट क्षेत्र में भूस्खलन/भूक्षरण की स्थिति।
vi. मिट्टी की गहराई, मिट्टी में पानी की अवशोषण क्षमता।
vii. जल समेट क्षेत्र में वनस्पति सम्पदा की स्थिति, वृक्ष, झाड़ी व घास प्रजातियों का घनत्व।
viii. जल समेट क्षेत्र में अवैध कटान, पशु चरान, घास, लकड़ी-चारा, खनन आदि का दबाव।
ix. भूमि में कार्बनिक पदार्थों की स्थिति।
x. ठोस कचरे व प्रदूषण की स्थिति।
xi. जल स्रोत का प्रवाह व उपयोग की स्थिति।
xii. गाँव में जल उपलब्धता व खपत की स्थिति।
जल समेट क्षेत्र से सम्बन्धित जानकारियों का विश्लेषण करके मुख्य समस्याओं को चिन्हित कर लेते हैं तथा समस्याओं के निदान के लिए स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर लघुकालीक व दीर्घकालीक नियोजन करते हैं।
जल स्रोत के समेट क्षेत्र के सातत्यपूर्ण संरक्षण व विकास के लिए निम्न चरणों में कार्य करना आवश्यक है :
प्रथम चरण
1. स्रोत के जल समेट क्षेत्र के विकास हेतु गाँव का चयन
2. चयनित गाँव की जल उपलब्धता और खपत आँकलन
3. जल स्रोत के समेट क्षेत्र का सीमांकन
4. जल स्रोत के समेट क्षेत्र का मानचित्रण
5. जल समेट क्षेत्र का सूक्ष्म नियोजन
द्वितीय चरण
1. जल समेट क्षेत्र का उपचार
(अ) सामाजिक उपाय
(ब) अभियान्त्रिक उपाय
(स) वानस्पतिक उपचार
2. जल स्रोत का जीर्णोद्धार व रख-रखाव
तृतीय चरण
1. अनुश्रवण, मूल्यांकन एवं प्रभाव आँकलन
1. स्रोत के जल समेट क्षेत्र के विकास हेतु गाँव का चयन
जल स्रोत समेट क्षेत्र का सातत्यपूर्ण सरंक्षण एवं संवर्धन ग्रामवासियों की सामूहिक सहमति एवं सहभागिता द्वारा ही सुनिश्चित हो सकती है। अतः एक सफल जल स्रोत अभयारण्य विकास का माॅडल तैयार करने के लिए ऐसे गाँव का चयन करना आवश्यक है जिनमें आपसी तालमेल अच्छा हो, जिनकी विकास कार्यों से सहभागिता हो तथा जो अपने जल संसाधनों के प्रति संवेदनशील हों। जल स्रोत अभयारण्य विकास के लिये गाँव का चयन करते समय निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखना आवश्यक हैः
जल स्रोतों की स्थिति
i.. पानी की समस्या कम अथवा अधिक है।
ii. स्रोत से जल प्रवाह की पूर्व व वर्तमान की स्थिति।
iii. स्रोतों पर निर्भरता/दबाव।
iv. अन्य स्रोतों की उपलब्धता।
v. स्रोत के रख-रखाव की स्थिति।
vi.पानी एकत्र करने में लगने वाला समय/स्रोत से दूरी।
vii. जल स्रोत विवादित अथवा अविवादित।
संस्था से गाँव की दूरी
i. संस्था से गाँव की दूरी पहुँचने मे लगा समय बस अथवा पैदल।
ii. अध्ययन, क्रियान्वयन, अनुश्रवण व मूल्यांकन में लगने वाला समय
जल समेट क्षेत्र की स्थिति
i. जल समेट क्षेत्र का भूउपयोग व स्वामित्व की स्थिति।
ii. समेट क्षेत्र का ढाल व मिट्टी की गहराई।
iii. समेट क्षेत्र में चट्टानों की स्थिति।
iv. भू आद्रता व भू क्षरण की दर।
v. जल समेट का सीमांकन आसानी से चिन्हित किया जा सके।
vi. वानस्पतिक आवरण के पुनर्उत्पादन की सम्भावनायें।
vii. जल समेट पर लोगों की निर्भरता/दबाव।
लम्बे समय तक सहयोगी गाँव
i. ग्राम वासियों की रूचि, जागरूकता का स्तर।
ii. गाँव में संस्था/सरकारी विभाग द्वारा किये गये कार्यों की स्थिति।
iii. गुटीय राजनीति का स्तर।
iv. संस्था व गाँव का आपसी सम्बन्ध।
v. महिलाओं की स्थिति व जागरूकता का स्तर।
vi. आपसी विवाद व विवाद निपटारण की प्रक्रिया।
गांव के चयन के आधार व प्रक्रिया का विवरण तालिका-1 में दिया गया है।
2. चयनित गाँव की जल उपलब्धता और खपत आँकलन
गाँव के चयन के उपरान्त चयनित गाँव में जल की स्थिति का आँकलन करना आवश्यक है क्योंकि वर्षभर मौसम के अनुसार गाँव में पानी की उपलब्धता कम या ज्यादा होती रहती है। जैसे वर्षा व जाड़ों के मौसम में घरेलू उपयोग के लिए पानी की अधिकता रहती है जबकि गर्मियों के मौसम में पानी की कमी होने लगती है। जल की उपलब्धता व खपत मुख्यतः उस गाँव में स्थित विभिन्न जल स्रोतों में जल की मात्रा एवं गुणवत्ता व उस गाँव द्वारा जल के उपयोग, वितरण एवं रख-रखाव की स्थिति पर निर्भर करती है। पानी की उपलब्धता एवं खपत के आधार पर गाँव का सम्पूर्ण ‘पानी बजट’ बनाना आवश्यक है इसके लिए गाँव की निम्न जानकारी आवश्यक हैः
i. गाँव की कुल मानव व पशुओं की संख्या तथा वार्षिक वृद्धि दर।
ii. गाँव में उपलब्ध कुल जल स्रोतों (नौले, धारे, कुएँ, गधेरे, नदियाँ) की संख्या।
iii. जल स्रोतों की प्रकृति (सदाबहार अथवा मौसमी)
iv. मौसम के अनुसार जल स्रोतों से जल बहाव की मात्रा तथा कुल उपलब्ध जल की मात्रा।
v. वर्षा के जल को संग्रहित करने के तरीके तथा उपयोग।
vi. प्रति परिवार विभिन्न घरेलू उपयोग (पेयजल, भोजन बनाने, बर्तन एवं कपड़े धोने, नहाने, घर की सफाई, शौचालय) हेतु जल की खपत लीटर प्रति दिन।
vii. प्रति परिवार पशुओं के पीने व नहलाने के उपयोग में लाये गये जल की मात्रा।
viii. वर्षभर विभिन्न ऋतुओं (वर्षा, गर्मी, जाड़ों) में पानी की खपत।
ix. दैनिक उपयोग हेतु जल स्रोत से जल भरकर घर में एकत्र किया जाता है अथवा स्रोत पर ही जाकर विभिन्न क्रिया-कलाप सम्पन्न किये जाते हैं।
x. गाँव के स्रोतों से बाहरी क्षेत्र को जल आपूर्ति अथवा बाहरी स्रोतों द्वारा उक्त गाँव के लिए जल आपूर्ति की गणना।
2.1. पानी की उपलब्धता का आँकलन
जल स्रोत में वर्षभर जल प्रवाह एक समान नहीं रहता अतः स्रोत का जल प्रवाह मापने के लिए सबसे कम प्रवाह वाले (मई, जून) व सबसे अधिक प्रवाह वाले (अक्टूबर) महीनों में जल स्रोत का प्रवाह माप कर औसत जल प्रवाह ज्ञात करते हैं। इसके बाद वर्ष भर स्रोत से कितना प्रवाह हुआ ज्ञात कर लेत हैं।
इस आधार पर गाँव के हर स्रोत (नौले, धारे, पाईप लाइन) के पानी की प्रवाह की दर निकाल लेते हैं।
2.2 पानी की खपत का आँकलन
गाँव के पानी की खपत की गणना उस गाँव में समस्त मनुष्यों व पशुओं द्वार वर्षभर में किये गये पानी के उपयोग के आधार की जाती है।
(कुल पानी की खपत = मनुष्यों द्वारा उपयोग + पशुओं द्वारा उपयोग)
इस आधार पर हम तय कर सकते हैं कि उस गाँव में पानी की अधिकता है अथवा कमी है। यह आँकलन गाँव की जल प्रबन्ध योजना तैयार करने में सहायक होती है।
3. जल स्रोत जल समेट क्षेत्र का सीमांकन
पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्रोत के वास्तविक जल समेट क्षेत्र का सीमांकन करना काफी कठिन होता है इसलिए स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर जल समेट क्षेत्र का सहभागी सर्वेक्षण करना आवश्यक होता है क्योंकि ग्रामवासी अपने पीढ़ियों के अनुभवों के आधार पर जल समेट क्षेत्र में आए परिवर्तनों, पानी के प्रवाह में आई कमी के कारणों का पता लगा सकते हैं। गाँव के बुजुर्गों/अनुभवी व्यक्तियों के साथ जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र का सघन-भ्रमण करके जल समेट क्षेत्र का सीमांकन करते हैं। सीमांकन करते समय यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि कितने भू क्षेत्र में पड़ने वाली वर्षा का अवशोषण उस स्रोत में जल के प्रवाह को प्रभावित करता है। इसके उपरान्त जल समेट का कुल क्षेत्रफल निकाल लेते हैं।
4. जल स्रोत के समेट क्षेत्र का मानचित्रण
जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र का सघन भ्रमण व सीमांकन करने के पश्चात समूह चर्चा द्वारा जल स्रोत का मानचित्रण करते हैं ताकि सभी ग्रामवासी अपने स्रोत के जल समेट क्षेत्र को भली-भाँति समझ लें।
जल समेट क्षेत्र के मानचित्रण की प्रक्रिया सर्वप्रथम क्षेत्र की दिशा ज्ञात कर उत्तर दिशा को अंकित कर लेते हैं। इसके उपरान्त जल स्रोत की स्थिति व जल समेट क्षेत्र का सीमांकन चिन्हित कर लेते हैं। इसके उपरान्त जल समेट क्षेत्र का भू उपयोग, दबाव क्षेत्र, मिट्टी के प्रकार, चट्टानी क्षेत्र, भू स्खलन, आवास, सड़क, नालों की स्थिति को चिन्हित करते हैं।
जल समेट क्षेत्र के मानचित्र में निम्न बिन्दुओं की स्थिति को चिन्हित करना आवश्यक हैः
i. जल स्रोत के समेट क्षेत्र की सीमाएँ तथा इस सीमा के चारों ओर पड़ने वाले गाँवों, नदी, नालों, जंगल, पहाड़ियों आदि का नाम अंकित करना।
ii. जल स्रोत को चिन्हित करना।
iii. जल समेट क्षेत्र के अन्तर्गत स्थित स्थाई वस्तुएँ जैसे- मकान, स्कूल, मंदिरों, पंचायत घर, रास्ते, नाला, नहर आदि।
iv. कृषि के अन्तर्गत सिंचित व असिंचित भूमि।
v. वनों के अन्तर्गत क्षेत्र तथा वनों के प्रकार - पंचायती वन, सिविल सोयम वन, आरक्षित वन क्षेत्र।
vi. सामूहिक गौचर व परती भूमि।
vii. वनस्पति प्रजातियाँ तथा वनों पर दबाव के क्षेत्र।
viii. भू क्षरण व भू स्खलन वाले क्षेत्र।
ix. मिट्टी के प्रकार व चट्टानी क्षेत्र।
गाँव में जल समेट क्षेत्र का मानचित्रण करने के साथ ही ग्राम पंचायत/विकासखण्ड/जनपद स्तर पर उपलब्ध मानचित्र एवं भारतीय सर्वेक्षण विभाग के विभाग के भू पत्रक मानचित्र (Toposheet) की सहायता से उस क्षेत्र का सूक्ष्म भौगोलिक (जलागम क्षेत्र का सीमांकन, भूमि उपयोग, ढलान तीव्रता, भू क्षरण श्रेणी,) भू भौतिकीय (जलधाराएँ, गधेरे, ढालू क्षेत्र, जल विभाजक) एवं भूगर्भीय (चट्टानों की संरचना एवं स्थिति) मानकों का सर्वेक्षण कर लेना भी आवश्यक है।
5. जल समेट क्षेत्र का सूक्ष्म नियोजन
जल स्रोत समेट क्षेत्र का सामूहिक मानचित्र बनाने के उपरान्त, उक्त क्षेत्र का निम्न बिन्दुओं पर गहन अध्ययन करना आवश्यक हैः
i. जल समेट क्षेत्र के अन्तर्गत भूमि उपयोग की स्थिति।
ii. अधिवास, सड़क, सामाजिक, धार्मिक व सरकारी संस्थाओं की स्थिति।
iii. निजी भूमि के अन्तर्गत सिंचित, असिंचित कृषि भूमि, परती भूमि व फलोद्यान की स्थिति।
iv. सामूहिक भूमि के अन्तर्गत आरक्षित वन, वन पंचायत, सिविल सोयम वन, चारागाह, निजी वन की स्थिति व प्रबन्धन।
v. जल समेट क्षेत्र में भूस्खलन/भूक्षरण की स्थिति।
vi. मिट्टी की गहराई, मिट्टी में पानी की अवशोषण क्षमता।
vii. जल समेट क्षेत्र में वनस्पति सम्पदा की स्थिति, वृक्ष, झाड़ी व घास प्रजातियों का घनत्व।
viii. जल समेट क्षेत्र में अवैध कटान, पशु चरान, घास, लकड़ी-चारा, खनन आदि का दबाव।
ix. भूमि में कार्बनिक पदार्थों की स्थिति।
x. ठोस कचरे व प्रदूषण की स्थिति।
xi. जल स्रोत का प्रवाह व उपयोग की स्थिति।
xii. गाँव में जल उपलब्धता व खपत की स्थिति।
जल समेट क्षेत्र से सम्बन्धित जानकारियों का विश्लेषण करके मुख्य समस्याओं को चिन्हित कर लेते हैं तथा समस्याओं के निदान के लिए स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर लघुकालीक व दीर्घकालीक नियोजन करते हैं।
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