अपने काम के बारे में खुद जिक्र करने से कई लोग मुझे घमंडी समझते हैं, मगर उन्हें अंदाजा नहीं कि जिस बदलाव को होते हुए मैंने महसूस किया है, उससे मुझे किस स्तर की खुशी मिली है। सबसे बड़ी बात यह कि मैं कोई सरकारी कर्मी नहीं, बल्कि मात्र एक स्वयंसेवक हूँ, इसलिये मेरे लिये कुछ खोने या पाने जैसी कोई स्थिति नहीं है। मेरा काम तो बस मेरी उस कल्पना का परिणाम है, जिसको जिद बनाकर मैंने किया है।
मैं वह करती हूँ, जो मेरे गाँव के लिये अच्छा है। अगर कुछ भी गलत दिखता है, तो मैं उसे सुधारने का हर सम्भव प्रयास करती हूँ। मैं तमिलनाडु के त्रिची स्थित सामूतिरम गाँव में रहती हूँ। आप मुझे उन लोगों में शामिल कर सकते हैं, जिनके लिये साफ-सफाई कुछ ज्यादा ही महत्त्व रखती है। मैं खुद तो सफाई पसन्द हूँ ही, साथ ही अपने आस-पास के लोगों को भी अपने जैसा रखने की कोशिश करती हूँ।लोग अपनी आदत के मुताबिक, सड़कों पर चीजें फेंक देते हैं। बेपरवाही में मशगूल उन्हें यह भी अंदाजा नहीं होता कि वे अपनी ही जमीन गंदी कर रहे हैं, जिसे साफ रखने की जिम्मेदारी उनकी भी है। जब कभी मैं गाँव में किसी को गंदगी फैलाते देखती, मुझे खराब लगता। मैं स्वयंसेवक के तौर पर खुद ही गाँव की सड़कों पर उन्हें साफ करने के लिये उतर गई। मैंने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से सड़कों के किनारे कूड़ेदान रखवाये। गाँव में ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की कि लोग पुराना प्लास्टिक यहाँ-वहाँ फेंकने के बजाय एक जगह एकत्रित करें, जिससे उसे रीसाइकिल किया जा सके। हालांकि हर नई शुरुआत में मुझे लोगों के असहयोग का सामना करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे ही सही, पर बाद में मुझे सफलता मिलती गई।
प्लास्टिक और कचरे के बाद मेरे गाँव में सबसे बड़ी समस्या खुले में शौच की थी। यहाँ तक कि जिन घरों में शौचालय बने हुए थे, उन घरों के लोग भी शौच के लिये खेतों में ही जाते थे। यह स्थिति दो साल पहले की थी, लेकिन आज चीजें बदल गई हैं। इस सुखद बदलाव के लिये मैंने खूब मेहनत की है। हालांकि मेरे दो पड़ोसियों समेत गाँव में अब भी पन्द्रह घर ऐसे बचे हैं, जहाँ शौचालय नहीं बना है। पर मैं कोशिश में हूँ कि उन्हें भी समझाकर शीघ्र ही अपने गाँव को खुले में शौच की शर्म से मुक्त करा दूँ।
अपने काम के बारे में खुद जिक्र करने से कई लोग मुझे घमंडी समझते हैं, मगर उन्हें अंदाजा नहीं कि जिस बदलाव को होते हुए मैंने महसूस किया है, उससे मुझे किस स्तर की खुशी मिली है। सबसे बड़ी बात यह कि मैं कोई सरकारी कर्मी नहीं, बल्कि मात्र एक स्वयंसेवक हूँ, इसलिये मेरे लिये कुछ खोने या पाने जैसी कोई स्थिति नहीं है। मेरा काम तो बस मेरी उस कल्पना का परिणाम है, जिसको जिद बनाकर मैंने किया है। मुझे वह दिन भी याद है, जब मैं किसी के पास जाकर अपनी बात कहती थी, तो लोग दूर से ही हाथ जोड़कर मुझे भगा देते थे। इन बातों से विचलित न होने का परिणाम है कि आज जब मैं कुछ कहती हूँ, तो लोग ध्यान से सुनते हैं। मैंने अपने कुछ दूसरे साथियों की मदद से लोगों को स्वच्छता के महत्त्व से परिचित कराया है। आज मेरी मुहिम में मेरा बेटा भी साथ जुड़ गया है।
मुझे गर्व होता है कि मैंने अपने बेटे को सामाजिक जिम्मेदारी की जो शिक्षाएँ दी थीं, उन्हें वह अमल में ला रहा है। मैं वह दिन कैसे भूल सकती हूँ, जब मेरे पड़ोसी ने किसी बात पर जहर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी, लेकिन मेरे बेटे ने दौड़-भागकर डॉक्टर की मदद से उसकी जान बचाई थी। मेरे कामों को देखते हुए मुझे ग्राम पंचायत विकास योजना की नेत्री बना दिया गया है। मेरी जिम्मेदारी अब और भी बड़ी हो गई है और मैं कोशिश करूँगी कि पिछले अनुभवों के आधार पर अपनी भूमिका बखूबी निभाऊँ।
विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित
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