सोन मछरी

संत्यज्य मत्स्यरूपं सा दिव्यं रूपमवाप्य च- महाभारत 1 ।63।66
(स्त्री-पुरुषों के दो दल बनाकर सहगान के लिए : उत्तर प्रदेश की एक लोकधुन पर आधारित। इसे ढिंढिया कहते हैं।)


स्त्री
जाओ,लाओ,पिया, नदिया से सोन मछरी।
पिया, सोन मछरी; पिया सोन मछरी।
जाओ, लाओ, पिया नदिया से सोन मछरी।

उसकी है नीलम की आँखें,
हीरे-पन्ने की हैं पाँखें,
वह मुख से उगलती है मोती की लरी।
पिया, मोती की लरी; पिया, मोती की लरी।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी।

पुरुष
सीता ने सुबरन मृग माँगा,
उनका सुख लेकर वह भागा,
बस रह गई नयनों में आँसू की लरी।
रानी, आँसू की लरी; रानी, आँसू की लरी।
रानी, मत माँगो नदिया की सोन मछरी।

स्त्री
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी।
पिया, सोन मछरी, पिया, सोन मछरी।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी।

पिया डोंगी ले सिधारे,
मैं खड़ी रही किनारे,
पिया लौटे लेके बगल में सोने की परी।
पिया, सोने की परी नहीं सोन मछरी।
पिया, सोन मछरी नहीं सोने की परी।

पुरुष
मैंने बंसी जल में डाली,
देखी होती बात निराली,
छूकर सोन मछरी हुई सोन की परी।
रानी, सोने की परी; रानी, सोने की परी।
छूकर सोन मछरी हुई सोने की परी।

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी।
पिया, सोन मछरी; पिया, सोन मछरी।
जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी।

स्त्री
पिया परी अपनाए,
हुए अपने पराए,
हाय! मछरी जो माँगी, कैसी बुरी थी घरी!
कैसी बुरी थी घरी! कैसी बुरी थी घरी!
सोन मछरी जो माँगी, कैसी बुरी थी घरी।

जो है कंचन का भरमाया,
उसने किसका प्यार निभाया,
मैंने अपना बदला पाया,
माँगी मोती की लरी, पाई आँसू की लरी।
पिया, आँसू की लरी; पिया आँसू की लरी।
माँगी मोती की लरी, पाई आँसू की लरी।

जाओ, लाओ, पिया, नदिया से सोन मछरी।
पिया, सोन मछरी; पिया, सोन मछरी।
जाओ, लाओ, पिया,नदिया से सोन मछरी।

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