हरिवंशराय बच्चन

हरिवंशराय बच्चन
कोई पार नदी के गाता
Posted on 25 Aug, 2013 12:04 PM
कोई पार नदी के गाता।

भंग निशा की नीरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता।
कोई पार नदी के गाता।

होंगे भाई-बंधु निकट ही,
कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता।
कोई पार नदी के गाता।

आज न जाने क्यों होता मन
सुनकर यह एकाकी गायन,
सोन मछरी
Posted on 25 Aug, 2013 12:02 PM
संत्यज्य मत्स्यरूपं सा दिव्यं रूपमवाप्य च- महाभारत 1 ।63।66
(स्त्री-पुरुषों के दो दल बनाकर सहगान के लिए : उत्तर प्रदेश की एक लोकधुन पर आधारित। इसे ढिंढिया कहते हैं।)


स्त्री
जाओ,लाओ,पिया, नदिया से सोन मछरी।
पिया, सोन मछरी; पिया सोन मछरी।
जाओ, लाओ, पिया नदिया से सोन मछरी।

उसकी है नीलम की आँखें,
हीरे-पन्ने की हैं पाँखें,
गंगा की लहर
Posted on 24 Aug, 2013 04:14 PM
(सहगान के लिए : उत्तर प्रदेश की एक लोकधुन पर आधारित)

गंगा की लहर अमर है,
गंगा की।

धन्य भगीरथ
के तप का पथ।
गगन कँपा थरथर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।

नभ से उतरी
पावन पुतरी,
दृढ़ शिव-जूट-जकड़ है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।

बाँध न शंकर
अपने सिर पर,
यह धरती का वर है।
गंगा की,
पगला मल्लाह
Posted on 24 Aug, 2013 03:33 PM
(उत्तर प्रदेश की एक लोकधुन पर आधारित)

डोंगा डोले,
नित गंग-जमुन के तीर,
डोंगा डोले।

आया डोला,
उड़न खटोला,
एक परी परदे से निकली पहने पंचरंग चीर।
डोंगा डोले,
नित गंग-जमुन के तीर,
डोंगा डोले।

आँखें टक-टक,
छाती धक-धक,
कभी अचानक ही मिल जाता दिल का दामनगीर।
डोंगा डोले,
नित गंग-जमुन के तीर,
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