संरक्षित ग्रामीण जल प्रबंधन

Sehgal foundation
Sehgal foundation

प्रतिदर्श अध्‍ययन/ ललित शर्मा , जय सहगल, एलोरा मुबाशिर/ सहगल फाउन्डेशन, गुड़गांव/ - यह दस्‍तावेज ग्रामीण जल प्रबंधन से संबंधित ग्राहयता के तत्‍वों पर प्रकाश डालता है, किंतु इसमें शोध के माध्‍यम से मशीनरी की तकनीकी ग्राहयता को सुधारने पर ध्‍यान केंद्रित किया गया है। जल प्रबंधन संरचना की असफलता अक्‍सर तलछट प्रबंधन की डिजाईन की कमी के कारण होती है। एक आदर्श भारतीय ग्राम पर अत्‍यधिक प्रभाव डालने वाली जल प्रबंधन की तीन महत्‍वपूर्ण संरचनाओं में बांधों की जांच, कुओं की रीचार्जिंग तथा जल सोखने वाले गड्ढे हैं। इसके अतिरिक्‍त उर्वरकों के अत्‍यधिक उपयोग के कारण खेतों में गहराई तक हल चलाने से निर्मित कठोर ढेलों का तोड़ना भी रीचाज्रिंग में सहायक सिद्ध होता है। इनकी दीर्घकालीन ग्राहयता के लिए तलछट प्रबंधन के साथ-साथ इन संरचनाओं में कम लागत वाले अनुसंधान भी किए गए थे। यह अध्‍ययन हरियाणा के गांव घागस में एकीकृत जल प्रबंधन पर किया गया है जो सामान्‍य तौर पर प्रतिदर्शी अध्‍ययन है। हालांकि इस गांव की सूक्ष्‍म स्थिति अलग किस्‍म की है, फिर भी कार्यान्‍वयन के दौरान सहगल फाउनडेशन के अनुभव और शिक्षाओं को इसमें व्‍यक्‍त किया गया है। यह महसूस किया गया है कि यदि कुछ निश्चित सिद्धातों का अनुसरण किया जाए तब जल प्रबंधन न तो अत्‍यधिक मंहगा होना चाहिए और समय की द़ष्टि से न बहुत लंबा होना चाहिए।

परिचय

सहगल फाउनडेशन, हरियाणा के मेवात क्षेत्र में एकीकृत और संरक्षित ग्राम विकास पर कार्य करता है। इसके उद्देश्‍य को चार कार्यक्रमों द्वारा क्रिर्यान्वित किया गया है जिनके नाम 1. जल प्रबंधन 2. आय में वृद्धि 3. पारिवारिक जीवन की शिक्षा 4. ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य तथा मशीनरी का निर्माण व संचार की सहयोगी सेवाएं हैं। इसका दृष्टिकोण प्रतिभागी है तथा इसके कार्यक्रमों को 'ग्राम स्‍तर की संस्‍थाओं' और 'ग्राम चैम्पियन' के आसपास ही आयोजित किया जाता है।

ग्राम विकास की किसी भी परियोजना की संरक्षता के लिए उत्तरदायी घटकों में अभिप्रेरणा, वित्त, संगठन और तकनीक हैं।

मेवात ऐसा क्षेत्र है जो आंशिक रूप से आधा हरियाणा और आधा राजस्‍थान में आता है तथा इसके चारों ओर अरावली पर्वतमालाएं हैं। अरावली पर्वतमालाएं भारत की प्राचीनतम पर्वतश्रेणियां हैं जो अब अधिकांशत: नष्ट हो रही हैं। इन पहाडि़यों पर मिट्टी की परत समाप्‍त हो चुकी है और वनस्‍पति केवल छोटे छोटे गड्ढों में ही पाई जाती है। शेष पहाडियां बंजर ही हैं। गर्मियों में राजस्‍थान से आनी वाली धूल भरी आंधियां अरावली पहाडि़यों से टकराती हैं और वादियों में बालू के टिब्‍बे बना देती हैं जो वनस्‍पति पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। जमीन के नीचे मीठा पानी केवल अरावली पहाडि़यों की वादियो में ही पाया जाता है, बाकी सभी जगह पानी नमकीन है।

मेवात का नाम किसान प्रजाति मेव से व्‍युतपन्‍न हुआ है जिसे हिंदु से मुस्लिम बनाया गया था। इसके बावजूद इनके यहां अभी भी हिंदुओं के बहुत से रीति रिवाज संरक्षित हैं। यहां की कुल जनसंख्‍या की 30 प्रतिशत जनसंख्‍या का मुख्‍य पेशा कृषि और मजदूरी है। 40 प्रतिशत लोगों के पास जमीन नहीं है और 40 प्रतिशत लोगों के पास बहुत कम जमीन है। कृषि मुख्‍य रूप से वर्षा पर निर्भर है तथा सरसों व ज्‍वार, बाजरा यहां की प्रमुख फसलें हैं। पानी के अभाव के कारण यहां ज्‍यादातर एक ही फसल की खेती की जा सकती है। दूसरी फसल केवल उसी समय संभव हो सकती है जब समय पर वर्षा हो जाए। मेवात का सामाजिक सूचकांक भी न्यून हैं अर्थात स्‍त्री पुरूष अनुपात 865, साक्षरता 19 प्रतिशत जिसमें महिलाओं की साक्षरता बहुत कम है, घरों का आकार 8.4, लड़कियों का विवाह 14 साल और लड़कों का विवाह 17 साल में हो जाता है। महिलाओं का प्रजनन स्‍वास्‍थ्‍य भी अच्‍छा नहीं है और निरोधात्‍मक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल के प्रति जागरूकता कम है तथा यहां की जनसंख्‍या की अप्रशिक्षित स्‍वास्‍थ्‍य प्रदाताओं पर निर्भरता अधिक है। महिलाओं को खेती और घरेलू कार्यों में अप्रशिक्षित समझा जाता है।

हरियाणा के मेवात क्षेत्र में पानी की उपलब्‍धता और गुणवत्ता चिंता का सबसे पहला मुद्दा है। यहां प्रत्‍येक गांव के लिए एकीकृत जल प्रबंधन योजना की जरूरत है जिसका पहला कदम जलवायु, जल प्रवाह, मिट्टी की विशेषताओं और यहां के परंपरागत ज्ञान का अध्‍ययन करना है। इसके बाद उच्‍च प्रभाव वाली मध्‍यस्‍थता का चयन किया जा सकता है। यदि सभी लोगों को लाभ पहुंचेगा तब जनसंख्‍या का बहुत बड़ा भाग एकजुट हो जाएगा।

घागस गांव में उपलब्‍ध जमीनी पानी की मात्रा अपर्याप्‍त है और इसकी तेजी से घट रही गुणवत्ता भी बहुत निम्‍न स्‍तर की थी जिसमें नाइट्रेट और फ्लोराइड्स के अधिक कण हैं। जहां एक ओर घागस गांव की जमीन के नीचे का पानी बहुत से निकटवर्ती गांवों के लिए महत्‍वपूर्ण स्रोत है, वहां वे इससे प्रतिकुल रूप से प्रभावित भी होते हैं। मध्‍यस्‍था करने से अब इसमें बदलाव आ रहा है।

भारत के अधिकांश गांवों की तरह यहां भी घरों का बेकार पानी गलियों में बह जाता है जिससे गंदगी पनपती है जो रोगों तथा उनके कीटाणुओं के पनपने का कारण बनती हैं। यह पानी ऐसा माध्‍यम बन जाता है जहां खुली दरारों, खुले में कम्‍पोस्‍ट डालना तथा कृषि में उर्वरक एवं कीटनाशकों के अत्‍यधिक प्रयोग से जमीन के नीचे का पानी दूषित हो जाता है। पानी में नाइट्रेट और फ्लोराइड की अधिक मात्रा का उल्‍लेख करने के लिए यह निर्णय किया गया था कि जहां तक पानी की गुणवत्ता का प्रश्‍न है इसके संबंध में इसके स्रोत पर ही कार्य किया जाए न कि फिल्‍टर अथवा जल उपचार जैसे अन्‍य उपायों को प्रयोग में लाया जाए। इसके पीछे जिस तर्क को अपनाया गया था वह जमीनी पाली को वर्षा के पानी से सांद्रित करना था ताकि नाइट्रेट और फ्लोराइड की मात्रा स्‍वीकार्य मानकों तक कम हो जाए और साथ ही जमीनी पानी की भरपाई भी हो जाए।

घागस गांव में ऊंचाई पर पानी की रोकथाम करने के लिए एक चैक बांध बनाया गया था ताकि अरावली पहाड़ियों से बहते हुए बेकार पानी को गांव में प्रवेश करने और दूषित होने से रोका जा सके (चित्र 1 और 2)। वादि दृष्टिकोण (चित्र 3) के प्रति पानी की गति को कम करने के लिए नाली में प्‍लग लगाकर मेढ़ बनाई गई जिससे भूमि कटाव के साथ-साथ बांध में तलछट का भार भी कम होता गया1 अन्‍य विकल्‍पों में प्राकृतिक धाराओं के पानी को रीचार्जिंग कुंओं अथवा इंजेक्टिंग कुओं की ओर मोड़ना (चित्र 4 और 5) भी जमीनी पानी की भरपाई की कुशल विधियां हैं। यहां तक कि जिन कुओं का पानी सूख गया है उन्‍हें भी भलीभांति भूमिगत जल स्‍तर से जोड़ दिया जाता है, जबकि गांव के ऐसे अन्‍य भागों की खोज करने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है जहां मिट्टी में जल स्‍तर तक पानी को बूंद बूंद कर रिसने की अच्‍छी क्षमता हो।

घरेलू बेकार पानी के सुरक्षित निपटान को पानी सोखने वाले गड्ढों के माध्‍यम से दर्शाया गया है। ये गड्ढे साधारण होते हैं जो जमीन के नीचे बेकार पानी के निपटान, निथारने और बूंद बूंद कर टपकने की प्रक्रिया को सरल बनाते हैं। (चित्र 6)

विधि समुदाय के साथ कार्य करना

पहले चरण में समुदाय की सभाओं में लोगों की जरूरतों की पहचान की गई जिसके बाद कुछ ग्रामीणों के साथ मिलकर सर्वेक्षण किया गया जिसमें उनके ज्ञान का परीक्षण किया गया, विशेषज्ञों को बुलाया गया और सहगल फाउनडेशन के इंजीनियरों ने एक मसौदा तैयार किया। इस मसौदे में डिजाईन, सामान, समयसीमा तथा लागत (तालिका 1) का विवरण दिया गया है जिसे समुदाय के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया । ग्रामीणों ने इसमें संशोधन कियाऔर इस बात का निर्णय भी किया कि वे इसमें क्‍या योगदान दे सकते हैं क्‍योंकि उनकी ओर से कुछ न कुछ योगदान सहगल फाउनडेशन की नीति के लिए अनिवार्य है। इस समस्‍त प्रक्रिया में ग्राम स्‍तरीय संस्‍था, ग्राम चैम्पियन तथा पंचायत भी शामिल हैं।

शोध के माध्‍यम से तलछट की तकनीकी चुनौतियों को दूर करना

बांध बनाना

बरसात के बहते हुए पानी द्वारा प्रतिवर्ष तलछट के अवसाद लाए जाते हैं जो बांधों की प्रभावी जल भंडारण क्षमता तथा पानी के बूंद बूंद रिसने को कम करते हैं। भंडारण बेसिन से इस तलछट को दूर करना थकावट लाने वाला तथा मंहगा कार्य होता है जिसके लिए ग्रामीण प्राय: पर्याप्‍त रूप से प्रेरित नहीं होते हैं और कुछ समय बाद इस प्रकार की संरचनाओं को त्‍याग दिया जाता है।

बांध में तलछट के भार को कम करने वाले वादि की ओर रास्‍ता (चित्र 3) बनाने के अतिरिक्‍त तलछट को रोकने के लिए बांध की डिजाईन में ही एक सस्‍ती तकनीक का विकास किया गया है। इसके अंतर्गत ग्राउंड बेसिन लेवल (चित्र 8 और 9) पर कई निकास द्वार बनाए गए हैं। तलछट विरोधी इन निकास द्वारों को ईंटों से निर्मित राजगिरी द्वारा ऊपर से बंद कर दिया जाता है। 2-3 साल में पहली मानसूनी वर्षा से पूर्व ग्रामीणों को इस बेसिन में ट्रेक्‍टर से हल चलाने की जरूरत पड़ती है और तलछट विरोधी निकास द्वारों को तोड़कर खोल दिया जाता है। इस क्षेत्र में मानसूनी वर्षा का वितरण बीच बीच में रूक-रूक कर गहन वर्षा वाला होता है। पहली गहन मानसूनी वर्षा से नालियों के माध्‍यम से बांध की तलछट बाहर निकलने लगती है। दो बार वर्षा के बीच शुष्‍क मौसम में इन मुहानों को पहले की तरह जल भंडारण के लिए ईंटो के डाठ से रोक दिया जाता है।

बांध के बाहर जमा होने वाली तलछट उर्वरक होती है और इसे खेतों में उपयोग किया जा सकता है। इसे ग्रामीण सरलतापूर्वक यहां से गाडि़यों में ले जा सकते हैं जबकि इससे पूर्व उन्‍हें बांध के बेसिन से जोती गई तलछट को ढोना पड़ता था।

रीचार्जिंग कुएं
घागस गांव में, एक प्राकृतिक धारा है जो मानसून के दौरान गांव से होकर बहती है और इसका पानी जमीनी पानी की भरपाई किए बिना यूं ही बेकार बह जाता है। इस बेकारी को रोकने के लिए उपयुक्‍त स्‍थानों पर दो अवरोध बनाए गए हैं1 (चित्र 4 और 5) यह देखा गया है कि सरकार ने पहले भी इस धारा के किनारे तीन इंजेक्टिंग कुंए बनाए थे किंतु इस समय नदी का पानी उन तक पहुंच नहीं पा रहा है और इसीलिए ये उपयोगी संरचनाएं बेकार हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्‍त इसके निकट ही एक ऐसा कुंआ भी है जो अब उपयोग में नहीं है।

इंजेक्टिंग कुंओं की दीवारों पर पानी एंकित्रत करने के लिए नदी के इर्द-गिर्द छोटी सी नाली (masonry) बनाई गई थी जो अब डूब गई है। तलछट के भार को कम करने क लिए जब यह संग्रहित पानी फिल्‍टर से होकर गुजरता है तब इसे जमीन के नीचे दाबे गए एक पाइप के सहारे उपयोग में न लाए गए इस कुंएं में भी छोड़ा जाता है। तेज वेग की नदी के पानी का भंवरनुमा कार्य रीचार्जिंग एवं इंजेक्टिंग कुंओं के फिल्‍टरों की तली में जमने वाले तलछट के बोझ को कम कर देता है, इसलिए ये फिल्‍टर अवरूद्ध अर्थात् खराब नहीं होते हैं।

जल सोखने वाले गडढे जल सोखने वाले गडढों की बहुत से संगठनों ने सराहना की है किंतु गांवों में इनका उपयोग करना संतोषजनक नहीं रहा है।
जब सहगल फाउनडेशन ने सर्वाधिक प्रोन्‍नत जल सोखने वाले गड्ढे के मॉडल पर प्रयास किया तब देखा गया कि थोड़े समय में ही समस्‍त जमीनी संरचना मलबे से अवरूद्ध हो रही थी और इसे बेकार कर रही थी1। इससे बचने के लिए पाइप के मुंह पर एक चलनी लगा दी गई जिसके माध्‍यम से पानी इस गड्ढे में प्रवेश करने लगा। लेकिन यह भी युक्ति भी सफल नहीं हो सकी, क्‍योंकि इसकी प्रतिदिन सफाई करनी पड़ती थी नहीं तो यह भी रूक जाती। सार्वजनिक स्‍थानों पर एक क्‍लीनर का मिलना गंभीर समस्‍या रहती है।

इसका सफल उपाय जल सोखने वाले गड्ढे में पानी जाने से पहले तलछट फंदा लगाना था (चित्र 7)। इस डिजाईन के असानी से दिखाई देने वाले स्‍थान की प्रत्‍येक 1-3 महीने में सफाई करनी पड़ती थी। अत्‍यधिक मानसूनी वर्षा के समय जब तलछट के अधिक मात्रा में जमा होने का डर रहता है जब इन गड्ढों को बंद करना पड़ता है। इस खोज के बाद, इस अवधारणा को कई गांवों में जरूरत के आधार पर उपयोग किया जाने लगा1 (चित्र 6)

जमीनी पानी की गुणवत्ता पर रीचार्जिंग के प्रभाव का अध्‍ययन करना इस अध्‍ययन के लिए अवरोध के प्रमुख स्रोत अर्थात चैक बांध (चित्र 10 तालिका 3) से 150 मीटर (साइट क) और 1500 मीटर (साइट ख) की दूरी पर दो नमूना स्‍थानों का चयन किया गया। साइट-क एक कुंआ है जबकि साइट-ख एक हैंड पंप है1 जून 2003 में मानसून से पहले आधार रेखा जल परीक्षण उस समय किया गया था जब जल स्‍तर अपनी न्‍यूनतम सीमा पर था और प्रत्‍येक तिमाही में ऐसा किया जाता था। वास्‍तव में जल परीक्षण एक सतत प्रक्रिया है।

परिणाम
इस चैक बांध की 2.75 वर्ग किलोमीटर के कैचमेंट एरिया से बहते हुए पानी को प्राप्‍त करने की क्षमता है जो प्रतिवर्ष लगभग 100,000 किलोलीटर पानी उपलब्‍ध कराता है। घागस गांव में जल सोखने वाले छप्‍पन गड्ढे जमीन में 4,088 किलोलीटर पानी का योगदान देते है। घागस गांव की 60 एकड़ भूमि को गहराई तक हल से जोता गया जिसके फलस्‍वरूप प्रतिवर्ष जमीनी पानी में 135,000 किलोलीटर पानी (4500 वर्ग मीटर x 0.5 औसत वर्षा x 60) का योगदान दिया गया।

नवीन परंपरागत संरचनाओं के साथ नई संरचनाओं का एकीकरणनवीन परंपरागत संरचनाओं के साथ नई संरचनाओं का एकीकरण


















दूषित होने से पूर्व नदी के पानी का बूंद बूंद कर रिसनादूषित होने से पूर्व नदी के पानी का बूंद बूंद कर रिसनाखुली दरार के कारण जमीनी पानी को दूषित होने से बचाने के लिए यह फाउनडेशन शोचालयों के कई मॉडलों की प्रोन्‍नति करता है जो अलग अलग पृष्‍ठभूमि वाले ग्रामीणों के लिए उपयुक्‍त पाई गई हैं और इनकी लागत 500 रू0 से 3000 रू0 है।


घागस गांव में घाटी दृष्टिकोण के प्रति एकीकृत पर्वत श्रेणीघागस गांव में घाटी दृष्टिकोण के प्रति एकीकृत पर्वत श्रेणी

















उपयुक्‍त उपाय: ‘घाटी के लिए संकीर्ण मार्ग'उपयुक्‍त उपाय: ‘घाटी के लिए संकीर्ण मार्ग'

















घागस गांव में कुएं के माध्‍यम से जमीनी पानी की रीचार्जिंगघागस गांव में कुएं के माध्‍यम से जमीनी पानी की रीचार्जिंग






















जल सोखने वाले गडढे - बेकार पानी के सुरक्षित निपटान का तंत्रजल सोखने वाले गडढे - बेकार पानी के सुरक्षित निपटान का तंत्रपिछले वर्ष 2003 में इस चैक बांध ने लगभग 1 लाख किलोलीटर वर्षा के पानी को जमीन के अंदर बूंद बूंद कर रिसने दिया। इससे जमीन के अंदर पानी में अवांछित नमक की मात्रा विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन/भारत सरकार के मानक आंकड़ो से कम सीमा तक सांद्रित हो गई। ग्रामीणों ने भी पानी की गुणवत्ता में बदलाव को देखा। जमीनी पानी का परीक्षण जून 03 से जुलाई 04 तक एक वर्ष की अवधि के लिए किया गया था और वर्ष 2004 के मानसून के बाद भी इसका परीक्षण किया जाएगा।


जल सोखने वाले गड्ढे की डिजाईनजल सोखने वाले गड्ढे की डिजाईनजल सोखने वाले गड्ढे

मई 2003 से 6 गांवों में 200 जल सोखने वाले गड्ढों का निर्माण करवाया जा चुका है जिसमें से 56 केवल घागस गांव में ही हैं। गुड़गांव देहात के अन्‍य गांवों में रंगाला, राजपुर, करहेड़ा, चहलका, अगोन (चित्र 6) और कोयला हैं।

घागस गांव का ईंटो से निर्मित चैक बांधघागस गांव का ईंटो से निर्मित चैक बांध



















चैक बांध में तलछट के निकास द्वारचैक बांध में तलछट के निकास द्वार



















चैक बांध के कारण नाइट्रेट और फ्लोराइड के उच्‍च स्‍तर में कमीचैक बांध के कारण नाइट्रेट और फ्लोराइड के उच्‍च स्‍तर में कमी

मापदंड

मानक स्वीकार्य मापदंड

 

नमूना साइट-ख

नमूना साइट-क

पीएच (इकाई)

 

जून-03

दिस.-03

जून-04

जुलाई-03

दिस-03

जून-04

पर नमूने

6.5-8.5

8

8

8

8

8

8

कोलीफार्म

शून्‍य

शून्‍य

शून्‍य

शून्‍य

उपस्थित

शून्‍य

शून्‍य

फ्लोराइड

1

1.5

1.5

0.6

1.5

0.6

0.6

फासफोरस

-

< 0.1

< 0.1

< 0.1

-

< 0.1

< 0.1

नाइट्रेट के रूप में नाइट्रेट

45

100

100

10

100

10

10

लोहा

0.3

1

1

0.3

0.3

< 0.3

-

कठोरता

300-600

288

288

320

336

320

220

क्‍लोराइड

250-1000

269

248

88.6

267.35

159.5

152.4

अमोनिया

-

0.2

0.2

< 0.2

0.2

< 0.2

< 0.2

टर्बिडिटी(एनटीयू)

5

25

10

< 10

< 10

< 10

< 10

 

 


जमीनी पानी की गुणवत्ता में सुधारजमीनी पानी की गुणवत्ता में सुधार

संरचनाएं             

 

लागत प्रति

इकाई

ईकाईयों की संख्या             

प्रति इकाई सहगल फाउनडेशन का योगदान

 

प्रति इकाई समुदाय का योगदान (मजदूरी भी हो सकती है)

कुल

परंपरागत संरचनाओं को नया बनाना

8,000

1

6,000

2,000

8,000

घागस में चैक बांध का निर्माण

4,50,000

1

3,70,000

80,000

4,50,000

कुंओं की रीचार्जिंग

15,000

1

10,000

5,000

15,000

छत के ऊपर पानी का संरक्षण          

5,000

1

4,000

1,000 प्रति इकाई

5,000

जल सोखने वाले गड्ढे

150

56

50 प्रति गडढा

100 प्रति गडढा

8,400

फाल (गहराई तक जुताई)

450 प्रति एकड़

60 एकड़

150

300

27,000

कुल प्रत्यक्ष लागत

5,05,400

कुल अप्रत्यक्ष लागत

(घागस गांव में जल प्रबंधन कार्यक्रम के लिए सहगल फाउनडेशन की संस्थागत लागत)

 100,000

सकल योग = 6,05,400 रू0

साइट-क पर 2003 के बाद 6महीनों के अंदर नाइट्रेट और फलोराइड की अधिक मात्रा पानी को उसकी स्‍वीकार्य सीमा से कम कर देती है। हालांकि साइट-ख को इसी प्रभाव को प्राप्‍त करने में और 6 महीने का समय लग गया। लोहे के मामले में साइट-क पर केवल एक साल में इसकी सांद्रता घटकर शून्‍य हो गई जो स्‍वीकार्य सीमा है। जबकि साइट-ख पर लोहे की सांद्रता अभी भी 0.3 ही रही, हालांकि यह आधार रेखा पर 1 से कम हो गई। बरसात के मौसम में घोलक के परिणाम प्रोत्‍साहजनक होते हैं और आने वाले मौसम में अच्‍छे होते रहेंगे।

चित्र 12 से इंगित होता है कि घागस गांव में जमीनी पानी की मात्रा बढ गई है। जमीनी पानी की तालिका का अध्‍ययन करने के लिए एक कुंए का चयन किया गया था। जून 2003 में (चैक बांध के निर्माण से पूर्व) इसमें 55 फुट की गहराई पर पानी उपलब्‍ध था। मानसून के बाद जलस्‍तर 7 फुट तक बढ गया और यही स्‍तर फरवरी 2004 तक यथावत् बना रहा। इसके बाद जून 2004 में यह घटना आरंभ हो गया किंतु अभी भी मध्‍यस्‍था से पूर्व के वर्ष की आधार रेखा से 4 फुट ऊंचा था। इस गांव की जमीन इस प्रकार की है कि यहां बरसात का पानी तेजी से बह जाता है और वह जमीन के अंदर मुश्किल से ही रिस पाता है, भले ही मानसून अच्‍छा रहा हो।

अर्थशास्‍त्र

तालिका 1: घागस गांव में जमीनी पानी को संरक्षित करने के लिए अवरोधों की लागत (रू0 में)

जमीनी किनारों की मरम्‍मत और वेटीवर घास से इसका स्थिरीकरण

मध्‍यस्‍थता से पूर्व घागस गांव के कुंओं में जलस्‍तर वर्ष दर वर्ष घटता जा रहा था। दो साल की अवधि में यहां मात्रा (चित्र 12) और गुणवत्ता (तालिका 1 और चित्र 5) दोनों की दृष्टि से लगभग 6,05,400 रू0 के मूल्‍य वाले जमीनी जलस्‍तर की भरपाई की जा चुकी है।

पानी की बढती हुई मांग की आशा और मानसून की असफलता पर विचार करते हुए दो अतिरिक्‍त चैक बांध और रीचार्जिंग कुंओं की योजना बनाई जा रही है।

जलीय साक्षरता इस कार्यक्रम का एक महत्‍वपूर्ण तत्‍व है और घागस गांव के लोगों ने अब पानी की बर्बादी को रोकने के लिए नल लगवाने और नलकों की मरम्‍त करवाना आरंभ कर दिया है।

तालिका 2: घागस गांव में फिल्‍टर और चैक बांध की लागत की तुलना

विकल्‍प

रूपयों में लागत     

समाधान करती है

डीफलोरीनेशन फिल्‍टर के घरेलू मॉडल: आयन एक्‍सचैंज (इंडिया) लिमि0 एंड माइट्री

4,50,000 पूंजी + 60,000  वार्षिक मरम्‍मत

केवल फ्लोराइड

चैक बांध एवं अन्‍य प्रतिरोध

5,08,000

समस्‍त दूषित तत्‍व एवं जल की कमी


सारांश एवं चर्चाएं घागस गांव में क्‍या किया गया

• योजना के दौरान समुदाय की भागीदारी एवं पहले से ही उनकी वचनबद्धता प्राप्‍त करना।

• मध्‍यस्‍थता की अत्‍यधिक जरूरत

• चैक बांध को बनाने के लिए तकनीकी मापदंड ठीक थे अर्थात मिट्टी तथा बेसिन क्षेत्र की भेदन क्षमता।

• वित्तीय राशि के उपयोग के प्रति आदर की भावना।

• वहन करने योग्‍य लागत एवं योगदान।

• स्‍टाफ के सभी सदस्‍यों द्वारा सतत् एवं नियमित सम्‍प्रेषण।

घागस गांव में सामने आई कठिनाईयां

• चैक बांध जैसी समयबद्ध परियोजनाओं के लिए सामुदायिक योगदान एवं राशि संग्रहण केवल आखिरी क्षणों में उपलब्‍ध हो सका जबकि चैक बांध का निर्माण मानसून आने से पहले हो जाना चाहिए था।

• निर्माण कार्य की देखरेख करने वाला ग्रामीण दल इस कार्य में अपना सहयोग अपेक्षा के अनुरूप नहीं दे सका।

फाउनडेशन को इससे अलग हटकर क्‍या कुछ करना चाहिए था

• महिलाओं को परियोजनाओं की देखरेख के कार्य में अधिक शामिल किया जाना चाहिए था। महिलाएं अधिक आज्ञाकारी होती हैं और सामुदायिक कार्यों में गर्व महसूस करती हैं।

• परियोजना आरंभ करने से पूर्व फाउनडेशन को स्‍कूली बच्‍चों एवं युवाओं सहित समुदाय के सभी वर्गों के साथ पाठ्यक्रम के माध्‍यम से जल साक्षरता पर अधिक समय व्‍यतीत करना चाहिए था।

• परियोजना की प्रगति के बारे में सूचना प्रदाने के लिए तथा रोल मॉडल प्राप्‍त करने के लिए न्‍यूजलेटर जैसे प्रोन्‍नत आईईसी टूल का उपयोग करते हुए ग्रामीण सम्‍प्रेषण को बेहतर बनाया जा सकता था।

• भले ही इसका अर्थ कार्य को धीमी गति से करना हो, फाउनडेशन को अपनी सहायता केवल तकनीकी परामर्शी एवं संयुक्‍त वित्त प्रबंधन की भूमिका तक ही सीमित रखनी चाहिए। गांव के लोग अपने कार्य की देखरेख, सामान की व्‍यवस्‍था तथा मजदूरों को काम पर लगाने जैसे कार्यों के लिए परियोजना की शुरूआत के समय से ही स्‍वतंत्र रूप से अधिक अच्‍छे ढंग से कार्य कर सकते थे।

घागस गांव में जल प्रबंधन का संरक्षण

प्रारंभ से ही सहगल फाउनडेशन विकास को सुविधाजनक बनाने, साझेदारी में कार्य करने के लिए बातचीत तथा यह घोषित करने में कि उसका कार्यकाल केवल 4 वर्ष का होगा और इस अवधि में संरक्षणता का प्राप्‍त कर लिया जाना है, आदि कार्यों के प्रति चर्चा को सुविधाजनक बनाता है।

ग्राम स्‍तरीय संस्‍था की कार्यकारिणी समिति जल प्रबंधन की प्रभारी बन जाती है। सभी कार्यों के लिए श्रम गांव का ही होता है ताकि लोग स्‍वत: प्र‍शिक्षित हो जाएं और उनका आत्‍मविश्‍वास बढता है। चयनित उम्‍मीदवारों को परियोजना से संबधित मरम्‍मत के कार्यो पर प्रशिक्षण दिया जाएगा। गांव के अंदर 'कौन किस कार्य का प्रभारी है'' के बारे में ठीक प्रकार से बातचीत होती है।

पंचायत के कुछ सदस्‍य ग्राम स्‍तरीय संस्‍था के सदस्‍य होते हैं तथा इसका संरपंच स्‍वत: नामित होता है। इस प्रकार जब भी संभव होगा, सरकारी कोष का उपयोग करते हुए सिनर्जी अर्थात रणनीति बनाई जाएंगी।

निष्‍कर्ष

यह दस्‍तावेज उन विधियों पर प्रकाश डालता है जिनमें जमीनी पानी का उचित प्रबंधन किया जा सकता है। जब समुदाय भागीदारी करता है और उसे वित्तीय योगदान देना पड़ता है, तब कुछ नया करने का दबाव बन जाता है। कुछ ऐसे प्रगतिवादी ग्रामीणों को इसका बहुत बड़ा श्रेय जाता है जो नई वस्‍तुओं पर कार्य करने का प्रयास करते हैं और जिनके परिणामवरूप वे दूसरों के लिए प्रदर्शक बन जाते हैं। फाउनडेशन के मॉडल गांव में स्‍वैच्छिक कार्य करने की भावना पर अधिक निर्भर करते हैं तथा संघ मानता है कि इस संबंध में शोध करने की जरूरत अभी भी है।

फाउनडेशन 'सफलता ही सफलता का निर्माण करती है' नामक सूक्ति वाले सिद्धांत का प्रतिपादन करता है और बड़ा प्रभाव डाल सकने वाली लघु स्‍वरूप की मध्‍यस्‍था पर अपना ध्‍यान केंद्रित करता है। लगभग डेढ साल पहले जब यह फाउनडेशन घागस गांव में आया था तब इसके यहां से बीच में ही चले जाने की आशंका व्‍यक्‍त की जा रही थी। फिर भी थोड़े समय में यह उस समय जोश भर गया जब ग्रामीणों ने मानसून की बीच बीच में बौछार के समय चैक बांध को पानी से भरते हुए तथा पानी को दस गुणा अधिक जमीन में रिसते हुए देखा। फाउनडेशन का मानना हे कि ग्रामीण विकास उतना मंहगा साबित नहीं होता है जैसा उसकी कल्‍पना की जाती है। यदि संगठन कार्यस्‍थल पर आकर विचार विमर्श करता है और लक्ष्‍यों, समयसीमा तथा उत्‍पादन के संदर्भ में ठीक प्रकार से योजना बनाता है तब इसके लिए विश्‍वास पैदा करना सबसे अधिक जरूरी होता है। हालांकि फाउनडेशन ने अपनी समस्‍याओं को तकनीकी तथा सामुदायिक गतिशीलता दोनों के समक्ष प्रस्‍तुत किया है, जिसके चलते आमतौर पर देखा गया है कि ग्रामीणों का धैर्य, विश्‍वास और स्‍वागत उत्‍कृष्‍ट रहे हैं।

संदर्भ घागस गांव गुड़गांव जिले के नगीना ब्‍लॉक में स्थित है। यह गुड़गांव जिले का मेवात क्षेत्र है जिसमें मेव-मुस्लिम जाति के लोगों को प्रभुत्‍व है। मेवात क्षेत्र के सामाजिक सूचक अल्‍प स्‍तर के हैं। इस गांव की जनसंख्‍या लगभग 2000 लोग अर्थात 300 परिवार की है।

भारतीय मानक ब्‍यूरो: जल की गुणवत्ता (तत्‍वों के वांछित एवं स्‍वीकार्य मापदंड (दूषित तत्‍व) के संबंध में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के दिशा निर्देश।

(a)http://www.webhealthcentre.com/expertspeak/indianstandards.asp

(b)http://www.webhealthcentre.com/expertspeak/indianstandards.asp

सुलभ इंटरनेशनल, दिल्‍ली

अभिवादन

हम घागस ग्राम स्‍तरीय संस्‍था - काला पहाड़ ग्राम विकास संस्‍था को इसे किर्यान्वित करने के लिए धन्‍यवाद देते हैं।
श्री बी.आर.पूनिया, प्रोग्राम लीडर की समुदाय गतिशीलता में योगदान के प्रति अपना आभार व्‍यक्‍त करते हैं।
हम सहगल फाउनडेशन प्रोग्राम कार्यान्‍वयन दल के श्री गोवर्धन, श्री महीपाल तथा मोहम्‍मद ज़फर की वचनबद्धता एवं मेहनत के प्रति भी अपना हार्दिक आभार व्‍यक्‍त करते हैं।
हम डॉ. राकेश पाण्‍डेय और सुश्री सुनिता चौधरी, एन.एम. सदगुरू फाउननडेशन, गुजरात, एवीएम साहनी, डेवलपमेंट आल्‍टरनेटिवज़, दिल्‍ली तथा डॉ. एस. वानी, इक्‍रीसेट, हैदराबाद के मार्गदर्शन और अभिरूचि के लिए सभी को धन्‍यवाद देते हैं।
लेखक का जीवनवृत्त
ललित मोहन शर्मा सहगल फाउनडेशन, इंडिया के वाटर मेनेजमेंट एंड इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर बिल्डिंग के प्रोग्राम लीडर हैं। वे एक स्‍नातकीय सिविल इंजीनियर हैं और इन्‍होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान, दिल्‍ली से प्रोद्योगिकी (प्रबंधन एवं प्रणाली) में स्‍नातकोत्तर उपाधि प्राप्‍त की है। इनके पास निर्माण प्रबंधन में स्‍नातकोत्तर डिप्‍लोमा है तथा इंस्‍टीट्यूशन ऑफ वेल्‍यूज़ के अध्‍येता हैं। फाउनडेशन में सदस्‍यता ग्रहण करने से पूर्व वे प्रोएग्रो ग्रुप ऑफ कंपनीज में मैनेजर-इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर डेवलपमेंट के पद पर कार्यरत थे। अब इस कंपनी को बॉयर कंपनी के नाम से जाना जाता है।

महत्वपूर्ण :कृषिगत रसायनों के कारण नाइट्रेट का उच्‍च स्‍तर
जल गुणवत्ता में कमी के कारण प्राकृतिक फलोराइड की सांद्रता के फलस्‍वरूप फलोराइड का उच्‍च स्‍तर
फिल्‍टर और जल उपचार न केवल महंगे होते हैं अपितु आसानी से मिलते भी नहीं हैं और ये केवल कुछ विषैले पदार्थों का ही उल्‍लेख करते हैं तथा प्रत्‍येक घर में इनके उपयोग को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है।
रीचार्जिंग कुंओं के पानी को पीने अथवा घरेलू उपयोग में नहीं लाया जा सकता है क्‍योंकि यह प्रभावी रूप से जमीनी पानी के स्‍तर में रिसकर मिल जाता है और उपयोग करने योग्‍य बनने में मिट्टी द्वारा फिल्‍टर हो जाता है।
इजेंक्टिंग कुंओं को जमीन के अंदर खोदा जाता है और इनमें फिल्‍टर तथा छिद्र वाली नली लगी होती है जो जल स्‍तर को ठीक करने के लिए जमीन तक जाती है।.
ग्राम स्‍तरीय संस्‍था फाउनडेशन द्वारा प्रेरित स्‍थानीय लोगों की एक संस्‍था होती है जो लोगों की जरूरतों पर आधारित होते हुए संपूर्ण समुदाय के हित के प्रति समर्पित होती है। यह गांव की धामिक-सामाजिक गतिशीलता के प्रति निष्‍पक्ष रहती है। पंचायत ग्राम विकास के लिए भी कार्य करती है, किंतु यह एक राजनीतिक निकाय भी होती है तथा जैसा उच्‍च सरकारी अधिकारियों द्वारा स्‍थानीय जनता का परामर्श लिए बिना निर्णय लिया जाता है उसके अनुसार अति विशिष्‍ट कार्यों के लिए निधि को अपने अधिकार में रखती है।
ग्राम चैम्पियन नेतृत्व के गुणों वाला एक आदरणीय सथानीय व्‍यक्ति होता है जो विकास संपन्‍न नेता की भूमिका निभाता है तथा जिसका व्‍यक्तित्‍व समस्‍त गांव के हितों के लिए कार्य करने वाली प्राकृतिक परोपकारी भावना से ओतप्रोत रहता है।
फिल्‍टर गडढे को सबसे पहले बड़े बड़े पत्‍थर अथवा ईंट के टुकड़ों से भरा जाता है जिसकी बीच की परत में मध्‍यम आकार के पत्‍थर अथवा ईंट के टुकड़े भर दिए जाते हैं और जमीन के बिल्‍कुल निकट ऊपरी परत में बालू भर दिया जाता है (चित्र 6)
पत्राचार के लिए ईमेल: : lalit.sharma@smsfoundation.org
वेबसाइट: www.smsfoundation.org, पर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है।

 

 

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