संदर्भ दिल्ली बाढ़: प्रशासनिक खींचतान को भुगत रही दिल्ली

शहरी बाढ़ (courtesy needpix.com)
शहरी बाढ़ (courtesy needpix.com)

दिल्ली में 17 नाले ऐसे हैं जिनका पानी यमुना में ड़ाला जाता है। पिछले दस साल से तो इन नालों की सफाई ईमानदारी से कभी हुई ही नहीं। सीवर भी इन्हीं नालों में ड़ाला जाता है। सीवर और भवन निर्माण से निकली सामग्री नालों की तलहटी (या तल) में चिपक जाती है जिसकी वजह से थोड़़ी सी बारिश होने पर भी नालों में पानी का भारी जमाव हो जाता है। अनधिकृत कालोनियों में से आधी में जल निकाली (ड्रे़नेज) जैसी व्यवस्था ही नहीं है। दिल्ली की बस्तियों में नियमित सफाई नहीं होती‚ निर्माण सामग्री को हटाने के प्रति गंभीरता नहीं है। सीमेंट सड़़कों और गलियों में चिपकता रहता है‚ जिससे सड़कों और गलियों की उंचाई बढ़ती जाती है जो जल भराव का कारण बनता है।  

पीडब्ल्यूडी के नालों का हाल यह है कि उनमें पानी की निकासी के लिए आउटलेट ही नहीं हैं। बड़े़ दुख के साथ कहना पड़़ता है कि चाहे एमसीड़ी हो या अन्य सरकारी विभाग सभी ने इस बार बारिश को लेकर लापरवाही बरती है। बारिश ज्यादा हुई है‚ इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन एक हफ्ते बाद भी ये जलभराव को लेकर गंभीर नहीं हैं। निजामुद्दीन क्षेत्र में स्थित 700 साल पुराने पंज पिरान कब्रिस्तान में भारी जलभराव की वजह से बड़ी तादाद में कब्र नष्ट हो गई हैं। इनमें अफगानिस्तान‚ इथोपिया जैसे कई देशों के नागरिकों की भी कब्रें थीं। इस बड़़ी घटना के बाद भी सांसद‚ विधायक वहां नहीं पहुंचे। मैंने खुद वहां कई दिनों तक 16–18 घंटे बैठकर बड़ी संख्या में पंप लगवाए तब जाकर काफी पानी निकला। पानी अभी भी कब्रिस्तान में भरा है लेकिन अब उसकी मात्रा काफी कम है। 
 राजनीतिक–प्रशासनिक स्तर पर नाकामी 

इस बार के जलभराव में राजनीतिक और प्रशासनिक‚ दोनों स्तर पर नाकामी साफ झलकी है। प्रश्न यह है कि सिल्ट (गाद) तो पूरे साल जमा होती है‚ उसकी समय–समय पर सफाई क्यों नहीं होतीॽ जलभराव रोकने के लिए जितनी भी एजेंसियों की जिम्मेदारी है‚ उनके पास कोई इमरजेंसी प्लान नहीं है। न उनके पास पानी निकालने वाली मशीनें अधिक संख्या में हैं और न स्टाफ। राजनीतिक और प्रशासनिक व्यक्ति जिनकी जिम्मेदारी है‚ वे काम करने की बजाय सिर्फ खोखली प्रतिक्रिया देते हैं। सच्चाई यह है कि उनकी मानसून को लेकर कोई तैयारी ही नहीं रहती।  निजामुद्दीन ईस्ट‚ भोगल जैसे कई इलाकों में जलभराव की वजह से लोगों को सामान का काफी नुकसान हुआ है। दिल्ली के अन्य इलाकों में भी स्थिति इससे अलग नहीं रही है। राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर हुई यह चूक आपराधिक लापरवाही और अक्षमता की श्रेणी में आती है। नागरिकों को परेशानी की एक बड़़ी वजह भाजपा और आप के बीच चल रही राजनीतिक खींचतान भी है। दिल्ली नगर निगम में डे़ढ़ साल से स्टैंडिंग कमेटी ही नहीं बनी है‚ जोनल कमेटियां भी नहीं बनाई गई हैं। इनके बिना नगर निगम में कैसे काम हो रहा होगा समझ में आ जाता है। दिल्ली में गंदी राजनीति चल रही है‚ उपराज्यपाल भी सिर्फ बयान देते हैं। भाजपा नगर निगम की सत्ता हथियाना चाहती है।  

बारिश तो हर साल होती है और हर साल ही पोल खुल जाती है। नगर निगम में स्टाफ और संसाधनों की कमी है जिसकी कोई चर्चा नहीं हो रही है। दिल्ली को भव्य स्वरूप देने की काफी राजनीतिक बातें हुई हैं‚ दिल्ली स्मार्ट भी नहीं हुई है। जब तक स्थानीय शासन और दिल्ली सरकार के बीच ईमानदारी से तालमेल नहीं होगा दिल्ली में जलभराव समेत अन्य समस्याएं बनी रहेंगी। दिल्ली की नगर निगम में गैर–अनुभवी पार्षदों की संख्या ज्यादा है‚ परिषद की बैठक बमुश्किल 15 मिनट से ज्यादा नहीं चलती। ऐसे में जनहित के मुद्दे सदन में कैसे उठेंगे और कैसे उनका समाधान होगाॽ अपना उदाहरण साझा करना चाहता है‚ हम शुरू में ही जल बोर्ड़ और ट्रेफिक इत्यादि एजेंसियों के अधिकारियों को बुलाकर जलभराव की संभावित जगहों की तलाश करवाते थे। पानी निकासी के लिए अच्छी संख्या में पंप रखते थे यानी सभी एजेंसियों और विभागों को साथ लेकर बारिश की कठिनाइयों को दूर करने की तैयारी की जाती थी।  

बड़ी–बड़ी बातें डि़जास्टर मैनेजमेंट के नाम पर हुई हैं‚ इस बार बारिश में जब लोग परेशान थे उस विभाग में कोई शिकायत नहीं सुनी गई। दिल्ली में जिम्मेदारियों के संबंध में सरकारी विभागों और एजेंसियों के बीच अस्पष्टता है‚ उसे अविलंब समाप्त करने की आवश्यकता है। इसकी वजह से भी जलभराव जैसी स्थितियों में विभाग और एजेंसी नागरिकों की ठीक से सुनवाई नहीं करतीं। अस्पष्टता को मिटाने का काम केंद्र और राज्य सरकार‚ दोनों को मिलकर करना होगा और यह काम जितनी जल्दी हो जाए उतना अच्छा है। 

लेखक दिल्ली के पूर्व मेयर रह चुके हैं। 

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Post By: Kesar Singh
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