हाय! समय ये कैसा आया,
मोल बिका कुदरत का पानी।
विज्ञान चन्द्रमा पर जा पहुंचा,
धरा पे प्यासे पशु-नर-नारी।
समय बेढंगा, अब तो चेतो,
मार रहा क्यों पैर कुल्हाड़ी?
गर रुक न सकी, बारिश की बूंदें,
रुक जाएगी जीवन नाड़ी।
रीत गए जो कुंए-पोखर,
सिकुड़ गईं गर नदियां सारी।
नहीं गर्भिणी होगी धरती,
बांझ मरेगी महल-अटारी।
समय बेढंगा........
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Post By: Shivendra