सम्पूर्ण जल प्रबन्धन की श्रेष्ठतम मिसाल—ग्राम तोरणी

मध्य प्रदेश के पूर्ण निमाड जिले का ग्राम तोरणी जल प्रबन्धन के क्षेत्र में विकसित नवीन अवधारणाओं के कारण अधिक प्रसिद्ध हुआ है। प्रथमतः अर्थव्यवस्था की बजट निधि का उपयोग जल प्रबन्ध में 'वाटर बजट' के रूप में किया गया। वाटर बजट तैयार करने हेतु ग्राम तोरणी सहित सम्पूर्ण जिले के 1067 ग्रामों में वर्षामापक यन्त्र लगाए गए। पूरे देश में पूर्व निमाड जिला ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ प्रति 3 कि.मी. पर वर्षामापक यन्त्र की व्यवस्था की गई है। ग्राम तोरणी के जल प्रबन्धन की प्रथम सीढ़ी 'वाटर बजट' ही है।ग्रामीण भारत में पाई जाने वाली समस्याओं में सूखे की समस्या को सर्वप्रमुख माना जा सकता है क्योंकि जल की उपलब्धता के आधार पर ही भारतीय कृषक समुदाय का सामाजिक-आर्थिक जीवन तय होता है। आज देश के कई जिले सूखे की समस्या से ग्रस्त हैं जिसके प्रमुख कारण है मानसून की 'मूडी प्रकृति' एवं मानव की बढ़ती हुई आवश्यकताएँ एवं लालची प्रकृति के फलस्वरूप होने वाली अन्धाधुन्ध कटाई। जल की समस्या से सिंचित रक्बा भी घटा है तथा प्रति हेक्टेयर उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ा है जिसके परिणाम ग्रामीण जीवन पर गरीबी, पलायन जैसी समस्याओं के रूप में सामने आ रहे हैं। इसके साथ ही सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पेयजल की भी समस्या बनी रहती है जिसके कारण गर्मी के मौसम में तो ग्रामीणों का पूरा दिन पेयजल व्यवस्था में ही गुजर जाता है जिससे इनके जीवन के अन्य पक्ष प्रभावित हो रहे हैं।

विगत कुछ दशकों में परिष्कृत-प्रबन्धन की विधा को जल-व्यवस्था के क्षेत्र में लागू किए जाने के प्रयास देश के विभिन्न क्षेत्रों में किए गए हैं। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए मध्य प्रदेश में जल प्रबन्धन हेतु अक्तूबर 1994 में 'राजीव गाँधी जलग्रहण क्षेत्र प्रबन्धन' कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। मध्य प्रदेश के जिला 'पूर्व निमाड' के ग्राम तोरणी में इस कार्यक्रम के तहत किया गया जल प्रबन्धन हाल ही में भारत के राष्ट्रपति के तोरणी में हुए प्रवास के कारण काफी चर्चित हुआ है। राष्ट्रपति की यात्रा ने जल प्रबन्धन की महत्ता को देश में स्थापित किया। सम्पूर्ण जल प्रबन्धन की उपलब्धियों के कारण ग्राम तोरणी मध्य प्रदेश सहित भारत में अपना विशिष्ट स्थान बना सका है।

मध्य प्रदेश के पूर्व निमाड जिले का ग्राम तोरणी जल प्रबन्धन के क्षेत्र में विकसित नवीन अवधारणाओं के कारण अधिक प्रसिद्ध हुआ है। प्रथमतः अर्थव्यवस्था की बजट निधि का उपयोग जल प्रबन्धन में 'वाटर बजट' के रूप में किया गया जहाँ सम्पूर्ण जिले में वर्षा जल की उपलब्धता, माँग तथा पूर्ति का आकलन करते हुए ग्रामीण जनता की सहभागिता से जिले के प्रत्येक ग्राम का 'वाटर बजट' तैयार किया गया। वाटर बजट तैयार करने हेतु ग्राम तोरणी सहित सम्पूर्ण जिले के 1067 ग्रामों में वर्षामापक यन्त्र लगाए गए। पूरे देश में पूर्व निमाड जिला ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ प्रति 3 कि.मी. पर वर्षामापक यन्त्र की व्यवस्था की गई है। ग्राम तोरणी के जल प्रबन्धन की प्रथम सीढ़ी 'वाटर बजट' ही है। इस बजट में ग्राम का कुल रक्बा, वर्षा के दौरान उपलब्ध कुल जल संसाधन ज्ञात किया गया तथा इसमें कृषि, मानव एवं पशु-उपयोग में आने वाली वार्षिक जल-राशि की मात्रा ज्ञात की गई। इस प्रकार ग्रामीणों के सामने आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए कि एक सामान्य वर्षा में कुल उपलब्ध जल का 20 प्रतिशत ही उनकी कुल आवश्यकता है। शेष 80 प्रतिशत जल उनके पास अतिरिक्त है। यदि इसे अर्थशास्त्र की दृष्टि से देखा जाए तो यह घाटे का न होकर लाभ का बजट है। इस बजट के आधार पर ग्रामीणों को यह विश्वास कराया गया कि यदि क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 90 से.मी. से आधी भी होती है तो उचित जल प्रबन्धन द्वारा सूखे की समस्या से निजात पाई जा सकती है।

इसी तरह जल प्रबन्धन हेतु स्थानीय स्तर पर कम लागत पर अधिक उपयोगी जल संरचनाएँ तैयार की गई। उन्हें खण्डवा हायड्रोलिक सिस्टम नाम दिया गया। इन जल संरचनाओं में नदी-नालों में पानी रोकने हेतु 'स्पीड ब्रेकर' की तरह आधी कच्ची तथा आधी पक्की संरचनाएँ तैयार की जाती हैं। इसमें गेट नहीं होते, 'ओवरफ्लो' होने पर जल इस संरचना के ऊपर से निकल जाता है। इस संरचना के दोनों ओर हल्के ढाल बनाए जाते हैं जिससे जल-बहाव में रुकावट उत्पन्न नहीं होती। इस संरचना के ऊपरी स्तर पर पत्थरों की 'पिचिंग' की जाती है तथा 'काँक्रीटिंग' भी की जाती है। इसकी लागत 'स्टॉपडेम' की तुलना में 75 प्रतिशत कम होती है तथा यह स्टॉपडेम से 5 गुना अधिक जल सतह के नीचे पहुँचता है। इसकी निर्माण तकनीक सरल है। ग्रामीणों द्वारा स्थानीय सामग्री एवं श्रम के उपयोग से इसे 15 से 30 दिवस में तैयार किया जा सकता है।

ग्राम तोरणी में इस तरह की एक जल संरचना तैयार की गई जिसके परिणाम से उत्साहित हो ग्रामीणों ने 6 अन्य जल संरचनाओं के निर्माण की कार्य योजना तैयार की है। इस वृहद संरचना को जल संरक्षण में सहयोग करने के लिए कई छोटी-छोटी संरचनाएँ तैयार की गई हैं जिसमें 5 हजार रनिंग मीटर कण्टूर ट्रेंच, 25 हजार रनिंग मीटर फील्ड बार्डर, 50 बोल्डर चैक, 8500 कुडियाँ निर्मित की गई हैं। इस तरह वर्षा के दौरान गिरने वाली जल की प्रत्येक बूँद को रोकने तथा भूमि में इसके अवशोषण का प्रबन्ध इस अवधारणा के माध्यम से तोरणी में किया गया है तथा जल प्रबन्धन की सम्पूर्ण अवधारणा को शब्दशः साकार करने का प्रयास हो रहा है। जलग्रहण के सिद्धान्त के अनुसार 'जल चले, न कि दौड़े' किन्तु सम्पूर्ण जल प्रबन्धन के सिद्धान्तानुसार 'पानी न तो दौड़े, न ही चले, बल्कि रेंगे तथा धरती में शनैः शनैः समाकर हमे दीर्घकाल तक कुओं तथा तालाबों के माध्यम से उपलब्ध हो।'

ग्राम तोरणी में जल संरचनाएँ इस तरह तैयार की गई हैं कि यदि ग्राम में 7 इंच बारिश हो तो 6.5 इंच जल को रोका जा सके। इन जल संरचनाओं का स्वरूप इस तरह बनाया गया है कि यदि बारिश की एक बूँद कहीं गिरती है तो वह मात्र 10 मीटर तक बह सकती है। इसके बाद वह किसी न किसी लघु जल संरचना में निश्चित ही संरक्षित हो जाएगी। इन संरचनाओं में एक दिन गिरे 15 से.मी. जल को रोका जा सकता है। इस प्रकार अवशोषित होकर जल धीमी गति से कुएँ, ट्यूबवेल, हैण्डपम्प एवं तालाबों में आगामी 6 माह से 1 वर्ष तक प्राप्त होता रहता है। इससे ग्राम में रबी फसल की प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई है तथा खरीफ की फसल के रक्बे में भी चमत्कारिक रूप से वृद्धि हुई है। साथ ही जिस ग्राम में ग्रीष्मकाल में पेयजल टैंकर के माध्यम से अन्य क्षेत्रों से लाया जाता था, उस मामले में भी गाँव आत्मनिर्भर हुआ है।

जलग्रहण के सिद्धान्त के अनुसार 'जल चले, न कि दौड़े' किन्तु सम्पूर्ण जल प्रबन्धन के सिद्धान्तानुसार 'पानी न तो दौड़े, न ही चले, बल्कि रेंगे तथा धरती में शनैः शनैः समाकर हमे दीर्घकाल तक कुओं तथा तालाबों के माध्यम से उपलब्ध हो।'तोरणी में किए गए सम्पूर्ण जल प्रबन्धन के व्यापक प्रभाव स्पष्ट रूप से ग्राम की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था पर दृष्टिगत हुए हैं जिन्हें हम दो भागो- पूर्वगामी प्रभाव तथा पश्चगामी प्रभावों में विभक्त कर सकते हैं। पूर्वगामी प्रभावों में हम उन प्रभावों को शामिल करेंगे जो जल संरचनाओं की निर्माण अवधि में सामने आए। ग्राम तोरणी में जब जून 2001 में स्वयंसेवी संस्था 'निमाड समग्र विकास समिति' के माध्यम से जल प्रबन्धन का कार्य प्रारम्भ हुआ तब इस अनुसूचित-जाति-बहुल ग्राम में मजदूरी के लिए ग्रामीणों को शहर पलायन करना पड़ता था। गाँव में जीविकोपार्जन के साधनों का सर्वथा अभाव था जिससे सभी ग्रामवासियों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। जल प्रबन्धन के निर्माण कार्य में उन्हें मजदूरी मिली, साथ ही स्वयं के गाँव के विकास में हाथ बँटाने का मौका। ऐसे में सम्पूर्ण ग्रामवासियों ने इसमें सहयोग किया। स्वयंसेवी संस्था ने ग्रामीणों को मजदूरी देने का भी प्रबन्ध किया तथा उनके इस पारिश्रमिक को शराब आदि से बचाकर उन्हें बचत हेतु प्रोत्साहित किया। ग्राम की कुल 688 आबादी से 439 लोग रोजगार हेतु पलायन कर जाया करते थे। इस स्थिति में परिवर्तन आया। ग्रामीणों ने विद्युत बिलों का भुगतान प्रारम्भ किया तथा 12 ग्रामीणों ने बैंक ऋण अदा किए तथा 2 ने नए भवन बनाए। 12 नई बैलगाड़ियाँ ग्रामीणों द्वारा खरीदी गईं। इसके अलावा ग्रामवासियों ने अपने बच्चों के नियमित शिक्षा हेतु भेजना प्रारम्भ कर दिया है। कुल मिलाकर शुरुआती परिणामों ने गाँव को एक नई दिशा दी है।

सूखा-उन्मूलन हेतु किए गए तोरणी के प्रयासों के पश्चगामी परिणामों का अभी पूर्ण मूल्यांकन नहीं किया जा सका है लेकिन इन जल संरचनाओं के आंशिक चमत्कारिक परिणाम सामने आने लगे हैं। निर्माण कार्य के बाद 3 जून, 2002 को मात्र 20 मिनट हुई बारिश से गाँव के जलस्त्रोतों में पानी आ गया तथा इसके बाद हुई बारिश से गाँव के नलकूप तथा कुएँ पर्याप्त जलस्तर तक भर गए। पहले जहाँ भूजल स्तर 550 फीट से भी नीचे चला गया था तथा ट्यूबवेल सूख गए थे, अब वे भरपूर पानी दे रहे हैं।

ग्राम तोरणी में निर्मित इन जल संरचनाओं की महत्ता को देखते हुए 6 सितम्बर, 2002 को भारत के राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम यहाँ पधारे तथा इन जल संरचनाओं की सराहना की तथा कहा कि इन कामों के दीर्घकालीन परिणाम बहुत बेहतर तथा स्थाई होंगे। ऐसे कार्यों को पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए।

इसी तरह देश के कई ख्यातिप्राप्त व्यक्ति तथा संस्थाएँ इस कार्य को देखने आए। जल प्रबन्धन के इन प्रयासों को मूर्त्त रूप प्रदान करने वाले जिले के सीईओ श्री राजेश गुप्ता के अनुसार- 'अभी केवल एक-चौथाई काम हुआ है। जिस दिन काम पूरा हो जाएगा, हम तोरणी को देश की श्रेष्ठ जल संरचनाओं वाले गाँव के रूप में प्रख्यात कर चुके होंगे।' कुल मिलाकर सम्पूर्ण जल प्रबन्धन के कारण कल का अविकसित तोरणी आज 'विकासशील तोरणी' है। आने वाले समय में यह विकसित ग्राम 'तोरणी' कहलाएगा।

(विजय पचौरी बाबासाहब अम्बेडकर राष्ट्रीय सामाजिक विज्ञान संस्थान, महू, म.प्र. में रिसर्च स्कॉलर तथा पीयूष लाड समाजशास्त्र में एम.ए. के छात्र हैं)

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