गंगोत्री पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र
गंगोत्री से उत्तरकाशी के बीच लगभग 4000 वर्ग किमी. से अधिक लम्बे क्षेत्र में पर्यावरण संकट से उभरने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने गंगोत्री इको सेंसेटिव जोन के नाम से एक अधिसूचना 18 दिसम्बर 2012 को जारी की थी, लेकिन इसको लागू करने के 4 महीने बाद मार्च 2013 में आई थी। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि हमारे यहाँ नियम कानूनों व अधिसूचनाओं को संचालित करने की कितनी कमजोर पहल है। इसके साथ ही अधिसूचना को बिना पढ़े, समझे, दुष्प्रचार की राजनीतिक संस्कृति को प्रदेश में बढ़ावा मिला है।
अच्छा होता कि अब तक विकास के इस नए मॉडल के नियमानुसार महायोजना बनाकर गाँव में ले जाया जा सकता था। काबिलेगौर है कि पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र में वनाधिकार कानून 2006 निष्प्रभावी नहीं है। इसी क्षेत्र में लगभग 2000 वर्ग किमी. में गंगोत्री नेशनल पार्क की पुरानी शर्त मौजूद है।
भागीरथी घाटी विकास प्राधिकरण में वर्णित महायोजना की छत्र छाया में इसका क्रियान्वयन होना है। वन अधिनियम 1988 मौजूद है। मनरेगा योजना गाँव में चलेगी। राज्य सरकार जन आँकाक्षांओं के अनुरूप पर्यावरण सुधार के लिये केन्द्र से अनुमति ले सकती है। राष्ट्रीय राजमार्ग के विकास में कोई बाधा नहीं है।
गाँव के सड़कों के निर्माण पर रोक नहीं है। यह पहली अधिसूचना है जिसमें स्थानीय समाज के हक-हकूकों, अधिकारों और आवश्यकताओं के अनुरूप आंचलिक महायोजना के आधार पर समाज व सरकार को मिलकर कार्य करना है। यह अवश्य है कि बड़े खनन् कार्यों, बड़े बाँधों व वनों की व्यावसायिक कटाई पर रोक है जिसकी माँग गंगा की अविरलता निर्मलता बनाए रखने हेतु की गई थी।
1. अधिसूचना गोमुख से उतरकाशी तक की इक्कोलॉजी को मेन्टेन करने की दृष्टि से की गई है। विशेषकर गंगोत्री से उत्तरकाशी तक की पारिस्थितकी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। यहाँ बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प के कारण कई गाँव भागीरथी की ओर धँसते नजर आ रहे हैं इसलिये यहाँ पर मर्यादित और विवेकपूर्ण तरीके से ग्राम समाज के साथ विशेषकर महिलाओं व ग्राम सभा/पंचायत के साथ मिलकर विकास की योजना बनाने की जोरदार पहल की गई है।
2. इको सेंसेटिव जोन के अर्न्तगत 88 गाँव के लिये बनाई जाने वाली आंचलिक महायोजना के द्वारा राज्य सरकार आम जन की भावनाओं के अनुसार पुनः संशोधित कर सकती है। स्थानीय जनता व विशेषकर महिलाओं के परामर्श से राज्य सरकार आंचलिक महायोजना बनाएगी, जिसका अनुमोदन भारत सरकार द्वारा किया जाना है, जिसमें- जल संरक्षण की अवधारणा को ध्यान में रखना है। नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखना है। भवनों, होटलों, रिसॉर्ट के निर्माण में पारम्परिक वास्तुकला को प्रोत्साहन दिया जाना है। स्थानीय निवासियों की आवश्यकताओं व अधिकारों को महत्व मिलना है। तीर्थाटन को बढ़ावा मिलेगा कृषि भूमि में परिवर्तनों की कम गुजांइशें रखी गई है। हरित क्षेत्र, वन क्षेत्र, कृषि क्षेत्र में कोई कटौती नहीं होनी है।
3. अत्यधिक भूक्षरण, फॉल्ट व चिन्हित तीव्र ढलानों को बचाने के लिये समुचित उपाय होंगे।
4. पर्यटन महायोजना के अनुसार ही कार्य होगा जिसे आंचलिक महायोजना का ही हिस्सा माना जा रहा है।
5. सड़क निर्माण में मलबे का निस्तारण सड़क की लागत में शामिल होगा। कोई भी मलबा ढलानों व नदियों में नहीं डाला जाएगा। सड़क निर्माण के दौरान जल निकासी हेतु पर्याप्त नालियाँ बनाई जानी है।
6. प्राकृतिक व मानव निर्मित विरासतें जैसे- नदियों के संगम, स्थलीय रमणीक क्षेत्र, तालाब, झरने, हरित क्षेत्र, मंदिरों, भवनों, शिल्पकलाओं आदि का संरक्षण किया जाना है।
7. प्लास्टिक रिसाइक्लिंग की जानी है।
8. मल और जल हेतु ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाने हैं। 9. वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, ग्रीन इण्डस्ट्री, ट्रेकिंग, सूक्ष्म परियोजनाएँ, सौर ऊर्जा, जैव संसाधनों पर आधारित उद्योग स्थापित होंगे।
10. अधिसूचना के अन्तर्गत प्रस्तावित किए गए कुछ कार्यों के लिये केन्द्रिय वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय से राज्य सरकार को स्वीकृति लेनी पड़ेगी, जो विकास के नाम पर दलाली को रोक सकता है। यह एक प्रकार का चैक मैकेनिज्म भी है, जो हिमालय क्षेत्र में विकास के नए मॉडल का प्रतिनिधित्व कर सकता है।
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Post By: Shivendra