शक्ति रूपा कौशिकी

कौशिकी की उत्पत्ति की एक दूसरी कथा मार्कण्डेय पुराण में मिलती है। शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो असुर भाई थे जिन्होंने घोर तपस्या करके देवताओं का राज्य हथिया लिया और उनको प्रताड़ित करना शुरू किया और उनका सब कुछ छीनकर उन्हें राज्य से निकाल दिया। यह सब देवता राज्य विहीन होकर हिमालय जाते हैं और माँ भगवती की स्तुति करते हैं। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर पार्वती देवताओं से उनके आने का कारण पूछती हैं। उसी समय पार्वती के शरीर से शिवा देवी उत्पन्न होती हैं पार्वती से कहा,

“शरीरकोशाद्यत्तस्याः पार्व्वत्या निःसृताम्बिका
कौशिकीति समस्तेषु ततो लोकेषु गीयते।।
तस्यां विनिर्ग्वतायान्तु कृष्णाभूत्सापि पार्व्वती
कालिकेति समाख्याता हिमाचल कृताश्रयाः।।”


“शुम्भ और निशुम्भ ने इनको (देवताओं को) युद्ध में परास्त करके राज्य से निकाल दिया है। इसलिए समस्त देवता यहाँ एकत्र होकर हमारी स्तुति कर रहे हैं। (इसके बाद) पार्वती के शरीर कोश से (शुम्भ और निशुम्भ को वध करने के लिए) शिवा देवी निकली थीं इसलिए वह लोकों में कौशिकी नाम से प्रसिद्ध र्हुईं। पार्वती के शरीर से जब कौशिकी प्रकट हो गई, तभी से पार्वती कृष्ण वर्ण की हो गईं और कालिका नाम से प्रसिद्ध होकर हिमालय पर्वत पर रहने लगीं।”

कौशिकी (कोसी) से सम्बन्धित इस तरह की कितनी ही कहानियाँ पुराणों, आदि-ग्रंथों, लोक कथाओं और किंवदन्तियों में भरी पड़ी हैं।

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Post By: tridmin
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