सिर्फ स्नान नहीं, विज्ञान है मकर सक्रान्ति

makar sankranti
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जिस क्षण से जीवनवर्धक सूर्य, जीवनसहांरक शनि की राशि में प्रवेश कर उसके नकरात्मक प्रभाव को रोकता है। वह पल ही मकर संक्रान्ति का शुभ संदेश लेकर आता है। तीसरा वैज्ञानिक संदर्भ संगम का तट, नदी का स्नान और सूर्य अर्घ्य के रिश्ते को लेकर है। हम जानते हैं कि नदियां सिर्फ पानी नहीं होती। हर नदी की अपनी एक अलग जैविकी होती है।...एक अलग पारिस्थितिकी। जहां दो अलग-अलग मार्ग से आने वाले जीवंत प्रवाह स्वाभाविक तौर पर मिलते हैं, उस स्थान का हम संगम व प्रयाग के नाम से पुकारते हैं। प्रयाग पर प्रवाहों के एक-दूसरे में समा जाने की क्रिया से नूतन उर्जा उत्पन्न होती है।

मकर सक्रान्ति का पर्व आया और चला गया। नदी में एक डुबकी लगाई; खिचड़ी खाई और आगे बढ़ गये। क्या हमारे त्यौहारों का इतना ही मायने है अथवा इनका भी कोई विज्ञान है? मकर सक्रान्ति सूर्य पर्व है या नदी पर्व? हर सूर्य पर्व में नदी स्नान की बाध्यता है और हर नदी पर्व में सूर्य को अर्घ्य की। क्यों? कुल मिलाकर माघ का महीना, सूर्य, मकर राशि, संगम का तट, नदी का स्नान और खिचड़ी खाना-ये पांच मुख्य बातें मकर सक्रान्ति की तिथि से जुड़ी हैं। इनके विज्ञान उल्लेख हमारे उन पुरातन ग्रंथों में दर्ज है, जिन्हें हमने अंधकार के पोथे कहकर खोलने से ही परहेज मान लिया है। क्या है इनका विज्ञान? मकर सक्रान्ति माघ के महीने में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का पर्व है। आइये! जानते हैं कि क्या है सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का मतलब? सभी जानते हैं कि इस ब्रह्मांड में दो तरह के पिण्ड हैं। ऑक्सीजन प्रधान और कार्बन डाइऑक्साइड प्रधान। ऑक्सीजन प्रधान पिण्ड ‘जीवनवर्धक’ होते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड प्रधान ‘जीवनसंहारक’। बृहस्पति ग्रह जीवनवर्धक तत्वों का सर्वश्रेष्ठ स्रोत है। शुक्र सौम्य होने के बावजूद आसुरी है। रवि यानी सूर्य का द्वादशांश यानी बारहवां हिस्सा छोड़ दें, तो शेष भाग जीवनवर्धक है। सूर्य पर दिखता काला धब्बे वाला भाग मात्र ही जीवन सहांरक प्रभाव डालता है। वह भी उस क्षेत्र में, जहां उस क्षेत्र से निकले विकिरण पहुंचते हैं।

अलग-अलग समय में पृथ्वी के अलग-अलग भाग इस नकारात्मक प्रभाव में आते हैं। अमावस्या के निकट काल में जब चंद्रमा क्षीण हो जाता है, तब संहारक प्रभाव डालता है। शेष दिनों में, खासकर पूर्णिमा के दिनों में चंद्रमा जीवनवर्धक होता है। इसीलिए चंद्रमा और सूर्य के हिसाब से गणना के दो अलग-अलग विधान हैं। मंगल रक्त और बुद्धि... दोनों पर प्रभाव डालता है। बुध उभयपिण्ड है। जिस ग्रह का प्रभाव अधिक होता है, बुध उसके अनुकूल प्रभाव डालता है। इसीलिए इसे व्यापारी ग्रह कहा गया है। व्यापारी स्वाभाव वाला। छाया ग्रह राहु-केतु तो सदैव ही जीवनसंहारक यानी कार्बन डाइऑक्साइड से भरे पिण्ड हैं। इनसे जीवन की अपेक्षा करना बेकार है। जब-जब जीवनवर्धक ग्रह संहारक ग्रहों के मार्ग में अवरोध पैदा करते हैं। संहारक ग्रहों की राशि में प्रवेश कर उनके जीवनसंहारक तत्वों को हम तक आने से रोकने का प्रयास करते हैं; ऐसे संयोगों को हमारे शास्त्रों ने शुभ तिथियां माना। ऐसा ही एक संयोग मकर सक्रान्ति है।

शनि जीवनसंहारक शक्तियों का पुरोधा है। अलग-अलग ग्रह अलग-अलग राशि के स्वामी होते है। शनि मकर राशि का स्वामी ग्रह है। जिस क्षण से जीवनवर्धक सूर्य, जीवनसहांरक शनि की राशि में प्रवेश कर उसके नकरात्मक प्रभाव को रोकता है। वह पल ही मकर संक्रान्ति का शुभ संदेश लेकर आता है। तीसरा वैज्ञानिक संदर्भ संगम का तट, नदी का स्नान और सूर्य अर्घ्य के रिश्ते को लेकर है। हम जानते हैं कि नदियां सिर्फ पानी नहीं होती। हर नदी की अपनी एक अलग जैविकी होती है।...एक अलग पारिस्थितिकी। जहां दो अलग-अलग मार्ग से आने वाले जीवंत प्रवाह स्वाभाविक तौर पर मिलते हैं, उस स्थान का हम संगम व प्रयाग के नाम से पुकारते हैं। प्रयाग पर प्रवाहों के एक-दूसरे में समा जाने की क्रिया से नूतन उर्जा उत्पन्न होती है। लहरें उछाल मारती हैं। जिसका नतीजा ऑक्सीकरण की रासायनिक क्रिया के रूप में होता है। ऑक्सीकरण की क्रिया में पानी ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाती है। यह प्रक्रिया बी.ओ.डी. यानी बायो ऑक्सीजन डिमांड को कम करती है। जाहिर है कि प्रयाग स्थल पर पानी की गुणवत्ता व मात्रा दोनों ही बेहतर होती है। अतः हमारे पुरातन ग्रंथ प्रयाग में स्नान को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।

मकर सक्रान्ति के दिन लाखों लोगों द्वारा एक साथ स्नान से नदियों में होने वाले वाष्पन का वैज्ञानिक महत्व है। इस दिन से भारत में सूर्य के प्रभाव में अधिकता आनी शुरू होती है। सूर्य के प्रभाव में अधिकता का प्रारंभ और ठीक उसी समय नदियों में एक साथ वाष्पन की क्रिया एक-दूसरे के सहयोगी हैं। दोनों मौसम के तापमान को प्रभावित करते हैं। इससे ठीक एक दिन पहले एक साथ-समय पूरे पंजाब में लोहड़ी मनाते हैं। इन क्रियाओं के आपसी तालमेल का प्रभाव यह होता है कि उत्तर भारत के मैदानों में मकर सक्रान्ति से ठंड उतरनी शुरू हो जाती है। ध्यान देने की बात है कि इस ठंड की विदाई भी हम होली पर पूरे उत्तर भारत में एक खास मुहुर्त पर व्यापक अग्नि प्रज्वलन से करते हैं।

मकर सक्रान्ति को खिचड़ी भी कहते हैं। इस दिन खिचड़ी आराध्य को चढ़ाने, खिलाने व खाने का प्रावधान है। मकर सक्रान्ति से मौसम बदलता है। जब भी मौसम बदले, मन व स्वास्थ्य की दृष्टि से खानपान में संयम जरूरी होता है। वर्षा से सर्दी आने पर पहले श्राद्ध का संयम और फिर नवरात्र के उपवास। इधर पौष की शांति और फिर मकर सक्रान्ति को खानपान की सादगी। सर्दी से गर्मी ऋतु परिवर्तन का महीना चैत्र का खरवास फिर रामनवमी। इनके बहाने ये संयम कायम रखने का प्रावधान है। न सिर्फ शारीरिक संयम बल्कि मानसिक संयम भी। ऐसे ही संयम सुनिश्चित करने के लिए कमोबेश इन्ही दिनों इस्लाम में रोजा और ईसाई धर्म में गुड फ्राइडे के दिन बनाये गये हैं है। विज्ञान धार्मिक आस्था में विभेद नहीं करता है। अलग-अलग धर्मिक आस्थायें अलग-अलग भूगोल में स्वरूप लेने के कारण थोड़ी भिन्न जरूर होती हैं, लेकिन इनका विज्ञान एक ही है।... सर्वकल्याणकारी।

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