![सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी पर अतिक्रमण,फोटो सभागार:- केसर सिंह](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/2023-06/%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%87%20%E0%A4%B9%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%8F%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82%20-%20%E0%A4%8F%E0%A4%A8%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%9F%E0%A5%80.jpg?itok=pPhGzk1E)
5 जून 2023, देहरादून, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दून जिला प्रशासन को आदेश जारी कर एक महीने के भीतर सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी से सभी अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं। सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी में भयानक अतिक्रमण के खिलाफ याचिकाकर्ता एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने उठाया था, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि "गंगा नदी कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन प्रावधान संबंधित नदी पर भी लागू होते हैं, जो इसके फ्लड प्लेन में किसी भी निर्माण को प्रतिबंधित करते हैं"। प्रशासन को 12 जुलाई तक एक कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है।
25 किमी लम्बी सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी, नदी सोंग की एक सहायक नदी है। गंगा की सहायक सोंग देहरादून घाटी में बहने वाली सबसे बड़ी नदियों में से एक है जो 190 km तक फैली हुई है। सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी मालदेवता में सोंग में मिलती है। जिस पर सहस्त्रधारा से लगता हुआ धनौला गांव में नदी भूमि - यानी नदी की ज़मीन पर भूमाफिया अवैध कब्जा कर निर्माण कर करोड़ों का वारा-न्यौरा कर रहे हैं। सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी में फ्लड-प्लेन पर अवैध निर्माण गतिविधियां धड़ल्ले से चल रही हैं। अगर नदी के फ्लड-जोन पर अतिक्रमण रोका न गया तो इसके परिणाम वहां के स्थानीय निवासी, जलीय और स्थलीय जीवों दोनों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
![अगस्त महीने में ली गई तस्वीरें। नदी लोगों के घर-घर घूम रही है क्योंकि लोग नदी के बीच में अपना घर बना चुके हैं।](/sites/default/files/inline-images/%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%87%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%97%E0%A4%88%20%E0%A4%A4%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A5%A4.jpg)
सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी का फ्लड-जोन खाली रहने चाहिए। बाढ़ आने पर नदियों को स्वाभाविक रूप से और हानिरहित रूप से फैलने के लिए स्थान की आवश्यकता होती है, अगर इसी तरह अतिक्रमण चलता रहा तो वहाँ पर आने वाले जलप्रलय को "मानव निर्मित आपदा" करार किया जायेगा। बाढ़ न सिर्फ जीवन बल्कि पर्यावरण को भी बहुत हानि पहुंचाती है, जैसे - पानी की गुणवत्ता में गिरावट ,पर्यावरण असंतुलन तथा अन्य पारिस्थितिक प्रक्रियाओं पर भी प्रभाव पड़ता है।
याचिकाकर्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने धनौला गांव में नदी क्षेत्र में अवैध निर्माण गतिविधियों के मुद्दे को NGT के समक्ष सबसे पहले उठाया था, जिस पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी ) ने दून जिला प्रशासन को आदेश जारी कर एक महीने के भीतर सहस्त्रधारा से सभी अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए गए हैं। 5 जनवरी को, एनजीटी ने एक एक्सपर्ट कमेटी को तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए राज्य पीसीबी और देहरादून डीएम की एक संयुक्त समिति का गठन किया। जिसने अपने पहली ही रिपोर्ट में कहा कि वीरेंद्र अरोड़ा ने फ्लडप्लेन जोन पर अतिक्रमण किया है।
एडवोकेट राहुल वर्मा जो राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं वर्मा ने कहा कि ''यदि अतिक्रमणकर्ता अतिक्रमण हटाने में विफल रहता है, तो जिला अधिकारी एक महीने में इसे हटाने और गिराने की कार्रवाई करेंगे.''
सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी के और भी हैं दर्द -
(एक) भारत खबर की एक रिपोर्ट की मुताबिक भूमाफियाओं का सहस्रधारा में सरकारी जमीनें कब्जाने को ऊंचे दर्जे का खेल हो रहा है। वहां जमीनें कब्जाने के लिए नदी को ही राजस्व रिकार्ड से गायब कर दिया है। हैरानी की बात यह है कि सहस्रधारा में बहने वाली बाल्दी नदी चामासारी गांव के राजस्व रिकार्ड में नहीं है। जबकि उससे नीचे और ऊपर दोनों गांवों के नक्शों में ये नदी दिखाई गई है। हाल में सहस्रधारा में चल रहे सर्वे के दौरान ये चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। प्रसिद्ध पर्यटक स्थल सहस्रधारा ग्राम बगड़ाधोरण की सीमा में पड़ता है। जिसके राजस्व मानचित्र में बाल्दी नदी दिखाई गई है। उससे ऊपर चामासारी गांव पड़ता है। लेकिन चामासारी के राजस्व नक्शे में ये नदी नहीं है। ना ही 1400 फसली(नए) ना ही 1345 फसली (पुराने) नक्शे में नदी दिखाई गई है। जिस जगह पर नदी है, उस जगह पर नाम खेत दिखाए गए हैं। हैरानी की बात है कि नदी उससे ऊपर कार्लीगाड़ और अन्य गांवों के नक्शों में भीअंकित है। यानी सिर्फ बीच की नदी गायब है।
यही नहीं, चामासारी में बाल्दी नदी होने का सबूत सर्वे आफ इंडिया के डिजीटल नक्शे में भी मौजूद है। ऐसे में राजस्व की भूमिका पर बड़ा सवाल उठा है। सूत्रों का कहना है कि सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे के चलते नदी के खसरा नंबर को नाम खेतों में दर्ज कर दिया गया। ताकि कब्जाई गई जमीनों को एडजेस्ट किया जा सके। इससे भी ज्यादा ताज्जुब की बात ये है कि राजस्व अभिलेखों में इतनी बड़ी गड़बड़ी की शिकायत आज तक किसी पटवारी या तहसीलदार या अन्य कर्मचारी ने डीएम या राजस्व अभिलेख अधिकारियों से क्यों नहीं की। सहस्रधारा में अवैध अतिक्रमण के बाद शुरू हुए वन और राजस्व विभाग के संयुक्त सर्वे के दौरान वन विभाग की सर्वे टीम में शामिल रिटायर सर्वेयर सीपी डोभाल ने राजस्व की इस गलती को पकड़ा
![सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी पर अतिक्रमण](/sites/default/files/inline-images/%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%20%E0%A4%85%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%A3%20.png)
(दो) दैनिक हिन्दुस्तान की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि सहस्रधारा में पहाड़ कटान के साथ नदी में भी धड़ल्ले से अतिक्रमण जारी है। कई जगह नदी क्षेत्र में निर्माण हो रहे हैं। जबकि कुछ रिजार्ट को एमडीडीए सील कर चुका है, लेकिन उसके आसपास नए निर्माण चल रहे हैं। सहस्रधारा में करीब दो किलोमीटर एरिया में नदी के बीच में ही अतिक्रमण हो रहे हैं। बाकायदा पुश्ते डालकर नदी का रुख मोड़ दिया गया है। हैरानी की बात है कि कई जगह नदी महज पांच फीट ही रह गई है। इससे पर्यटक स्थल की खूबसूरती खत्म हो रही है। एक जगह तो नदी के बीच में पुश्ता बनाकर काफी बड़े एरिया को समतल किया जा रहा है। इसके अलावा कई जगह तीन तीन मंजिला भवन बनाए जा रहे हैं।
(तीन) न्यूज़ क्लिक की अपनी एक रिपोर्ट ‘नदियों की जगह उगी इमारतें, इमारतों के बीच बह रहीं नदियां’ में वर्षा सिंह कहती हैं कि पहाड़ों से उतर कर देहरादून की ओर आती जंगली नदियों में बारिश के भीगे दिनों में ही पानी नज़र आता है। शहर उस समय मुश्किल में फंस जाता है। इन नदियों को लोग साल के दस महीने भूल जाते हैं। बरसात के इन दो महीनों में ये नदियां अपना वजूद जताती हैं। यही समय ये सवाल पूछने का भी है कि नदियों के रास्ते पर हमने इतने निर्माण कार्य कैसे कर लिए? नदियों की जगह हमने कैसे छीन ली? रिस्पना-सुसवा जैसी खत्म हो रही नदियों को दोबारा जिंदा करने के लिए करोड़ों रुपये के एक्शन प्लान पर काम हो रहा है। बरसात के इन दो महीनों में जब ये नदियां जागती हैं। इनके छोर पर उग आई बस्तियां चारों तरफ पानी से घिर जाती है।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून अपनी 23 नदियों को बचा नहीं पा रही है। देहरादून शहर के बीच से होकर बहने वाली कोई भी नदी अब सदानीरा नहीं रही है। धीरे-धीरे कर देहरादून घाटी की सभी नदियों को मार डाला गया है। सभी नदियों को सरकारी लापरवाही और अतिक्रमणकारियों ने गंदा नाला बना दिया है। हालात ये हो गये है कि रिस्पना, बिंदाल हो या सहस्त्रधारा-बाल्दी नदी, जैसी सभी नदियां इंसानी मलमूत्र ढोने के लिए मजबूर हैं, और अतिक्रमण ने उनका गला घोंट रखा है।
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