पिछले पांच वर्ष में स्थाई ढांचे, प्रणालियों और प्रक्रियाओं का निर्माण शहरी स्वच्छता के प्रति भारत सरकार के दृष्टिकोण की कसौटी रहा है, जिससे स्वच्छता को संस्थागत रूप देने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। अनुकूल नीतिगत समर्थन और सुधारों, मिशन कार्यान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन, तृतीय पक्ष जांच द्वारा समर्थित सुदृढ़ और वास्तविक समय संचालित निगरानी प्रणाली, म्युनिसिपल स्टाफ के क्षमता निर्माण और स्वच्छता के क्षेत्र में हासिल किए गए परिणामों और सृजित वातावरण को स्थायित्व प्रदान करने के लिए एक सक्षम वातावरण की आवश्यकता है।
भारत में शहरी स्वच्छता
जनगणना (2011) से पता चला कि शहरी भारत में 12.6 प्रतिशत परिवार खुले में शौच (ओडी) जाते हैं। निश्चित रूप से ग्रामीण भारत की तुलना में यह संख्या कम थी, जहाँ 68 प्रतिशत लोग खुले में शौच (ओडी) जा रहे थे, फिर भी इसका शहरी नागरिकों के स्वास्थ्य और समग्र पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ रहा था। इतना ही नहीं, देश में सेप्टिक टैंक की मात्र 38 प्रतिशत कवरेज और मल व्ययन प्रणाली के 33 प्रतिशत से भी कम नेटवर्क के चलते शौचालयों, चाहे वह पारिवारिक हों अथवा सामुदायिक/ सार्वजनिक शौचालय, से उत्सर्जित 70 प्रतिशत से अधिक मल जल का निपटान असुरक्षित तरीके से किया जा रहा था चिंता की एक बड़ी बात यह थी कि पेयजल प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किए जा रहे 75 प्रतिशत ताजा जल संसाधन मल जल से दूषित हो रहे थे। कुल प्रदूषण गणना में इसका योगदान 60 प्रतिशत था (के.प्र.नि.बो. रिपोर्ट, 2009)।
खराब स्वच्छता की लागत
स्थाई विकास लक्ष्यों में स्वच्छता, सफाई और स्वास्थ्य पर विशेष बल दिया गया है। विश्वभर में इस बात के महत्त्वपूर्ण साक्ष्य मौजूद हैं कि बेहतर स्वच्छता, स्वास्थ्य और सफाई व्यवस्था से मच्छर जनित (वेक्टर-बोर्न) बीमारियों, परजीवी संक्रमणों और पोषक तत्वों की कमी से होने वाली बीमारियों पर कारगर ढंग से नियंत्रण करने में मदद मिलती है। ऐसे अध्ययन किए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि स्वच्छता और आरोग्यता का पेट और आंत की बीमारियों (विशेषकर अतिसार), मनोवैज्ञानिक मुद्दों और एलर्जी की स्थितियों में कमी के साथ सम्बन्ध है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट (2011) के अनुसार, अतिसार से होने वाली करीब 90 प्रतिशत शिशु मौतों का विषाक्त जल, स्वच्छता के अभाव या अपर्याप्त आरोग्यता के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। संचारी रोगों पर असर के अतिरिक्त, बेहतर स्वच्छता से कम भार वाले शिशुओं के जन्म, गर्भपातों और जन्म से विकृत पैदा होने वाले शिशुओं में कमी आती है। अध्ययनों से यह बात सिद्ध हुई है कि स्वच्छता और आरोग्यता में सुधार के परिणाम बेहतर स्वास्थ्य के रूप में सामने आए हैं।
भारत में पोषण सुरक्षा के बारे में इंडिया हेल्थ रिपोर्ट (पीएचएफआई, 2015) के अनुसार, पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में स्वच्छता सुविधाओं तक बेहतर पहुंच के कारण 2006 और 2014 के बीच बौनेपन (आयु के अनुसार कद सामान्य से कम होना) में 13 प्रतिशत अंक और कम भार वाले बच्चों (अंडरवेट और बौने) बच्चों में 5 प्रतिशत अंक की गिरावट आई। परिष्कृत स्वच्छता सुविधाओं का न केवल स्वास्थ्य पर बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विकासशील देशों के बारे में यह बात विशेष रूप से लागू होती है। उदाहरण के लिए अगस्त 2017 में भारत में यूनिसेफ द्वारा कराए गए एक स्वतंत्र अध्ययन के अनुसार यह सिद्ध हुआ कि अगर खुले में शौच की प्रवृत्ति समाप्त हो जाए, तो भारत में प्रत्येक परिवार को करीब 50,000 रुपए वार्षिक लाभ होगा।
स्थाई शहरी स्वच्छता का सफर
दो अक्टूबर 2019 को शहरी भारत खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया, जो महात्मा गांधी को उनकी 150वीं जयंती के अवसर पर उपयुक्त श्रद्धांजलि थी। यह ऐतिहासिक लक्ष्य केवल 5 वर्ष की अल्पावधि में हासिल किया जाना, सराहनीय था, विशेष रूप से यह देखते हुए कि आज तक सरकार के किसी कार्यक्रम में शहरी स्वच्छता के मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया गया था। कार्यक्रम के पांच वर्षों के दौरान न केवल ओडीएफ मिशन के लक्ष्य पूरे किए गए, लाखों नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं को गरिमा और सुरक्षा प्रदान की गई, मच्छर से होने वाली बीमारियों में महत्त्वपूर्ण कमी आई और नतीजतन स्वास्थ्य मानदंडों में सुधार अनुभव किया गया। इससे शहरी भारत समग्र स्वच्छता के पथ पर अग्रसर दिखाई दिया।
आवास और शहरी मामले मंत्रालय भारत सरकार के विभिन्न मिशनों को लागू कर रहा है, जैसे स्वच्छ भारत मिशन (शहरी), अमृत, स्मार्ट सिटी मिशन, एनईआरयूडीपी आदि। ये सभी कार्यक्रम शहरी स्वच्छता के मुद्दे का समाधान करते हैं। पिछले 5 वर्षों में सरकार के शहरी स्वच्छता कार्यक्रमों में प्रभावशाली सफलता (चित्र-I), हासिल हुई है, जहाँ देश के 99 प्रतिशत से अधिक शहर और 35 राज्य/संघ राज्य क्षेत्र ओडीएफ (स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के अन्तर्गत), बन गए हैं।
आवास और शहरी मामले मंत्रालय ने गूगल की सहायता से शहरों में सभी सार्वजनिक और सामुदायिक शौचालयों के मानचित्र अपलोड किए हैं और गूगल पर उपलब्ध कराए हैं ताकि नागरिक और आगंतुक अपने आस-पास इन सुविधाओं का आसानी से पता लगा सकें। (चित्र-II) आज तक ढाई हजार शहरों में 58,000 सार्वजनिक शौचालय (एनएचएआई से 500 सिहत), गूगल मानचित्र पर उपलब्ध हैं। शहरी भारत में वर्षवार ओडीएफ यात्रा चित्र-3 में दर्शायी गई है।
शहरी स्वच्छता कार्यक्रम का विस्तार और स्थायित्व के लिए उन्नत दृष्टिकोण
प्रारम्भ से ही, हमारे मस्तिष्क में यह प्रश्न सबसे प्रबल था कि शहरों के ओडीएफ दर्जे को बिना किसी विफलता के कैसे स्थाई बनाए रखा जा सकता है। अतः हमने ओडीएफ प्रोटोकॉल प्रारम्भ किया, जो देश में अपनी तरह का पहला प्रयास था, जिसमें एक स्वतंत्र तृतीय पक्ष को यह प्रमाणित करना था कि कोई ओडीएफ शहर प्रोटोकॉल की अपेक्षाएं संतोषजनक ढंग से पूरी कर रहा है। (बॉक्स-1)
इतना ही नहीं, ओडीएफ दर्जे को बिगड़ने से रोकने के लिए, ओडीएफ प्रमाण पत्र की वैधता केवल 6 महीने रखी गई; जिसके बाद शहर से तृतीय पक्ष से फिर से ओडीएफ प्रमाणपत्र हासिल करना होगा।
परन्तु, हमने महसूस किया कि उन सभी स्वच्छता चुनौतियों का समाधान करना मात्र पर्याप्त नहीं था जिनका सामना किसी शहर को ओडीएफ बनने के लिए करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यह प्रश्न विचारणीय है कि जगह की कमी वाले परिवार, तंग बस्तियों के निवासी, किसी शहर में आगंतुक या उसकी अस्थाई आबादी को प्राकृतिक शंकाओं से निपटने में कितनी कठिनाई होती है? उन्हें स्वच्छ, कार्यात्मक और इस्तेमाल योग्य शौचालयों की सुविधा कहां से मिलगी? जब शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक/ सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया जा रहा था, तो वे खराब संचालन और रखरखाब की समस्याओं के कारण लगभग अनुपयोगी और व्यर्थ हो गए और लोगों को खुले में शौच जाने और अनुपयुक्त स्थानों पर पेशाब करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसलिए अगला तार्किक कदम सामुदायिक/सार्वजनिक शौचालयों की स्वच्छता के स्वीकार्य स्तर को बनाए रखने के लिए एक मानक प्रोटोकॉल-ओडीएफ-प्रोटोकॉल- तैयार करना था, ताकि वे कार्यात्मक, उपयोगी, स्वच्छ बनाए रखे जा सकें और वास्तव में नागरिकों द्वारा उपयोग किए जा सके। इसलिए ओडीएफ+प्रोटोकॉल प्रारम्भ किया गया और फिर से ओडीएफ प्रोटोकॉल को तीसरे पक्ष के प्रमाणीकरण की आवश्यकता थी।
चुनौती के अगले स्तर का सामना उस समय करना पड़ा, जबकि शौचालय कार्यात्मक थे और उनका उपयोग किया जा रहा था, ताकि खुले में मल-मूत्र त्यागने पर अंकुश लगाया जा सके। अब चुनौती यह थी कि इन शौचालयों से उत्सर्जित मल-जल कीचड़ का निपटान कैसे करें? इसे कैसे सुरक्षित रूप से प्रबंधित किया जाए? ताकि उससे पर्यावरण प्रदूषित न हो। तथ्य यह है कि ज्यादातर मल कीचड़ का निपटान खेतों और जल निकायों में मुक्त रूप से किया जा रहा था, इसका मतलब था कि यह ओडी की तुलना में पर्यावरण के लिए और भी अधिक खतरा पैदा कर रहा था। वास्तव में, गणना के अनुसार, मल कीचड़ और रिसते हुए लापरवाही से डंप किया गया एक ट्रक खुले में शौच करने वाले 3,000 लोगों के बराबर है। इसलिए, स्वच्छता प्रभावों को बनाए रखने के लिए हमारा अगला प्रयास ओडीएफ++प्रोटोकॉल प्रारम्भ करना था, ताकि मल सम्बन्धी कीचड़ के पूर्ण प्रबंधन के मुद्दे का समाधान किया जा सके, जिसमें सेप्टिक टैंकों को उचित समय पर खाली करने, उनके मलबे पर सुरक्षित नियंत्रण और उसकी ढुलाई और अंत में, मल कीचड़ और सेप्टेज का सुरक्षित निपटान जैसे कार्य शामिल थे। इसके लिए, हमने सीवर नेटवर्क जैसे अधिक पूंजी की आवश्यकता वाले विकल्प अपनाने के बजाय, शहरों को लागत-प्रभावी और विकेन्द्रीकृत विकल्प अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया-जैसे एसटीपी (मल-जल उपचार संयंत्र), कम लागत वाले एफएसटीपी (मल कीचड़ उपचार संयंत्र), डीआरई (विकेन्द्रीकृत सीवरेज प्रणाली) आदि।
शहरों और राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में इन प्रोटोकॉल के प्रति बड़ा उत्साह दिखाई दिया, और स्थिरता की दिशा में हमारी यात्रा पहले से ही आशाजनक ढंग से शुरू हुई। अभी तक, हमारे पास 739 शहर ओडीएफ++ प्रमाणित, और 292 शहर ओडीएफ+ प्रमाणित हैं। अमृत मिशन के तहत भी, कीचड़ प्रबंधन कवरेज में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, जहाँ सीवरेज और सेप्टेज प्रबंधन की 637 परियोजनाएं पहले ही पूरी की जा चुकी हैं।
परन्तु, अभी भी कुछ दूरी बाकी थी। मल कीचड़ अब सुरक्षित रूप से प्रबंधित किया जा रहा था, अपशिष्ट जल (घरेलू रसोई और शौचालयों से उत्सर्जित जल) खुली नालियों में बह रहा था और हमारे जल निकायों को प्रदूषित कर रहा था। देश के समक्ष जल संकट को देखते हुए, यह हमारे जल संसाधनों पर एक अतिरिक्त बोझ था, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था। अतः स्थिरता के क्रम में इस अंतिम मील की इस चुनौती से निपटने के लिए, हमने अब वाटर प्लस प्रोटोकॉल प्रारम्भ किया ताकि यह सुनिश्चित करें कि कोई अनुपचारित अपशिष्ट जल पर्यावरण या जल निकायों में न जाने पाए। चित्र 4 में इन प्रोटोकॉल का सारांश प्रस्तुत किया गया है।
शहरी स्थानीय निकायों में क्षमता की कमी और टिकाऊ स्वच्छता की कई चुनौतियों को देखते हुए, हमने जान बूझकर स्थिरता के लिए एक क्रमिक दृष्टिकोण अपनाया, शहरी स्थानीय निकायों की क्षमता धीरे-धीरे बढ़ाई गई ताकि वे अपने स्वच्छता सम्बन्धी मुद्दों का निरन्तर हल कर सकें और परिणाम लम्बे समय तक टिकाऊ हों।
स्वच्छ सर्वेक्षण- मिशन निगरानी और प्रशासन के लिए एक उपकरण के रूप में स्वच्छ सर्वेक्षण एक अभिनव सर्वेक्षण है जो स्वच्छ भारत मिशन शहरी के तहत सफाई और स्वच्छता मापदंडों के आधार पर शहरों को वरीयता प्रदान करने के लिए आवास और शहरी मामले मंत्रालय द्वारा किया गया।
यह सर्वेक्षण ‘स्वच्छता’ की अवधारणा के प्रति स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना के साथ शहरों को उत्साहित करने में सफल रहा है। 2016 में अपने पहले दौर में, ‘स्वच्छ सर्वेक्षण (एसएस)’ 10 लाख और उससे अधिक आबादी वाले 73 शहरों में और भारत के राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों की राजधानियों में आयोजित किया गया था। 2017 में, सर्वेक्षण 434 शहरों के बीच आयोजित किया गया था। स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 में 4,203 शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) शामिल किए गए। इंदौर को देश का सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया गया। यह सर्वेक्षण, लगभग 40 करोड़ लोगों को प्रभावित करने वाला पहला अखिल भारतीय स्वच्छता सर्वेक्षण था, जो शायद दुनिया में इस तरह का सबसे बडा सर्वेक्षण था। स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 में 4,237 शहर शामिल हुए। इंदौर एक बार फिर देश का सबसे साफ शहर बनकर उभरा।एमएस 2019 इस मायने में द्वितीय था कि सेवा स्तर का मूल्यांकन पूरी तरह से ऑनलाइन और पेपरलेस था। वास्तव में, शहरी स्वच्छता के क्षेत्र में, सुरक्षित मल कीचड़ प्रबंधन के मुद्दे को सर्वेक्षण से भारी प्रेरणा और प्रोत्साहन मिला क्योंकि इसमें एक प्रमुख स्कोरिंग मानदंड किसी शहर द्वारा ओडीएफ++ प्रमाणपत्र प्राप्त करना था।
स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 (एसएस 2020) के लिए, आवास और शहरी मामले मंत्रालय ने ‘निरंतर सर्वेक्षण’ की अवधारणा प्रारम्भ की ताकि निरंतर निगरानी और सत्यापन की प्रणाली के माध्यम से मिशन के परिणामों की स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
सिर पर मैला ढोने और खतरनाक कचरे की चुनौती का समाधान
सरकार ने सिर पर मैला ढोने का चलन पूरी तरह समाप्त करने के लिए कई कानून और नियामक सुधार लागू किए हैं। हालांकि सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए अंदर प्रवेश करने की अनुमति केवल विशेष परिस्थितियों और पर्याप्त सुरक्षात्मक उपकरण तथा ऐहतियाती व्यवस्था के साथ है। हाथ से सफाई का यह चलन अभी भी व्यापक रूप से जारी है। पर्याप्त सुविधा और समुचित व्यवस्था के बिना अक्सर, ऐहतियाती उपायों के बगैर ही ऐसा किया जाता है, जिससे घातक हादसे होते हैं। आवास और शहरी कार्य मंत्रालय लगातार यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई की यह घातक व्यवस्था पूरी तरह खत्म की जाए। ऐसी सफाई के दौरान सफाई कर्मियों के साथ होने वाले घातक हादसे और कभी-कभी मौत की खबरें हमारी सामाजिक चेतना को लगातार झकझोरती रही हैं। इस संदर्भ में आवास और शहरी कार्य मंत्रालय ने बड़े शहरों में आपात कार्रवाई स्वच्छता इकाई (ईआरएसयू) का गठन अनिवार्य बनाकर सुरक्षित सफाई की दिशा में अपना प्रयास और सशक्त किया है। इसके तहत सुरक्षा उपायों को संस्थागत रूप देकर हाथ से सफाई और खतरनाक प्रचलनों को कम से कम करने के उपाय किए जा रहे हैं। सीवर और सेप्टिक टैंकों में सफाई व्यवस्था पेशेगत, कुशल प्रशिक्षण और पर्याप्त तैयारियों के साथ प्रणालीबद्ध की जा रही है।
अन्य प्रमुख उपायः उन्नत प्रौद्योगिकी, प्रचलन में बदलाव और स्थानीय शहरी निकायों का क्षमता निर्माण
उपर्युक्त उपायों के अलावा शहरी स्वच्छता के लिए आवास और शहरी कार्य मंत्रालय की पहल में विभिन्न अन्य महत्त्वपूर्ण उपाय भी शामिल किए गए हैं, जैसे
1. नागरिकों तक पहुँच बढ़ाने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी और ‘स्मार्ट’ समाधान (सार्वजनिक शौचालयों की गूगल मैपिंग, स्वच्छता के सभी पहलुओं से सम्बन्धित शिकायत निपटान प्रणाली के लिए स्वच्छता एप;)
2. वास्तविक आंकड़ों के लिए मजबूत ऑनलाइन सूचना प्रबंध प्रणाली और पोर्टल;
3. बड़े पैमाने पर नागरिकों को शामिल करने के लिए स्वच्छ मंच;
4. अभ्यास में बदलाव की पहल (जानी मानी शख्सियतों को एम्बेसेडर बनाना, जनसंचार दृश्य-श्रव्य अभियान, स्वच्छता सेल्फी, नागरिकों को स्थल भागीदारी इत्यादि); और
5. तकनीक परामर्श, आवश्यकता अनुसार सहयोग, स्थानीय और अन्य स्थानों पर जाकर कार्यशालाएं आयोजित करने के जरिए स्थानीय शहरी निकायों का लगातार क्षमता निर्माण इत्यादि।
आगे की दिशा
शहरी भारत फिलहाल एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है। जहाँ शहरों और कस्बों में स्वच्छता स्थिति में निश्चित रूप से सुधार हुआ है, वहीं अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है, ताकि सभी शहर सच्चे अर्थों में स्मार्ट और रहने योग्य बन सकें। उदाहरण के लिए जहाँ पर्याप्त शौचालय (घरों में और सामुदायिक/सार्वजनिक शौचालय) बनाए गए हैं और लोग खुले में शौच के लिए बाहर जाने के स्थान पर इनका उपयोग कर रहे हैं, वहीं सामुदायिक/सार्वजनिक शौचालयों का रख-रखाव और भी दुरुस्त किए जाने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये शौचालय हमेशा उपयोग में बने रहें।
इसी प्रकार यदि साफ-सफाई के जरिए बेहतर स्वास्थ्य का लक्ष्य हासिल करना है, तो शौचालयों से मल और मल-जल तथा घरों और प्रतिष्ठानों से गंदे पानी की निकासी, रखने, ले जाने और निपटान की सुरक्षित व्यवस्था जैसे मुद्दों में और अधिक सुधार की जरूरत है। यह मल-जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था के अभाव वाले छोटे शहरों और सेप्टिक टैंक जैसी सफाई व्यवस्था पर निर्भर देश के 60 प्रतिशत घरों के लिए विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। सोखने वाले गड्ढों के बिना बने ऐसे सेप्टिक टैंकों की गदंगी बाहर ले जाकर खुले स्थलों पर डाल दी जाती है। ऐसे में खुले में शौच से मुक्ति के बावजूद इन शहरों में समग्र स्वच्छता के कारगर लाभकारी प्रभाव और स्वास्थ्य का लक्ष्य हासिल कर पाना कठिन है।
शहरी स्वच्छता की उपलब्धियां अभी भी अल्पकालिक और अस्थाई नजर आती हैं, यदि लम्बी अवधि तक इन्हें बनाए रखने के प्रयास नहीं किए जाते हैं। इसके साथ-साथ स्वच्छता पर अधिक ध्यान देने से लोगों की अपेक्षाएं भी इसे लेकर बढ़ गई है। लोग अब ऊंची गुणवत्ता वाली सेवाओं की मांग कर रह हैं। इसलिए स्वच्छता की गति तथा अब तक हासिल उपलब्धियों को बनाए रखने और आगे इनमें और सुधार की जरूरत है।
आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के विभिन्न अभियानों ने शहरी स्वच्छता में सतत विकास मॉडल सामने रखे है। इस दिशा में आगे बढते हुए स्वच्छ्ता की अवधारणा को संस्थागत रूप देने पर ध्यान देना होगा ताकि सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप सुरक्षित साफ सफाई का समग्र प्रभाव प्राप्त किया जा सके।
इस पृष्ठभूमि में शहरी स्वच्छता में अगला कदम अब तक हासिल उपलब्धियों को बनाए रखना तथा इस गति का उपयोग शहरी भारत को स्वच्छता के अगले स्तर पर पहुंचाने में करना है।
इसके अलावा पारिस्थितिकीय तंत्र को भी सुदृढ़ करना होगा ताकि उपलब्ध होने वाले परिणामों को सतत रखा जा सके। इसीलिए आने वाले महीनों और वर्षों में हमें निम्मलिखित क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा।
1. सतत स्वच्छता (सभी शहरों को मल और मल-जल निपटान की समुचित व्यवस्था के साथ खुले में शौच से मुक्त++ बना कर) और
2. बेकार पानी को उपचारित करने की व्यवस्था (आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के जल+प्रोटोकॉल के अनुरूप) इन सभी का नियोजन और क्रियान्वयन स्वच्छता से सम्पन्नता के तहत होना चाहिए।
इसके अलावा सुचारू नीतिगत सहयोग और सुधारों, मिशन क्रियान्वयन के लिए उन्नत प्रौद्योगिक, सुदृढ़ और वास्तविक आंकड़ों पर आधारित तीसरे पक्ष निगरानी व्यवस्था, नगर निगम कर्मियों के क्षमता निर्माण और निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से सक्षम माहौल बनाया जाना होगा। हमें प्रचलित ढर्रे से बाहर निकल कर सोचना होगा और नवाचारी तथा स्मार्ट उपायों के साथ आगे आना होगा, जैसे कि परिणाम आधारित प्रोत्साहन, मिशन प्रशासन को डिजिटली मुदृढ़ बनाना, ठोस और तरल कचरा प्रबंधन के समस्त मुद्दों के समाधान के लिए अन्य अन्तरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संस्थानों की तर्ज पर राष्ट्रीय उत्कृष्टता संस्थान का गठन इत्यादि।
निष्कर्ष
आज साफ सफाई और स्वच्छता की अवधारणा सशक्तता और गुणवत्तापूर्ण जीवन के साथ जुड़ गई है। शहरी साफ सफाई में सुधार का सकारात्मक असर हमारे जीवन और व्यापक माहौल पर पड़ने लगा है। सतत ढंग से हमारा लगातार प्रयास स्वच्छ, स्वस्थ, समर्थ और सशक्त नए भारत के लक्ष्य की ओर ले जाएगा।
संदर्भ
1. पीएचएफआई, (2015) इंडिया हेल्थ रिपोर्ट-न्यूट्रीशन 2015 पीएचेएफआई। http://www.transformnutrition.
2. http://mdws.gov.in/sites/
/articles/saharaon-maen-savacachataa-kae-sathaai-upaaya