विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर चुका है। चीन के वुहान से शुरू हुई इस बीमारी से दुनिया भर में एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 19 लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं। संक्रमितों और मरनों वालों में अधिकांश शहरी इलाकों के हैं। भारत में महामारी के खिलाफ सुरक्षा की सभी तैयारी करने और युद्ध के समान तत्परता दिखाने के बाद भी कई लोगों की जान चली गई और हजारों लोग संक्रमित हो गए हैं। ये स्थिति तब है, जब लाॅकडाउन के कारण लोग घरों में कैद है। स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर 1.3 बिलियन की आबादी के लिए केवल 40,000 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। ग्रामीण भारत सौभाग्य से अभी कोरोना के प्रकोप से प्रभावित नही है, लेकिन दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव तो है ही, साथ ही महामारी के बारे में जागरुकता का अभाव सबसे बड़ी चुनौती है।
महामारी से अछूता नहीं है ग्रामीण भारत
भारत के अधिकांश दैनिक वेतन भोगी और मजदूर ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जाते हैं। संकट के इस समय में जब मजदूर अपने गाँवों की तरफ वापस लौटेंगे, तो उनमें से कुछ कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। इससे एक बड़ी आबादी जो अभी तक वायरस की चपेट में आने से बची हुई है, जल्द ही बीमार पड़ने लगेगी और संक्रमितों की संख्या को भारत में कई हजारों तक ले जा सकती है। जिससे कोविड-19 एक ‘सामुदायिक खतरा’ बन जाएगा और मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ सकती है।
कोविड-19 अनदेखे दुश्मन द्वारा शुरु की गई एक अनिश्चित लड़ाई है, जो लंबे समय तक चलेगी। ऐसे में ग्रामीण समुदायों के सामने यह चुनौती कई गुना बढ़ जाती है -
- अधिकांश गांवों में जल संसाधनों की कमी है और पीने के पानी तथा अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग कुओं/ट्यूबवेल/छोटे तालाबों पर निर्भर हैं। ऐसे में यदि पानी का सेवन पर्याप्त रूप से साफ किए बिना किया जाता है, तो इससे स्थिति और अधिक खराब होने की संभावना है।
- कोविड-19 प्रभावित शहरी इलाकों से गांवों की तरफ काफी प्रवासी आ रहे हैं। वे सभी इन्हीं जल निकायों का उपयोग करेंगे और ट्यूबवेल के हैंडल को छूएंगे। ऐसे में प्रवासियों के घर लौटने पर गाँव को हॉटस्पॉट बनने से कैसे रोका जा सकता है ?
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग प्रतिकूल अवधारणा है। क्योंकि भारत के गांवों में यदि आसपास में कोई बीमारी है, तो हर कोई सहायता का प्रयास करता है, उपचार की जिम्मेदारी लेता है और रोगी को स्वास्थ्य केंद्रों में ले जाता है।
- लाॅकडाउन अवधि के दौरान दैनिक मजदूरी करने वाले अति गरीब तबके तक राशन और अन्य बुनियादी सुविधाओं को पहुंचना चुनौतीपूर्ण है।
केंद्र सरकार के साथ-साथ विभिन्न राज्य सरकारें ब्लॉक और जिला स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों को बेहतर बनाने और मनरेगा जॉब-कार्ड धारकों के आर्थिक संकट को कम करने के उपाय कर रही हैं, लेकिन इस समय दूरस्थ और देश के कुछ सबसे पिछड़े इलाकों में कार्य कर रहे सामाजिक संगठन आगे आते हुए इस बड़ी जिम्मेदारी को संभाले और इस महामारी लड़ने में सरकार और समुदायों की हर संभव सहायता करें। क्योंकि इन संगठनों के पास ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश समस्याओं के निदान और उनकी समायता करने के लिए विशेषज्ञता और अनुभव है।
PRADAN एक राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन, जो 37 वर्षों से भारत के सात राज्यों के सबसे गरीब 37 जिलों में लगभग 9,000 गांवों में काम कर रहा है, जहां परिवारों की संख्या करीब 8 लाख 50 हजार है, जिनके लिए 71,000 स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से निरंतर कार्य किया जा रहा है। 70 प्रतिशत से अधिक समुदाय के सदस्य अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति श्रेणियों के हैं। वे गरीबी, अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य आदि से जूझ रहे हैं। PRADAN ने इन वंचित समुदायों के साथ गहरे संबंध विकसित किए हैं और आजीविका का साधन, प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने, स्थानीय शासन में सुधार, लिंग समानता और विभिन्न प्रकार की अन्य पहलों के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से बदलने का प्रयास किया है।
कोविड-19 जैसी बीमारी से बचने के लिए जागरुकता का अभाव और संसाधनों तथा सहायता तंत्र की कमी के कारण ये समुदाय काफी असुरक्षित है। तो वहीं, संक्रामक रोग के प्रकोप के दौरान सोशल मीडिया पर गलत सूचना और फर्जी खबरों से प्रभावित होने की संभावना बहुत अधिक है। PRADAN संगठन सीधे तौर पर छोटे किसानों के साथ काम कर रहा है। संगठन ने इन समुदायों तक जागरुकता फैलाने और स्वच्छता एवं बीमारी से बचने के सुरक्षित उपायोें को बताने सहित हर संभव सहायता प्रदान करने का जिम्मा लिया है। महिला लीडर्स ने महुवा के फूलों के सेनिटाइजर बनाने के साथ-साथ टिशू पेपर और रबर-बैंड से बने मास्क तैयार करने और उपयोग करने का तरीका भी सीखा है। महुवा के फूलों में अल्कोहल की उच्च मात्रा को सेनिटाइजर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयार किया जा रहा है। हाथ धोने के लिए साबुन के प्राकृतिक विकल्प के रूप में बबूल के फल का उपयोग किया जा रहा है।
झारखंड की टीमों ने 16 मार्च को पथगामा ब्लॉक में एसएचजी के नेतृत्व वाले फेडरेशन के सहयोग से एक जागरुकता अभियान शुरु किया था। शिविर में लोगों को रोजमर्रा के जीवन में स्वच्छता बनाए रखने की बारीकियां बताने के साथ ही हाथ धोने की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। साथ ही ये भी बताया कि अनावश्यक रूप से नाक या मुंह को छूने से बचें। सोशल डिस्टेंसिंग की महत्ता को ध्यान में रखते हुए 17 मार्च को होने वाले वार्षिक महाधिवेशन को स्थगित करने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया था। इसके अलावा, बिहार में चकाई टीम द्वारा एक जागरुकता और निवारक उपाय कार्यक्रम का आयोजन किया गया था और ब्लाॅक स्तरीय फेडरेशन ‘‘जीवन मार्शल महिला संघ’’ के सदस्यों ने ब्लॉक स्तर पर कोविड-19 से लड़ने के लिए कमर कस ली थी।
गुणवत्तापरक होने के साथ ही धोने और फिर से उपयोग करने योग्य मास्क बनाने की पहल और उन्हें सरकारी विभागों तक पहुंचाने का कार्य भी किया गया, जो समुदायों को सुरक्षित और स्वस्थ जीवन देने की ओर एक अहम कदम था। बिहार के अलावा छत्तीसगढ़ के नगरी में भी टीमों ने भी स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के लिए इसी तरह के कार्यक्रमों की व्यवस्था की। यहां महिलाएं मास्क बना रही हैं और उनकी आपूर्ति स्थानीय बैंकों, पंचायत कार्यालयों और कई अन्य सरकारी कार्यालयों में कर रही हैं। PRADAN टीमों ने समुदायों के बीच सही जानकारी प्रसारित करने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार सामग्री भी बनाई है। गुमला, पालकोट और मयूरभंज में विकास कार्यों से जुड़े पेशेवरों की टीम ने स्थानीय स्वास्थ्य विभागों के साथ मिलकर आईईसी सामग्री तैयार की है। झारखंड के गुमला जिले के बसिया ब्लॉक में सभी पंचायत हॉल को क्वारंटीन सेंटरों में बदल दिया है और सभी सुविधाएं दी जा रही है। जरूरत पड़ने पर स्कूल के हॉल का भी उपयोग किया जाएगा। मरीजों को खिचड़ी उपलब्ध कराई जाएगी। वास्तव में, यह अब अन्य राज्यों में भी कई दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मॉडल बन रहा है।
पंचायत और ब्लॉक प्रशासन के साथ PRADAN बसिया में राशन वितरण के कार्य को भी संभाल रहा है। इस संपूर्ण कार्य को करने हेतु निर्बाध समन्वय के लिए सभी प्रशासनिक निकायों और PRADAN पेशेवरों का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है। PRADAN अच्छे और बुरे समय में हर वक्त समुदायों का साथ देता है और समुदाय PRADAN को अच्छे और बुरे समय में अपने भागीदार के रूप में देखते भी हैं। PRADAN की तरह ही जमीनी स्तर पर काम करने वाले कई एनजीओ हैं, जो इन समुदायों के साथ लंबे समय से कार्य कर रहे हैं और समुदायों के साथ इनका गहरा रिश्ता भी है। इस प्रकार के संकट की घड़ी में प्रबंधन के लिए वे भी अच्छी भूमिका निभा सकते हैं या निभा रहे हैं। PRADAN का अधिकांश स्टाफ और समुदाय आधारित स्थानीय सेवा प्रदाताओं को घर से काम करने की सलाह दी गई है, लेकिन नवीनतम सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सही सूचना को दूरस्थ ग्रामीणों तक पहुंचाना कोविड़-19 के प्रसार को नियंत्रित करने में काफी महत्वपूर्ण है।
अनुवादः हिमांशु भट्ट / हिंदी इंडिया वाटर पोर्टल
मूल लेख पढ़ने के लिए इंडिया वाॅटर पोर्टल की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाएं, जिसका लिंक नीचे दिया गया है:-
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