हथिनीकुंड बैराज तक यमुना की हालत बेहतर है, राजधानी के छोटे-बड़े 22 नाले इसे मैला करने में निभा रहे हैं भूमिका
यमुना की दुर्दशा की एक वजह इसकी सहायक नदियों की हालत भी है। बीते दो दशकों में यमुना में प्रदूषण कम करने के लिए दो बार एक्शन प्लान बने, लागू हुए और तीसरे एक्शन प्लान की तैयारी है लेकिन इन एक्शन प्लान में से एक पैसा भी इसकी सहायक नदियों के स्वास्थ्य को सुधारने पर नहीं खर्च किया गया।
यमुनोत्री से संगम तक यमुना की यात्रा में 30 सहायक नदियां इसमें मिलती हैं। लेकिन उत्तराखंड से यमुना में मिलने वाली 10 सहायक नदियों में से टोंस को छोड़कर बाकी सभी नदियों का स्वास्थ्य ठीक है। इसीलिए हथिनीकुंड बैराज तक यमुना की हालत अपेक्षाकृत बेहतर है। इसके बाद हरियाणा सीमा में प्रदेश की दो मौसमी नदियां सोंब व पथराला इसमें मिलती हैं। विडंबना यह है कि जो प्रदेश यमुना का सर्वाधिक दोहन करता है उस प्रदेश से यमुना नदी में योगदान सबसे कम है। इन नदियों में केवल बरसात के दिनों में पानी रहता है बाकी समय यह नदी सूखी रहती है। दिल्ली में प्रवेश करते समय पल्ला गांव में यमुना में पश्चिमी यमुना नहर से दिल्ली का तय अंश इसमें मिलता है जिसके चलते वजीराबाद बैराज पर यमुना की हालत कुछ बेहतर है।
दिल्ली के 22 किलोमीटर के यमुना के हिस्से में राजधानी के छोटे-बड़े 22 नाले यमुना को मैला करने में अहम भूमिका निभाते हैं। कमाल की बात यह है कि राजधानी में नदी को सबसे अधिक प्रदूषित करने वाला नजफगढ़ नाला भी कभी एक नदी ही था। इसे लोग साहिबी नदी के नाम से जानते थे। इस नदी का उद्गम राजस्थान में था और हरियाणा के कुछ हिस्सों से गुजरती हुई दिल्ली में यमुना में मिलती थी। दिल्ली की सीमा से आगे बढ़ते ही यमुना में हिंडन नदी आकर मिलती है जिसकी खुद दो प्रमुख सहायक नदियां पश्चिमी काली और कृष्णा हैं। ये सभी नदियां बुरी तरह से प्रदूषित हैं।
नदी विशेषज्ञों का मानना है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए इस बात पर ध्यान देने व प्रयास करने की बहुत जरूरत है कि इसकी सहायक नदियों की हालत भी ठीक हो और एक्शन प्लान में उनकी सेहत में सुधार का भी प्रावधान रहे। पर्यावरणविद् मनोज मिश्र कहते हैं कि किसी भी नदी की सेहत का हाल उसकी सबसे बीमार सहायक नदी की स्थिति से पता चल सकता है। जब तक सहायक नदियां प्रदूषित हैं तब तक यमुना के प्रदूषण मुक्त होने का स्वप्न देखना बेमानी है।
यमुना की दुर्दशा की एक वजह इसकी सहायक नदियों की हालत भी है। बीते दो दशकों में यमुना में प्रदूषण कम करने के लिए दो बार एक्शन प्लान बने, लागू हुए और तीसरे एक्शन प्लान की तैयारी है लेकिन इन एक्शन प्लान में से एक पैसा भी इसकी सहायक नदियों के स्वास्थ्य को सुधारने पर नहीं खर्च किया गया।
यमुनोत्री से संगम तक यमुना की यात्रा में 30 सहायक नदियां इसमें मिलती हैं। लेकिन उत्तराखंड से यमुना में मिलने वाली 10 सहायक नदियों में से टोंस को छोड़कर बाकी सभी नदियों का स्वास्थ्य ठीक है। इसीलिए हथिनीकुंड बैराज तक यमुना की हालत अपेक्षाकृत बेहतर है। इसके बाद हरियाणा सीमा में प्रदेश की दो मौसमी नदियां सोंब व पथराला इसमें मिलती हैं। विडंबना यह है कि जो प्रदेश यमुना का सर्वाधिक दोहन करता है उस प्रदेश से यमुना नदी में योगदान सबसे कम है। इन नदियों में केवल बरसात के दिनों में पानी रहता है बाकी समय यह नदी सूखी रहती है। दिल्ली में प्रवेश करते समय पल्ला गांव में यमुना में पश्चिमी यमुना नहर से दिल्ली का तय अंश इसमें मिलता है जिसके चलते वजीराबाद बैराज पर यमुना की हालत कुछ बेहतर है।
दिल्ली के 22 किलोमीटर के यमुना के हिस्से में राजधानी के छोटे-बड़े 22 नाले यमुना को मैला करने में अहम भूमिका निभाते हैं। कमाल की बात यह है कि राजधानी में नदी को सबसे अधिक प्रदूषित करने वाला नजफगढ़ नाला भी कभी एक नदी ही था। इसे लोग साहिबी नदी के नाम से जानते थे। इस नदी का उद्गम राजस्थान में था और हरियाणा के कुछ हिस्सों से गुजरती हुई दिल्ली में यमुना में मिलती थी। दिल्ली की सीमा से आगे बढ़ते ही यमुना में हिंडन नदी आकर मिलती है जिसकी खुद दो प्रमुख सहायक नदियां पश्चिमी काली और कृष्णा हैं। ये सभी नदियां बुरी तरह से प्रदूषित हैं।
नदी विशेषज्ञों का मानना है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए इस बात पर ध्यान देने व प्रयास करने की बहुत जरूरत है कि इसकी सहायक नदियों की हालत भी ठीक हो और एक्शन प्लान में उनकी सेहत में सुधार का भी प्रावधान रहे। पर्यावरणविद् मनोज मिश्र कहते हैं कि किसी भी नदी की सेहत का हाल उसकी सबसे बीमार सहायक नदी की स्थिति से पता चल सकता है। जब तक सहायक नदियां प्रदूषित हैं तब तक यमुना के प्रदूषण मुक्त होने का स्वप्न देखना बेमानी है।
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