भास्कर न्यूज/ जोधपुर: प्रदेश में तेजी से गिरते भूजल स्तर से अगले दो दशक में पानी के भीषण संकट की आशंका को देखते हुए इसरो के सेंट्रल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने जल प्रबंधन की कवायद शुरु कर दी है। इसके लिए भूजल विभाग समेत अन्य संबंधित विभागों के लिए इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट का प्रारुप तैयार किया जा रहा है।
इसके लिए सेटेलाइट चित्रों के माध्यम से जल संसाधनों से लेकर भूजल स्तर के बारे में डाटा तैयार कर बाकायदा वाटर सोर्स इन्फॉर्मेशन सिस्टम तैयार किया जा रहा है। उस आधार पर प्रदेश में जल प्रबंधन किया जाएगा। इसके लिए सेंट्रल रिमोट सेंसिंग सेंटर के विशेषज्ञों ने भूजल विभाग के अधिकारियों को ट्रेनिंग भी देना शुरु कर दिया है।
प्रदेश में अत्यधिक दोहन की वजह से पिछले बीस सालों में भूमिगत जल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि उससे अगले बीस सालों में धरती की कोख सूखने की आशंका हो सकती है। इससे चिंतित राज्य सरकार ने विदेशों की तर्ज पर प्रदेश में पानी की हर बूंद का उपयोग करने के तैयारी शुरु कर दी है। इसके लिए इसरो को भूजल विभाग, जलदाय, जल संसाधन विभाग आदि से जलस्तर गिरने की रफ्तार, औसत बरसात, चैनल में पानी बहने की रफ्तार, जल पुनर्भरण के बारे में डाटा एकत्रित करने का जिम्मा सौंपा गया है।
जल प्रबंधन की एक नीति नहीं सेंट्रल रिमोट सेंसिंग सेंटर के रीजनल डायरेक्टर डा. जेआर शर्मा ने बताया कि अभी तक पानी के बारे में सभी विभाग अलग-अलग अध्ययन और उपयोग कर रहे हैं। इससे जल प्रबंधन संभव नहीं हो पा रहा है। अब सेटेलाइट से प्रदेश के जल संसाधनों के चित्र लेकर उनका अध्ययन किया जाएगा। सभी विभागों से एकत्रित डाटा के आधार पर एक वाटर सोर्स इन्फॉर्मेशन सिस्टम तैयार किया जाएगा।
उसमें वाटर हार्वेस्टिंग एवं वाटर रिचार्ज ,ग्लोबल पोजिसनिंग सिस्टम,मारफोमेट्रिक विश्लेषण, हाइड्रोलॉजिकल मॉडलिंग,वाटर बैलेंस और रन ऑफ एस्टीमेशन के बारे में हर जानकारी होगी। उस जानकारी का जल प्रबंधन नीति के तहत उपयोग में लेंगे। मसलन जलदाय विभाग पानी बचाने के लिए कम पानी वाली फसलों की बात करता है, जबकि कृषि विभाग अधिक पानी से होने वाली फसलों की पैरवी करता है। इन्फॉर्मेशन सिस्टम तैयार होने के बाद उस आधार पर सभी विभागों को पानी का उपयोग करना होगा।
इसके लिए सेटेलाइट चित्रों के माध्यम से जल संसाधनों से लेकर भूजल स्तर के बारे में डाटा तैयार कर बाकायदा वाटर सोर्स इन्फॉर्मेशन सिस्टम तैयार किया जा रहा है। उस आधार पर प्रदेश में जल प्रबंधन किया जाएगा। इसके लिए सेंट्रल रिमोट सेंसिंग सेंटर के विशेषज्ञों ने भूजल विभाग के अधिकारियों को ट्रेनिंग भी देना शुरु कर दिया है।
प्रदेश में अत्यधिक दोहन की वजह से पिछले बीस सालों में भूमिगत जल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि उससे अगले बीस सालों में धरती की कोख सूखने की आशंका हो सकती है। इससे चिंतित राज्य सरकार ने विदेशों की तर्ज पर प्रदेश में पानी की हर बूंद का उपयोग करने के तैयारी शुरु कर दी है। इसके लिए इसरो को भूजल विभाग, जलदाय, जल संसाधन विभाग आदि से जलस्तर गिरने की रफ्तार, औसत बरसात, चैनल में पानी बहने की रफ्तार, जल पुनर्भरण के बारे में डाटा एकत्रित करने का जिम्मा सौंपा गया है।
जल प्रबंधन की एक नीति नहीं सेंट्रल रिमोट सेंसिंग सेंटर के रीजनल डायरेक्टर डा. जेआर शर्मा ने बताया कि अभी तक पानी के बारे में सभी विभाग अलग-अलग अध्ययन और उपयोग कर रहे हैं। इससे जल प्रबंधन संभव नहीं हो पा रहा है। अब सेटेलाइट से प्रदेश के जल संसाधनों के चित्र लेकर उनका अध्ययन किया जाएगा। सभी विभागों से एकत्रित डाटा के आधार पर एक वाटर सोर्स इन्फॉर्मेशन सिस्टम तैयार किया जाएगा।
उसमें वाटर हार्वेस्टिंग एवं वाटर रिचार्ज ,ग्लोबल पोजिसनिंग सिस्टम,मारफोमेट्रिक विश्लेषण, हाइड्रोलॉजिकल मॉडलिंग,वाटर बैलेंस और रन ऑफ एस्टीमेशन के बारे में हर जानकारी होगी। उस जानकारी का जल प्रबंधन नीति के तहत उपयोग में लेंगे। मसलन जलदाय विभाग पानी बचाने के लिए कम पानी वाली फसलों की बात करता है, जबकि कृषि विभाग अधिक पानी से होने वाली फसलों की पैरवी करता है। इन्फॉर्मेशन सिस्टम तैयार होने के बाद उस आधार पर सभी विभागों को पानी का उपयोग करना होगा।
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