शेर के जबड़ों में रहते हैं लोग

Kosi katha
Kosi katha

नदी संवाद यात्रा -3, कोशी कथा


चतुर्भुज सड़क योजना के अन्तर्गत कोशी नदी पर बना यह महासेतु महज नाम का महासेतु है, इसकी लम्बाई केवल 1.875 किलोमीटर है। परन्तु यहाँ पूर्वी और पश्चिमी तटबन्धों के बीच करीब 14 किलोमीटर में फैलकर बहने वाली कोशी की तीन धाराओं को घेरकर 1.8 किलोमीटर लम्बाई के महासेतु से जोड़ा गया है जिससे पचास-साठ गाँवों का महाविनाश हुआ है। उन गाँवों के खेत-खलिहान, गाँव-घर जलधारा में विलिन हो गए। वहाँ के निवासी बिखर गए हैं। वैसे चार-पाँच गाँवों के लोग आकर इस बस्ती में टिके हैं। नरभक्षी शेर के जबड़ों में रहना-कोशी महासेतु के रक्षात्मक (अफलेक्स) बाँध से घिरी बस्ती की अवस्था यही है। कोषी तटबन्धों के बनने के बाद बाढ़ के बदले स्वरूप के बारे में यशस्वी इंजीनियर दिनेश कुमार मिश्र की उक्ति बहुत प्रसिद्ध हुई कि पहले बाढ़ बिल्ली की तरह दबे पाँव- चुपके से आती थी, अब शेर की तरह दहाड़ती आती है। इटहरी सनपतहा के सामने मानो वह शेर मुँह खोले खड़ा है चाहे कब झपट पड़े।

रक्षात्मक बाँध टूटने पर इसके बचने की कोई सम्भावना नजर नहीं आती। वैसी अनहोनी की हालत में सरकार का ध्यान महत्त्वपूर्ण राजमार्ग को बचाने पर होगा, इस बस्ती में फँसे लोग उसकी प्राथमिकता में नहीं होंगे। सेतु का उद्घाटन होने के पहले भी एक बार रक्षात्मक बाँध टूट चुका है। कोशी क्षेत्र में नदी संवाद यात्रा की पहली सभा इस बस्ती में हुई जिसमें विकलांग विकास योजनाओं के शिकार लोगों की दर्दनाक दशा उजागर हुई।

चतुर्भुज सड़क योजना के अन्तर्गत कोशी नदी पर बना यह महासेतु महज नाम का महासेतु है, इसकी लम्बाई केवल 1.875 किलोमीटर है। परन्तु यहाँ पूर्वी और पश्चिमी तटबन्धों के बीच करीब 14 किलोमीटर में फैलकर बहने वाली कोशी की तीन धाराओं को घेरकर 1.8 किलोमीटर लम्बाई के महासेतु से जोड़ा गया है जिससे पचास-साठ गाँवों का महाविनाश हुआ है। उन गाँवों के खेत-खलिहान, गाँव-घर जलधारा में विलिन हो गए। वहाँ के निवासी बिखर गए हैं। वैसे चार-पाँच गाँवों के लोग आकर इस बस्ती में टिके हैं।

इटहरी सनपतहा गाँव यहाँ पहले से था। उसके दोनों तरफ से कोशी की धाराएँ बहती थी। कठिनाई थी, पर जीवन चल रहा था। गाँव में कई किसानों को भूदान में जमीन मिली थी। बाढ़ में डूबने के बावजूद बेहतरीन उपज होती थी। अब उन खेतों पर नदी की धारा है। चतुर्भुज योजना के हाइवे और महासेतु के रक्षात्मक बाँधों से घिरा करीब 25 वर्ग किलोमीटर का इलाका जिसमें करीब 265 परिवारों की झोपड़पट्टी पनपी है। सामान्य वर्षा के दिनों में भी पानी जलजमाव होगा क्योंकि पानी निकलने के लिये हाईवे में केवल छोटा-सा पुल बना है। बस्ती के बाहर का इलाका दलदली और जलजमाव ग्रस्त है, खेती की कोई सम्भावना नहीं दिखती। प्रवासी मजदूरों के मनीआर्डर आमदनी का अकेला जरीया है।

‘सनपतहा’ गाँव के पुनर्वास की जंग में, हम सब संग में’- बस्ती की हालत को देखकर और वहाँ के निवासियों की हालत सुनकर जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने यह नारा लगाया। इनका पुनर्वास तत्काल होना था, राजमार्ग और महासेतु निर्माताओं को आज तक इसकी सुध नहीं आई, यह आपराधिक कृत्य है। पुनर्वास का सहज उपाय इसी जमीन को भरकर रक्षात्मक बाँध और राजमार्ग की बराबरी में लाना और उस ज़मीन पर घर-मकान बनाना, बाकी सुविधाएँ जुटाना हो सकता है।

इसके लिये सरकारी और गैर-सरकारी संसाधन जुटाने का प्रयास करने का अनुरोध उन्होंने संवाद-यात्रा के संयोजक रमेश सिंह से किया और उस प्रयास में हर कदम पर साथ होने का सामुहिक संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि ऐसे गाँव नदी के सबसे अच्छे दोस्त हो सकते हैं क्योंकि उन्हें पूरी तरह पता है कि उनके जीवन का अस्तित्त्व नदी की कृपा पर निर्भर है, वे नदी को नाराज करने का काम कतई नहीं कर सकते।

महासेतु की रूपरेखा और डिजायन पर बहुतेरे सवाल उठे हैं। कोषी की वेगवती धारा सहज प्रवाह में हर अवरोध को तोड़ते हुए होकर आगे बढ़ती जाती है। बहाव में अवरोध होने पर यह अधिक उग्र होगी और व्यापक विनाश होगा। पुल की लम्बाई इतनी कम क्यों हुई? चौदह किलोमीटर में पसरी तीन धाराओं को घेरकर महज पौने दो किलोमीटर का मार्ग देना कैसे उचित है? जबकि इसे 10300 मीटर और फिर 4700 मीटर लम्बा बनाने की सिफारिश हुई थी। इसे लेकर भूतल मन्त्रालय की उच्च स्तरीय टेक्निकल कमेटी बनी थी, तकनीकी सहायता पुणे स्थित सेंट्रल वाटर एंड रिसर्च स्टेशन से ली गई। बिहार सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी बनाई। राजनीतिक -सामाजिक लोगों में बयानबाजी हुई।

बहरहाल, महासेतु वर्तमान स्वरूप में बन गया और विस्थापन-पुनर्वास का कोई प्रावधान नहीं हुआ है। बस्ती में बाँस और फूस से स्कूल -घर बना है जिसमें सभा हुई। भूदान किसान मोती राम ने अध्यक्षता की। सबके चेहरे पर अंदेशा साफ था कि रक्षात्मक बाँधों पर हमेशा अत्यधिक दबाव है। बाढ़ के समय, बड़ी बाढ़ के समय कैसी हालत बनेगी, ईश्वर जानें।

Path Alias

/articles/saera-kae-jabadaon-maen-rahatae-haain-laoga

Post By: RuralWater
×