सड़कों के निर्माण में बेहद कारगर है प्लास्टिक अपशिष्ट

सड़कों के निर्माण में बेहद कारगर है प्लास्टिक अपशिष्ट
सड़कों के निर्माण में बेहद कारगर है प्लास्टिक अपशिष्ट

समुद्र और अन्य जगहों पर अपशिष्ट का बोझ कम करने के लिए पुराने प्लास्टिक अपशिष्ट से नई चीजें भी तैयार की जा रही हैं। इस अपशिष्ट का इस्तेमाल सड़कों के निर्माण में भी किया जा रहा है। रिसाइकिल किए गए अपशिष्ट का इस्तेमाल सड़क बनाने में किया जाता है।

भारत सरकार, राजमार्गों समेत सभी तरह के सड़कों के निर्माण में प्लास्टिक अपशिष्ट के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। खासतौर पर 5 लाख या इससे ज्यादा की आबादी वाले शहरी इलाकों के 50 किलोमीटर के दायरे में होने वाले निर्माण में इस तरह के अपशिष्ट के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने देशभर से तकरीबन 26,000 लोगों को तैयार किया है। प्लास्टिक अपशिष्ट को इकट्ठा करने के लिए कुल 61,000 से भी ज्यादा घंटों के श्रमदान की पहल की गई है। इन प्रयासों के कारण देशभर में तकरीबन 18,000 किलो प्लास्टिक अपशिष्ट इकट्ठा किया जा सका है। तकरीबन 10 टन डामर तैयार करने में 71,432 प्लास्टिक बोतल या 4,35,592 प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल किया जाता है। डामर (अलकतरा, बालू आदि का मिश्रण) का इस्तेमाल सड़कों के निर्माण में किया जाता है। प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रबंधन नहीं किए जाने पर इससे पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। यह पेड़-पौधों, वन्य जीवों और इंसानों के लिए दिक्कत पैदा करता है। प्लास्टिक उपयोगी सामग्री है, लेकिन इसे नुकसानदेह यौगिक से तैयार किया जाता है। जाहिर तौर पर इसका स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। साथ ही, यह स्वाभाविक रूप से नष्ट भी नहीं होता। इस नष्ट होने में सैकड़ों या हजारों साल लगते हैं।

प्लास्टिक इकट्ठा होने से न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है, बल्कि इसके जहरीले असर के कारण हमारी मिट्टी और पानी भी प्रदूषित होते हैं। दुनिया की आबादी में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है और इसी अनुपात में कचरे का उत्पादन भी बढ़ रहा है। बदलती जीवनशैली में इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले उत्पादों की मात्रा भी बढ़ी है, लेकिन इन उत्पादों के कचरे में शामिल होने के कारण पूरी दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण में बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी हुई है।

समुद्र और अन्य जगहों पर अपशिष्ट का बोझ कम करने के लिए पुराने प्लास्टिक अपशिष्ट से नई चीजें भी तैयार की जा रही हैं। इस अपशिष्ट का इस्तेमाल सड़कों के निर्माण में भी किया जा रहा है। रिसाइकिल किए गए अपशिष्ट का इस्तेमाल सड़क बनाने में किया जाता है। इस तरह के अपशिष्ट से तैयार सड़कें गाड़ियों का बोझ और मौसम की मार सहने में ज्यादा सक्षम हैं। नीदरलैंड में एक सड़क परियोजना में समुद्र से प्राप्त प्लास्टिक अपशिष्ट का इस्तेमाल किया गया। इन सड़कों के 50 साल तक टिकाऊ बने रहने का दावा किया जा रहा है। सामान्य सड़कों के मुकाबले इन सड़कों की अवधि तीन गुना ज्यादा होती है और भयंकर सर्दी या काफी गर्मी की स्थिति में भी ऐसी सड़कों को नुकसान नहीं होगा। ब्रिटेन में प्लास्टिक अपशिष्ट से डामर तैयार करने के लिए खास तौर पर एक फैक्ट्री स्थापित की गई है, ताकि इस डामर का इस्तेमाल सड़क निर्माण में किया जा सके। केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय से जुड़ी राष्ट्रीय ग्रामीण सड़क विकास एजेंसी ने ग्रामीण सड़कों के निर्माण में प्लास्टिक अपशिष्ट के इस्तेमाल के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

ग्रामीण इलाके की सड़कों के निर्माण में इन प्लास्टिक अपशिष्टों का इस्तेमाल किया जा सकता हैः

  1. 60 माइक्रोन तक की मोटाई वाले (पीई, पीपी और पीएस) फिल्म (कैरी बैग, कप)
  2. किसी भी मोटाई वाला हार्ड फोम
  3. किसी भी मोटाई वाला सॉफ्ट फोम (पीई और पीपी);
  4. 60 माइक्रोन वाले लैमिनेशन युक्त प्लास्टिक पैकिंग मटीरियल जिसका इस्तेमाल बिस्कुट, चॉकलेट आदि की पैकिंग में किया जाता है।

पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) शीट या फ्लक्स शीट का इस्तेमाल किसी भी स्थिति में नहीं किया जाना चाहिए। इसके अलावा, अपशिष्ट प्लास्टिक मॉडिफाइर को धूल से मुक्त होना चाहिए और टुकड़ों में (2.3 मिलीमीटर) में होना चाहिए। केन्द्रीय सड़क शोध संस्थान (सीआरआरआई) के मुताबिक, सड़क निर्माण में इस्तेमाल किए जाने वाले अपशिष्ट प्लास्टिक का टुकड़ा 3 मिलीमीटर का होना चाहिए। एक विशेषज्ञ ने इसे 4.75 मिलीमीटर तक रखने का सुझाव दिया और इसे 1 मिलीमीटर पर रखा गया। इससे यह संकेत मिलता है कि डामर का टुकड़ा औसतन 2-3 मिलीमीटर होना चाहिए।

सड़कों पर प्लास्टिक अपशिष्ट बिछाने का तरीका

छिटपुट कार्यों के लिए सूखे डामर का प्रयोग करने का सुझाव दिया जाता है। सीआरआरआई के मुताबिक, सम्बन्धित सामग्री में अलकतरा के अलावा प्लास्टिक अपशिष्ट के टुकड़े 8 प्रतिशत होंगे। 60/70 या 80/100 ग्रेड वाले अलकतरे का इस्तेमाल किया जा सकता है। स्टोन एग्रीगेट मिक्स को मिक्स सिलेंडर पर स्थानांतरित किया जाता है, जहाँ इसे 1650 सेंटिग्रेड (आईआरसी के निर्देशों के मुताबिक) पर गर्म किया जाता है और इसके बाद मिक्सिंग पडलर में ले जाने की प्रक्रिया होती है। इसके बाद कई और प्रक्रियाओं को अंजाम दिया जाता है और प्लास्टिक फिल्मों को पिघलाकर सामग्री तैयार की जाती है। 

इसी तरह, अलकतरा को अलग चैंबर में 1600 पर गर्म कर तैयार रखा जाता है (बेहतर नतीजों के लिए तापमान पर निगरानी रखना चाहिए)। मिक्सिंग पडलर पर गर्म अलकतरे और प्लास्टिक कोट वाली सामग्री को मिलाया जाता है और मिश्रित सामग्री का इस्तेमाल सड़क निर्माण में किया जाता है। सामग्री का तापमान 1100 सेंटीग्रेड से 1200 सेंटीग्रेड तक भी रखा जाता है। आमतौर पर इस प्रक्रिया में 8 टन की क्षमता वाला रोलर इस्तेमाल किया जाता है। बड़े कार्यों के लिए सेंट्रल मिक्सिंग प्लांट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्रमुख निष्कर्ष

सड़कों के निर्माण में अलकतरे के साथ प्लास्टिक का इस्तेमाल होने पर न सिर्फ सड़कें ज्यादा टिकाऊ और चिकनी बनती हैं, बल्कि ये किफायती और पर्यावरण के अनुकूल भी होती हैं। प्लास्टिक अपशिष्ट का इस्तेमाल अलकतरा के मॉडिफाइर के तौर पर किए जाने से अलकतरे की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाती है। साथ ही, ऐसी सड़कों को पानी से भी नुकसान नहीं पहुंचता है। प्लास्टिक अपशिष्ट के इस्तेमाल के कारण अलकतरे की आवश्यकता 10 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इससे सड़कों को मजबूती मिलती है। कई अध्ययनों से यह बात साबित हुई है कि प्लास्टिक और रबड़ की कोटिंग से सड़कों में पानी घुसने की सम्भावना कम होती है।

आने वाले वक्त में प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद होने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं, लिहाजा प्लास्टिक अपशिष्ट के उचित प्रबंधन की आवश्यकता है। साथ ही, प्लास्टिक समाग्रियों में वैज्ञानिक और चिकित्सा सम्बन्धी तकनीक को भी बेहतर बनाने की सम्भावना है। मसलन ऊतकों और अंगों के प्रत्यारोपण समेत कई चीजों में ये बेहद कारगर साबित हो सकते हैं। इससे अक्षय ऊर्जा से सम्बन्धित उपयोगी सामग्री भी तैयार की जा सकती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में मदद मिलेगी। साथ ही, स्मार्ट प्लास्टिक पैकेजिंग से जल्दी नष्ट होने वाली सामग्री की गुणवत्ता की निगरानी करना भी सम्भव हो सकेगा।

भारत सरकार के ‘स्वच्छता ही सेवा’ कार्यक्रम के तहत इस सिलसिले में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। स्थानीय सामुदायिक केन्द्रों, एफएम रेडियो आदि के जरिए ये अभियान चलाए जा रहे हैं। साथ ही, राष्ट्रीय राजमार्गों की सफाई और प्लास्टिक अपशिष्ट/पॉलीथिन बैग/प्लास्टिक बोतल को इकट्ठा करने का काम किया जा रहा है। इसके अलावा, टोल कर्मचारियों और ट्रक ड्राइवरों के लिए स्वच्छता कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जा रहा है। सरकार पानी के लिए प्लास्टिक बोतलों का कम से कम इस्तेमाल करने की अपील भी कर रही है। साथ ही, अपशिष्ट इकट्ठा करने के लिए जगह-जगह पर डस्टबिन लगाए जा रहे हैं और कपड़े/जूट बैग आदि भी बांटे जा रहे हैं। हाल में दिल्ली के धौला कुआं के पास राष्ट्रीय राजमार्ग-48 पर प्लास्टिक अपशिष्ट का इस्तेमाल कर सड़क का निर्माण किया गया है। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे और गुरुग्राम-सोहन रोड के कुछ हिस्सों के निर्माण में भी प्लास्टिक अपशिष्ट का इस्तेमाल करने की योजना है। प्लास्टिक से भविष्य में काफा फायदे उठाए जा सकते हैं। हालांकि, इसे इस्तेमाल कर सड़क का निर्माण में भी प्लास्टिक अपशिष्ट का इस्तेमाल करने की योजना है।

प्लास्टिक से भविष्य में काफी फायदे उठाए जा सकते हैं। हालांकि, इसे इस्तेमाल करने का हमारा मौजूदा तरीका टिकाऊ नहीं है। साथ ही, यह वन्य जीवों और मानव के स्वास्थ्य के लिहाज से नुकसानदेह भी है। हमें अच्छी तरह पता है कि पर्यावरण से जुड़े खतरे लगातार बढ़ रहे हैं। साथ ही, मानव स्वास्थ्य पर इससे होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में भी कॉपी चीजें सामने आ रही हैं। ऐसे माहौल में आम आदमी भी प्लास्टिक के उचित इस्तेमाल और निपटान में अपनी भूमिका निभा सकता है, ताकि यह सामग्री रिसाइकल की प्रक्रिया में शामिल हो जाएँ। इसी तरह, उद्योग जगत भी अलग-अलग उपायों के जरिए पर्यावरण के अनुकूल समाज बनाने में योगदान कर सकता है। सरकार और नीति निर्माताओं को इस दिशा में मानक और लक्ष्य तय करना चाहिए। साथ ही, जरूरी शोध और तकनीकी विकास के लिए फंड मुहैया कराने की भी जरूरत है। इन उपायों पर जीवनचक्र विश्लेषण की संरचना के दायरे में विचार करना चाहिए और इस प्रक्रिया में प्लास्टिक उत्पादन के सभी प्रमुख चरणों पर गौर करना चाहिए।

सन्दर्भ

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  • हैंडबुक ऑफ ग्रीन केमिस्ट्री-ग्रीन कैटालिससिस, खंड I
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Post By: Shivendra
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