पानी की कमी का पशुपालन का धंधा तो मानो चौपट हो गया एक दशक पहले तक हर घर में कम-से-कम चार दुधारु भैंसे होती थीं। अब कुछ ही घरों में भैंसे हैं। दूध की बात तो दूर छाछ भी बिकती है। शिकोहपुर बताता है कि गुड़गांव और आसपास के विकास में परियोजनाओं की तैयारी में उसी समाज से कोई सलाह नहीं ली गई, जो उससे सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। विकास, नीतियों के क्रियान्वयन और आयोजना में उन्हें शामिल करना तो दूर, परामर्श तक नहीं किया। मानेसर के इंडस्ट्रियल मॉडल टाउनशिप के लगभग सामने स्थित है अहीरवाल के सर्वाधिक बड़े गांवों में से एक शिकोहपुर। गुड़गांव के अंतरराज्यीय बस अड्डे से हमें यहां पहुंचने पर तकरीबन 25 मिनट लगे। गांव की जमीन हालांकि दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय उच्च मार्ग के साथ सटी है, लेकिन बस्ती थोड़ा हटकर है।
गांव में घुसते ही हमारा स्वागत पौराणिक मंदिर के एक पुजारी करते हैं। गांव के तालाबों के बारे में पूछने पर पंडित जी बताते हैं कि एक तालाब तो मेरे मंदिर के पास ही है। तालाब दिखाने के हमारे अनुरोध को स्वीकार करते हुए वह तुरंत हमें ले चल पड़ते हैं। पिछले एक दशक में गांव में जब से पूर्वजों की जमीन की बदौलत हुई नोटों की बारिश से यहां के सनातन परंपरा वाले मंदिर भवन का न केवल कायाकल्प हो गया है बल्कि विस्तार भी हो गया है।
तालाब और पंडित जी, तालाब में पानी तो है ही नहीं, सवाल पर पंडित जी चुप हो जाते हैं। बाद में कहते हैं, मौके-बे-मौके सबमर्सिबल से इसमें पानी चलाते हैं। तालाब की गहराई अब भी 25 फुट से अधिक है, लेकिन उसमें पानी एक गढ़े की तरह है। मंदिर की सफाई पूरी है लेकिन तालाब में पॉलीथीन तैरते हैं। खास अवसरों पर यहां भजन-कीर्तन, कीर्तन और लंगर का आयोजन भी होता है, लेकिन लोग हलवा-पूरी खाए और इनमें से कई तो अपनी कागज और प्लास्टिक निर्मित बड़े जोहड़ के नाम से मशहूर पत्तलें तालाब में फेंककर चले जाते हैं। गांव के बाहर ही जैन मंदिर है। यहां जैन साधुओं और भक्तों का जमघट लगा रहता है। सबमर्सिबल से पानी निकाल लिया जाता है। मेन रोड पर ही प्रॉपर्टी का व्यवासाय करने वाले सतीश यादव कहते हैं, हर धर्म ग्रंथ में पानी को वरुण देवता कहा है, लेकिन यहां तो सारे मिलकर इस देवता को मिटाने पर लगे हैं। बड़ा जोहड़ के साथ ही स्थित है कृषि विज्ञान केंद्र। तरस आता हैं यहां के कृषि वैज्ञानिकों पर जो ग्रामीणों में तालाब के प्रति थोड़ी-सी भी चेतना नहीं ला सके। युवा प्रेमपाल कहते हैं, ये पानी के प्रति कैसी जागरुकता लाते, खुद ही सबमर्सिबल पर निर्भर हैं।
बड़ा जोहड़ देखकर हम सफेद और संगमरमर से बने महलनुमा घरों के सामने से गुजरकर गांव के बड़ी के चौक पर पंहुचते हैं। हरियाणा में सर्वाधिक मेहनती माने जाने वाली अहीर कौम के एक दर्जन से अधिक युवक दो दर्जन बुजुर्गों के साथ नीम के पेड़ की छांव में ताश खेलने और देखने में व्यस्त हैं। ताशों की उठापटक, बीच-बीच में छोटे हुक्के और बीड़ी के कशों के बीच फुर्सत निकाल 85 साल के बुजुर्ग रिसाल सिंह तालाबों की बात शुरू होते ही कहते हैं, भाई जोहड़ तो टूट गयो। अर फिर परजा बदल गई तो वैसो ही मालिक भी हो गयो। जब हमने अपने तालाब, कुओं की परवाह नहीं की तो इंदर देवता न्ह भी मुंह मोड़ लियो। ( जोहड़ तो खत्म हो गया, फिर जैसी प्रजा हो गई भगवान भी वैसा ही हो गया। जब हमने अपने, तालाबों, कुओं की सार संभाल नहीं की तो इंद्र देवता भी नाराज हो गए।)
साथ ही बैठे 63 साल के शहजाद नाम पूछने पर कहते हैं, नाम तो परमात्मा का है, वैसे शहजाद कह देते हैं। शहजाद पुरानी यादों को ताजा करते हुए बताते हैं, 1977 में बड़ा जोहड़ में 50 फुट तक पानी था। हम नहाने कै लिए तालाब के साथ स्थित पीपल के पेड़ के ऊपर से कलाबाती करते हुए कूदते थे। अब किसा जोहड़, बालकान न्ह गंदा पाणी लगै तालाब, जोहड़ का। फेर रहा भी ना। पहले गांव वाले सारे इक_ हो इस तालाब की सफाई करते थे। गांव में कुल पांच जोहड़ थे। छोटा जोहड़ पहाड़ के पास था, अब न के बराबर है। खांडा जोहड़ को समतल कर दिया है। तीन जोहड़ों पर कब्जे भी हैं। पहाड़ी पर बना ज्ञान गुरू का धार्मिक महत्व का और विजय का प्रतीक जोहड़ भी अब न के बराबर है। खेतों में तो कुओं की संख्या सैकड़ों में थी, लेकिन गांव में कुल 7 कुएं थे। अपने मायके आई 55 साल की सरोज बाला के मुताबिक, बड़ा कुआं, भैया वाला कुआं, नया कुआं, पुराना कुआं, घेरवाला सबमें मीठा पानी था। केवल एक कुएं का पानी ही खारा था। हमारे गांव में पानी की मौज थी, काम करने वाली औरतों की फौज थी।
बुजुर्ग रोशनलाल को इस बात का बेहद दु:ख है कि ग्राम पंचायत ने तालाबों और कुओं को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। पंचायत के लिए आए फंड का हिस्सा या नरेगा, मनरेगा के अनुदान का इस्तेमाल कर जोहड़ों को बचाने की कोई ठोस पहल होनी चाहिए थी, जो नहीं हुई। बकौल रोशनलाल, अब हर घर में सबमर्सिबल है। पानी घंटों नालियों में बहता रहता है। आप महिलाओं को ऐसा करने के लिए मना क्यों नहीं करते पर वह कहते हैं, सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो।
रिसाल सिंह बताते हैं, कुओं, जोहड़ों के खत्म होने के बाद पीने के पानी के लिए हम सबमर्सिबल पर निर्भर हैं। पानी की गुणवत्ता बहुत अधिक गिर गई है। पहले भोजन के बाद एक लोटा पानी पीते थे और सब हजम हो जाता था खाया-पीया। अब चूर्ण और गोली भी असर नहीं करती। घरां म्ह पानी ठीक करण की आरओ आली मशीन भी लगाई है, पर जीण ताहीं पाणी पीणा पडैं सै। गोड्यांह म्ह दर्द रहण लाग्या।
पानी की कमी का पशुपालन का धंधा तो मानो चौपट हो गया एक दशक पहले तक हर घर में कम-से-कम चार दुधारु भैंसे होती थीं। अब कुछ ही घरों में भैंसे हैं। दूध की बात तो दूर छाछ भी बिकती है। शिकोहपुर बताता है कि गुड़गांव और आसपास के विकास में परियोजनाओं की तैयारी में उसी समाज से कोई सलाह नहीं ली गई, जो उससे सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। विकास, नीतियों के क्रियान्वयन और आयोजना में उन्हें शामिल करना तो दूर, परामर्श तक नहीं किया।
नरक जीते देवसर (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम | अध्याय |
1 | |
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3 | पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार |
4 | |
5 | |
6 | |
7 | |
8 | |
9 | |
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11 | जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ |
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16 | सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो |
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18 | |
19 | |
20 | पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो |
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