कोसी विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार मिश्र से द पब्लिक एजेंडा की बातचीत
पायलट चैनल विवाद अगर नहीं सुलझा तो क्या होगा ?
मुझे लगता है कि देर हो चुकी है। मानसून में ज्यादा समय नहीं है। वैसे पायलट चैनल के बन जाने से भी खतरा टल नहीं जायेगा। आज कोई नहीं कह सकता कि कोसी सरकार और इंजीनियरों के नियंत्रण में है।
ऐसा क्यों? कुसहा के बाद तो काफी बड़े दावे किये गये थे ?
बैराज के नजदीक डाउनस्ट्रीम में भारी गाद जमा है, जो नदी को मध्य में जाने से रोक रही है। अगर चैनल बनाकर डाउनस्ट्रीम में खतरे को टाल दिया जाता है, तो अपस्ट्रीम में नदी पूरब की ओर खिसकेगी और खतरा टलेगा नहीं। हां, खतरे का स्थान थोड़ा-बहुत आगे-पीछे जा सकता है। दावे का क्या ? कुछ भी बोल दो, कुछ भी कह दो! कुसहा का सबक साफ था, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं सीखा।
सरकार कह रही है कि बैराज के गेट के सहारे इंजीनियर धारा को मध्य में ला सकते हैं। क्या यह संभव है?
हां, कुछ हद तक। लेकिन यह समाधान नहीं है, इससे कटाव का खतरा नहीं टलेगा। तब नदी बैराज से उतरने के बाद तेजी से भागेगी और वह किधर जायेगी, कहना कठिन है। लेकिन टोपोग्राफी के आंकड़े और मेरा अनुभव कहता है कि ऐसी परिस्थिति में भी बैराज से लेकर भटनियां तक पूरबी तटबंध पर गंभीर खतरा रहेगा।
अब क्या उपाय हो सकता है?
कोई उपाय नहीं है अब इंजीनियरों के नियंत्रण में कुछ नहीं रह गया है। सब कुछ नदी के हाथ में है। अब नदी की मर्जी ही चलेगी। कुछ चमत्कार हुआ तो वह तटबंध से दूर भी जा सकती है। अगर अपस्ट्रीम में करवेचर बना तो तटबंध को टूटने से कोई नहीं बचा सकता। यह सरकार की गलत कोसी प्रबंधन नीति का परिणाम है। वे पहले रुपये खर्च करके आपदा खड़ी करते हैं और बाद में आपदा से निपटने में रुपये बहाते हैं।
कोसी के बाशिंदे अब क्या करें ?
पूरी बरसात सतर्क रहें। बाढ़ के साथ जीने की अपनी पुरानी आदत याद करें। कोसी मानने वाली नहीं है
पायलट चैनल विवाद अगर नहीं सुलझा तो क्या होगा ?
मुझे लगता है कि देर हो चुकी है। मानसून में ज्यादा समय नहीं है। वैसे पायलट चैनल के बन जाने से भी खतरा टल नहीं जायेगा। आज कोई नहीं कह सकता कि कोसी सरकार और इंजीनियरों के नियंत्रण में है।
ऐसा क्यों? कुसहा के बाद तो काफी बड़े दावे किये गये थे ?
बैराज के नजदीक डाउनस्ट्रीम में भारी गाद जमा है, जो नदी को मध्य में जाने से रोक रही है। अगर चैनल बनाकर डाउनस्ट्रीम में खतरे को टाल दिया जाता है, तो अपस्ट्रीम में नदी पूरब की ओर खिसकेगी और खतरा टलेगा नहीं। हां, खतरे का स्थान थोड़ा-बहुत आगे-पीछे जा सकता है। दावे का क्या ? कुछ भी बोल दो, कुछ भी कह दो! कुसहा का सबक साफ था, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं सीखा।
सरकार कह रही है कि बैराज के गेट के सहारे इंजीनियर धारा को मध्य में ला सकते हैं। क्या यह संभव है?
हां, कुछ हद तक। लेकिन यह समाधान नहीं है, इससे कटाव का खतरा नहीं टलेगा। तब नदी बैराज से उतरने के बाद तेजी से भागेगी और वह किधर जायेगी, कहना कठिन है। लेकिन टोपोग्राफी के आंकड़े और मेरा अनुभव कहता है कि ऐसी परिस्थिति में भी बैराज से लेकर भटनियां तक पूरबी तटबंध पर गंभीर खतरा रहेगा।
अब क्या उपाय हो सकता है?
कोई उपाय नहीं है अब इंजीनियरों के नियंत्रण में कुछ नहीं रह गया है। सब कुछ नदी के हाथ में है। अब नदी की मर्जी ही चलेगी। कुछ चमत्कार हुआ तो वह तटबंध से दूर भी जा सकती है। अगर अपस्ट्रीम में करवेचर बना तो तटबंध को टूटने से कोई नहीं बचा सकता। यह सरकार की गलत कोसी प्रबंधन नीति का परिणाम है। वे पहले रुपये खर्च करके आपदा खड़ी करते हैं और बाद में आपदा से निपटने में रुपये बहाते हैं।
कोसी के बाशिंदे अब क्या करें ?
पूरी बरसात सतर्क रहें। बाढ़ के साथ जीने की अपनी पुरानी आदत याद करें। कोसी मानने वाली नहीं है
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