खगोल वैज्ञानिकों को हमारे सौरमंडल के बाहर जीवनयोग्य ग्रह के संकेत मिले हैं। उन्हें एक चट्टानी और जलयुक्त क्षुद्र ग्रह का पता चला है, जो पृथ्वी से करीब 170 प्रकाश वर्ष दूर एक मरणासन्न तारे का चक्कर काट रहा है। ‘जीडी 61’ नामक इस तारे का आणविक ईंधन ख़त्म हो चुका है। खगोल वैज्ञानिकों का ख्याल है कि यह चट्टानी पिंड एक ऐसे छोटे चट्टानी ग्रह का हिस्सा हो सकता है, जहां कभी जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि यह ग्रह अपनी कक्षा से अलग होकर अपने तारे या सूरज के इतने करीब आ गया कि उसके टुकड़े हो गए। जीवन की उत्पत्ति के लिए पानी और चट्टानी सतह का होना जरूरी है। गहन अंतरिक्ष में इन दोनों चीजों के मिलने से स्पष्ट है कि जीवनयोग्य ग्रहों के लिए बुनियादी निर्माण सामग्री ब्रह्मांड में सर्वत्र फैली हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मूल ग्रह आकार की दृष्टि से एक लघु ग्रह था। उसका व्यास मात्र 90 किलोमीटर था। इसकी संरचना में 26 प्रतिशत हिस्सा पानी का था, जबकि पृथ्वी पर पानी का अंश मात्र 0.023 प्रतिशत पानी है।
वारविक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बोरिस ग्लेनशिक के मुताबिक मूल तारे द्वारा अपनी तरफ खींचे जाने के बाद अब इस ग्रह के अवशेष में सिर्फ धूल और मलबा ही बाकी बचे हैं। फिर भी अपने मरणासन्न तारे के इर्द-गिर्द घूम रहे इस बचे खुचे पिंड से हमें उसके पूर्व जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इसके मलबे में मौजूद रासायनिक चिन्हों से उसके अतीत में जल सम्पन्न ग्रह होने के स्पष्ट संकेत मिलते हैं। प्रो. ग्लेनशिक ने कहा कि हमारे सौरमंडल के बाहर जीवन के अनुकूल ग्रहों की तलाश के लिए हम चट्टानी सतह और पानी की उपस्थिति पर मुख्य जोर देते हैं। हमारे सौरमंडल के बाहर पहली बार इन दोनों चीजों का एक साथ मिलना खगोल वैज्ञानिकों के लिए बहुत ही रोमांचक बात है।
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक और केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जे फान्ही का कहना है कि एक बड़े क्षुद्रग्रह पर पानी की मौजूदगी का मतलब यह है कि अतीत में जीडी 61 मंडल में जीवन अनुकूल ग्रहों के लिए बुनियादी निर्माण सामग्री मौजूद थी और शायद अभी भी मौजूद है। जीडी 61जैसे दूसरे मूल तारों के आस-पास भी ऐसी सामग्री हो सकती हैं। नया अध्ययन साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। खगोल वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में हबल स्पेस टेलीस्कोप और हवाई स्थित विशाल केक टेलीस्कोप से किए गए पर्यवेक्षणों को मुख्य आधार बनाया है। इन पर्यवेक्षणों के दौरान वैज्ञानिकों को पता चला कि ग्रह के अवशेष में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत ज्यादा और कार्बन की मात्रा नहीं के बराबर है।
इसके आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह अवशेष एक बड़े खगोलीय पिंड का हिस्सा है जहां पानी भरपूर मात्रा में मौजूद था। हमारे सौरमंडल से बाहर पानी की मौजूदगी के सबूत पहले भी मिले हैं, लेकिन अभी तक यह पानी गैस प्रधान ग्रहों के वायुमंडल में मिला था। अब चट्टानी सतह पर पानी मिलने से वैज्ञानिकों को जीवनयोग्य ग्रहों और जीवन की उत्पत्ति को नए ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
एक अन्य अध्ययन में खगोल वैज्ञानिकों को एक ऐसे ग्रह का पता चला है जो इकलौता है और तारे के बगैर अंतरिक्ष में विचरण कर रहा है। यह पहला ऐसा ग्रह है, जिसका कोई सूर्य नहीं है। यह बेहद ठंडा ग्रह है और हमारे गैस प्रधान ग्रह, बृहस्पति की तुलना में इसका द्रव्यमान छह गुणा अधिक है। अनुमान है कि इस ग्रह का निर्माण सिर्फ 1.2 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। खगोलीय पैमाने पर यह ग्रह महज एक शिशु के समान है। यह पृथ्वी से 80 प्रकाश वर्ष दूर है।
वैज्ञानिकों ने हवाई में हालेकाला नामक पहाड़ पर लगे पैन-स्टार्स टेलीस्कोप से मिले डेटा के विश्लेषण के दौरान इस इकलौते ग्रह का पता लगाया। नब्बे के दशक से वैज्ञानिकों ने हमारे सौरमंडल के बाहर अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी की मदद से सैकड़ों बाहरी ग्रहों का पता लगाया है। तारों के आगे से गुजरते हुए ग्रहों से आने वाली रोशनी कम हो जाती है। खगोल वैज्ञानिकों द्वारा अपनाई जाने वाली तकनीक में ग्रहों की रोशनी के मंद होने पर नजर रखी जाती है, लेकिन इस इकलौते तारे की जानकारी मरणासन्न तारों की खोज के दौरान मिली।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
वारविक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बोरिस ग्लेनशिक के मुताबिक मूल तारे द्वारा अपनी तरफ खींचे जाने के बाद अब इस ग्रह के अवशेष में सिर्फ धूल और मलबा ही बाकी बचे हैं। फिर भी अपने मरणासन्न तारे के इर्द-गिर्द घूम रहे इस बचे खुचे पिंड से हमें उसके पूर्व जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इसके मलबे में मौजूद रासायनिक चिन्हों से उसके अतीत में जल सम्पन्न ग्रह होने के स्पष्ट संकेत मिलते हैं। प्रो. ग्लेनशिक ने कहा कि हमारे सौरमंडल के बाहर जीवन के अनुकूल ग्रहों की तलाश के लिए हम चट्टानी सतह और पानी की उपस्थिति पर मुख्य जोर देते हैं। हमारे सौरमंडल के बाहर पहली बार इन दोनों चीजों का एक साथ मिलना खगोल वैज्ञानिकों के लिए बहुत ही रोमांचक बात है।
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक और केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जे फान्ही का कहना है कि एक बड़े क्षुद्रग्रह पर पानी की मौजूदगी का मतलब यह है कि अतीत में जीडी 61 मंडल में जीवन अनुकूल ग्रहों के लिए बुनियादी निर्माण सामग्री मौजूद थी और शायद अभी भी मौजूद है। जीडी 61जैसे दूसरे मूल तारों के आस-पास भी ऐसी सामग्री हो सकती हैं। नया अध्ययन साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। खगोल वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में हबल स्पेस टेलीस्कोप और हवाई स्थित विशाल केक टेलीस्कोप से किए गए पर्यवेक्षणों को मुख्य आधार बनाया है। इन पर्यवेक्षणों के दौरान वैज्ञानिकों को पता चला कि ग्रह के अवशेष में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत ज्यादा और कार्बन की मात्रा नहीं के बराबर है।
इसके आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह अवशेष एक बड़े खगोलीय पिंड का हिस्सा है जहां पानी भरपूर मात्रा में मौजूद था। हमारे सौरमंडल से बाहर पानी की मौजूदगी के सबूत पहले भी मिले हैं, लेकिन अभी तक यह पानी गैस प्रधान ग्रहों के वायुमंडल में मिला था। अब चट्टानी सतह पर पानी मिलने से वैज्ञानिकों को जीवनयोग्य ग्रहों और जीवन की उत्पत्ति को नए ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
एक अन्य अध्ययन में खगोल वैज्ञानिकों को एक ऐसे ग्रह का पता चला है जो इकलौता है और तारे के बगैर अंतरिक्ष में विचरण कर रहा है। यह पहला ऐसा ग्रह है, जिसका कोई सूर्य नहीं है। यह बेहद ठंडा ग्रह है और हमारे गैस प्रधान ग्रह, बृहस्पति की तुलना में इसका द्रव्यमान छह गुणा अधिक है। अनुमान है कि इस ग्रह का निर्माण सिर्फ 1.2 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। खगोलीय पैमाने पर यह ग्रह महज एक शिशु के समान है। यह पृथ्वी से 80 प्रकाश वर्ष दूर है।
वैज्ञानिकों ने हवाई में हालेकाला नामक पहाड़ पर लगे पैन-स्टार्स टेलीस्कोप से मिले डेटा के विश्लेषण के दौरान इस इकलौते ग्रह का पता लगाया। नब्बे के दशक से वैज्ञानिकों ने हमारे सौरमंडल के बाहर अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी की मदद से सैकड़ों बाहरी ग्रहों का पता लगाया है। तारों के आगे से गुजरते हुए ग्रहों से आने वाली रोशनी कम हो जाती है। खगोल वैज्ञानिकों द्वारा अपनाई जाने वाली तकनीक में ग्रहों की रोशनी के मंद होने पर नजर रखी जाती है, लेकिन इस इकलौते तारे की जानकारी मरणासन्न तारों की खोज के दौरान मिली।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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