सौर ऊर्जा से जगमगाता लद्दाख

बदलते हालात में जबकि पैट्रोलियम उत्पादें जैसे किरोसीन, डीजल, पैट्रोल और कोयला इत्यादि की काफी कमी होती जा रही है, ऐसे वक्त में हमें ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्त्रोत सूरज से ऊर्जा प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। वास्तव में यह मानव सभ्यता के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

किसी लेखक के लिए विषय का चुनाव करना कितना कठिन होता है, इसका बेहतर अंदाजा एक लेखक ही लगा सकता है। सोचने का वक्त ये है कि विषय कहां से शुरू किया जाए। यह अपने आप में किसी मुश्किल और पेचिदा काम जैसा है। लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि कई बार कोई छोटी सी चीज आपके विचारों को आसमान की उंचाईयां प्रदान कर देती हैं। इस बार मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। मेरी आंखों ने एक नन्हीं सी चीज देखी और जेहन यकायक कुलांचे भरने लगा। हुआ यूं कि लद्दाख़ में एक यात्रा के दौरान जिस टैक्सी में मैं सफर कर रही थी उसमे सामने एक सजा हुआ पहिया देखा। वह पहिया मुझे बहुत सुंदर लग रहा था। इसका एक कारण यह भी था कि इस पहिए के सामने लगी सौर ऊर्जा की प्लेट इसे घुमा रही थी। हांलाकि इतने दिनों से मेरे मन मस्तिष्क में इसी विषय से संबंधित कई प्रश्न उठ रहे थे। मगर क्या खबर थी कि उसके सारे उत्तर एक दिन यूं अचानक मेरी नजरों के सामने आ जाएंगे।

मुझे अब अपने विचारों को लद्दाख़ के उन दूर-दराज़ देहातों की तरफ ले जाना था जहां लोग अपनी छतों पर सब्जि़यां रखकर सूर्य की रौशनी में इन्हें सुखाते हैं ताकि सर्दी की सख्त रातों में जब लद्दाख़ का तापमान शुन्य से भी 40 डिग्री नीचे चला जाता है और उसका संपर्क पूरी दुनिया से कट जाता है तथा ऐसे हालात में जब खाने-पीने के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं रहता है तो सूखे हुए इन्हीं सब्जियों को इस्तेमाल में लाया जाता है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों के ये लोग न जाने कितनी दहाईयों से अपने पूर्वजों के इसी तरीके पर अमल कर रहे हैं। मुझे ऐसा लगता है कि सूर्य और इससे पैदा होने वाली ऊर्जा हमारी प्रथाओं का एक अहम हिस्सा है। जिसका लद्दाख़ी संस्कृति से गहरा नाता है।

हांड मांस कंपा देने वाली सर्दी में जब यहां का जीवन ठहर जाता है तो इससे क्षेत्र का बिजली विभाग भी नहीं बच पाता है। ऐसे में सिर्फ सौर लाइटें ही होती हैं जो यहां की सुनसान और अंधेरी रातों में, जबकि कहीं से कोई रौशनी की किरण दिखाई नहीं देती है, अपनी उपस्थिती और उपयोगिता का अहसास कराती है। सौर लैंप दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में बसने वाले उन लोगों के लिए प्रकृति के किसी अनमोल उपहार से कम नहीं है, जहां बिजली आज तक पहुंची नहीं है। हालांकि पहले की अपेक्षा इसमें काफी सुधार हुआ है परंतु लोगों का विश्वास सौर ऊर्जा पर कहीं ज्यादा है। यही कारण है कि यहां सौर ऊर्जा से संचालित टार्च और लैंप लोगों के पास आसानी से उपलब्ध देखे जा सकते हैं। कई जगहों पर तो सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइटें भी हैं जो स्थानीय लोगों के लिए मुश्किल की घड़ी में काफी फायदेमंद होता है।

लेरडा, लिडेज़, लिहो, एलएनपी और शिमोल जैसी कई सरकारी और गैर सरकारी संगठनें सौर ऊर्जा के संबंध में लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रही है। उदाहरण के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले पानी के हीटर को ही लें, जो लेरडा के माध्यम से स्थानीय लोगों को रियायती दामों में उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके लिए मीडिया और विज्ञापन की मदद भी ली जा रही है ताकि लोगों को इस तरह की स्कीमों से ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके। वाटर हीटर के साथ-साथ लेरडा सौर ऊर्जा से चलने वाला कुकर बनाने की दिशा में भी काम कर रहा हैं। इस संगठन का इरादा सब्जियां और फल सुखाने वाले आम सौर ड्रायर की जगह एक आधुनिक और तकनीकि रूप से ऐसा फुड प्रोसेसर बनाया जा सके जिससे सौर ऊर्जा का शत-प्रतिशत उपयोग किया जा सके।

लिडेज़ जैसी गैर सरकारी संगठनें कई वर्षों से सौर ऊर्जा को लद्दाख़ के लिए बहुउपयोगी बनाने में बेहद दिलचस्पी दिखा रही हैं। वहीं शिमोल के माध्यम से कई सोलराइज्ड भवनें तैयार की गई हैं। इस संबंध में क्षेत्र के कई स्कूल भवनें उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत की जा सकती हैं। इन संगठनों के अलावा सीमा पर तैनात हमारी फौज भी यहां सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने और इसे कारगर बनाने में काफी अहम रोल अदा कर रही हैं। फिर चाहे वह सौर कुकर के इस्तेमाल का मामला हो, सौर लाइटिंग का या फिर सोलराइज्ड भवनों के निर्माण का। ग्रीन हाउस के माध्यम से भी यहां खेती को बेहतर बनाया जा रहा है।

बदलते हालात में जबकि पैट्रोलियम उत्पादें जैसे किरोसीन, डीजल, पैट्रोल और कोयला इत्यादि की काफी कमी होती जा रही है, ऐसे वक्त में हमें ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्त्रोत सूरज से ऊर्जा प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। वास्तव में यह मानव सभ्यता के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। लद्दाख़ में लोग सौर ऊर्जा के प्रति काफी जागरूक हो रहे हैं। सौर ऊर्जा को जमा करने में कोई मेहनत भी नहीं आती है और न ही यह बहुत ज्यादा खर्चीला है। मैं टैक्सी में लगे इस छोटे से पहिए को सूरज की किरणों से चक्र पर घुमते हुए देख कर मंद ही मंद मुस्कुरा रही थी। मैं भविष्य में झांक कर देख सकती हूं कि आने वाला लद्दाख़ ऊर्जा के नवीनीकृत स्त्रोत की दिशा में तेजी से अग्रसर है। बस शर्त ये है कि हम सब को मिलकर इस दिशा में प्रयासरत होना चाहिए।

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