‘शौचालय योजना की कामयाबी के लिए यह जरूरी’

डेढ़ लाख राज मिस्त्री समेत कुल दो लाख लोगों को ट्रेंड करने की जरूरत
गैर-सरकारी संगठन ‘सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गनाइजेशन’ के प्रमुख ने 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए कहा कि देश में करीब 60 करोड़ लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। साथ ही कुल 12 लाख स्कूलों में से 3 लाख स्कूलों में शौचालय नहीं है।देश में अगले पांच साल में सबके लिए शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बीच ‘सुलभ शौचालय’ की ख्याति वाले प्रतिष्ठित गैर सरकारी संगठन सुलभ इंटरनेशनल के प्रमुख डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने कहा है कि योजना की सफलता के लिए 50,000 कार्यकर्ता और डेढ़ लाख राज मिस्त्री समेत कुल दो लाख लोगों को प्रशिक्षण देने की जरूरत होगी।

पाठक ने प्रधानमंत्री मोदी को इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के संबंध में अपनी ओर से सहयोग की पेशकश करते हुए कुछ सुझाव भेजे हैं। उनका दावा है कि इस योजना के लिए उपयुक्त मॉडल ‘सुलभ शौचालय’ प्रौद्योगिकी है। पाठक ने मोदी सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के बारे में बताया कि मैंने खुद प्रधानमंत्री को लिखा है। मुझसे किसी ने इस बारे में सुझाव मांगा नहीं था। पाठक ने कहा कि हर घर और स्कूल में शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराने की सरकार की महत्वाकांक्षी योजना की सफलता के लिए 50,000 लोगों को बतौर कार्यकर्ता प्रशिक्षित करने की जरूरत है।

साथ ही शौचालयों के निर्माण के लिए इस कार्य में विशेष रूप से प्रशिक्षित डेढ़ लाख राजमिस्त्री की भी आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि ये प्रशिक्षित कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को शौचालय के बारे में जागरूक करेंगे और उसके निर्माण एंव रख-रखाव में सहयोग करेंगे। इतना ही नहीं, ये प्रशिक्षण प्राप्त लोग लाभार्थियों को बैंक से कर्ज तथा सरकार से सब्सिडी प्राप्त करने में भी मदद करेंगे। पाठक ने कहा कि प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने योजना को सफल बनाने के लिए उपायों का जिक्र किया है। साथ ही इसमें हरसंभव सहायता की पेशकश की गई है।

पद्म भूषण से सम्मानित बिंदेश्वर पाठक ने कहा कि देश में 6,40,867 गांव हैं और एक प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति के हिस्से में 13 गांव आएगा। पांच साल में वह इन गांवों में 2,500 से 3,000 शौचालय के निर्माण में मदद करेगा। योजना की सफलता के लिए उपयुक्त मॉडल के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए उपयुक्त मॉडल ‘सुलभ शौचालय’ प्रौद्योगिकी है, जिसकी खोज मैंने 1968-69 में की। निर्माण और रख-रखाव के लिहाज से नालियों से शौचालय को जोड़ने तथा सेप्टिक टैंक प्रौद्योगिकी महंगी है।

इसीलिए ऐसी प्रौद्योगिकीयों का क्रियान्वयन व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने कहा कि दो गड्ढ़ों और फ्लश वाला कंपोस्ट शौचालय (टू पिट पोर फ्लश कंपोस्ट टॉयलेट) पर्यावरण अनुकूल, सस्ता और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य है। पाठक ने कहा कि इस प्रौद्गोकी में मानव मल का पुनर्चक्रण कर उसे जैव उर्वरक में तब्दील किया जाता है और फ्लश के लिए केवल एक लीटर पानी की जरूरत पड़ती है।

गैर-सरकारी संगठन ‘सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गनाइजेशन’ के प्रमुख ने 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए कहा कि देश में करीब 60 करोड़ लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। साथ ही कुल 12 लाख स्कूलों में से 3 लाख स्कूलों में शौचालय नहीं है। सुलभ इंटरनेशनल ने देश भर में अब तक घरों के लिए 13 लाख तथा सार्वजनिक स्थलों पर 8,000 शौचालयों का निर्माण किया है।

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