पूर्व शर्तें :
ग्रामीणों ने शौचालय निर्माण के इस अभियान में स्रक्रिय प्रत्युत्तर नहीं दिए। ज्यादातर लोगों ने हालांकि इसे स्वीकार तो कर लिया किंतु शौचालय निर्माण में अपना योगदान नहीं दिया। समिति के सदस्यों ने बार-बार अनुरोध किया लेकिन वे लोगों द्वारा शौचालय बनवाने में सफल नहीं हो सके।
परिवर्तन की प्रक्रिया:
जिला स्टॉफ तथा एसओ/वीडबल्यूएससी के सहयोग से इस अभियान को लोगों को शौचालय निर्माण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए स्रक्रिय रूप से चलाया गया। समिति ने निर्णय लिया कि सभी गांव वालों को प्रति मास 200 रू0 की बचत करनी होगी ताकि शौचालय निर्माण के लिए पर्याप्त राशि जुटाई जा सके। किंतु बहुत कम लोगो ने इस राशि का भुगतान किया। तब वीडबल्यूएससी ने एक युक्ति निकाली। उन्होंने 10-11 परिवारों का एक समूह बनाया। प्रत्येक समूह को प्रेरित किया गया और इसका संचालन वीडबल्यूएससी के किसी एक सदस्य ने किया। प्रत्येक समूह से प्रतिमास 2000रू0 राशि जमा करने की आशा की गई थी। यह विधि एक अच्छी खासी प्रतियोगिता बन गई। कुल मिलाकर छ: समूहों का गठन किया गया। इन छ: समूहों ने बारह हजार रूपये एकत्रित किए। समूह के सभी सदस्य एकसाथ बैठे और लाटरी निकाली गई। बॉक्स में छ: पच्रियों में से एक पर्ची निकाली गई। ग्रामीणों ने इस पर्ची को ''ईश्वर चिट्ठी'' (परमात्मा की चिट्ठी) का नाम दिया। समूह ने पर्ची से निकले गए 12000 रू0 को उनके लिए शौचालय निर्माण के लिए रखा गया। पहले महीने में एक समूह ने अपना निर्माण कार्य पूरा किया। अगले महीने, सभी समूह दोबारा मिले और दूसरे समूह के पक्ष में लाटरी निकाली गई। ''बीसी प्रणाली'' ने ठीक प्रकार से कार्य किया और गांव अब लगभग 95 प्रतिशत खुले में शौच से मुक्त गांव बन गया है। ग्रामीणों ने जनवरी 2006 तक अपने गांव को शत प्रतिशत खुले में शौच से मुक्त गांव बनाने का प्रण लिया है।
समस्याएं एवं उपाय:
शौचालय निर्माण के लिए ग्रामीण राशि खर्च नहीं करना चाहते थे। समूह के प्रयासों, प्रतिस्पर्धा की भावना और लाटरी जीतने के आकर्षण ने बहुत बड़ा कार्य किया। प्रत्येक महीने एक समूह बीसी (अर्थात ईश्वर की चिट्ठी) जीतता था और अपने गांव में शौचालय निर्माण का कार्य करवाता था।
/articles/saaucaalaya-nairamaana-kae-laie-baisai