सार्वजनिक जल का सशक्तीकरण-कुछ तरीके

निजीकृत जलापूर्ति और अपर्याप्त, राज्य संचालित जल सेवा दोनों के व्यावहारिक विकल्प साफ तौर पर मौजूद हैं। इसलिए सवाल यह नहीं है कि सार्वजनिक जल काम कर पाता है या नहीं, सवाल यह है कि क्या किया जाये कि वह काम करे। पिछले दशक में निजी क्षेत्र के संवर्धन के साथ विचारधारात्मक रूप से गहरा लगाव होने के कारण इस सवाल पर नीति विषयक चर्चाओं और निर्णय प्रक्रिया में जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था उसका शतांश भी नहीं दिया गया। जैसा कि परिचयात्मक अध्याय में बताया गया है, अनेक बड़े नामों वाले और बड़ी छवि वाले निजीकरण के प्रयासों के विफल होने, विकासशील देशों से पानी की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हटने तथा निजीकरण के प्रचारकों और समर्थकों के बीच भी यह स्वीकार लिये जाने के परिणामस्वरूप कि निजी निवेश से गरीबों का कोई भला न होगा, अब एक एकदम बुनियादी तौर पर नई स्थिति सामने आई है। सार्वजनिक सेवाओं के काम को और उनके कार्यक्षेत्र को बहुत बढ़ाने पर ध्यान पुनः केंद्रित किये जाने की आवश्यकता अब स्पष्ट है। इस पुस्तक का उद्देश्य इस काम में योगदान देना है, हालांकि यह काम बहुत पहले ही किया जाना चाहिए था।

सार्वजनिक जल के ये जनकेंद्रित समाधान भिन्न-भिन्न सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों के तहत हुए हैं। इनके उदाहरणों में पोर्टो अलेग्रे (ब्राजील), सांता क्रुज (बोलीविया) और पेनांग (मलेशिया) में सार्वजनिक सेवाओं और सहकारिताओं की उपलब्धियां, काराकास (वेनेजुएला), हैरीस्मिथ (दक्षिण अफ्रीका) और ब्यूनोज़ आयर्स प्रांत (अर्जेटीना) के प्रयोगधर्मी सार्वजनिक माडलों द्वारा प्राप्त किये गये संशोधन, तथा ओलावन्ना (केरल, भारत) और सावेलुगु (घाना) में समुदाय द्वारा जल प्रबंधन की उपलब्धियां शामिल हैं। इन सभी विविध सार्वजनिक रुखों ने जलापूर्ति को सुधारने के काम की अपनी सामर्थ्य सिद्ध की है। इससे निर्धनतम लोग भी लाभान्वित हुए हैं।यहां अनेक अध्यायों में इस बात का वर्णन किया गया है कि साफ पानी और स्वच्छता तक पहुंच में सार्वजनिक जल प्रबंधन के विविध रूपों ने किस तरह महत्वपूर्ण सुधार किये हैं। सार्वजनिक जल के ये जनकेंद्रित समाधान भिन्न-भिन्न सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों के तहत हुए हैं। इनके उदाहरणों में पोर्टो अलेग्रे (ब्राजील), सांता क्रुज (बोलीविया) और पेनांग (मलेशिया) में सार्वजनिक सेवाओं और सहकारिताओं की उपलब्धियां, काराकास (वेनेजुएला), हैरीस्मिथ (दक्षिण अफ्रीका) और ब्यूनोज़ आयर्स प्रांत (अर्जेटीना) के प्रयोगधर्मी सार्वजनिक माडलों द्वारा प्राप्त किये गये संशोधन, तथा ओलावन्ना (केरल, भारत) और सावेलुगु (घाना) में समुदाय द्वारा जल प्रबंधन की उपलब्धियां शामिल हैं। इन सभी विविध सार्वजनिक रुखों ने जलापूर्ति को सुधारने के काम की अपनी सामर्थ्य सिद्ध की है। इससे निर्धनतम लोग भी लाभान्वित हुए हैं।

लेकिन, लगभग इन सभी उदाहरणों में ये उपलब्धियां अनेक विपरीत स्थितियों का मुकाबला करके हासिल की गई हैं क्योंकि सार्वजनिक और समुदाय नियंत्रित जलापूर्ति को सुधारने की राह में आने वाली बाधाएं अनेक प्रकार की हैं। इनमें सबसे खराब हैं सार्वजनिक पानी के प्रति अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं (आई.एफ.आई.) का व्यवस्थित दुराग्रह तथा उत्तरी सरकारों द्वारा प्रस्तावित विकास सहायता की घटती राशियों के साथ जुड़ी निजीकरण की शर्तें।

राजनीतिक, वित्तीय तथा अन्य वे बाधाएं जो सार्वजनिक जल प्रबंधन द्वारा अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप उपलब्धियां प्राप्त करने में आड़े आती हैं कम से कम ऐसी नहीं हैं कि उन्हें पार न किया जा सके। वस्तुतः इस काम में जो चीज़ जरूरी है वह है अधिक अनुकूल माहौल तैयार करने की राजनीतिक इच्छा। इस अध्याय में प्रगतिशील नीति विकल्पों की एक व्यापक श्रृंखला की रूपरेखा दी गई है। यह अध्याय यह भी निष्कर्ष निकालता है कि जल सेवाओं के लोकतांत्रिक, सार्वजनिक चरित्र को मजबूत करना बुनियादी तौर पर वैश्वीकरण के मौजूदा प्रभुत्वपूर्ण नवउदारवादी मॉडल से मेल नहीं खाता। यह मॉडल जीवन के और क्षेत्रों को भी वैश्विक बाजारों के कठोर तर्को के अधीन कर देता है।

इस पुस्तक में दिये गये दुनिया भर के अनुभवों के आधार पर यह अंतिम अध्याय कुछ उन महत्वपूर्ण मुद्दों की पड़ताल करता है जिन पर आगामी वर्षों में कहीं अधिक गंभीरता के साथ चर्चा किये जाने की जरूरत है।

v स्थायित्व, न्याय और सबकी पहुंच की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए सार्वजनिक जल और स्वच्छता सेवाओं के सुधार और विस्तार के क्या विकल्प हैं?

v नागरिक/उपयोगकर्ता भागीदारी तथा लोकतांत्रीकरण के अन्य रूपों की क्या संभावना है?

v जनकेंद्रित सार्वजनिक सेवा सुधार काम करे इसके लिए कौन सी दशाएं जरूरी हैं?

v सार्वजनिक क्षेत्र के जल कार्य संचालन का वाणिज्यीकरण कैसी समस्याएं खड़ी करता है?

v बहुत जरूरी सुधारों के लिए वित्त जुटाने की राह में आने वाली बाधा को कैसे पार किया जाये? इस विषय में कौन से सबक सीखे जा सकते हैं?

v सफल सार्वजनिक जल विकसित करने में किस तरह की राजनीतिक प्रक्रियाएं शामिल होती हैं?

v शहरी जल और स्वच्छता के लिए सार्वजनिक सेवाओं के विस्तार, सशक्तीकरण और अमल के लिए स्थानीय से वैश्विक स्तर तक क्या किये जाने की जरूरत है?

भागीदारी तथा जनतांत्रीकरण के अन्य रूप


इस पुस्तक में उल्लिखित अनेक नगरों में जल सुविधा की प्रभावशीलता, जवाबदेही और सामाजिक उपलब्धियों में सुधार के पीछे एक मूल कारक रहा है नागरिक और उपयोगकर्ता की विविध रूपों में भागीदारी।

भागीदारी और लोकतांत्रीकरण अनेक रूप ले सकते हैं। बोलीविया और अर्जेंटीना की जल सहकारिताएं उपयोगकर्ताओं को (इनमें से सभी सदस्य हैं और उन्हें मताधिकार प्राप्त है) निर्णय करने प्रक्रिया को सीधे प्रभावित करने की अनुमति देती हैं। उदाहरण के लिए, चुनाव द्वारा सेवाओं के संचालक मंडल का चयन। यह उपयोगकर्ताओं को इस बात का अवसर देता है कि वे इन सेवाओं को उनके उपयोगकर्ताओं की सेवा के मुनाफे के लिए नहीं, मिशन के प्रति जवाबदेह बनाये रहें।

पोर्टो अलेग्रे और अन्य ब्राजीली नगरों की बढ़ती संख्या में नागरिक समाज की संलग्नता प्रयोगधर्मी जनतांत्रिक सुधारों जैसे कि सहभागिता बजट बनाने के साथ जुड़ गई है। यह ऐसा मॉडल है जिसे प्रायः ‘सामाजिक नियंत्रण’ के रूप में वर्णित किया जाता है। पोर्टो अलेग्रे में सार्वजनिक जीवन के अनेक अन्य क्षेत्रों की तरह लोग अपनी जल सुविधा की बजट प्राथमिकताएं सीधे तय करते हैं। जनसभाओं की प्रक्रिया के माध्यम से हर नागरिक यह बता सकता है कि कौन से नये निवेशों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पोर्टो अलेग्रे में सहभागिता बजट ने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कि 99.5 प्रतिशत आबादी को, जिनमें सीमांतों पर रहने वाले अधिक गरीब समुदाय शामिल हैं, आज स्वच्छ पानी सुलभ है। नागरिकों के अनूठे ज्ञान पर आधारित सक्रिय जानकारी प्राप्त करना सेवा के लिए अपने आप में एक निधि है। स्वामित्व की बढ़ती भावना शुल्क का भुगतान करने की इच्छा में योगदान करती है और इस प्रकार नया निवेश और सेवा का बेहतर रख रखाव संभव होता है। पारदर्शिता की स्थिति बेहतर हुई है। इससे भ्रष्टाचार का खतरा कम होने की संभावना बनती है।

पोर्टो अलेग्रे ब्राजील के अधिक संपन्न नगरों में से एक है जो साफ पानी तक पहुंच को सुलभ बनाने के काम में लाभ की स्थिति में है, लेकिन इससे सहभागितापूर्ण जनतंत्र के जरिये संभव हुई उपलब्धियों का महत्व कम नहीं होता। ब्राजील के अन्य स्थानों की तरह इस शहर में भी अमीर और गरीब के बीच बड़ी खाई है और लोकतांत्रिक सुधारों के शुरू होने के पहले आबादी के एक बड़े हिस्से को साफ पानी उपलब्ध नहीं था। कम आय वाले लोगों की बहुत बड़ी संख्या वाले उत्तर-पूर्वी शहर रिसाइफ ने अपने यहां लोकतांत्रिक और सहभागी जल प्रबंधन लागू किया है। आगामी दशकों में पानी तक पहुंच में बहुत ठोस सुधार कर पाना उसका लक्ष्य है। सात माह लंबी सहभागिता परामर्शी प्रक्रिया के साथ यह योजना 2001 में शुरू की गई। इस प्रक्रिया की शुरुआत समुदाय के साथ बैठकों की एक श्रृंखला के साथ हुई थी। इन बैठकों में चुने गये लगभग 400 प्रतिनिधियों ने विचार-विमर्श के लिए हुए एक सम्मेलन में हिस्सा लिया जहां रिसाइफ में पानी और सफाई के भविष्य के बारे में कम से कम 160 फैसले लिये गये। सम्मेलन ने निजीकरण के विरुद्ध और सार्वजनिक जलापूर्ति की व्यवस्था का सुधार और विस्तार करने के लिए एक सांस्थानिक संरचना के पक्ष में फैसला किया। सार्वजनिक जलापूर्ति के मामले में नगर के मलिन बस्ती क्षेत्रों को प्राथमिकता देने का भी निर्णय हुआ। ब्राजील में पोर्टो अलेग्रे शैली के सहभागी जल प्रबंधन के अन्य उदाहरण रियो ग्रांदे दो सुल राज्य के कैक्सियस दो सुल शहर और साओ पाउलो राज्य के सांतो आंद्रे, जकारेई और पिरासिकाबा जैसे शहरों में देखे जा सकते हैं।

ब्राजील के अनुभवों से यह बात स्पष्ट होती है कि शहरों का बड़ा होना सहभागी जल प्रबंधन की राह में अनिवार्य रूप से बाधक नहीं होता। पोर्टो अलेग्रे और रिसाइफ दोनों शहरों की आबादी दस लाख से ज्यादा है और इसी तरह के मॉडल कई अन्य बड़े शहरों में भी सफल सिद्ध हुए हैं।

काराकस (वेनेजुएला) में सहभागी जल प्रबंधन का मॉडल सुधरी जलापूर्ति की जरूरत वाले क्षेत्रों के लोगों को निर्णय करने और निर्माण और रखरखाव के काम दोनों में बहुत गहन ढंग से शामिल करता है। जरूरतों और सुधारों के लिए प्राथमिकताओं को चिह्नित करने, उपलब्ध कोषों के आवंटन और संयुक्त कार्ययोजनाएं विकसित करने के काम में स्थानीय समुदाय, जल सेवा तथा निर्वाचित अधिकारी सामुदायिक जल परिषदों में सहयोग करते हैं। उपयोगकर्ता अपनी सुविधाओं पर जनतांत्रिक नियंत्रण रखते हैं।काराकस (वेनेजुएला) में सहभागी जल प्रबंधन का मॉडल सुधरी जलापूर्ति की जरूरत वाले क्षेत्रों के लोगों को निर्णय करने और निर्माण और रखरखाव के काम दोनों में बहुत गहन ढंग से शामिल करता है। जरूरतों और सुधारों के लिए प्राथमिकताओं को चिह्नित करने, उपलब्ध कोषों के आवंटन और संयुक्त कार्ययोजनाएं विकसित करने के काम में स्थानीय समुदाय, जल सेवा तथा निर्वाचित अधिकारी सामुदायिक जल परिषदों में सहयोग करते हैं। उपयोगकर्ता अपनी सुविधाओं पर जनतांत्रिक नियंत्रण रखते हैं, उदाहरण के लिए कार्ययोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए उन्हें जवाबदेह बनाकर। समुदाय की संलग्नता और सशक्तीकरण के माध्यम से पिछले पांच वर्षों में नल वाले पानी तक पहुंच में महत्वपूर्ण सुधार कर लिये गये हैं।

केरल (भारत) के ओलवन्ना तथा अन्य समुदायों में भी सहभागी जल प्रबंधन ने अद्भुत काम किया है। केरल सरकार की ‘जन योजना’ नीति (जो सार्वजनिक वित्त के प्रमुख हिस्सों से संबंधित निर्णय प्रक्रिया को विकेंद्रित करती है के परिणामस्वरूप स्थानीय जनता पीने के पानी तक पहुंच की स्थिति में सुधार लाने के लिए सार्वजनिक कोषों के आवंटन का निर्णय कर सकी थी। इन सार्वजनिक कोषों के साथ समुदायों ने स्वयं भी वित्तीय योगदान दिया था। स्थानीय जनता की सहभागिता केवल योजना बनाने के स्तर पर ही नहीं, बल्कि निर्माण, प्रबंधन और रखरखाव में भी होती है। उपयुक्त तकनीक का इस्तेमाल करने और बाहरी ठेकेदारों और विशेषज्ञों पर निर्भर रहने से बचने के कारण लागतों में कमी आती है। समुदाय के भीतर उभरता हुआ स्वामित्व का भाव निगरानी करने और रखरखाव करने में योगदान करता है और इस तरह सुधारों का कायम रहना सुनिश्चित करता है। यह बात महत्वपूर्ण है कि सार्वजनिक कोषों के आवंटन और प्रबंधन संबंधी निर्णय मौजूदा सामुदायिक संरचनाओं के भीतर ही लिये जाते हैं।

इसी तरह सावेलुगु (घाना) में स्थानीय समुदाय की संलग्नता और जनतांत्रिक सशक्तीकरण से लागतें घटी हैं और रिसावों पर काबू पाने में मदद मिली है और इस प्रकार इन्होंने सबको स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने में योगदान दिया है। सावेलुगु में समुदाय नियंत्रित जल प्रबंधन तंत्र को सार्वजनिक-समुदाय भागीदारी कहा जाता है। यह उस तथ्य की ओर संकेत करता है कि राष्ट्रीय सार्वजनिक जल सेवा समुदाय को बड़ी मात्रा में पानी देती है और बदले में समुदाय जलापूर्ति व्यवस्था के सभी चरणों का ध्यान रखता है जिसमें उपयोगकर्ताओं को बिल भेजना, सेवा का रखरखाव तथा नये कनेक्शन देना शामिल है। बहुत अधिक विकेंद्रीकृत इस व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि हर इलाके में एक जल प्रबंधन समिति है। रिसावों को घटाकर न्यूनतम कर दिये जाने के पीछे के तमाम कारणों में एक यह समिति भी है। शुल्कों का निर्धारण शहर का सामुदायिक जल बोर्ड करता है। शुल्क इस प्रकार निर्धारित किये जाते हैं कि पानी का सबकी पहुंच में होना सुनिश्चित हो। काराकस और ओलवन्ना के विपरीत सावेलुगु मॉडल सरकार के सक्रिय समर्थन के बिना विकसित किया गया था, लेकिन यूनीसेफ और कई उत्तरी गैरसरकारी संगठनों से मिली वित्तीय सहायता से ही वहां सुधार संभव हुए।

कोचाबांबा (बोलीविया) में सार्वजनिक-सामूहिक भागीदारी शब्द का इस्तेमाल नगरीय स्वामित्व, भागीदारी और जनतांत्रिक नियंत्रण के उस मॉडल के लिए किया जाता है जो बेक्टेल द्वारा किये गये आपदामूलक निजीकरण के बाद सामने आ रहा है। यह निजीकरण अप्रैल 2002 के जलयुद्ध के द्वारा खत्म कर दिया गया था। जल सुविधा सेमापा (एस.ई.एम.ए.पी.ए.) को अब नागरिकों, विशेषकर निर्धनतम नागरिकों की सेवा के लिए पुनर्गठित किया जा रहा है। अप्रैल 2002 के चुनावों में बोर्ड के सात सदस्यों में से तीन शहर के दक्षिणी, मध्य और उत्तरी क्षेत्रों के निवासियों द्वारा चुने गये थे। इसी के साथ, सेमापा नगर के दक्षिणी मंडल में पानी के कनेक्शन से वंचित गरीब समुदायों को पानी की आपूर्ति करने वाली पहले से मौजूद जल समितियों के साथ एक सहप्रबंधन मॉडल बन रही है। इन उपशहरी क्षेत्रों में नल का पानी पहुंचाने के लिए सेमापा जल समितियों के साथ सहयोग करती है। इस काम के लिए जल समितियों की उनके स्थानीय समुदायों में सेवा प्रदान करने की क्षमताओं का इस्तेमाल किया जाता है और सेमापा बड़ी मात्रा में पानी की आपूर्ति करती है। यद्यपि, इस सहयोग के सफल परिणामों को खतरे में डालने वाले अनेक कारक अब भी मौजूद हैं, फिर भी सार्वजनिक-सामूहिक साझेदारी एक नया और प्रयोगशील रूप है जो सेवाओं में केंद्रीयतावादी प्रवृत्तियों पर काबू पाने में मदद करता है और उपशहरी क्षेत्रों में पानी पहुंचाने की समस्याओं को हल करता है।

सहभागिता प्रबंधन का एक अलग रूप है ब्यूनोज आयर्स (अर्जेंटीना) प्रांत की जल सेवा का, जिसे 2002 से जलकर्मी और उनके श्रम संघ चला रहे हैं। यह जल सेवा लगभग 30 लाख लोगों को पानी मुहैया कराती है। कर्मचारियों ने आपातकाल की स्थिति में उस पर अधिकार कर लिया था। यह स्थिति तब उत्पन्न हुई थी जब निजी रियायत प्राप्त अजूरिक्स (एनरॉन की सहायक कंपनी) वहां से हट गई थी क्योंकि प्रांतीय सरकार ने अमेरिकी निगम द्वारा दी जा रही सेवाओं के लिए मूल्य वृद्धि पर सहमति देने से इनकार कर दिया था। यहां यह उल्लेखनीय है कि निजी रियायत प्राप्त एक कंपनी और एक स्थानीय सार्वजनिक जल सेवा के बीच बुनियादी अंतर यही है कि निजी रियायत प्राप्त कंपनी बीच में काम छोड़ सकती है जबकि सार्वजनिक कंपनी के पास यह विकल्प उपलब्ध नहीं है। उपयोक्ता प्रतिनिधियों, जो प्रबंधन में भागीदारी करते हैं और उस पर निगाह रखते हैं, के सहयोग के साथ कर्मचारी अजूरिक्स द्वारा किये गये जबर्दस्त कुप्रबंधन के वर्षों के बाद सेवा (अगुआस बोनाएर्नेसेस एस.ए.) को पटरी पर लाने में सफल रहे हैं। कर्मचारियों की ऐसी ही एक सहकारिता ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका के दो हिस्सों में जल रियायत का प्रबंधन सफलतापूर्वक किया है।1

ऐसे भी तमाम उदाहरण हैं जहां उपयोगकर्ताओं द्वारा कोई प्रमुख भूमिका निभाये बिना ही प्रभावशाली और न्यायपूर्ण सार्वजनिक जल उपलब्ध करा दिया गया - जैसे इसी पुस्तक में वर्णित पेनांग (मलेशिया) की जलसेवा पी.बी.ए.। पी.बी.ए. की उपलब्धियों के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारक है सार्वजनिक सेवा की उत्कृष्टता और जनता के प्रति जल सेवा प्रबंधन और कर्मचारियों की प्रबल प्रतिबद्धता। यह सेवा कार्य संचालन की दृष्टि से राज्य सरकार से स्वतंत्र, स्वायत्त है। इससे बेवजह के हस्तक्षेप पर रोक लगती है। दूसरी ओर, सेवा की कार्यकुशलता, पारदर्शिता और जवाबदेही राज्य में राजनीति की गतिशीलता से ताकत पाती है। इसमें प्रतिस्पर्धत्मक राजनीतिक दलों की ओर से निरंतर निगरानी करना शामिल है।ऐसे भी तमाम उदाहरण हैं जहां उपयोगकर्ताओं द्वारा कोई प्रमुख भूमिका निभाये बिना ही प्रभावशाली और न्यायपूर्ण सार्वजनिक जल उपलब्ध करा दिया गया - जैसे इसी पुस्तक में वर्णित पेनांग (मलेशिया) की जलसेवा पी.बी.ए.। पी.बी.ए. की उपलब्धियों के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारक है सार्वजनिक सेवा की उत्कृष्टता और जनता के प्रति जल सेवा प्रबंधन और कर्मचारियों की प्रबल प्रतिबद्धता। यह सेवा कार्य संचालन की दृष्टि से राज्य सरकार से स्वतंत्र, स्वायत्त है। इससे बेवजह के हस्तक्षेप पर रोक लगती है। दूसरी ओर, सेवा की कार्यकुशलता, पारदर्शिता और जवाबदेही राज्य में राजनीति की गतिशीलता से ताकत पाती है। इसमें प्रतिस्पर्धत्मक राजनीतिक दलों की ओर से निरंतर निगरानी करना शामिल है। अन्य तमाम महत्वपूर्ण उदाहरण भी हैं, दक्षिण में भी, जैसे नोम पेन्ह (कंबोडिया) जहां उन घरों की संख्या जहां नल से पानी आता है, पिछले दस वर्षों में 25 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 80 प्रतिशत हो गई है। पब्लिक सर्विसेज इंटरनेशनल रिसर्च यूनिट (पी.एस.आईआर.यू.) ने ऐसे और अनेक उदाहरण दर्ज किये हैं।

हालांकि, इसे कोई ऐसा रामबाण नहीं समझना चाहिए जिसे हर स्थिति में लागू किया जा सकता है। कुछ स्थितियों में यह व्यावहारिक नहीं भी हो सकता है लेकिन अपने बहुविध रूपों में भागीदारी और लोकतांत्रीकरण अधिकतम स्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन का एक सशक्त औजार बन सकते हैं। इसमें निर्णय करने और प्रबंधन की गुणवत्ता, प्रभावशीलता और जवाबदेही की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की सामान्य क्षमता है और इस प्रकार यह बेहतर सेवाओं के प्रावधान में अपना योगदान देता है। दक्षिण के नगरों में शहरी जलापूर्ति पर निर्णय करने की प्रक्रिया प्रायः गहन राजनीतिक रणभूमि होती है जहां राजनीतिक और आर्थिक अभिजनों के हित निर्धनतम लोगों के हितों से टकराते हैं। जब लोकतांत्रीकरण का अर्थ होता है हाशिये पर धकेले गये लोगों और गरीब लोगों का ज्यादा बढ़ा हुआ राजनीतिक नियंत्रण, तो यह इस संभावना को बल देता है कि उनकी जरूरतें पूरी होंगी।

इस पुस्तक के अध्यायों में भागीदारी का जिस तरह वर्णन किया गया है वह विश्व बैंक और अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं द्वारा इस शब्द का जिस तरह इस्तेमाल किया जाता है उससे बहुत भिन्न है। इन ताकतवर संस्थाओं के लिए भागीदारी उस उपकरण से बस थोड़ा ही ज्यादा है जिससे वे निजीकरण और वाणिज्यीकरण का रास्ता साफ करते हैं। उदाहरण के लिए, सेवा स्तरों और शुल्क संबंधी फैसले लेने में एक निजी निवेशक की सहायता करने के लिए भुगतान करने की इच्छा का अनुमान लगाने में परामर्शदाताओं का इस्तेमाल।

विश्व जल मंच प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले नवउदारवादी थिंक-टैंक विश्व जल परिषद, जिसकी बहुत आलोचना होती है, ने भी हाल ही में एक नया विमर्श अपनाया है जिसमें ‘सार्वजनिक भागीदारी’ तथा अन्य अच्छे लगने वाले शब्दों की भरमार है। लेकिन उसमें ऐसा कोई संकेत नहीं है कि विश्व जल परिषद अपने उस कॉरपोरेट एजेंडे से दूर हटी है जिसे उसने पिछले विश्व जल मंच के कार्यक्रमों में आगे बढ़ाया था। इस पुस्तक के पृष्ठों में वर्णित सहभागी सार्वजनिक जल प्रबंधन में निर्णय प्रक्रिया के दूरगामी लोकतंत्रीकरण में सेवा की आपूर्ति व्यवस्था बदलने के लिए जनता का सशक्तीकरण निहित है। भागीदारी सहमति हासिल करने का उपकरण नहीं है, बल्कि उसका लक्ष्य है मुक्ति।

माहौल को अनुकूल बनाना


माहौल (स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर) अनुकूल कैसे बनता है, जिसमें विविध जनकेंद्रित सार्वजनिक जल संबंधी दृष्टिकोणों के सफल होने की गुंजाइश होती है? इसके सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारकों में है जल संसाधनों की स्थानीय स्तर पर उपलब्धता, सेवाएं प्रदान करने की सार्वजनिक प्रशासकों की क्षमता और राज्य, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, सरकारों और राजनीतिक दलों का राजनीतिक समर्थन।

1990 के दशक से अर्जेंटीना में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सरकारों ने विचारधारागत कारणों से सहकारिताओं और सार्वजनिक सुविधाओं के प्रायः बहुत बढ़िया काम के बावजूद उनके और आगे विकास को सक्रिय ढंग से अवरुद्ध किया है। हालांकि, ऐसी अपेक्षा करने के अनेक कारण हैं कि निजी जल निगमों के मुकाबले सहकारिताएं अनेक अन्य और अधिक बड़े नगरों में अधिक प्रभावशाली ढंग से और अधिक सामाजिक जवाबदेही के साथ पानी की आपूर्ति कर सकती हैं, फिर भी नवउदारवादी राजनीतिक अभिजन इस विकल्प को आजमाने की इजाजत देना नहीं चाहता। इसी तरह, सार्वजनिक सुविधा सुधारों को विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) द्वारा आगे बढ़ाये जा रहे निजीकरण कार्यक्रम का संभावित विकल्प नहीं माना गया। दुर्भाग्यवश, पूरी दुनिया के अनेक देशों में सोच का यही नमूना देखने को मिलता है।

कोचाबांबा (बोलीविया) में स्थानीय तथा राष्ट्रीय सरकारें सहभागी सार्वजनिक जल प्रबंधन की ओर बढ़ने के प्रयासों के प्रति शत्रुतापूर्ण है। इसका अर्थ है कोचाबांबा में जनतांत्रिक नियंत्रण को आगे बढ़ाने वाले लोगों के लिए बहुत कठिन परिस्थितियां और सीमित राजनीतिक स्थान। जल प्रबंधन का जो मॉडल अब सामने आ रहा है उसमें तो नागरिक समाज जितना चाहेगा उसके मुकाबले जनतंत्र, पारदर्शिता और जवाबदेही कहीं कम है और इसमें लगातार जारी सत्ता संघर्ष प्रतिबिंबित होता है। जो सुधार हुए हैं वे जमीनी स्तर पर चले जल आंदोलन द्वारा निर्मित ताकत के परिणामस्वरूप हुए हैं। यद्यपि, कोचाबांबा में सार्वजनिक-जन साझेदारी के पीछे की दृष्टि की तुलना पोर्टो अलेग्रे या केरल के सहभागी नियोजन व्यवस्थाओं से की जा सकती है, लेकिन कोचाबांबा में जनता के लिए कोई धन नहीं है जिसके बारे में वे कोई निर्णय ले सकें। स्पष्ट है कि संसाधनों का यह अभाव ही सक्रिय भागीदारी को हतोत्साहित करता है।

बोलीविया के ही एक अन्य शहर सांताक्रूज में जल सहकारिता की सफलता के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक है दलगत राजनीति से इसका मुक्त होना और यह तथ्य कि यह शहर और इसकी जल सुविधा राष्ट्रीय सरकार द्वारा उपेक्षित तो रही है, लेकिन राष्ट्रीय सरकार ने इसकी राह में अड़ंगे नहीं लगाये। इस सुविधा को 1979 में सहकारिता में रूपांतरित किया गया। यह वह समय था जब नवउदारवादी विचारधारा अभी तक जनकेंद्रित जल दृष्टिकोणों के लिए बाधक तत्व के रूप में नहीं उभरी थी। सहकारिता के दर्जे (जल युद्ध और विनिजीकरण के बाद के कोचाबांबा की तुलना में कम प्रचारित यथार्थ) ने वह स्वायत्तता प्रदान की जो राजनीतिक हस्तक्षेप, नौकरशाही, चापलूसी-चमचागीरी और भ्रष्टाचार से मुक्त होकर काम कर पाने के लिए जरूरी है।

सांताक्रूज और कोचाबांबा पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। यह समस्या दुनिया के अनेक हिस्सों की समस्या है जो बढ़ती जा रही है। औद्योगीकरण, शहरीकरण, गहन कृषि के द्रुत गति से विस्तार (प्रायः निर्यात उद्देश्यों के लिए तथा आर्थिक वैश्वीकरण से संबंधित अन्य प्रवृत्तियों के कारण पानी की मांग जैसे-जैसे बढ़ रही है वैसे-वैसे जल संसाधनों को लेकर संघर्ष गहरा रहे हैं। लगातार पानी की उपलब्धता सुरक्षित करने के लिए बेहतर जल संसाधन प्रबंधन दुनिया भर में शहरी क्षेत्रों के सामने एक मुख्य चुनौती हैं। किसी भी प्रगतिशील शहरी जलापूर्ति मॉडल के लिए जरूरी है कि उसमें जल संसाधनों के प्रति एक स्थाई रवैया हो और शहरों तथा गांवों की पानी की जरूरतों के बीच संतुलन हो।

कोचाबांबा का अनुभव दिखाता है कि किसी ठप सुविधा को बदलने में काफी समय लगता है, विशेषकर तब जब स्थानीय अभिजन ऐसे बदलाव में बाधा डाल रहा हो। प्रभावी सार्वजनिक प्रशासन की परंपरा की एक अधिक सामान्य अनुपस्थिति का अर्थ यह है कि काम कर रही सार्वजनिक सेवाओं को विकसित करने का काम यदि लगभग शून्य से नहीं तो निश्चय ही एक बहुत कठिन प्रारंभबिंदु से होना है। उदाहरण के लिए, कोचाबांबा में पुनः नगरपालिकाकरण की कठिन दशाओं की तुलना फ्रांसीसी शहर ग्रिनोबिल की स्थिति से करना प्रासंगिक होगा।

ग्रिनोबिल में एक प्रभावपूर्ण स्थानीय सार्वजनिक प्रशासन का पहले से अस्तित्व, व्यापक रूप से फैली गरीबी की अनुपस्थिति, और आल्प्स से प्रचुर ताजे पानी के संसाधनों की उपलब्धता सफल सार्वजनिक जलापूर्ति के लिए कहीं अधिक अनुकूल माहौल प्रदान करते हैं। दूसरे शब्दों में, कोचाबांबा की उपलब्धियां प्रतिकूल परिस्थितियों का मुकाबला कर प्राप्त की गई हैं। सफलता की कोई गारंटी नहीं होती, विशेषकर तब यदि जलापूर्ति में ठोस सुधार न लाये जाने की स्थिति में स्थानीय आबादी धैर्य खो दे। कोचाबांबा में सुधरी जलापूर्ति के सामने खड़ी बाधाओं को जीतने के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता की बेहद जरूरत है।

सार्वजनिक सेवाएं सुलभ कराने के लिए स्थानीय सार्वजनिक क्षेत्र की प्रशासनिक क्षमता महत्वपूर्ण कारक है। परिचयात्मक अध्याय में बताये गये विविध कारणों के चलते विशेषकर विकासशील देशों में सार्वजनिक प्रशासनों के पास प्रायः पर्याप्त संसाधन नहीं होते अथवा वे बड़े संजाल वाले बुनियादी ढांचों और मांग को पूरा करने में समर्थ साफ्ट स्किल पर निर्भर सार्वजनिक सेवा प्रदान नहीं कर पाते। इस यथार्थ का दुरुपयोग प्रायः निजीकरण के पक्ष में तर्क देने के लिए किया गया है, जबकि निजीकरण कोई समाधन सिद्ध नहीं हुआ है, विशेषकर ऐसे शहरों में जहां बड़ी आबादी निम्न आय वाले लोगों की है। यह स्पष्ट है कि सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने की क्षमता जनतांत्रिक समाजों का एक महत्वपूर्ण अंग है और पानी के अधिकार को लागू करने के लिए जरूरी है।

कमजोर स्थानीय सार्वजनिक प्रशासन क्षमता को सुधारने का एक तरीका सार्वजनिक-सार्वजनिक साझेदारियां हैं। दक्षिण अफ्रीका में हैरीस्मिथ शहर की स्थानीय सरकार और देश की किसी और जगह की बड़ी सार्वजनिक जल सेवा के बीच सार्वजनिक-सार्वजनिक साझीदारी के अच्छे परिणाम मिले हैं। तीन साल के प्रयोग ने दिखाया कि प्रबंधन और तकनीकी कौशल की साझेदारी तथा आशाजनक ढंग से और बेहतर होता हस्तांतरण सार्वजनिक जलापूर्ति के क्षेत्र में तेजी से सुधार लाने में योगदान दे सकते हैं। वार्ड स्तर पर सहभागिता और व्यापक परामर्श भी सार्वजनिक-सार्वजनिक की वित्तीय तथा अन्य तरह की सापेक्ष सफलता में एक महत्वपूर्ण कारक था। इन सलाह-मशविरों से सीखे गये सबकों, सामाजिक शुल्क के पक्षधर रवैये, और समुदायों से मिले समर्थन से हैरीस्मिथ को भुगतान न करने वालों की बहुत बड़ी संख्या नहीं झेलनी पड़ती है, जो दक्षिण अफ्रीका में निजीकृत रियायतों की एक खास बीमारी है। यह प्रयोग निर्धन वर्ग के लिए सरकार द्वारा प्रायोजित वित्तीय सहायताओं के साथ ही संभव था। इन सहायताओं का प्रबंधन साझेदारी के जरिये प्रशासनिक स्तर पर बहुत अच्छी तरह किया गया था।

सार्वजनिक-सार्वजनिक साझेदारी परियोजना के कारण ठोस सुधार हुए हैं, लेकिन यह साझेदारी हैरीस्मिथ के गरीब कस्बाई समुदायों में मौजूद साफ पानी तक पहुंच के रास्ते में पहले से पड़े तमाम अधूरे कामों की समस्या का समाधन करने में सफल नहीं हुई है। यह देख पाना कठिन है कि गरीबी से लड़ने और स्थानीय तथा राष्ट्रव्यापी स्तर पर संपत्ति के पुनर्वितरण की कहीं अधिक महत्वाकांक्षी नीतियों के बिना सबके लिए पानी का लक्ष्य कैसे हासिल किया जा सकता है। विनाशकारी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप हैरीस्मिथ के इंतबाज़्वे कस्बे में अगस्त 2004 में दंगे भड़क उठे थे। स्थानीय जनता ने सरकार से आवास के लिए आर्थिक सहायता, पानी और बिजली की बेहतर सेवाओं, रोजगार के अवसरों और सामान्य सामाजिक विकास की मांग की। 17 अगस्त को पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां दागी जिसमें 17 वर्षीय टेबोगो मोलोइस की मृत्यु हो गई और दर्जनों अन्य घायल हुए।

घाना (सावेलुगु) में सार्वजनिक-समुदाय साझीदारी द्वारा हासिल की गई उपलब्धियां इस तथ्य के कारण खतरे में पड़ गई हैं कि घाना वाटर कंपनी (जी.डब्ल्यू.सी.एल.) समुदाय को पर्याप्त पानी दे पाने में असमर्थ है। जी.डब्ल्यू.सी.एल. के गहराते संकट का कारण, काफी हद तक, धन की कमी है। कंपनी को निजीकरण के लिए तैयार करने के केंद्रीय सरकार और विश्व बैंक के संयुक्त प्रयासों से भी यह संकट गहराया है। यह उन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के महत्व को रेखांकित करता है जो सहभागिता और अन्य सार्वजनिक जल समाधनों की राह अवरुद्ध करने के बजाय सुगम बनाती हैं।

ब्राजील के पोर्टो अलेग्रे और रिसाइफ जैसे शहरों में ही नहीं, केरल (भारत) और वेनेजुएला के काराकस में राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों तथा राजनीतिक दलों को एक भूमिका प्रदान करने और उसे सशक्त बनाने के कारण सुधार संभव हो पाये। केरल में, वाम जनतांत्रिक मोर्चे के नियंत्रण वाली राज्य सरकार ने विकेंद्रीकृत सहभागिता बजट की शुरुआत की और उसे मजबूत बनाया। ब्राजील के रेसाइफ और पोर्टो अलेग्रे जैसे शहरों में श्रमिक दल (पी.टी.) के स्थानीय नगर पार्षदों और नगर प्रमुखों की दूरगामी प्रतिबद्धता के कारण सुधार हुए। चुनावी विजयों और परिणामस्वरूप मिले राजनीतिक नियंत्रण के बाद श्रमिक दल ने सहभागिता वाला बजट बनाना शुरू किया और उसका संस्थानीकरण कर दिया। काराकस में भी सहभागी जल प्रबंधन यदि सरकार के जबर्दस्त समर्थन से प्रेरित नहीं था तो कम से कम उसके विकास में तो उसकी भूमिका है ही। वेनेजुएला की राजनीति के बहुत गहरे तक ध्रुवीकृत यथार्थ में इसका अर्थ यह है कि शावेज सरकार का विरोध करने वाले कुछ क्षेत्र सामुदायिक जल प्रबंधन को भी अस्वीकार करते हैं। इससे निश्चय ही यह सवाल उठता है कि यदि कभी विपक्ष की सत्ता में आने की कोशिश सफल हो गई तो क्या सहभागी जल प्रबंधन की व्यवस्था बनी रह सकेगी। इसी तरह, क्या अक्टूबर 2004 के नगरपालिका चुनावों में श्रमिक दल की पराजय के बाद पोर्टो अलेग्रे में सहभागी जल प्रबंधन (और अधिक सामान्य रूप से कहें तो सहभागी जनतंत्र) बच पायेगा? उत्साहजनक बात यह है कि श्रमिक दल के बाद सत्ता में आने वाले बहुदलीय गठबंधन ने सहभागी बजट निर्माण की व्यवस्था यथावत बनाये रखने का वादा किया है। यदि सहभागी जनतंत्र के भविष्य पर कोई गंभीर खतरा आता है तो माना जा सकता है कि उग्र सुधारवादी जनतंत्र के 16 वर्षों ने जनता में इतना विश्वास तो भर ही दिया है कि वह उसकी उपलब्धियों और अपने अधिकारों की रक्षा कर सके।

सार्वजनिक सेवा के नये लोकाचार


यह एक सच्चाई है कि दक्षिण में अनेक जल सेवाएं नौकरशाहीकरण से ग्रस्त हैं और निर्धनतम लोगों तक सेवा पहुंचाने में अक्सर विफल रहती हैं। फिर भी इस पुस्तक में राज्य के नेतृत्व वाले, या कर्मचारियों के नेतृत्व वाले या फिर नागरिक समाज के नेतृत्व वाले सार्वजनिक प्रशासन की क्षमता बढ़ाने के विविध प्रयासों का वर्णन किया गया है। सार्वजनिक सेवा और सार्वजनिकता (सार्वजनिक होने और समुदाय होने का गुण) के अर्थ की एक सुधारवादी पुनर्परिभाषा और इनके पुनः आविष्कार का काम इसके साथ जुड़ा होता है। पुस्तक में वर्णित अधिकतर सफल सेवाओं ने सार्वजनिक सेवा की ऐसी दृष्टि के माध्यम से पानी और सफाई की दशा सुधारी है जो समाज के अधिक व्यापक लक्ष्यों के लिए काम करती है। इन लक्ष्यों में लोकतंत्र, पर्यावरणीय स्थायित्व और मानव सुरक्षा शामिल हैं।

वास्तव में, इन सुधरी हुई सार्वजनिक जल सेवाओं की एक विशेषता, जिसमें सबका साझा है, सार्वजनिक सेवा के एक नये लोकाचार का विकास है। सार्वजनिकता की पुनर्परिभाषा एक ऐसी चीज़ के रूप में की गई है जो महज सार्वजनिक स्वामित्व अथवा सार्वजनिक कर्मचारियों द्वारा प्रबंधन की बात से कहीं आगे जाती है। अनेक मामलों में जनता की जरूरतों के लिए काम करने के दर्शन को आत्मसात करने और मजबूत करने में नागरिकों की सीधी सहभागिता तथा उपयोगकर्ताओं के साथ अंतःक्रिया के अन्य रूपों ने मदद की। शहरी सीमांतों के हाशिये पर धकेले गये समूहों के लिए साफ पानी सुलभ कराने और अधिक सामान्य रूप से, लगातार बढ़ते शहरों के लिए एक स्थाई संसाधन प्रबंधन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए यह प्रगतिशील सार्वजनिकता बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। वास्तव में, इन सुधरी हुई सार्वजनिक जल सेवाओं की एक विशेषता, जिसमें सबका साझा है, सार्वजनिक सेवा के एक नये लोकाचार का विकास है। सार्वजनिकता की पुनर्परिभाषा एक ऐसी चीज़ के रूप में की गई है जो महज सार्वजनिक स्वामित्व अथवा सार्वजनिक कर्मचारियों द्वारा प्रबंधन की बात से कहीं आगे जाती है। अनेक मामलों में जनता की जरूरतों के लिए काम करने के दर्शन को आत्मसात करने और मजबूत करने में नागरिकों की सीधी सहभागिता तथा उपयोगकर्ताओं के साथ अंतःक्रिया के अन्य रूपों ने मदद की। शहरी सीमांतों के हाशिये पर धकेले गये समूहों के लिए साफ पानी सुलभ कराने और अधिक सामान्य रूप से, लगातार बढ़ते शहरों के लिए एक स्थाई संसाधन प्रबंधन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए यह प्रगतिशील सार्वजनिकता बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।

सहकारिता से लेकर नगरपालिका सेवाओं तक, बिना मुनाफे वाले जल प्रबंधन के विभिन्न रूपों की श्रृंखला के तहत और सार्वजनिक नियंत्रण वाली निगमीकृत सेवाओं के तहत भी सार्वजनिक सेवा के एक नये लोकाचार का उदय हुआ। पेनांग (मलेशिया) की जल सेवा, अंशतः जिसमें कर्मचारी और उपयोगकर्ता भी अंशधारी हैं, ने एक ऐसा उच्चस्तरीय सार्वजनिक लोकाचार विकसित किया है जिसने उसे पहुंच के भीतर के मूल्य पर सबको उच्च गुणवत्ता वाला पानी प्रदान करने में सक्षम बनाया है।

वाणिज्यीकरण संबंधी चिंताएं


इस पुस्तक के अनेक अध्याय सार्वजनिक जल सेवाओं की भविष्य में संभव कुछ परस्पर-विरोधी प्रवृत्तियों की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हैं। पहले तो, नवउदारवादी विचारधारा के परिणामस्वरूप सार्वजनिक और निजीकृत सेवाओं के व्यवहारों में बहुत समस्यामूलक समानता दिखाई पड़ती है। नवउदारवादी व्यवसाय और प्रबंधन माडलों (इनका उल्लेख प्रायः नवसार्वजनिक प्रबंधन-एन.पी.एम.-के रूप में किया जाता है) के लागू होने से वाणिज्यीकरण के ऐसे रूप सामने आये हैं जो ऊपर बताये गये सार्वजनिक सेवा लोकाचारों के गंभीर रूप से विपरीत होते हैं। उदाहरण के लिए, बगोटा (कोलंबिया) में ई.ए.ए.बी. के क्रियाकलापों में यह प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई देती है। महत्वपूर्ण कामों को निजी ठेकेदारों से बाहर से कराना (आउटसोर्सिंग) और “लचीली” श्रम शर्तें लागू करना एक कारपोरेट बिजनेस मॉडल को अपनाने के उदाहरण हैं।

इससे जुड़ी एक प्रवृत्ति यह है कि ई.ए.ए.बी. जैसी सार्वजनिक सेवाएं ही नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका की रैंड वाटर और मलेशिया की पी.बी.ए. भी अपने कामकाज का विदेशों में विस्तार कर रही हैं। ये कंपनियां अपने घरेलू कामकाज में सार्वजनिक सेवा के लोकाचारों को बनाये रखते हुए विदेशों में वाणिज्यिक जल प्रदाता के रूप में काम करने का इरादा रखती हैं।

सार्वजनिक जल के लिए धन जुटाना


सबके लिए पानी सुनिश्चित करने की इच्छा करने वाले हर समुदाय के सामने मुख्य चुनौती धन जुटाने की होती है। किसी जल सेवा के हर दिन संचालन की एक लागत होती है और पानी तक पहुंच का विस्तार करने के लिए महत्वपूर्ण अग्रिम निवेशों की जरूरत होती है। सार्वजनिक जलापूर्ति के लिए भुगतान के अनिवार्यतया दो तरीके होते हैं: कर, अथवा उपयोगकर्ता शुल्क।

इस पुस्तक में प्रस्तुत सफल सार्वजनिक जलापूर्ति वाले कुछ शहरों में पानी का पूरा भुगतान उपयोगकर्ता शुल्कों (लागत की पूरी वापसी) द्वारा किया जाता है, लेकिन यह काम सोपानबद्ध क्रमिक शुल्कों के जरिये ‘क्रास सब्सिडी’ देकर किया जाता है ताकि बड़े उपभोक्ता आनुपातिक रूप से अधिक भुगतान करें। व्यवस्थाओं के विस्तार और विकास के लिए धन जुटाने और जल शुल्कों के जरिये उपयोगकर्ताओं पर जो बोझ पड़ता है, उसे कम करने के उद्देश्य से आर्थिक सहायता देने के लिए भी सामान्य रूप से कराधान का इस्तेमाल किया जाता है। जब सरकारें या नगरपालिकाएं निवेश का धन जुटाने के लिए पैसा उधर लेती हैं या बांड जारी करती हैं तब ऋणों की लागत सामान्य रूप से करों द्वारा वहन की जाती है। आयरलैंड जैसे कुछ देशों में जल सेवाओं के लिए भुगतान लगभग पूरी तरह से केंद्रीय सरकार के कराधान द्वारा किया जाता है। इस पुस्तक में वर्णित कुछ सार्वजनिक जल सेवाओं ने जल सेवा के विस्तार को सामाजिक शुल्क संरचना के साथ जोड़ दिया है और इस प्रकार उन्होंने सभी नागरिकों को, जिनमें निर्धनतम लोग शामिल हैं, अपनी सामर्थ्य के भीतर ही पानी प्राप्त करने में समर्थ बनाया है। उदाहरण के लिए, पोर्टो अलेग्रे में डी.एम.ए.ई. अपने संपन्न उपयोगकर्ताओं द्वारा अधिक शुल्क का भुगतान करने के परिणामस्वरूप मिलने वाले अधिशेष को एक ऐसे निवेश कोष में भेज देता है जो जरूरतमंदों के लिए पानी और सफा
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