सूखा की परिस्थितियां उत्पन्न करने में प्रकृति ने तो भूमिका निभाई ही, मनुष्यों ने जल संसाधनों पर अवैध कब्ज़ा करके रही सही कसर पूरी की। इससे प्रभावित लघु सीमांत किसानों ने स्वयं के स्तर पर पहल व प्रयास करते हुए नालों तालाबों की सफाई व गहरीकरण किया।
बुंदेलखंड क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी जनपदों की संस्कृति में नदी-नाले, पहाड़, जंगल, उबड़-खाबड़, पथरीली एवं ऊंची-नीची ज़मीन देखने को मिलती है। यहां पर बसे सभी गाँवों में 3-4 तालाबों का होना कोई आश्चर्य का विषय नहीं है। इन्हीं से लोगों की रोजी-रोटी चलती थी। विगत 15-20 वर्षों से यहां पर लगातार पेड़ों की कटाई, बालू खनन, पत्थर खनन एवं भूगर्भ जल संतुलन के अंधाधुंध उपयोग एवं तालाबों व छोटे-छोटे नालों के भर जाने की वजह से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ना शुरू हुआ, जिससे सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाएं इस क्षेत्र में बढ़ने लगी।
विगत कुछ वर्षों में गांव के तालाबों पर कब्ज़ा हो गया है। जो तालाब बचे हैं, उनकी खुदाई न होने की वजह से धीमे-धीमे अपने अस्तित्व को खोते जा रहे हैं और जो खेतों के पास नाले इत्यादि थे, उनको भी खत्म कर दिया गया, जिससे जानवरों के पीने का पानी भी मिलना मुश्किल हो गया। यहां के लोगों की मुख्य आजीविका कृषि, कृषि मजदूरी व पशुपालन है। ध्यातव्य है कि विगत 5-6 वर्षों से इस क्षेत्र में लगातार पड़ रहे सूखे की वजह से खेती किसानी का कार्य बहुत बड़े पैमाने पर प्रभावित हुआ है। जिसका सबसे अधिक प्रभाव लघु, सीमांत किसानों, खेतिहर मज़दूरों, नाज़ुक समुदाय के लोगों पर पड़ा है। पशुधन का भी बहुत नुकसान हुआ, क्योंकि सूखा पड़ने से लोग खेती में कोई उपज नहीं ले पा रहे व मजदूरी भी नहीं मिल रही है। ऐसे में पशुओं के चारा, दाना, पानी का इंतज़ाम कहां से किया जाए। इसलिए लोगों ने अपने सैकड़ों की संख्या में जानवरों को खुला छोड़ दिया और अपने भरण-पोषण के लिए पलायन कर ईंट-भट्ठा, क्रेशर एवं फ़ैक्टरियों में मजदूरी करने चले गये। ऐसे समय में ग्राम पंचायत बड़ा, विकास खंड गोहांड, जनपद-हमीरपुर में रह रहे लोगों ने मिलकर इस समस्या पर विचार किया और गांव से बाहर निकले नाले के पास एक तालाब बनाने व नाले की सफाई करने का निर्णय लिया।
रणनीति नियोजन
सूखा होने की स्थिति में उससे प्रभावित लोगों की पहचान कर उनको संगठित करना।
समस्याओं एवं समाधान के प्रति लोगों को जागरूक करना।
लोगों के पारंपरिक, व्यवहारिक ज्ञान का सम्मान करना व उनको तकनीकी जानकारी प्रदान करना, जिससे लोग आपसी सहयोग से समस्याओं का समाधान कर सकें।
जन शक्ति मंच के द्वारा ग्राम पंचायत बड़ा में वर्ष 2006 में लोगों की बैठक का आयोजन किया गया।
बैठक में पिछले 5-6 वर्षों से पड़ रहे सूखा तथा उससे उत्पन्न समस्याओं पर चर्चा के दौरान निकला कि लगातार पड़ रहे सूखे की वजह से खेती में कुछ न होने के कारण रोजी-रोटी का संकट बढ़ा गया है। परिणामतः लोग पलायन करके बाहर जा रहे हैं और अपने जानवरों को भी खुला छोड़ रहे हैं। जो जानवर खुले छूटे हैं, उनको बाहर भी कहीं किसी तालाब या नाले में पानी न होने की वजह से प्यासे रहना पड़ता है, जिससे जानवर मर रहे हैं। ऐसे में क्या उपाय किए जाएं, जिससे लोगों के ऊपर सूखा पड़ने के कारण होने वाले नुकसान को कम किया जाए।
चर्चा में निकलकर आया कि अगर सब लोग मिलकर तालाब का निर्माण कर लें तो जानवरों को पानी मिल सकेगा।
समस्या के समाधान के लिए किसान श्री प्रभुदयालन ने बताया कि अपने क्षेत्र में एक नाला है, जिसमें बरसात के समय काफी पानी आता है। अगर इसको रोककर वहीं तालाब बनाकर पानी इकट्ठा किया जाये, तो गर्मियों में जानवरों के पीने के लिए पानी मिल सकता है।
जून, 2007 को पंचायत की बैठक की गई, जिसमें तय हुआ कि अपने खेतों से जो नाला निकला हुआ है, उसके पास की पंचायत की ज़मीन पर तालाब बना दिया जाए तो जानवरों के पीने का पानी मिल सकता है। पर मुश्किल यह है कि पंचायत के पास कोई निधि न होने की वजह से तालाब निर्माण पर पंचायत कोई खर्च नहीं कर सकती। तब जनशक्ति मंच के सहसंयोजक श्री प्रभुदयाल राजपूत की अगुवाई में सभी सदस्यों ने सामुदायिक सहयोग से नाले की सफाई एवं तालाब खुदाई का कार्य करने की योजना तैयार की और सर्व सहमति से सामुदायिक निर्णय करके तालाब निर्माण एवं चेकडैम का काम शुरू किया गया, जिसमें प्रत्येक परिवार ने 100 फीट (31 मीटर) खोदने का कार्य करने का निर्णय लिया।
वर्तमान में ग्राम बड़ा के मौजा से निकलने वाले नाले को बुजुर्गों के अनुभव के आधार पर खेती की ज़मीन से ढालूदार बना दिया गया है, जिससे पानी भी रुका और मिट्टी का कटाव भी नहीं हो रहा है। इसके अलावा नाले के आस-पास घास को भी लगा दिया, ताकि कटाव न बढ़े।
पंचायत की भूमि पर तालाब निर्माण का कार्य इस आशय से शुरू किया गया कि बरसात का पानी तालाब में जमा होगा ताकि बरसात के बाद पशुओं को पीने का पानी मिलता रहे। 150 लोगों के श्रमदान से 15 दिनों में 150x100x5 फीट (46 मी. लंबा, 31मी. चौड़ा, 1.5मी. गहराई) नाप का तालाब खुदकर तैयार हो गया। जिसमें आगामी बरसात में पानी भी संग्रह हुआ।
तालाब और नाले की देख-रेख एवं रख-रखाव की ज़िम्मेदारी जनशक्ति मंच की है। जिसमें ग्राम सभा के हर वर्ग से एक व्यक्ति है, जो इसकी देखरेख एवं मरम्मत का कार्य करता-करवाता है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पूरे समुदाय ने सहयोग किया है इसलिए इस तालाब की देख-रेख सभी लोग मिलकर करते हैं और जिन लोगों की ज़मीन आस-पास है, वे लोग सिंचाई हेतु भी तालाब के पानी का उपयोग करते हैं और समिति द्वारा निर्धारित मूल्य चुकता करते हैं ताकि तालाब की मरम्मत का कार्य सुचारु रूप से हो सके।
समिति द्वारा सर्वसम्मति से तय किया गया है कि एक एकड़ खेत की सिंचाई हेतु रु. 300.00 उपभोगकर्ता द्वारा देय होगा।
46 मीटर लम्बे, 31 मीटर चौड़े एवं 15 मीटर गहरे तालाब तथा 450 मीटर लंबा, 3 मीटर चौड़े एवं 1.5 मीटर गहरे नाले की सफाई एवं इसी नाप के चेकडैम निर्माण में गांव के 10 परिवारों से 150 लोगों द्वारा 20 दिन मजदूरी की गई। इस प्रकार प्रति व्यक्ति 150 रुपये प्रतिदिन का योगदान करके सामुदायिक सहयोग/ श्रमदान की लागत से खुदाई का कार्य किया गया। तालाब निर्माण पर 2 लाख रुपए तथा नाला सफाई एवं चेकडैम निर्माण पर 1.5 लाख का खर्च हुआ।
अब ग्राम पंचायत बड़ा में जानवरों को पीने के पानी की दिक्कत नहीं है। आज इस नाले एवं तालाब से आस-पास के क्षेत्रों से लगभग 1000 पशु प्रतिदिन पानी पीते हैं।
इस तालाब के आस-पास 4-5 लघु सीमांत किसानों की 2.25 एकड़ ज़मीन है। उसकी भी सिंचाई हो जाती है।
ज़मीन में पानी का जलस्तर बढ़ा है, जिससे कुछ फसल भी होने लगी है।
जो किसान अपनी फसलों में पानी लगाते हैं, वो लोग मंच के पास पानी लेने का उचित एवं तय मूल्य जमा करते हैं, जिससे इस चेकडैम/तालाब की देख-रेख एवं नव निर्माण का कार्य सुचारू रूप से हो रहा है।
संदर्भ
बुंदेलखंड क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी जनपदों की संस्कृति में नदी-नाले, पहाड़, जंगल, उबड़-खाबड़, पथरीली एवं ऊंची-नीची ज़मीन देखने को मिलती है। यहां पर बसे सभी गाँवों में 3-4 तालाबों का होना कोई आश्चर्य का विषय नहीं है। इन्हीं से लोगों की रोजी-रोटी चलती थी। विगत 15-20 वर्षों से यहां पर लगातार पेड़ों की कटाई, बालू खनन, पत्थर खनन एवं भूगर्भ जल संतुलन के अंधाधुंध उपयोग एवं तालाबों व छोटे-छोटे नालों के भर जाने की वजह से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ना शुरू हुआ, जिससे सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाएं इस क्षेत्र में बढ़ने लगी।
विगत कुछ वर्षों में गांव के तालाबों पर कब्ज़ा हो गया है। जो तालाब बचे हैं, उनकी खुदाई न होने की वजह से धीमे-धीमे अपने अस्तित्व को खोते जा रहे हैं और जो खेतों के पास नाले इत्यादि थे, उनको भी खत्म कर दिया गया, जिससे जानवरों के पीने का पानी भी मिलना मुश्किल हो गया। यहां के लोगों की मुख्य आजीविका कृषि, कृषि मजदूरी व पशुपालन है। ध्यातव्य है कि विगत 5-6 वर्षों से इस क्षेत्र में लगातार पड़ रहे सूखे की वजह से खेती किसानी का कार्य बहुत बड़े पैमाने पर प्रभावित हुआ है। जिसका सबसे अधिक प्रभाव लघु, सीमांत किसानों, खेतिहर मज़दूरों, नाज़ुक समुदाय के लोगों पर पड़ा है। पशुधन का भी बहुत नुकसान हुआ, क्योंकि सूखा पड़ने से लोग खेती में कोई उपज नहीं ले पा रहे व मजदूरी भी नहीं मिल रही है। ऐसे में पशुओं के चारा, दाना, पानी का इंतज़ाम कहां से किया जाए। इसलिए लोगों ने अपने सैकड़ों की संख्या में जानवरों को खुला छोड़ दिया और अपने भरण-पोषण के लिए पलायन कर ईंट-भट्ठा, क्रेशर एवं फ़ैक्टरियों में मजदूरी करने चले गये। ऐसे समय में ग्राम पंचायत बड़ा, विकास खंड गोहांड, जनपद-हमीरपुर में रह रहे लोगों ने मिलकर इस समस्या पर विचार किया और गांव से बाहर निकले नाले के पास एक तालाब बनाने व नाले की सफाई करने का निर्णय लिया।
प्रक्रिया
रणनीति नियोजन
सूखा होने की स्थिति में उससे प्रभावित लोगों की पहचान कर उनको संगठित करना।
समस्याओं एवं समाधान के प्रति लोगों को जागरूक करना।
लोगों के पारंपरिक, व्यवहारिक ज्ञान का सम्मान करना व उनको तकनीकी जानकारी प्रदान करना, जिससे लोग आपसी सहयोग से समस्याओं का समाधान कर सकें।
क्रियान्वयन
जन शक्ति मंच के द्वारा ग्राम पंचायत बड़ा में वर्ष 2006 में लोगों की बैठक का आयोजन किया गया।
बैठक में पिछले 5-6 वर्षों से पड़ रहे सूखा तथा उससे उत्पन्न समस्याओं पर चर्चा के दौरान निकला कि लगातार पड़ रहे सूखे की वजह से खेती में कुछ न होने के कारण रोजी-रोटी का संकट बढ़ा गया है। परिणामतः लोग पलायन करके बाहर जा रहे हैं और अपने जानवरों को भी खुला छोड़ रहे हैं। जो जानवर खुले छूटे हैं, उनको बाहर भी कहीं किसी तालाब या नाले में पानी न होने की वजह से प्यासे रहना पड़ता है, जिससे जानवर मर रहे हैं। ऐसे में क्या उपाय किए जाएं, जिससे लोगों के ऊपर सूखा पड़ने के कारण होने वाले नुकसान को कम किया जाए।
चर्चा में निकलकर आया कि अगर सब लोग मिलकर तालाब का निर्माण कर लें तो जानवरों को पानी मिल सकेगा।
समस्या के समाधान के लिए किसान श्री प्रभुदयालन ने बताया कि अपने क्षेत्र में एक नाला है, जिसमें बरसात के समय काफी पानी आता है। अगर इसको रोककर वहीं तालाब बनाकर पानी इकट्ठा किया जाये, तो गर्मियों में जानवरों के पीने के लिए पानी मिल सकता है।
जून, 2007 को पंचायत की बैठक की गई, जिसमें तय हुआ कि अपने खेतों से जो नाला निकला हुआ है, उसके पास की पंचायत की ज़मीन पर तालाब बना दिया जाए तो जानवरों के पीने का पानी मिल सकता है। पर मुश्किल यह है कि पंचायत के पास कोई निधि न होने की वजह से तालाब निर्माण पर पंचायत कोई खर्च नहीं कर सकती। तब जनशक्ति मंच के सहसंयोजक श्री प्रभुदयाल राजपूत की अगुवाई में सभी सदस्यों ने सामुदायिक सहयोग से नाले की सफाई एवं तालाब खुदाई का कार्य करने की योजना तैयार की और सर्व सहमति से सामुदायिक निर्णय करके तालाब निर्माण एवं चेकडैम का काम शुरू किया गया, जिसमें प्रत्येक परिवार ने 100 फीट (31 मीटर) खोदने का कार्य करने का निर्णय लिया।
नाला सफाई
वर्तमान में ग्राम बड़ा के मौजा से निकलने वाले नाले को बुजुर्गों के अनुभव के आधार पर खेती की ज़मीन से ढालूदार बना दिया गया है, जिससे पानी भी रुका और मिट्टी का कटाव भी नहीं हो रहा है। इसके अलावा नाले के आस-पास घास को भी लगा दिया, ताकि कटाव न बढ़े।
तालाब निर्माण
पंचायत की भूमि पर तालाब निर्माण का कार्य इस आशय से शुरू किया गया कि बरसात का पानी तालाब में जमा होगा ताकि बरसात के बाद पशुओं को पीने का पानी मिलता रहे। 150 लोगों के श्रमदान से 15 दिनों में 150x100x5 फीट (46 मी. लंबा, 31मी. चौड़ा, 1.5मी. गहराई) नाप का तालाब खुदकर तैयार हो गया। जिसमें आगामी बरसात में पानी भी संग्रह हुआ।
रख-रखाव
तालाब और नाले की देख-रेख एवं रख-रखाव की ज़िम्मेदारी जनशक्ति मंच की है। जिसमें ग्राम सभा के हर वर्ग से एक व्यक्ति है, जो इसकी देखरेख एवं मरम्मत का कार्य करता-करवाता है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पूरे समुदाय ने सहयोग किया है इसलिए इस तालाब की देख-रेख सभी लोग मिलकर करते हैं और जिन लोगों की ज़मीन आस-पास है, वे लोग सिंचाई हेतु भी तालाब के पानी का उपयोग करते हैं और समिति द्वारा निर्धारित मूल्य चुकता करते हैं ताकि तालाब की मरम्मत का कार्य सुचारु रूप से हो सके।
नियम निर्धारण
समिति द्वारा सर्वसम्मति से तय किया गया है कि एक एकड़ खेत की सिंचाई हेतु रु. 300.00 उपभोगकर्ता द्वारा देय होगा।
तालाब निर्माण व नाला सफाई में आई लागत
46 मीटर लम्बे, 31 मीटर चौड़े एवं 15 मीटर गहरे तालाब तथा 450 मीटर लंबा, 3 मीटर चौड़े एवं 1.5 मीटर गहरे नाले की सफाई एवं इसी नाप के चेकडैम निर्माण में गांव के 10 परिवारों से 150 लोगों द्वारा 20 दिन मजदूरी की गई। इस प्रकार प्रति व्यक्ति 150 रुपये प्रतिदिन का योगदान करके सामुदायिक सहयोग/ श्रमदान की लागत से खुदाई का कार्य किया गया। तालाब निर्माण पर 2 लाख रुपए तथा नाला सफाई एवं चेकडैम निर्माण पर 1.5 लाख का खर्च हुआ।
परिणाम
अब ग्राम पंचायत बड़ा में जानवरों को पीने के पानी की दिक्कत नहीं है। आज इस नाले एवं तालाब से आस-पास के क्षेत्रों से लगभग 1000 पशु प्रतिदिन पानी पीते हैं।
इस तालाब के आस-पास 4-5 लघु सीमांत किसानों की 2.25 एकड़ ज़मीन है। उसकी भी सिंचाई हो जाती है।
ज़मीन में पानी का जलस्तर बढ़ा है, जिससे कुछ फसल भी होने लगी है।
जो किसान अपनी फसलों में पानी लगाते हैं, वो लोग मंच के पास पानी लेने का उचित एवं तय मूल्य जमा करते हैं, जिससे इस चेकडैम/तालाब की देख-रेख एवं नव निर्माण का कार्य सुचारू रूप से हो रहा है।
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