शामलात का पुनर्विकास : लोगों व स्थानीय समुदायों को सक्रिय करना

पृष्ठभूमि : शामलात


देश के कुल क्षेत्र के लगभग 10 प्रतिशत हिस्से के साथ, राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। कृषि व पशुपालन राज्स्थान में आजीविका के प्रमुख स्रोत होने के कारण एक खास महत्व रखते हैं तथा आजीविका संवर्धन में एक महत्वपूर्ण घटक का काम करते हैं। वर्तमान में राज्य में भूमि उपयोग की स्थिति के अनुसार 20 प्रतिशत भूमि ‘बंजर भूमि’ के अंतर्गत आती है। वनक्षेत्र जिसमें मुख्यतः झाड़ियां हैं मात्र 7.71 प्रतिशत ही है। विश्व के लगभग 2.5 बिलियन लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वनों, चरागाहों, मछली पालन, जल स्रोतों, सिंचाई व्यवस्थाओं इत्यादि जैसे शामलाती संसाधनों पर निर्भर करते हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO 1999) के अनुसार भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 15 प्रतिशत हिस्सा शामलात है। इसका 23 प्रतिशत सामुदायिक चरागाह 16 प्रतिशत ग्राम्य वन एवं अन्य जंगल व 61 प्रतिशत भाग अन्य श्रेणी में (जैसे ग्राम्य स्थल थ्रेशिंग भूमि व अन्य बंजर व खाली पड़ी शामलात भूमि) सम्मिलित हैं।

ब्रिटिश काल में बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत होने पर, शामलात संसाधन वर्षों से उपेक्षित रहे हैं। फलस्वरूप शामलात न सिर्फ खराब हुए बल्कि उत्पादकर्तापूर्ण दोहन जैसे उत्खनन, खनन, औद्योगिक विकास व हाल में जैवईंधन उत्पादन औद्योगिक ठेका खेती व विशेष आर्थिक क्षेत्रों इत्यादि के लिए आवंटित किए जाने लगे। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO 1999) की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार शामलातों के घटने की पंचवर्षीय दर 1.9 प्रतिशत है।

देश के कुल क्षेत्र के लगभग 10 प्रतिशत हिस्से के साथ, राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। कृषि व पशुपालन राज्स्थान में आजीविका के प्रमुख स्रोत होने के कारण एक खास महत्व रखते हैं तथा आजीविका संवर्धन में एक महत्वपूर्ण घटक का काम करते हैं। वर्तमान में राज्य में भूमि उपयोग की स्थिति के अनुसार 20 प्रतिशत भूमि ‘बंजर भूमि’ के अंतर्गत आती है। वनक्षेत्र जिसमें मुख्यतः झाड़ियां हैं मात्र 7.71 प्रतिशत ही है। स्थाई चरागाह मात्र 4.95 प्रतिशत ही है, जो राज्य के 54.34 मिलियन पशुओं के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

देश के अन्य क्षेत्रों के समान, राजस्थान में भी शामलात भूमि के कुल क्षेत्र में गिरावट देखी गई है। इसके मुख्य कारण प्रशासनिक व्यवस्थाओं का कमजोर होना, चराई व ईंधन हेतु लकड़ी के लिए स्पष्ट अधिकारों का अभाव, बढ़ती जनसंख्या का दबाव, खेती व विकासशील परियोजनाओं के लिए अधिक से अधिक भूमि का आवंटन इत्यादि मुख्य हैं।

शामलात के लिए नीति निर्माण


फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सेक्युरिटी (एफ.ई.एस.) व राजस्थान सरकार के साथ मिलकर राजस्थान में शामलात के प्रभावी प्रबंधन व प्रशासन के लिए कार्य कर रही है। चर्चाओं के प्रमुख बिंदु ग्रामीण परिवारों विशेषतः पशुपालकों की आजीविका में शामलात का महत्वपूर्ण योगदान, ‘बंजर भूमि’ की परिभाषा को दरकिनार करना वैकल्पिक भूमि उपयोग के लिए उनके आवंटन को रोकना इत्यादि है।

राजस्थान में शामलात को बचाने तथा शामलात के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार राजस्थान सरकार ने राज्य में चराई भूमि के महत्व व उनके संरक्षण की आवश्यकता के संदर्भ में आदेश पारित किए हैं। इसका एक प्रमुख प्रभाव, शामलात भूमि संबंधी ग्राम स्तरीय कार्यों का महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम के साथ मिलाना है।

राजस्थान राज्य के 33 जिलों में 9166 ग्राम पंचायतें हैं। सभी पंचायत भूमि के सीमाज्ञान के लिए हाल में ही पारित आदेश के संदर्भ में एफ.ई.एस. ने राज्य सरकार के साथ मिलकर एक अभियान को शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य ग्रामीण समुदायों को जानकारी एवं शिक्षा के माध्यम से सक्रिय करना है, जिससे वे अपनी शामलात भूमि का सीमांकन करने के साथ-साथ उनका संवर्धित रूप से प्रबंधन कर सकें।

इस अभियान को शामलात अभियान का नाम दिया गया है। शामलात, सामुदायिक प्रयोग में लाई गई किसी भी वस्तु अथवा संसाधन का परंपरागत नाम है, तथा पूरे राज्य में सार्वजनिक संसाधनों को इंगित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

अभियान का स्वरूप


दिर्घावधि में इस अभियान के माध्यम से

1. ढाणियों/गाँवों में व पंचायत स्तर पर सामुदायिक संस्थाओं को सशक्त करके शामलात संसाधनों के प्रबंधन को सशक्त करना।
2. समुदाय आधारित योजना निर्माण व क्रियान्वयन को बढ़ावा देना।
3. चरागाह भूमि की सुरक्षा व संरक्षण को बढ़ावा देना, जो आजीविका के आधार आर्थिक विकास व सामाजिक कल्याण के लिए आवश्यक है।
4. समाज के सभी वर्गों व मुख्यतः गरीबों के लिए संसाधनों तक समान रूप से पहुंच व अवसरों को सुनिश्चित करना।
5. वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं व उम्मीदों को पूरा करने के लिए चरागाह भूमि के संवर्धित उपयोग को सुनिश्चित करना।
6. ग्रामीण राजस्थान में पर्यावरण की सुरक्षा व गांव के स्तर पर पारिस्थितिक संतुलन को पुनः स्थापित करने के लिए मदद करना।

संचार अभियान


संचार के संदर्भ में अभियान के निम्न उद्देश्य होंगे

1. संचार के लिए फिल्में, रेडियो सामग्री, एस. एम.एस. जैसे सूचना सामग्री बनाना प्रशिक्षण व कार्यशाला के लिए मुद्रित सामग्री जैसे पुस्तिकाएं, पत्रिका, पोस्टर, इत्यादि का निर्माण करने व इनके माध्यम से निर्भर समुदायों विशेषतः ग्रामीण समुदायों को पारित निर्देशों के प्रति संवेदनशील बनाना तथा उन पर कदम उठाने के लिए उनकी मदद करना।
2. शामलाती भूमि के प्रभावी सीमांकन के लिए पंचायतों व संबंधित गाँवों की मदद करके अभियान को स्थानीय स्तर पर मजबूत बनाना तथा इसके माध्यम से शामलात संसाधनों के प्रबंधन के लिए दीर्घकालीन कदम उठाना।
3. ग्राम सभाओं में ऐसे प्रस्तावों को बढ़ावा देना, जिससे कि शामलाती भूमि के सीमांकन के बारे में जानकारी व होने वाले मतभेदों को सार्वजनिक रूप से उठाने का उसर मिल सके।
4. पूछताछ व उनके उत्तर के लिए एक प्रभावी प्रतिक्रिया व्यवस्था का निर्माण करना, जिससे गांव के स्तर पर कार्यवाही करन में मदद मिल सके। इस व्यवस्था के लिए प्रस्तावित माध्यम हेल्पलाईन नंबर होगा इसके अतिरिक्त वेबसाइट का भी निर्माण किया जा सकता है, जहां आंकड़ों का संकलन कर डाटाबेस रखा जा सकता है।
5. पंचायतों द्वारा प्राप्त प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड करने की व्यवस्था करना, जिसके माध्यम से पंचायतों के कार्यों के बारे में तथा विकास योजनाओं, अनुमोदित व क्रियांवित कार्यों के बारे में सरकारी तंत्रों से नियमित जानकारी को भी रिकार्ड किया जा सके।

जानकारी व कार्यों के बीच समन्वय


अभियान का अनुक्रम निम्न कार्य-योजना के अनुसार होगा।

1. वातावरण का निर्माण- प्रचार व प्रसार के माध्यम से शामलाती मुद्दों के बारे में आम जनता को जागरूक बनाना।
2. सूचना का प्रसार- सार्वजनिक प्रचार व प्रसार माध्यमों व व्यक्तिगत/लोक कलाकारों के द्वारा शामलात व्यवस्था उनके योगदान व महत्व के बारे में महत्वपूर्ण निर्भर समूहों/संस्थानों, ग्राम समुदाय, पंचायत सदस्य इत्यादि को जानकारी उपलब्ध कराना।
3. सक्रिय भागीदारी- विभिन्न दलों के द्वारा किए गए कार्यों को चिन्हांकित व उनका प्रसार करना जिसके माध्यम से उन्हें व अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिल सके। इसके माध्यम से कार्यक्रम की उपलब्धियों व लोगों को इसके द्वारा प्राप्त लाभों को भी चिन्हांकित किया जाएगा।
4. समाधान- अभियान की प्रगति के साथ-साथ कई रुकावटें व मुद्दे सामने आ सकते हैं। अभियान, सार्वजनिक प्रसार माध्यमों व व्यक्तिगत प्रसार के माध्यम से इन मुद्दों का यथासंभव समाधान निकालने में मदद करेगा।
5. समापन- अभियान की अवधि के अंत में कमियों व उपलब्धियों को सार्वजनिक किया जाएगा, जिससे लंबे समय तक प्रेरणा व दिलचस्पी बनी रह सके।

अपेक्षित परिणाम


ग्रामीण शामलात के संरक्षण व ग्रामीण संस्थाओं को शामलात के विकास व प्रबंधन से जोड़ना इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य है। इसके अतिरिक्त यह अभियान निम्न उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा।

1. सार्वजनिक प्रसार माध्यमों नारों व व्यापक प्रसार के माद्यम से, शामलात व्यवस्था से संंबंधित मुद्दों को व उनके महत्व को महत्वपूर्ण भागीदार दलों के मध्य स्थापित करना।
2. शामलात व्यवस्था को सशक्त करने के लिए प्रावधानों, लाभों, कार्य व्यवस्था/दिशा-निर्देश व संभावनाओं के बारे में महत्वपूर्ण निर्भर समूहों को जानकारी उपलब्ध कराना।
3. राजस्थान राज्य के 9166 पंचायतों में शामलात संसाधनों व उनके परंपरागत उपयोग के बारे में जानकारी।
4. गांव, अपने क्षेत्रों के सभी शामलात संसाधनों के विकास व प्रबंधन के लिए योजनाएं बनाए तथा यह संपूर्ण प्रक्रिया उपयोग कर्ता दलों की अगुवाई में हो। शामलात संसाधनों संबंधी विकास योजनाएं मनरेगा (MGNREGS) के साथ-साथ गाँवों में चल रही अन्य योजनाओं व कार्यक्रमों के साथ भी शामिल हो।
5. शामलात संसाधनों के चित्रण के साथ-साथ समुदाय पशुधन गणना 2007 के अनुसार व गांव में उपलब्ध पशुधन व चारे की आवश्यकता के आधार पर चरागाह भूमि के लिए अपने दावों को प्रस्तुत करें। आवश्यकतानुसार अन्य भूमि को चरागाह भूमि में परिवर्तित कर चरागाह भूमि को बढ़ाने के लिए भी आवेदन किया जा सकता है।
6. शामलात संसाधनों के मुद्दों व राजस्थान राज्य में किए जा रहे कार्यों का इंटरनेट व अन्य साधनों के माध्यम से नियमित प्रचार व जानकारी।
7. पंचायत भूमि के सीमाज्ञान के लिए हाल में ही पारित आदेश के संदर्भ में एफ.ई.एस. राज्य सरकार ग्रामीण समुदायों को जानकारी एवं शिक्षा के माध्यम से सक्रिय करना है, जिससे वे अपनी शामलात भूमि का सीमांकन करने के साथ-साथ उनका संवर्धित रूप से प्रबंधन कर सकें।

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