वर्षाजल एकत्रित करने का देशज तरीका
कर्नाटक और केरल के भारी वर्षा वाले इलाके के गाँवों में ग्रामीण जनता पेयजल प्राप्त करने के लिये अपना खुद का “डिजाइन” किया हुआ “रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम” अपनाती है। इस खालिस देशी विधि के मुताबिक एक साड़ी के चारों कोनों को बारिश के दौरान खुले में बाँध दिया जाता है और उसके ढलुवाँ हिस्से के बीचोंबीच नीचे पानी एकत्रित करने के लिये एक बर्तन लगा दिया जाता है, जिससे कि एक ही विधि में पानी का इकठ्ठा होना और पानी का छनकर साफ़ होना हासिल कर लिया जाता है।
इस विधि की ऊपर दिखाई गई तस्वीर कर्नाटक के उडुपी जिले की कुण्डापुरा तहसील के गाँव वाम्द्से की है। हालांकि ग्राम पंचायत ने गाँव में दो बोरवेल खुदवाये हैं जिनमें हैण्डपम्प भी लगा दिये गये हैं लेकिन एक बोरवेल सूख चुका है और दूसरे का पानी पीने योग्य नहीं है। कुछ वर्षों पहले स्थानीय लोगों और सरकारी अस्पताल में पानी की सप्लाई के लिये दो बड़ी टंकियों की व्यवस्था की गई थी, जिसमें से एक टंकी के निर्माण हेतु एक लाख अस्सी हजार रुपये ग्राम पंचायत ने खर्च किये थे। उस टंकी से जोड़ी गई पाईप लाईनें भी अब क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं, जबकि दूसरी टंकी बड़ी मुश्किल से ही पूरी भर पाती है। इसे देखते हुए ग्रामीणों ने अपनी पुरानी देशी वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक अपनाने का फ़ैसला किया। इन इलाकों में वर्षा काफ़ी होती है लेकिन पेयजल की कमी फ़िर भी रहती है। इसी प्रकार केरल के कुट्टानाड (जिला अलेप्पी) में भी यही तकनीक अपनाई जाती है। कुट्टानाड में पानी की कोई कमी नहीं है लेकिन पीने का पानी दूषित है, इसलिये ग्रामीण परिवार पानी को उबालकर पीते हैं। वर्षाजल को इस तरीके से बर्तनों में एकत्रित कर लिया जाता है और एक हफ़्ते तक यह पानी एक परिवार के पीने के काम आ जाता है। गाँव वालों को अब इस विधि से इकठ्ठा किया हुआ वर्षाजल पीने में कोई हिचक महसूस नहीं होती। सामान्यतः इस प्रकार के “यन्त्र” अथवा “जुगाड़” से एक परिवार की पीने के पानी की व्यवस्था आराम से हो जाती है।
बिहार के बाढ़ में भी काफी कारगर
वैसे यह तकनीक बिहार के बाढ़ में भी काफी कारगर हो सकती है। बाढ़ में पेयजल की समस्या काफी घातक होती है। एक तरफ तो चारों ओर पानी ही पानी होता है। पर उसे पीया नहीं जा सकता। ऐसे में यह साड़ी के इस्तेमाल से पानी एकत्रित करना का तरीका काफी कारगर हो सकता है।
स्रोत – श्री पद्रे / अनुवाद – सुरेश चिपलूनकर/ August 2004
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