श्री पद्रे
स्वामी शिवकुमार और उनके मंत्र का जादू
Posted on 07 Nov, 2009 01:02 PMकर्नाटक के 70,000 एकड़ में फ़ैली कपोटागिरि पहाड़ियां धातुओं के अवैध खनन और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की वजह से बंजर और वीरान हो चुकी थीं, लेकिन वन अधिकारियों के साथ मिलकर सिध्दगंगा मठ के 100 वर्ष के स्वामी शिवकुमार और उनके “ॐ जलाय नमः' मंत्र ने कमाल का जादू किया, नंगी पहाड़ियां पर हरियाली की चादर ओढ़ा दी। इस अनोखे प्रयास के बारे में बता रहे हैं शिवराम पेल्लूर।
वर्षाजल संचयन का अनूठा उदाहरण
Posted on 19 Apr, 2009 06:36 PMरेनवाटर हारवेस्टिंग तकनीक सप्लाई वाटर की कमी से निपटने का तरीका भर नहीं है, कई बार इसकी मदद से इतना पानी जमा हो जाता है कि दूसरे स्रोत की जरूरत नहीं पडती और कुछ नियमित रेनवाटर स्रोत तो दूसरों को उधार तक देने की स्थिति में भी आ जाते हैं. केरल के एक जिला पंचायत कार्यालय की यात्रा कर श्री पद्रे ने ऐसा ही एक उदाहरण खोज निकाला है.
साड़ी से रेन वाटर हार्वेस्टिंग
Posted on 06 Feb, 2009 12:15 AMवर्षाजल एकत्रित करने का देशज तरीका
कर्नाटक और केरल के भारी वर्षा वाले इलाके के गाँवों में ग्रामीण जनता पेयजल प्राप्त करने के लिये अपना खुद का “डिजाइन” किया हुआ “रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम” अपनाती है। इस खालिस देशी विधि के मुताबिक एक साड़ी के चारों कोनों को बारिश के दौरान खुले में बाँध दिया जाता है और उसके ढलुवाँ हिस्से के बीचोंबीच नीचे पानी एकत्रित करने के लिये एक बर्तन लगा दिया जाता है, जिससे कि एक ही विधि में पानी का इकठ्ठा होना और पानी का छनकर साफ़ होना हासिल कर लिया जाता है।
धरती की गोद में पानी उतारने का एक जादू
Posted on 27 Apr, 2010 08:54 AMश्रीपति भट कडाकोलि कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले के सिरसा गाँव के किसान हैं। भट परिवार के पास कुल 15 एकड़ जमीन है जिसमें से 4 एकड़ पर सुपारी और एक एकड़ में नारियल की फसल है। सन् 1999 तक उन्हें पानी की कोई समस्या महसूस नहीं हुई। लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे दिक्कत शुरु हुई जो कि 2002 आते-आते बढ़ गई। इनके खेतों में स्थित एक बड़ा कुंआ भी सूख गया। इलायची के पौधों की फसल पानी पर 5000 रुपये खर्च करने के
तीर्थ का एक अनमोल प्रसाद
Posted on 19 Oct, 2008 10:26 AMश्री पद्रे
कर्नाटक राज्य के गडग में स्थित वरी नारायण मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि कुमार व्यास ने इसी मंदिर में बैठकर महाभारत की रचना की। यह ऐतिहासिक मंदिर आज एक बार फिर से इतिहास रच रहा है। कई वर्षों में इस मंदिर के कुंए का पानी खारा हो गया था। इतना खारा कि यदि उस पानी में ताबें का बरतन धो दिया जाए तो वह काला हो जाता था। तब मंदिर के खारे पानी के निस्तार के लिए वहां एक बोरवैल खोदा गया। उस कुंए में पानी होते हुए भी उसका कोई उपयोग नहीं बचा था। बोरवैल चलता रहा। और फिर उसका पानी भी नीचे खिसकने लगा। कुछ समय बाद ऐतिहासिक कुंए की तरह यह आधुनिक बोरवैल भी काम का नहीं बचा। कुंए में कम से कम खारा पानी तो था। इस नए कुंए में तो एक बूंद पानी नहीं बचा। मंदिर में न जाने कितने कामों के लिए पानी चाहिए। इसलिए फिर एक दूसरा बोरवैल खोदा गया। कुछ ही वर्षों में वह भी सूख गया।
पहाड़ के माथे पर पानी से तिलक
Posted on 13 Oct, 2008 10:05 AMमहालिंगा नाईक पोथी की इकाई-दहाई नहीं जानते लेकिन उन्हें पता है कि बूंदों की इकाई-दहाई सैकड़ा हजार और फिर लाख-करोड़ में कैसे बदल जाती है।
58 साल के अमई महालिंगा नाईक कभी स्कूल नहीं गये। उनकी शिक्षा दीक्षा और समझ खेतों में रहते हुए ही विकसित हुई। इसलिए वर्तमान शिक्षा प्रणाली के वे घोषित निरक्षर हैं। लेकिन दक्षिण कन्नडा जिले के अडयानडका में पहाड़ी पर 2 एकड़ की जमीन पर जब कोई उनके पानी के काम को देखता है तो