रावतभाटा : परमाणु बिजलीघरों से बढ़ता स्वास्थ्य संकट

 परमाणु बिजलीघरों से बढ़ता स्वास्थ्य संकट
परमाणु बिजलीघरों से बढ़ता स्वास्थ्य संकट

रावतभाटा में सन् 1973 में जब पहले परमाणु बिजलीघर का उद्घाटन हुआ था तो आसपास के पिछड़े क्षेत्रों के निवासियों ने इसका खुले दिल से स्वागत किया था। सोचा था कि इसके जरिए क्षेत्र के युवकों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और यह पिछड़ा क्षेत्र अपनी अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण की दिशा में एक लम्बी छलांग लगा सकेगा। लेकिन न तो रोज़‌गार सृजन की दिशा में उनकी अपेक्षाएं पूरी हुई और न ही क्षेत्र के विकास को कोई गति मिली। इसके चलते सन् 1980 में दूसरी इकाई के उद्घाटन के समय उनकी प्रतिक्रिया कुछ कम उत्साहपूर्ण थी।

गौरतलब है कि परमाणु बिजलीघर की प्रथम इकाई का अत्यन्त उत्साह के साथ तथा द्वितीय इकाई का कम उत्साह के साथ ही सही, स्वागत किए जाते वक्त लोगों को इस बात का कोई अनुमान न था कि इन बिजलीघरों से निरन्तर निकलने वाले विकिरण के कारण उन्हें स्वास्थ्य सम्बंधी अनेक नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। परमाणु बिजलीघरों के अधिकारियों ने इस बारे में उन्हें कभी कुछ नहीं बताया। विकिरण उनको कब, कैसे प्रभावित करेगा. इसकी उन्हें कोई चेतावनी या जानकारी नहीं दी गई। फिर परमाणु बिजलीघरों से निकलने वाले विकिरण का स्वरूप भी तिलस्मी-सा होता है: यह न तो दिखाई देता है, न इसका कोई रूप, रंग या गंध होती है। परमाणु बिजलीघरों द्वारा जब इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं दी गई थी तो इस बारे में निकटस्थ ग्रामवासियों को विश्वास में लेने का कोई प्रश्न ही नहीं था।

धीरे-धीरे इन परमाणु बिजलीघरों के पास बसे गांवों के लोगों का स्वास्थ्य सम्बंधी नई समस्याओं से सामना होने लगा। वे महसूस करने लगे कि उनकी स्वास्थ्य सम्बंधी बढती समस्याओं और परमाणु बिजलीघरों में कुछ न कुछ आपसी सम्बंध जरूर है। कुछ लोगों ने इनसे निकलने वाले विकिरण और उससे हो सकने वाली बीमारियों के बारे में पढ़ा था। बिजलीघरों के अधिकारियों से इस बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि इनसे निकलने वाली विकिरण की मात्रा बिल्कुल कम है तथा स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव सम्भव ही नहीं है। लेकिन इन गांववासियों की स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं का ग्राफ तो ऊंचा ही चढ़ता जा रहा था। इस बीच रावतभाटा के कुछ संवेदनशील व्यक्तियों ने विकिरण की बढ़ती समस्याओं से तंग आकर परमाणु विरोधी संघर्ष समिति की स्थापना की और कुछ प्रदर्शन भी आयोजित किए। इस संघर्ष समिति का गुजरात स्थित अणुमुक्ति संगठन से सम्पर्क हुआ। यहां से उन्हें विकिरण जनित स्वास्थ्य समस्याओं की वैज्ञानिक जानकारियां मिली। संघर्ष समिति द्वारा परमाणु बिजलीघरों के अधिकारियों पर दबाव डाला जाने लगा कि वे निकटस्थ ग्रामों के लोगों का स्वास्थ्य सम्बंधी सर्वेक्षण कराएं और देखें कि क्या उनमें विकिरण जनित बीमारियां बढ़ रही हैं। लेकिन अधिकारियों का जवाब पहले की ही तरह रहा - विकिरण की मात्रा सुरक्षित सीमा से काफी कम है और इससे किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। अगर इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सम्बंधी कुछ विशिष्ट समस्याएं हैं तो उनका इस बारे में कोई दायित्व नहीं बनता। राज्य सरकार से इस क्षेत्र में कुछ करने को कहा जाना चाहिए।

ऐसे में अणुमुक्ति आन्दोलन तथा वेडछी (सूरत) स्थित सम्पूर्ण कान्ति विद्यालय ने परमाणु बिजलीघर के करीब स्थित गांवों के लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं तथा विकिरण से उनके सम्बंध की पुष्टि हेतु इन ग्रामवासियों के स्वास्थ्य सर्वेक्षण का निश्चय किया। वैसे तो यह परमाणु बिजलीघर के अधिकारियों का दायित्व था कि वे विकिरण जनित स्वास्थ्य संकटों की पृष्ठभूमि में इस क्षेत्र के लोगों पर परमाणु बिजलीघर शुरू करने से पहले और बाद में निश्चित समयावधियों पर स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराते रहते। इससे एक तो उन्हें सही-सही जानकारी मिलती रहती और दूसरे इन प्रभावों से बचने के लिए निकटस्थ आबादी को प्रशिक्षित किया जा सकता। परंतु अधिकारियों ने परमाणु बिजलीघरों के पूर्व स्थानीय और आसपास की आबादी के स्वास्थ्य सर्वेक्षण की कोई जरूरत नहीं समझी थी।

ऐसे में यह तय किया गया कि विकिरण-प्रभावों की तुलना के लिए इन बिजलीघरों से 50 कि. मी. दूर के समान आर्थिक-सामाजिक स्थिति वाले ग्रामों के निवासियों का भी स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया जाए। इस सर्वेक्षण में 30 से अधिक शोधकर्ताओं ने हिस्सा लिया और 18 दिन में यह कार्य पूरा हुआ। वर्षा ऋतु में हवाएं उत्तर-पूर्व की ओर बहती हैं और हवा में छोड़े गए विकिरण के वर्षा के सहारे जमीन पर आने तथा आबादी को प्रभावित करने की सम्भावना रहती है। अतः विकिरण के स्वास्थ्य सम्बंधी प्रभावों को जानने के लिए परमाणु बिजलीघर से उत्तर- पूर्व में 90 कि.मी. के अंदर आने वाले सभी ग्रामों को लिया गया।

इस सर्वेक्षण के परिणामों ने निकटस्थ ग्रामों के निवासियों की आशंकाओं को पुष्ट कर दिया। 90 कि.मी. की सीमा वाले ग्रामों तथा दूरस्थ अंचल के निवासियों का लिंग अनुपात, पोषण स्तर, शैक्षणिक स्तर आदि समान थे लेकिन बावजूद इसके परमाणु बिजलीघरों के निकट के ग्रामों में दूरस्थ अंचल के ग्रामों की तुलना में जन्मजात विकलांगता, गर्भपात, मृत जने बच्चे नवजात शिशुओं की मृत्यु, टी.बी. आदि जैसी दीर्घकालीन प्रभाव वाली बीमारियों का प्रभाव काफी अधिक पाया गया। जहां दूरस्थ अंचल के ग्रामों में जन्मजात विकलांगता का प्रभाव 55 प्रति दस हज़ार था, वहीं निकटस्थ ग्रामों में यह 346 प्रति दस हज़ार था। इन दोनों क्षेत्र में दुर्घटनाजनित व पोलियो से उत्पन्न विकलांगता में कोई अंतर नहीं था। जन्मजात विकलांगता का अनुपात दूरस्थ अंचल के ग्रामों की तुलना में निकटस्थ ग्रामों में 6 गुना अधिक था। जन्म के दौरान या तत्काल बाद मरने वाले बच्चों की संख्या भी निकटस्थ गांव में 7 गुना अधिक थी। पास के ग्रामों में यह दर 1631 प्रति दस हज़ार जन्म थी, जबकि दूरस्थ अंचल में यह मात्र 247 प्रति दस हज़ार जन्म थी। इकाई के करीबी गांवों में कैंसर जन्य मृत्युदर दूरस्थ अंचल की तुलना में दुगुनी थी। इसी तरह लम्बे अर्से में उभरने वाले तपेदिक व कुछ बाल रोगों का प्रभाव भी दूर की अपेक्षा पास के गांवों में अधिक था। ये सारे अंतर सांख्यिकीय दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण थे।

अधिकारियों द्वारा सर्वेक्षण से निकले इन निष्कर्षों पर ध्यान देने तथा इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने के स्थान पर इन्हें नकारने का सरल-सा रास्ता अपना लिया गया। उनका तर्क था कि इन सब बीमारियों के लिए गरीबी और मात्र गरीबी जिम्मेदार है। परन्तु जब उनसे पूछा गया कि अगर गरीबी इन बीमारियों के लिए जिम्मेदार है तो दूरस्थ अंचलों के समान आर्थिक एवं पोषण स्तर के निवासियों में भी इन बीमारियों का इतना ही प्रभाव होना था, तो वे बगले झांकने लगे।

अमरीका स्थित ऊर्जा एवं पर्यावरण शोध संस्थान के अध्यक्ष वैज्ञानिक श्री अर्जुन माखीजानी का कहना है कि यह सर्वेक्षण पूर्णतः वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित ढंग से किया
गया था और परमाणु बिजलीघरों तथा भारत सरकार को इन पर ध्यान देना चाहिए। परन्तु न केवल भारत सरकार और परमाणु बिजलीघरों के अधिकारियों के द्वारा बल्कि
राजस्थान सरकार ने भी इस क्षेत्र में हुए एक मात्र वैज्ञानिक सर्वेक्षण की उपेक्षा की। अगर सरकार को इस सर्वेक्षण के परिणामों पर शंका थी, तो उसे किसी भी स्वतंत्र शोध संस्थान द्वारा इस क्षेत्र की स्वास्थ्य समस्याओं तथा विकिरण से उनके सम्भावित सम्बंध के बारे में सर्वेक्षण करा लेना था, परन्तु वह भी नहीं किया गया। वैज्ञानिक श्री अर्जुन माखीजानी के शब्दों में "भारत सरकार को यह सिद्ध करना है कि वह अपने कर्मचारियों एवं जनता को विकिरण के प्रभाव से बचाने हेतु अतंर्राष्ट्रीय मापदण्डों का पालन करती है। इस संदर्भ में उसे स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को इस जांच की अनुमति देना चाहिए। साथ ही उन्हें आवश्यक आंकड़े उपलब्ध कराना चाहिए।"

यह सब करने की बजाय सरकार ने रावतभाटा में परमाणु बिजलीघरों की संख्या में वृद्धि करना जारी रखा तथा परमाणु बिजलीघरों की इकाई 3-4 पर कार्य शुरू कर दिया। इसका उद्घाटन मार्च में प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा किया गया। उद्घाटन भाषण में प्रधानमंत्री ने यह भी घोषणा की कि शीघ्र ही यहां पर बिजलीघरों की पांचवीं व छठवीं इकाइयों का कार्य शुरू किया जाएगा। इनकी उत्पादन क्षमता वर्तमान इकाइयों से 4 गुना अधिक होगी।

इस सब के मद्देनजर परमाणु प्रदूषण विरोधी संघर्ष समिति ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन देकर प्रमुख रूप से दो मुद्दों पर उनका ध्यान आकर्षित किया। पहला यह कि इस
क्षेत्र की जनता पर विकिरण के प्रतिकूल प्रभावों को देखते हुए किसी स्वतंत्र शोध संस्थान के माध्यम से इस बारे में सर्वेक्षण कराया जाए और दूसरा यह कि किसी भी सम्भावित मानवीय त्रुटि या मशीनी दोष से होने वाली दुर्घटना से निपटने के लिए तथा उस स्थिति में आसपास की जनता को त्वरित अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिए न तो इस क्षेत्र में सड़कों आदि का निर्माण किया गया है और न ही अन्यत्र ले जाकर उन्हें ठहराने आदि की कोई व्यवस्था चिन्हित की गई है। उनका यह भी कहना था कि उस स्थिति में स्थानीय आबादी को सरकार या परमाणु बिजलीघरों से आवश्यक सहायता पहुंचने के पूर्व क्या करना होगा, इस बारे में कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। प्रधानमंत्री ने ज्ञापन तो लिया परन्तु कोई आश्वासन देने से इंकार कर दिया।

इस सारी पृष्ठभूमि में तथा स्वास्थ्य की बढ़ती समस्याओं को देखते हुए आसपास के ग्रामों में अत्यधिक भय एवं आशंकाएं फैल रही हैं। स्वयं परियोजना अधिकारियों द्वारा भी इन आशंकाओं को जन्म दिया जा रहा है। निकटस्थ ग्राम बड़ौदिया के लोगों का कहना है कि पिछले वर्ष राजस्थान परमाणु ऊर्जा परियोजना की प्रयोगशाला के लोग आए थे और उन्होंने स्थानीय बावड़ियों से पानी पीने से मना किया था। यह पानी क्यों प्रदूषित हो गया है तथा इसके पीने से क्या हानि होने की सम्भावना है, इन प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। इन गांवों के लोगों का कथन है कि इसका साफ मतलब यह है कि इन बिजलीघरों से निकलने वाले कचरे से इस क्षेत्र का भूजल प्रदूषित हो गया है। अगर ऐसा है तो इन बिजलीघरों को या तो हमें अन्यत्र बसाना चाहिए या पेयजल की अलग से व्यवस्था करना चाहिए। 10 कि.मी. की दूरी में बसे बड़ौदिया, झरझनी, मालपुरा आदि ग्रामों के निवासी अपनी स्वास्थ्य समस्याओं में दिनोंदिन वृद्धि होते जाने की शिकायत करते हैं। उनका कहना है कि वहां तपेदिक जैसी घातक बीमारी का तेज़ी से प्रसार हो रहा है।

राजस्थान सूचना के अधिकार की मुहिम का प्रवर्तक राज्य रहा है। अतः रावतभाटा में और अधिक परमाणु बिजलीघरों की स्थापना से पहले यह आवश्यक है कि इनके आसपास की आबादी की सहमति ली जाए। जन सुनवाई इस सहमति का श्रेष्ठ माध्यम है। जन सुनवाई से पूर्व परियोजना अधिकारियों को परमाणु बिजलीघर के डिज़ाइन, उत्पादन क्षमता, सुरक्षा प्रावधानों, संचालन प्रक्रिया आदि के बारे में जनता को अवगत कराना चाहिए। आम आदमी को योजना के तमाम पक्षों की जानकारी प्राप्त करने की भी सुविधा मिलनी चाहिए क्योंकि शिक्षा एवं जानकारी के निम्न स्तर के कारण उनके लिए सारी स्थिति का सही-सही आंकलन कर सकना कभी-कभी सम्भव नहीं होता है।

जरूरी है कि परमाणु बिजलीघरों की इकाई पांचवीं व छठवीं का कार्य प्रारंभ करने से पहले पूरे क्षेत्र में जन सुनवाइयों की एक श्रृंखला आयोजित हो। इन जन सुनवाइयों में अब तक उत्पादनरत परमाणु बिजलीघरों की चार इकाइयों के प्रभावों पर व्यापक बहस हो। पूरी प्रक्रिया केन्द्रीय सरकार के कुछ अधिकारियों द्वारा ही न हो; जन भागीदारी को उचित स्थान मिलना चाहिए।
इन चार इकाइयों की स्थापना के पश्चात् स्वास्थ्य सम्बंधी बढ़ती हुई समस्याओं की पृष्ठभूमि में इस क्षेत्र के लोग अपेक्षा करते हैं कि इस दिशा में आगे बढ़ने से पहले सरकार उनको सूचना के अधिकार के उपयोग का पूरा- पूरा अवसर देगी और उनके द्वारा भोगी जा रही त्रासदी के निवारण के लिए आवश्यक उपाय करेगी। अगर जन सुनवाई कार्यक्रमों के बाद भी सरकार इन इकाइयों की स्थापना का निर्णय लेती है तो उस स्थिति में लोगों को लोकतांत्रिक व शान्तिपूर्ण तरीके से विरोध करने की छूट मिलनी चाहिए व उन्हें कर्मचारियों और स्थानीय जनता के स्वास्थ्य सम्बंधी आंकड़ों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यह भी देखा जाए कि यह व्यवस्था पूरी तरह से पारदर्शी हो।

(स्रोत-  विशेष फीचर्स,जून 2001  सम्पर्क : एकलव्य, ई-7/ एच.आई.जी. 453, अरेरा कॉलोनी, भोपाल 462 016 (म.प्र.)


 

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Post By: Shivendra
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