भारत में तीन विज्ञान अकादमियों की स्थापना बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में हुई। पहली अकादमी मेघनाद साहा (1894-1956) ने सन 1930 में इलाहाबाद में स्थापित की-राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत (नेशनल अकादमी ऑफ साइंस, इंडिया), जिसका पहला नाम था संयुक्त प्रांत विज्ञान अकादमी। चंद्रशेखर वेंकट रामन (1888-1970) ने दूसरी अकादमी-भारतीय विज्ञान अकादमी (इंडियन एकाडेमी ऑफ साइंसेस), बंगलुरु में स्थापित की।
भारतवंशी विज्ञानी वेंकटरामन रामकृष्णन इस वर्ष दुनिया की सबसे पुरानी एवं प्रतिष्ठित विज्ञान अकादमी रॉयल सोसाइटी या रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। यह पहला अवसर है जब कोई भारतवंशी रॉयल सोसाइटी का अध्यक्ष बनने जा रहा है। निःसंदेह भारतवंशियों के लिये यह गर्व का विषय है। यह कहना उपयुक्त होगा कि रॉयल सोसाइटी आधुनिक विज्ञान के शैशवकाल से लेकर आज तक की विकास यात्रा में एक सहयोगी, संरक्षक एवं जानकार साक्षी की भूमिका निभाती आ रही है। रॉयल सोसाइटी इंग्लैंड की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी है।ऐसा कहा जाता है कि आधुनिक विज्ञान की शुरुआत सन 1632 में हुई जब महान खगोल विज्ञानी गैलीलियो (1564-1642) ने अपनी पुस्तक ‘डायलॉग ऑन द टू चीफ सिस्टम्स ऑफ द वर्ल्ड’ प्रकाशित की। इसी पुस्तक में गैलीलियो ने दूसरे महान खगोल विज्ञानी कोपर्निकस (1473-1543) द्वारा प्रस्तावित सूर्य केंद्रित विश्व की अवधारणा के पक्ष में प्रमाण के साथ अपने तर्क प्रस्तुत किए थे। इसके 28 साल बाद ही सन 1660 में रॉयल सोसाइटी की स्थापना हुई। इसलिये यह कहना शायद गलत नहीं होगा कि रॉयल सोसाइटी की स्थापना आधुनिक विज्ञान की उत्पत्ति के साथ ही हुई थी।
रॉयल सोसाइटी को 1640 के दशक में कुछ ब्रिटिश प्राकृतिक दार्शनिकों (नेचुरल फिलोस्फर्स) द्वारा शुरू किए गए ‘अदृश्य कॉलेज’ (इनविज़िबल कॉलेज) से जोड़ा जा सकता है। प्राकृतिक दार्शनिकों के इस अनौपचारिक समूह जिसे ‘अदृश्य कॉलेज’ का नाम दिया गया, ने उस नए दर्शन की चर्चा करनी शुरू की जिसके तहत प्राकृतिक जगत के बारे में जानकारी हासिल करने का आधार अवलोकन तथा प्रयोग होना चाहिए। उसी दर्शन के प्राकृतिक रूप को आज हम साइंस (विज्ञान) कहते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि जब रॉयल सोसाइटी की स्थापना हुई उस समय ‘साइंटिस्ट’ (विज्ञानी) शब्द अंग्रेजी भाषा में प्रचलित था ही नहीं। अंग्रेजी में ‘साइंटिस्ट’ शब्द का गठन अंग्रेज बहुविद एवं विज्ञानी विलियम ह्वेवेल (1794-1866) द्वारा सन 1834 में अर्थात रॉयल सोसाइटी की स्थापना के 174 वर्ष बाद किया था। उन्होंने मैरी सोमटविली की पुस्तक ‘‘ऑन द कानेक्सन ऑफ द फिजिकल साइंसेस’’ के लिये लिखी गई अपनी भूमिका में ‘साइंटिस्ट’ शब्द का उल्लेख किया था। उस समय साइंटिस्ट को ‘नेचुरल फिलोस्फर’ या ‘मैन ऑफ साइंस’ कहा जाता था, शायद आज यह बात सुनने में अजीब लगे कि ‘साइंटिस्ट’ शब्द का काफी विरोध हुआ था।
ब्रिटिश सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक भौतिकविद लॉर्ड केल्विन (1824-1907) ने ‘साइंटिस्ट’ शब्द के लिये कहा था कि यह शब्द उतना ही रोचक है जितना कि इलेक्ट्रोक्युशन (बिजली का संस्पर्श आने से मौत होना या बिजली द्वारा प्राणदंड देना)। यह कह कर उन्होंने ‘साइंटिस्ट’ शब्द का मजाक ही उड़ाया था। ‘साइंटिस्ट’ शब्द का विरोध करने का मुख्य कारण यह था कि इसका लातिन भाषा से कुछ लेना-देना नहीं था। उस समय बुद्धिजीवियों के बीच लातिन भाषा का बोलबाला था। कुछ लोगों को तो ‘साइंटिस्ट’ शब्द इसीलिये भी पसंद नहीं था क्योंकि यह ‘डेंटिस्ट’ शब्द से मिलता-जुलता था और उन दिनों डेंटिस्ट का व्यवसाय बहुत अच्छा नहीं माना जाता था। निश्चेतक (एनिस्थेटिक) की अनुपस्थिति तथा आज के जैसे आधुनिक मशीनें न होने के कारण दाँत निकालना काफी मुश्किल तथा मरीज के लिये कष्टदायक था। यहाँ उल्लेखनीय है कि ‘फिजिक्स’ शब्द भी ह्वेवेल ने ही गढ़ा था। इसका भी काफी विरोध हुआ था मगर धीरे-धीरे इन शब्दों का प्रयोग बढ़ता गया।
रॉयल सोसाइटी की औपचारिक स्थापना 28 नवम्बर 1660 को हुई थी जब क्रिस्टोफर रेन (1632-1723), ग्रेसम प्रोफेसर ऑफ ऐस्ट्रोनॉमी के ग्रेसम कॉलेज में व्याख्यान के बाद 12 लोग उसी कॉलेज में मिले एवं एक ऐसा संस्थान बनाने का निर्णय लिया जिसका उद्देश्य फिजिको मैथेमैटिकल एक्सपेरिमेंटल लर्निंग (भौतिक-गणितीय प्रायोगिक शिक्षा) को बढ़ावा देना था। इन 12 लोगों में रॉबर्ट बॉयल भी थे, जिन्होंने अपनी किताब “द स्केपटिकल केमिस्ट” में सर्वप्रथम तत्व की आधुनिक परिभाषा प्रस्तुत की थी। इंग्लैंड के तत्कालीन राजा चार्ल्स-II ने रॉयल चार्टर (राजकीय प्रपत्र) के माध्यम से रॉयल सोसाइटी को स्वीकृति प्रदान की। रॉयल सोसाइटी के पहले अध्यक्ष थे विलियम ब्रोंकर (1620-1685)।
रॉयल सोसाइटी दुनिया की सबसे पुरानी विज्ञान अकादमी है। इसकी स्थापना के 6 साल के बाद अर्थात सन 1666 में फ्रांस में फ्रेंच एकाडेमी ऑफ साइंस की स्थापना हुई। अमेरिकन एसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट ऑफ साइंस की स्थापना सन 1848 में हुई थी। भारत में तीन विज्ञान अकादमियों की स्थापना बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में हुई। पहली अकादमी मेघनाद साहा (1894-1956) ने सन 1930 में इलाहाबाद में स्थापित की-राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत (नेशनल अकादमी ऑफ साइंस, इंडिया), जिसका पहला नाम था संयुक्त प्रांत विज्ञान अकादमी। चंद्रशेखर वेंकट रामन (1888-1970) ने दूसरी अकादमी-भारतीय विज्ञान अकादमी (इंडियन एकाडेमी ऑफ साइंसेस), बंगलुरु में स्थापित की। सन 1935 में साहा ने एक और अकादमी की स्थापना की। कोलकाता (तब कलकत्ता) में स्थापित इस अकादमी-राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान, भारत (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ साइंसेस, इंडिया) को बाद में नई दिल्ली स्थानांतरित किया गया एवं इसे नया नाम भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इंडियन नेशनल एकाडेमी ऑफ साइंस) दिया गया।
रॉयल सोसाइटी का आदर्श वाक्य है : ‘नुलिस इन वार्वा’, लातिन भाषा में लिखी गई यह उक्ति रोमन कवि एवं व्यंग्यकार होरेस (65-8 ई.पू.) का कथन “नुलिस एडिक्टास इन वार्वा मैनिस्ट्रि” से लिया गया था जिसका अर्थ कुछ इस प्रकार है: ‘‘हमने किसी के विचारों को प्रतिध्वनित या दोहराने के लिये शपथ नहीं ली है”। रॉयल सोसाइटी का आदर्श वाक्य (मॉटो) को अपनाने का उद्देश्य इस बात पर जोर देना था कि किसी सिद्धांत पर अपने विचार को अंतिम रूप देने के लिये दूसरे की बातों या विचारों पर भरोसा नहीं करना है, ताकि इसके सदस्य किसी भी किस्म के आधिकारिक या अन्य विचारों से प्रभावित न हो कर प्रयोग द्वारा निर्धारित तथ्यों के आधार पर जाँचने के लिये प्रेरित हों।
रॉयल सोसाइटी के पहले इतिहासकार टमास स्प्रैट के अनुसार शुरुआती दौर में रॉयल सोसाइटी ने दो बातों पर विशेष जोर दिया। पहला, प्रकृति के बारे में जानकारी हासिल करने के लिये ज्यादा-से-ज्यादा प्रयोगों का इस्तेमाल करना। दूसरा इन प्रयोगों के परिणामों को प्रकाशित करने के लिये किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जाए। रॉयल सोसाइटी ने एक भाषा नीति तैयार की थी जिसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि भाषा सहज, सरल एवं संक्षिप्त हो, किसी तरह के अलंकरण का इस्तेमाल न किया जाए। भाषा इतनी सरल एवं सुबोध हो कि उसमें गणितीय स्पष्टता आ जाए।
सन 1662 में एक रॉयल चार्टर द्वारा रॉयल सोसाइटी को प्रकाशन लाने का अधिकार प्रदान किया गया। रॉयल सोसाइटी के पहले दो प्रकाशन थे : अंग्रेज डायरीकार एवं लेखक जॉन एवेलीन (1620-1706) का “सिल्वा और ए डिसकोर्स ऑन फॉरेस्ट ट्रीज (1664) एवं अंग्रेज प्रायोगिक दार्शनिक एवं स्थपति रॉबर्ट हुक (1635-1703) का “माइक्रोग्राफिया” (1665)। सन 1665 में ‘फिलोसाफिकल ट्रैनजैक्शन का पहला अंक आया। इसका संपादन रॉयल सोसाइटी के सचिव हेनरी ओल्डेनवर्ग (1619-1677) ने किया था। आज ‘फिलोसाफिकल ट्रैनजैक्शन’ दुनिया की सबसे पुरानी शोधपत्रिका है जो पिछले 350 साल से निरंतर प्रकाशित होती आ रही है। इसी पत्रिका में आइजैक न्यूटन (1642-1727) ने सन 1672 में पहला शोध पत्र प्रकाशित किया था जिसका शीर्षक था न्यू थिअरी एबाउट लाइट एंड कलर्स (प्रकाश एवं रंगों के बारे में नया सिद्धांत)। यह उल्लेखनीय है कि रॉयल सोसाइटी ने ही एडमंड हैले (1556-1742) को न्यूटन का ‘‘फिलोसॉफिए प्रिंसिपिया मैथेमैटिका (मैथेमैटिकल प्रिंसिपल्स ऑफ नैचुरल फिलोसाफी)’’ जिसे आमतौर पर ‘प्रिंसिपिया’ के नाम से जाना जाता है, प्रकाशित करने के लिये अधिकृत किया था। शर्त यह थी कि हैले अपने खर्चे से पुस्तक को प्रकाशित करेंगे। यह प्रकाशन सन 1687 में आया और इसने वैज्ञानिक क्रांति को पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया, जिसकी शुरुआत कोपर्निक्स के साथ डेढ़ शताब्दी पहले हुई थी। इस पुस्तक ने ब्रह्मांड की संपूर्ण रूपरेखा प्रस्तुत की थी जो उनके किसी भी पूर्ववर्ती द्वारा की गई कल्पना से ज्यादा सुरुचिपूर्ण एवं शिक्षाप्रद थी।
कितने ही महान वैज्ञानिक रॉयल सोसाइटी के सदस्य रहे हैं जैसे कि आइजैक न्यूटन, रॉबर्ट बॉयल, रॉबर्ट हुक, एडमंड हैले, चार्ल्स डार्विन, बेंजामिन फ्रैंकलिन, माइकल फैराडे, जॉन डेसमंड बर्नाल, जेम्स क्लार्क मैक्सवेल, अर्नेस्ट रदरफोर्ड, पॉल एड्रियन मौरिस डिराक, एडवर्ड जैनर, श्रीनिवास रामानुजन, सत्येन्द्रनाथ बसु, सुब्रह्मण्यन चंद्रशेखर, आदि। जब सन 2010 में रॉयल सोसाइटी अपनी 350वीं वर्षगांठ मना रही थी उस समय के जीवित सदस्यों में 74 नोबेल पुरस्कार विजेता थे।
रॉयल सोसाइटी के कुछ प्रमुख अध्यक्षों के नाम इस प्रकार हैं (उनके अध्यक्ष काल को कोष्ठक में दिया गया है) :
1. क्रिस्टोफर रेन (1680-1682)
2. आइजैक न्यूटन (1703-1727)
3. हाम्फ्री डेवी (1827-1830)
4. लॉर्ड रेले (1905-1908)
5. जोसेफ जॉन टामसन (1915-1920)
6. अर्नेस्ट रदरफोर्ड (1930-1935)
7. विलियम हेनरी ब्रैग (1935-1940)
8. रॉबर्ट रॉबिनसन (1945-1950)
9. लॉर्ड टॉड (1975-1980)
10. आरन क्लुग (1995-2000)
वेंकटरामन रामकृष्णन मौजूदा अध्यक्ष पल नार्स का स्थान लेंगे और उनका कार्यकाल 2020 तक होगा।
सारणी-1. भारतीय तथा भारतवंशी विज्ञानी रॉयल सोसाइटी के सदस्य | |||
क्र. सं. | नाम | वर्ष | विषय |
1. | आर्देश्री कुर्सेटजी (1808-1877) | 1841 | पोतनिर्माण एवं इंजीनियरी |
2. | श्रीनिवास रामानुजन (1887-1910) | 1918 | गणित |
3. | जगदीश चंद्र बसु (1858-1937) | 1920 | भौतिकी/जीव भौतिकी |
4. | चंद्रशेखर वेंकट रामन (1888-1970) | 1924 | भौतिकी |
5. | मेघनाद साहा (1893-1956) | 1927 | भौतिकी |
6. | बीरबल साहनी (1891-1949) | 1936 | पुरावनस्पति विज्ञान |
7. | करिअमनिक्कम श्रीनिवास कृष्णन (1898-1961) | 1940 | भौतिकी |
8. | होमी जहांगीर भाभा (1909-1966) | 1941 | भौतिकी |
9. | शांतिस्वरूप भटनागर (1895-1955) | 1943 | रसायन विज्ञान |
10. | सुब्रह्मण्यन चंद्रशेखर (1910-1995) | 1944 | खगोल भौतिकी |
11. | प्रशांत चंद्र महालनोबोस (1893-1972) | 1945 | सांख्यिकी |
12. | दारशा नौशेरवा वाडिया (1893-1969) | 1957 | भूविज्ञान |
13. | सत्येंद्रनाथ बसु (1894-1974) | 1958 | भौतिकी |
14. | शिशिर कुमार मित्र (1890-1963) | 1958 | भौतिकी |
15. | तिरूवेंकट राजेंद्र शेषाद्रि (1900-1975) | 1960 | रसायन विज्ञान |
16. | पंचानन महेश्वरी (1904-1966) | 1965 | वनस्पति विज्ञान |
17. | सी. आर. राव (1920-) | 1967 | सांख्यिकी |
18. | एम. जी. के. मेनन (1928-) | 1970 | भौतिकी |
19. | बी. पी. पाल (1906-1969) | 1972 | कृषि विज्ञान |
20. | हरिश चंद्रा (1923-1983) | 1973 | गणित |
21. | एम. एस. स्वामिनाथन (1925-) | 1973 | कृषि विज्ञान |
22. | गोपाल समुद्रम नारायण रामचंद्रन (1922-2001) | 1977 | जीव भौतिकी |
23. | देवेन्द्र लाल (1929-2012) | 1979 | भौतिकी |
24. | अवतार सिंह पेंटल (1925-2004) | 1981 | शरीर क्रिया विज्ञान |
25. | चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव (1930-) | 1982 | रसायन विज्ञान |
26. | शिवरामकृष्ण चंद्रशेखर (1930-2004) | 1983 | क्रिस्टल विज्ञान |
27. | औबेद सिद्दिकी (1932-2013) | 1984 | अणुजीव विज्ञान |
28. | वी. रामलिंगस्वामी (1921-2004) | 1986 | अणुजीव विज्ञान |
29. | सी. गोपाल (1918-) | 1987 | पोषण |
30. | अशेष प्रसाद मित्र (1927-2007) | 1988 | भौतिकी |
31. | सी. एस. शेशाद्री (1932-) | 1988 | गणित |
32. | मनमोहन शर्मा (1937-) | 1990 | रासायनिक इंजीनियरी |
33. | गोविंद स्वरूप (1929-) | 1991 | खगोल विज्ञान |
34. | रोडम नरसिम्हा (1933-) | 1992 | वायु आकाश इंजीनियरी |
35. | खुश सिंह गुरुदेव (1935-) | 1995 | कृषि विज्ञान |
36. | रघुनाथ अनंत माशेलकर (1943-) | 1998 | पॉलिमर इंजीनियरी |
37. | अशोक सेन (1956-) | 2000 | भौतिकी |
38. | एम. एम. रघुनाथन (1941-) | 2000 | गणित |
39. | टी. वी. रामकृष्णन (1941-) | 2000 | भौतिकी |
40. | श्रीनिवास कुलकर्णि (1956-) | 2001 | खगोल भौतिकी |
41. | एम. वी. निवासन (1948-) | 2001 | तंत्रिका जीवविज्ञान |
42. | वेंकटरामन रामकृष्णन (1952) | 2003 | संरचनात्मक जीवविज्ञान |
43. | गोवर्धन मेहता (1943-) | 2005 | रसायन विज्ञान |
44. | मृगांक सुर (1953-) | 2006 | तंत्रिका विज्ञान |
45. | रमेश नारायण (1959-) | 2006 | भौतिकी |
46. | गिरीश शरण अग्रवाल (1946-) | 2008 | भौतिकी |
47. | कृष्णस्वामी विजयराघवन (1954-) | 2012 | आनुवंशिकी |
48. | सुशांत कुमार भट्टाचार्य (1940-) | 2014 | इंजीनियरी |
रॉयल सोसाइटी के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी के इच्छुक पाठकों के लिये निम्नलिखित पुस्तकें सहायक होंगी :
1. हिस्ट्री ऑफ रॉयल सोसाइटी लेखकः टी स्प्रैट (यह पुस्तक सन 1667 में प्रकाशित हुई थी एवं सन 1959 में दुबारा प्रकाशित की गई, जिसे जे.आइ. कोप एवं एच.डब्लु. जोंस ने संपादित किया गया था)।
2. इस्टैब्लिशिंग द न्यू सांइस (1989), लेखक एम. हंटर।
संदर्भ
1. हेलब्रान, जे.एल. (संपादक) ‘‘द ऑक्सफोर्ड कंपेनियन ऑफ द हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न साइंस’’, ऑक्सफोर्ड: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2003
2. सिंह, इंदरपाल एवं लुथरा, राजेश, ‘‘शांति स्वरूप भटनागर प्राइज: एन इनस्पिरेशन फॉर इंटरनेशनल रिकगनिशन’’, करेंट सांइस, खंड 107, न. 2, पृष्ठ 163-165, 2014
3. कोचर, राजेश, ‘‘इंडियन फेलोज ऑफ द रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन (1841-2000), करेंट सांइस, खंड 80, न. 6, पृष्ठ 721-727, 2001
4. स्पेंजेन बर्ग, रे एवं मोसर, डायने के., ‘‘द हिस्ट्री ऑफ सांइस फ्रॉम द एनसेंट ग्रीक्स टू द सांइटिफिक रीवोल्यूशन’’, हैदराबाद यूनिवर्सिटिज प्रेस (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, 1994।
सम्पर्क
डॉ. सुबोध महंती (पूर्व वैज्ञानिक ‘जी’ एवं मानद निदेशक विज्ञान प्रसार),
सी-12, टाइप-5, निवेदिता कुंज, सेक्टर-10, आर.के. पुरम, नई दिल्ली-110022, ई-मेल : subodhmahanti@gmail.com
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