प्रस्तावना
प्रगतिशील युग में जल की बढ़ती खपत बहुत ही स्वाभाविक प्रक्रिया है। हमारे देश की समस्याएं विविध एवं जटिल है क्योंकि भारतवर्ष में जल की उपलब्धता क्षेत्रीय वर्षा एवं भौगोलिक परिस्थितियों पर आधारित है। इसके साथ बढ़ती हुई जनसंख्या, शहरीकरण का बढ़ता क्षेत्र अपना प्रभाव जल की उपलब्धि एवं गुणवत्ता पर डाल रहे हैं।
इन परिस्थितियों में कृत्रिम जल भरण की प्रक्रिया एक आवश्यक पहलू है जो कि हर तरह से लाभप्रद है। इससे भूजल के रूम में वर्षा एवं अतिरिक्त जल बचा कर रखा जा सकता है जिससे भू जल स्तर की गिरावट की क्षीणता पर रोक लगाना संभव है। साथ ही यह पर्यावरण के अनुकूल है।
केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड ने आठवीं योजना से कृत्रिम जल भरण पर काफी अध्ययन किया है एवं विभिन्न तरीकों की उपयोगिता को समझा है। इस संस्करण में कुछ तकनीकों की जानकारी दी गई है जो विभिन्न भौगोलिक एवं जमीन के नीचे की स्थितियों के लिए उपयुक्त है।
वर्षा जल सतही अपवाह के रूप में बहकर नष्ट हो जाने से पहले सतह पर या उपसतही जलभृत में एकत्रित या संचित किये जाने की तकनीक को वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग कहते हैं। भूमि जल का कृत्रिम पुनर्भरण वह प्रकिया है जिससे भूमि जल जलाशय का प्राकृतिक स्थिति में भण्डारण की दर से ज्यादा भण्डारण होता है।
आवश्यकता
- हमारी माँग की पूर्ति के लिए अपर्याप्त सतही जल की कमी को पूरा करने हेतु ।
- गिरते भूमि जल स्तर को रोकने हेतु ।
- खास जगह व समय पर भूमि जल उपलब्धता बढ़ाने व प्रोत्साहनात्मक विकास के लिए वर्षा जल का उपयोग करने हेतु ।
- वर्षा जल द्वारा उपसतही मिट्टी में अन्तः स्यन्दन को बढ़ाने के लिए जो शहरी क्षेत्रो में निर्माण के कारण अत्यधिक कम हो चुका है।
- जल मिश्रण द्वारा भूमि जल की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए।
- कृषि पैदावार बढ़ाने के लिए।
- वनस्पति के फैलाव में वृद्धि द्वारा क्षेत्र की पारिस्थितिक को सुधारने हेतु ।
लाभ
- उपसतही जलाशय में पुनर्भरण की लागत सतही जलाशयों से कम होती है।
- जलभृत वितरण प्रणाली के रूप में भी कार्य करता है।
- भण्डारण के उद्देश्य से भूमि व्यर्थ नहीं जाती और ना ही आबादी को हटाने की आवश्यकता होती है ।
- भूमि जल का वाष्पीकरण व प्रदूषण सीधे रूप से नहीं हो पाता ।
- भूमि के नीचे (उपसतह में ) जल का भण्डारण पर्यावरण के अनुकूल है।
- यह जलभृत में उत्पादकता को बढ़ाता है ।
- यह बाढ़ के खतरे को कम करता है। इससे भूमि जल स्तर में वृद्धि होती है ।।
- सूखे के खतरे व प्रभाव को कम करता है।
- मृदा अपरदन कम करता है।
अभिकल्प विचार
भूमि जल संसाधनों में वृद्धि के लिए वर्षा जल संचयन प्रणाली की अभिकल्प तैयार करने के लिए जिन मुख्य बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए वे हैं:-
- क्षेत्र की भूजलीय स्थिति जिसमें जलभृत का प्रकार व विस्तार, मृदा आवरण, भू आकृति, जलस्तर की गहराई व भूमि जल की रसायनिक गुणवत्ता आदि शामिल हैं।
- स्त्रोत जल की उपलब्धता, जो भूजल पुर्नभरण के लिए प्राथमिक आवश्यकता है, का आंकलन मुख्य रूप से नॉन- कोमिटिङ अतिरिक्त मानसून अपवाह के रूप में किया जाता है।
- अपवाह में योगदान करने वाले क्षेत्र का आकलन जैसे उपलब्ध क्षेत्र, भूमि उपयोग की पद्धति, औद्योगिक, आवासीय, हरित पट्टी, पक्का क्षेत्र व छत का क्षेत्रफल इत्यादि ।
- जल मौसम विज्ञान के घटकों का आंकलन जैसे वर्षा की अवधि सामान्य पद्धति व वर्षा की तीव्रता आदि।
क्रियाशील क्षेत्र
- जहाँ भूमि जलस्तर में लगातार गिरावट आ रही हो।
- जहाँ जलभृत का अधिकांश भाग अंसतृप्त कर दिया गया हो ।
- जहां आवश्यकता के महीनों में भूमि जल की उपलब्धता अत्यंत कम हो ।
- जहां तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण उपसतही मृदा में अन्तः स्यंदन काफी कम हो गया हो तथा भूजल पुनर्भरण में कमी आ गई हो।
पुर्नभरण करने के तरीके व तकनीक
भूमिजल पुर्नभरण मुख्यत: निम्नलिखित तरीकों द्वारा किया जा सकता है।
शहरी क्षेत्र
छत से प्राप्त वर्षा जल / वर्षा जल से उत्पन्न अपवाह संचित करने के लिए निम्नलिखित संरचनाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
(i) पुर्नभरण पिट (गड्ढा)
(ii) पुर्नभरण खाई (ट्रैन्च)
(iii) नलकूप
(iv) पुनर्भरण कूप
ग्रामीण क्षेत्र
वर्षा जल संचित करने के लिए निम्नलिखित संरचनाओं का प्रयोग किया जा सकता है
(i) गली प्लग
(ii) परिरेखा बांध (कंटूर बंड)
(iii) गेबियन संरचना
(iv) परिस्त्रवण टैंक (परकोलेशन टैंक)
(v) चैक बांध / सीमेन्ट प्लग / नाला बंड
(vi) पुनर्भरण शाफ्ट
(vii) कूप (डंग वैल) पुनर्भरण
(viii) भूमि जल बांध / उपसतही डाईक
शहरी क्षेत्र
शहरी क्षेत्रों में इमारतों की छत, मक्के व कच्चे क्षेत्रों से प्राप्त वर्षा जल व्यर्थ चला जाता हैं। यह जल जलभृतों में पुनर्भरित किया जा सकता है व जरूरत के समय लाभकारी ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है। वर्षा जल संचयन की प्रणाली को इस तरीके से डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि यह संचयन / इकट्ठा करने व पुनर्भरण प्रणाली के लिए ज्यादा जगह न घेरे । शहरी क्षेत्रों में छत से प्राप्त वर्षा जल का भण्डारण करने की कुछ तकनीकों का विवरण प्रेषित है
(i) पुनर्भरण पिट (गड्ढा) द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन
- जलोढ़ क्षेत्र में जहां पारगम्य चट्टानें या तो जमीनी सतह पर या बहुत छीछली गहराई पर हों वहाँ छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन पुनर्भरण पिट के माध्यम से किया जा सकता है।
- यह तकनीक लगभग 100 वर्ग मी० क्षेत्रफल वाली छत के लिए उपयुक्त है व इसका निर्माण छीछले जलभृतों को पुनर्भरित करने के लिए होता है।
- पुर्नभरण पिट किसी भी शक्ल व आकार का हो सकता है और यह सामान्यतः 1 से 2 मी० चौड़ा व 2 से 3 मी० गहरा बनाया जाता है जो शिलाखण्ड (5 से 20 से०मी०), बजरी (5 से 20) मि०मी०) व मोटी रेत (1.5 से 2 मि० मी०) से क्रमवार भरा जाता है- बोल्डर तल पर, बजरी बीच में व मोटी रेत सबसे ऊपर भरी जाती है ताकि अपवाह के साथ आने वाली गात रेत की सतह के ऊपर जमा हो जाए जो बाद में आसानी से हटाई जा सके। छोटे आकार वाली छत के लिए पिट को ईंटों के टुकड़ों या कंकड़ इत्यादि द्वारा भरा जा सकता है।
- छत से जल निकासी के स्थान पर जाली लगानी चाहिए ताकि पत्ते या अन्य ठोस पदार्थ को पिट में जाने से रोका जा सके व जमीन पर एक गाद निस्तारण / इकट्ठा करने के लिए कक्ष बनाया जाना चाहिए जो महीन कण वाले पदार्थों को पुनर्भरण पिट की तरफ बहने से रोक सके ।
- पुनर्भरण गति को बनाये रखने के लिए ऊपरी रेत की परत को समय समय पर साफ करना चाहिए।
- जल इकट्ठा करने वाले कक्ष से पहले प्रथम वर्षा के जल को बाहर जाने देने के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए।
(ii) पुनर्भरण खाई (ट्रैन्च) द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन
- पुनर्भरण खाई 200 से 300 वर्ग मी० क्षेत्रफल वाली छत के भवन के लिए उपयुक्त है।\तथा जहां भेद्य स्तर छिछले गहराई में उपलब्ध होता हो ।
- पुनर्भरण करने योग्य जल की उपलब्धता के आधार पर खाई 0.5 से 1 मी० चौड़ी, 1 से 1.5 मी० गहरी तथा 10 से 20 मी० लम्बी हो सकती है।
- यह शिलाखण्ड (5 से 20 से०मी०), बजरी (5 -10 मि०मी०) एवं मोटी रेत (1.4 -2 मि० मी०) से क्रमानुसार भरा होता है तल में शिलाखण्ड, अजरी बीच में तथा मोटी रेत सबसे ऊपर भरी होती है ताकि अपवाह के साथ आने वाली गाव मोटी रेत पर जमा हो जाए जिसे आसानी से हटाया जा सके।
- जाली छत से जल निकलने वाले पाईप पर लगाई जानी चाहिए ताकि पत्तों या अन्य ठोस पदार्थ को खाई में जाने से रोका जा सके एवं सूक्ष्म पदार्थों को खाई में जाने से रोकने के लिए गादनिस्तारण कक्ष या संग्रहण कक्ष जमीन पर बनाया जाना चाहिए ।
- प्रथम वर्षा के जल को संग्रहण कक्ष में जाने से रोकने के लिए कक्ष से पहले एक उपमार्ग व्यवस्था की जानी चाहिए।
- पुनर्भरण दर को बनाए रखने के लिए रेत की ऊपरी सतह की आवधिक सफाई की जानी चाहिए
भूजल स्तर में गिरावट के कारण
- भारत की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए स्थानीय स्तर पर / अथवा व्यापक स्तर पर जल का अति दोहन ।
- जल के अन्य स्त्रोतों का उपलब्ध न होना जिससे भूजल पर पूर्ण निर्भरता ।
- जल की उचित मात्रा निश्चित समय पर प्राप्त करने के लिए अपने संसाधनों की व्यवस्था करना ।
- प्राचीन साधनों जैसे तालाबों, बावडियों व टैंकों आदि का उपयोग न करना जिससे भूजल निकासी पर अत्याधिक दबाव होना ।.
(iii) मौजूद नलकूप द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन
- ऐसे क्षेत्र जहां छीछले जलभृत सूख गये हैं व मौजूदा नलकूप गहरे जलभृत से जल निकाल रहे हाँ वहां गहरे जलभृत को पुनर्भरित करने के लिए मौजूद नलकूप द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल के संचयन की पद्धति अपनाई जा सकती है।
- पानी इकट्ठा करने के लिए छत की नाली को 10 से०मी० व्यास के पाईप से जोड़ा जाता है। पहली बरसात के अपवहित जल को छत से आने वाले पाईप के निचले सिरे से बाहर निकाल दिया जाता है । इसके पश्चात नीचे के पाईप को बंद करके आगे की बरसात का पानी लाईन पर लगे "T" पाईप के माध्यम से पी० वी० सी० फिल्टर तक लाया जाता है। जल के नलकूप में जाने के स्थान से पहले फिल्टर लगाया जाता है। फिल्टर 1 से 1. 2 मी० लम्बा होता है व पी० वी० सी० पाईप का बना होता है। इस का व्यास छत के आकार के अनुसार बदल सकता है। यदि छत का क्षेत्रफल 150 वर्गमी० से कम हो तो पाईप का व्यास 15 से०मी० व अधिक हो तो 20 से०मी० तक हो सकता है। फिल्टर के दोनों सिरो पर 6.25 से०मी० के रिडूसर लगाए जाते हैं। फिल्टर पदार्थ आपस में ना मिल सके इसलिए फिल्टर को पी० वी० सी० जाली द्वारा तीन कक्षों में बांटा जाता है। पहले कक्ष में बजरी (6 -20 मि०मी०), बीच वाले कक्ष में पैबल (12-20 मि०मी०) तथा आखिरी कक्ष में बड़े पैबल (20 -40 मि०मी०) भरे जाते हैं।
- यदि छत का क्षेत्रफल ज्यादा हो तो फिल्टर पिट बनाया जा सकता है। छत से प्राप्त वर्षा जल को जमीन पर बने गाद निस्तारण कक्ष या संग्रहण कक्ष में ले जाया जाता है। जल एकत्र करने वाले कक्ष आपस में जुड़े होते हैं साथ ही पाईप के माध्यम से, जिसका ढाल 1.15 हो, फिल्टर पिट से जुड़े होते हैं। फिल्टर पिट का आकार व प्रकार उपलब्ध अपवाहित जल पर निर्भर करता है। तथा फिल्टर पदार्थ द्वारा क्रमवार वापस भर दिया जाता है, तल में बोल्डर (शिलाखण्ड), बीच में ग्रैवल (बजरी ) व सबसे ऊपर मोटी रेत भरी जाती है। इन स्तरों की मोटाई 0.3 -0.5 ) मी० तक हो सकती है व ये स्तर आपस में जाली द्वारा अलग-अलग भी रखे जा सकते हैं। संग्रहण कक्ष को दो कक्षों में बांट दिया जाता है। एक कक्ष में फिल्टर करने वाले पदार्थं व दूसरे कक्ष में फिल्टर होकर आये अतिरिक्त जल को भरा जा सकता है जिससे जल की गुणवत्ता की जांच की जा सकती है। फिल्टर किये गये जल को पुनर्भरित करने के लिए इस कक्ष के निचले भाग से निकाले गये पाईप को पुनर्भरण पिट से जोड़ दिया जाता है ।
(iv) पुनर्भरण कुँओं के साथ साई द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन
- ऐसे क्षेत्रों में जहां सतही मृदा अपारगम्य है तथा अधिक मात्रा में छत से प्राप्त वर्षा जल या सतही अपवाह काफी कम समयान्तराल में भारी वर्षा के कारण उपलब्ध हो, ऐसे में खाई / पिट में बने फिल्टर माध्यम में जल संग्रहण किया जाता है तथा विशेष रूप से निर्मित पुनर्भरण कुँओ के द्वारा भूमि जल का लगातार पुनर्भरण किया जाता है।
- यह तकनीक उस क्षेत्र के लिए आदर्शत: उपयुक्त हैं जहाँ पारगम्य स्तर भूमि सतह के 3 मी० के अन्दर मौजूद है।
- 100 से 300 मि० मी० व्यास का पुनर्भरण कुँआ जिसकी कम से कम गहराई जल स्तर से 3 से 5 मी० नीचे तक बनाया जाता है। क्षेत्र की लिथोलोजी के अनुसार कूप संरचना का डिजाईन तैयार किया जाता है जिसमें छीछले व गहरे जलभृत के सामने छिद्रयुक्त पाईप डाला जाता है।
- पुनर्भरण कुएं को मध्य में रखते हुए जल की उपलब्धता पर आधारित 1.5 से 3 मी० चौड़ी तथा 10 से 30 मी० लम्बी पार्श्विक खाई का निर्माण किया जाता है।
- खाई में कुओं की संख्या जल की उपलब्धता व क्षेत्र विशेष में चट्टानों की उद्धव पारगम्यता के अनुसार निर्धारित की जा सकती है।
- पुनर्भरण कुँओं के लिए फिल्टर माध्यम के रूप में कार्य करने के लिए खाई को बोल्डर, ग्रैवल व मोटी रेत से भर दिया जाता है।
- यदि जलभृत काफी गहराई, 20 मी० से ज्यादा, पर उपलब्ध हो तब अपवहित जल की उपलब्धता के आधार पर 2 से 5 मी० व्यास व 3 से 5 मी० गहरी छिछली शाफ्ट का निर्माण किया जा सकता है। उपलब्ध जल को गहरे जलभृत में पुनर्भरित करने के लिए शाफ्ट के अन्दर 100 से 300 मि० मी० व्यास का पुनर्भरण कुँआ बनाया जाता है। पुनर्भरण कुँओं को जाम होने से बचाने के लिए शाफ्ट के तल में फिल्टर पदार्थ भर दिया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्र
ग्रामीण क्षेत्र में वर्षा जल का संचयन वाटर शेड को एक इकाई के रूप में लेकर करते हैं। आमतौर पर सतही फैलाव की तकनीक अपनाई जाती है। क्योंकि ऐसी प्रणाली के लिए जगह प्रचुरता में उपलब्ध होती है तथा पुनर्भरित जल की मात्रा भी अधिक होती है। ढलान, नदियों व नालों के माध्यम से व्यर्थ जा रहे जल को बचाने के लिए निम्नलिखित तकनीकों को अपनाया जा सकता है।
(i) गली प्लग द्वारा वर्षा जल संचयन
- गली प्लग का निर्माण स्थानीय पत्थर, चिकनी मिट्टी व झाड़ियों का उपयोग कर वर्षा ऋतु में पहाड़ों के ढलान से छोटे कैचमेन्ट में बहते हुये नालों व जलधाराओं के आर-पार किया जाता है।
- गली प्लग मिट्टी व नमी के संरक्षण में मदद करता है।
- गली प्लग के लिए स्थान का चयन ऐसी जगह करते हैं जहां स्थानीय रूप से ढलान समाप्त होता हो ताकि बंड के पीछे पर्याप्त मात्रा में जल एकत्रित रह सके।
(ii) परिरेखा (कन्टूर) बाँध के द्वारा वर्षा जल संचयन
- परिरेखा बांध वाटर शेड में लम्बे समय तक मृदा नमी को संरक्षित रखने की प्रभावी पद्धति है।
- यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होती है जहाँ मानसून का अपवहित जल समान ऊँचाई वाले कन्टूर के चारों तरफ ढलान वाली भूमि पर बांध बना कर रोका जा सकता है।
- बहते हुए जल को कटाव वेग प्राप्त करने से पहले बंड के बीच में उचित दूरी रख कर रोक दियाजाता है।
- दो कन्टूर बंड के बीच की दूरी क्षेत्र के हलान व मृदा की पारगम्यता पर निर्भर होती है। मृदा की पारगम्यता जितनी कम होगी कन्टूर बंड के बीच दूरी उतनी कम होगी।
- कन्टूर बंड साधारण ढलान वाली जमीन के लिए उपयुक्त होते हैं इनमें सीढ़ियां बनाया जाना शामिल नहीं होता।
(iii) गैबियन संरचना द्वारा वर्षा जल संचयन
- यह एक प्रकार का बैंक डैम होता है जिसका निर्माण सामान्यतः छोटी जलधाराओं पर जलधाराओं के बहाव को संरक्षित करने के लिए किया जाता है। साथ ही जलधारा के बाहर बिल्कुल भी प्लावन नहीं हो पाता।
- जलधारा पर छोटे बांध का निर्माण स्थानीय रूप से उपलब्ध शिलाखण्डों को लोहे के तारों की जालियों में डालकर तथा उसे जलधारा के किनारों पर बांध कर किया जाता है।
- इस प्रकार की संरचनाओं की ऊंचाई लगभग 0.5 मी० होती है व ये साधारणतया 10 मी० से कम चौड़ाई वाली जलधाराओं में प्रयोग होती है।
- कुछ जल पुनर्भरण के स्त्रोत मे जमा छोड़ कर शेष अधिक जल इस संरचना के ऊपर से बह जाता है। जलधारा की गाद शिलाखण्डों के बीच जम जाती है और फिर उसमें वनस्पति के उगने से बांध अपारगम्य बन जाता है और बरसात के अपवाहित सतही जल को अधिक समय तक रोक कर भूमि जल में पुनर्भरित होने में मदद करता है ।
(iv) परिस्त्रवण टैंक (परकोलेशन टैंक) द्वारा वर्षा जल का संचयन
- परिस्त्रवण टैंक कृत्रिम रूप से सृजित सतही जल संरचना है। इसके जलाशय में अत्यंत पारगम्य भूमि जलप्लवित हो जाती है जिससे सतही अपवाह परिस्त्रवित होकर भूमि जल भण्डार का पुनर्भरण करता है।
- परिस्त्रवण टैंक का निर्माण यथासंभव (preferably) द्वितीय से तृतीय चरण की जलधारा पर किया जाना चाहिए, यह अत्यधिक दरार वाली कच्ची चट्टानों (fractured & weathered rocks) जो सीध में नीचे बहने वाली जलधारा (down stream) तक फैली हों, पर स्थित होना चाहिए।
- निचली जलधारा के पुनर्भरण क्षेत्र में पुनर्भरित जल विकसित करने के लिए पर्याप्त संख्या में कुँए व कृषि भूमि होनी चाहिए ताकि संचित जल का लाभ उठाया जा सके।
- परिस्त्रवण टैंक का आकार टैंक तल के संस्तर की परिस्त्रवण क्षमता के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए। सामान्यतः परिस्त्रवण टैंक का डिजाईन 0.1 से 0.5 एम० सी० एम० कीभण्डारण क्षमता के लिए होता है। यह आवश्यक है कि टैंक का डिजाईन इस तरह का हो जिसमें सामान्यतः 3 से 4. 5 मी० का टैंक में जमा जल का शीर्ष (column) रहे।
- परिस्त्रवण टैंक अधिकांशता जमीनी बांध ( earthen dam ) ही होते हैं जिनमें केवल उत्प्लव मार्ग (spill way) के लिए चिनाई की गई संरचना होती है। परिस्त्रवण टैंक का उद्देश्य भूमि जल भण्डारण का पुनर्भरण करना होता है इसलिए संस्तर के नीचे रिसाव होने दिया जाता है । 85 मी० तक की ऊँचाई वाले बाँध के लिए खाईयों का काटा जाना अनिवार्य नहीं होता व प्राकृतिक भूमि व बाँध तल के बीच बाधाओं का निर्माण ही पर्याप्त होता है
(v) चैक डैम / सीमेन्ट प्लग / नाला खंड के द्वारा वर्षा जल संचयन
- चैक डैम का निर्माण अतिसामान्य ढलान वाली छोटी जलधाराओं पर किया जाता है। चयनित जगह पर पारगम्य स्तर या वैदरड स्तर की पर्याप्त मोटाई होनी चाहिए ताकि एकत्रित जल कम समयान्तराल में पुनर्भरित हो सके।
- इन संरचनाओं में संचित जल अधिकतर नालों के प्रवाह क्षेत्र में सीमित रहता है तथा इसकी ऊँचाई सामान्यतः 2 मी० से कम होती है व अतिरिक्त जल को संरचना की दीवार के ऊपर से बह कर जाने दिया जाता है अत्यधिक जल द्वारा गड्ढे न बने व कटाव ना हो इसलिए डाउन स्ट्रीम की तरफ जल कुशन (water cushion ) बनाए जाते हैं।
- जल धारा के अधिकांश अपवाह का उपयोग करने के लिए इस तरह के चैक डैम की श्रृंखला का निर्माण किया जा सकता है ताकि क्षेत्रीय पैमाने पर पुनर्भरण हो सके ।
- चिकनी मिट्टी से भरे सीमेन्ट बैगों को दीवार की तरह लगाकर छोटे नालों पर अवरोध के रूप में सफलतापूर्वक इस्तेमाल हो रहा है। कई स्थानों पर नाले के आरपार उथली खाई खोदी जाती है व दोनों तरफ एस्बेस्टस की शीट लगा दी जाती है। नाले पर एस्बेस्टस शीट की दोनों श्रृंखलाओं के बीच का स्थान चिकनी मिट्टी द्वारा भर दिया जाता है। इस तरह कम लागत वाले चैक डैम का निर्माण किया जाता है संरचना को मजबूती प्रदान करने के लिए जलधारा के ऊपरी भाग की तरफ चिकनी मिट्टी से भरे सीमेन्ट बैगों को ढलवा क्रम में लगा दिया जाता है।।।
(vi) पुनर्भरण शाफ्ट द्वारा व वर्षा जल संचयन
- अपरिरूद्धजलभृत जिसके ऊपर कम पारगम्य स्तर होके पुनर्भरण के लिए सबसे उपयुक्त व कम लागत वाली तकनीक है।
- अगर स्तर नहीं ढहने वाली प्रवृति का हो तो पुनर्भरण शाफ्ट का निर्माण हाथों से किया जा सकता है।
- शाफ्ट का व्यास सामान्यतः 2 मी० से अधिक होता है।
- शाफ्ट का अंतिम सिरा ऊपरी अपारगम्य स्तर के नीचे अधिक पारगम्य स्तर में होना चाहिए। यह आवश्यक नहीं की शाफ्ट जलस्तर को छूता हो ।
- अपंक्तिबद्ध (अनलाईन्ड ) शाफ्ट में पहले बोल्डर / पैबल फिर बजरी व अन्त में मोटी रेत भरी जानी चाहिए।
- यदि शाफ्ट लाईन्ड हो तो पुनर्भरित जल को फिल्टर तक पहुँचने वाले एक छोटे चालक पाईप ( कन्डक्टर पाईप ) के माध्यम से शाफ्ट में डाला जाता है।
- इस तरह की पुनर्भरण सरंचनाएँ ग्रामीण टैंको के लिए काफी लाभप्रद होती है जहां छीछली,चिकनी मिट्टी की परत जल के जलभृत में रिसाव होने में बाधक होती है ।
- ऐसा देखा गया है कि बरसात के मौसम में गाँवों के टैंक पूरी तरह से भरे होते हैं लेकिन गाद भरने के कारण इन टैंको से जल का नीचे रिसाव नहीं हो पाता तथा साथ ही बने नलकूप व कुएं सूखे रह जाते हैं। गाँवों के तालाबों से जल वाष्पीकृत हो जाता है तथा लाभकारी उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं हो पाते।
- तालाबों में पुनर्भरण शाफ्ट के निर्माण से अतिरिक्त उपलब्धता (सरप्लस) जल को भूजल में पुनर्भरित किया जा सकता है। जल की उपलब्धता के अनुसार पुनर्भरण शाफ्ट 3 से 5 मी० व्यास व 10 -15 मी० गहराई तक बनाई जाती है। शाफ्ट का ऊपरी सिरा टैंक के तल स्तर ( bed level) के ऊपर पूर्ण आपूर्ति स्तर के आधे तक रखा जाता है यह बोल्डर, ग्रैवल व मोटी रेत द्वारा पुन भर दिया जाता है ।
- संरचना की मजबूती के लिए ऊपरी एक या दो मीटर की गहराई वाले भाग की ईंटों व सीमेंट मिश्रित मसाले से चिनाई की जाती है।
- इस तकनीक के माध्यम से ग्रामीण तालाब (टैंक) में इकट्ठे हुए सम्पूर्ण जल में से पूर्ण आपूर्ति स्तर के 50 प्रतिशत से अधिक को भूजल में पुनर्भरित किया जा सकता है। पुनर्भरण के पश्चात निस्तार के लिए पर्याप्त जल टैंक में बचा रह जाता है।
(vii) पुर्नभरण कुँओं द्वारा वर्षा जल संचयन
- चालू व बंद पड़े कुँओं को सफाई व गादनिस्तारण के पश्चात पुनर्भरण संरचना के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।
- पुनर्भरित किये जाने वाले जल को गाद निस्तारण कक्ष से एक पाईप के माध्यम से कुँए के तल या जल स्तर के नीचे ले जाया जाता है ताकि कुँए के तल में गड्डे होने व जलभूत में हवा के बुलबुलों को फंसने से रोका जा सके।
- पुनर्भरण जल गाद मुक्त होना चाहिए तथा गाद को हटाने के लिए अपवाहित जल को या तो गादनिस्तारण कक्ष या फिल्टर कक्ष से गुजारा जाना चाहिए।
- जीवाणु संदूषक को नियंत्रित रखने के लिए क्लोरीन आवधिक रूप से डाली जानी चाहिए।
(viii) भूमिगत जलबांध या उपसतही डाईक
- भूमिगत जलबांध या उपसतही डाईक नदी के आर पार एक प्रकार का अवरोधक होता है जो बहाव की गति को कम करता है। इस तरह से भूजल बांध के ऊपरी क्षेत्र में जलस्तर जलभृत के सूखे भाग को संतृप्त करके बढ़ाता है।
- उपसतही डाईक के निर्माण के लिए स्थल का चयन ऐसी जगह किया जाता है जहाँ अपारगम्य स्तर छीछली गहराई में हो और लकड़ी निकास वाली चौड़ी खाई हो ।
- उपयुक्त स्थल चुनाव के पश्चात नाले की पूर्ण चौड़ाई में 1-2 मी० चौड़ी तथा कड़ी चट्टानों/ अभेद्य सतह तक एक खाई खोदी जाती है । खाई को चिकनी मिट्टी या ईटों / कंक्रीट की दीवार से जल स्तर के आधा मीटर नीचे तक भर दिया जाता है।
- पूर्ण रूप से अप्रवेश्यता सुनिश्चित करने के लिए 3000 पी० एस० आई० की पी० वी० सी० चादर जिसकी टियरिंग शक्ति 400 से 600 गेज हो अथवा कम घनत्व वाली 200 गेज की पोलीथीन फिल्म का प्रयोग भी डाइक की सतहों को ढकने के लिए किया जा सकता है।
- चूंकि जल का संचयन जलभृत में होता है इसलिए जमीन का जलप्लावन रोका जा सकता है तथा जलाशय के ऊपर की जमीन को बांध बनने के पश्चात प्रयोग में लाया जा सकता है। इससे जलाशय से वाष्पीकरण द्वारा नुकसान नहीं होता और ना ही जलाशय में गाद जमा हो पाती है। बांध के बैठ जाने (टूट जाने ) जैसे भयंकर खतरे को भी टाला जा सकता है।
सोर्स-जल शक्ति मंत्रालय केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड
/articles/rain-water-harvesting-techniques-increase-ground-water