रिलीफ तो चाहिये मगर किस कीमत पर

2009 का साल शान्तिपूर्वक बीत गया क्योंकि इस साल बिहार में बाढ़ नहीं आयी थी मगर 2008 में कुसहा की घटना के बाद पुनर्वास को लेकर पूरे कोसी क्षेत्र में तनाव अभी तक बना हुआ है। कोसी एफ्लक्स बांध टूटने के बाद राज्य सरकार ने हर पीड़ित परिवार को 1500 रुपये से लेकर 10,000 रुपयों तक की अनुग्रह राशि अस्थाई घरों के निर्माण के लिए दी थी। इन लोगों को दिलासा दी गयी थी कि स्थाई गृह निर्माण के लिए इन्हें बाद में 55,000 रुपयों का अतिरिक्त अनुदान दिया जायेगा।

हालात इतने बुरे हो गए हैं कि पिछले कुछ वर्षों में राहत मांगने वालों को खैरात के बदले गोलियों की सौगात मिलने लगी है। इधर हाल के वर्षों में इस तरह की एक घटना 18 सितम्बर 1991 को किशनगंज जिले के पोठिया प्रखण्ड में हुई जहाँ तीन आदमी मारे गए। इसी तरह की घटना की पुनरावृत्ति कटिहार जिले के बलरामपुर प्रखण्ड में किरोरा गाँव में 4 अक्टूबर 2002 को हुई जिसमें दो ग्रामीण मारे गए। 2004 में दो किस्तों में हुई गोली चलने की घटनाओं में पातेपुर प्रखण्ड कार्यालय, जिला वैशाली में 4 अगस्त के दिन रिलीफ मांगने वाले लोगों की भीड़ पर गोली चलायी गयी जिसमें मन्टुन पासवान नाम का 14 वर्षीय किशोर मारा गया। पातेपुर में लोग राहत सामग्री के वितरण के लिए अंचल अधिकारी को खोजने के क्रम में उग्र हो गए और पुलिस को अपने ‘बचाव’ में गोली चलानी पड़ी। ऐसा ही कुछ दरभंगा जिले के मनीगाछी प्रखण्ड में 16 अगस्त को हुआ जब रेलवे लाइन पर धरने पर बैठे रिलीफ मांगने वालों पर पुलिस ने गोली चलायी जिसकी वजह से 3 आदमी मारे गए। अनौपचारिक स्रोतों के अनुसार मरने वालों की संख्या 5 थी।

2007 में मधुबनी में राहत मांगने वालों की भीड़ पर 3 अगस्त के दिन पुलिस को ‘आत्म रक्षा’ में गोली चलानी पड़ी जिसमें दर्शनानन्द नाम का एक व्यक्ति मारा गया। मधुबनी जिले में ही इस साल 23 अगस्त के दिन एक बाढ़ पीड़ित व्यक्ति की आंख में तमोरिया गाँव में मुखिया के पति और उसके गुर्गों पर तेजाब डालने का आरोप लगा। इस घटना के पीछे व्यक्तिगत दुश्मनी की बात कही जाती है। इस साल दक्षिण बिहार में संभवतः पहली बार राहत मांग रही भीड़ पर नालन्दा जिले के थरथरी प्रखंड में पुलिस ने 7 अगस्त को गोली चलायी। गोली चलाने के साथ-साथ हुए लाठी चार्ज में इस घटना में बहुत से लोग घायल हुए थे। इसी तरह की घटना की पुनरावृत्ति 17 अगस्त को सोनबरसा (सीतामढ़ी) में हुई। सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड में बाढ़ पीड़ितों द्वारा किये गए पथराव के जवाब में पुलिस ने 28 अगस्त को ‘आत्म रक्षा’ में गोली चलायी।

2008 में 18 अगस्त को कोसी का पूर्वी एफ्लक्स बांध टूटने के बाद भारी संख्या में बाढ़ पीड़ितों को सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ी थी जिनमें से बहुत लोगों को लम्बे समय के लिए राहत केन्द्रों गणेश प्रसाद यादव में रहना पड़ गया। रिलीफ के बटवारे को लेकर इस बार इन केन्द्रों पर काफी तनाव रहता था। इस साल बाढ़ पीड़ितों पर पुलिस फायरिंग की शुरुआत 22 अगस्त को अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड से हुई। 28 सितंबर के दिन सहरसा के सोनबरसा प्रखंड में सेना के जवानों और बाढ़ पीड़ितों के बीच हुई नोंक झोंक में बाढ़-पीड़ितों की ओर से पथराव हुआ जिसके जवाब में सेना के जवानों की ओर से गोलियाँ चलायी गईं। पूर्णियाँ के बरहरा कोठी प्रखंड में बाढ़ पीड़ितों ने राहत के सवाल पर प्रखंड विकास पदाधिकारी का घेराव करके उसे बंधक बना लिया। इसके जवाब में भीड़ को तितर-बितर करने के उद्देश्य से पुलिस को गोली चलानी पड़ी।

2009 का साल शान्तिपूर्वक बीत गया क्योंकि इस साल बिहार में बाढ़ नहीं आयी थी मगर 2008 में कुसहा की घटना के बाद पुनर्वास को लेकर पूरे कोसी क्षेत्र में तनाव अभी तक बना हुआ है। कोसी एफ्लक्स बांध टूटने के बाद राज्य सरकार ने हर पीड़ित परिवार को 1500 रुपये से लेकर 10,000 रुपयों तक की अनुग्रह राशि अस्थाई घरों के निर्माण के लिए दी थी। इन लोगों को दिलासा दी गयी थी कि स्थाई गृह निर्माण के लिए इन्हें बाद में 55,000 रुपयों का अतिरिक्त अनुदान दिया जायेगा। बाढ़ पीड़ित इस अनुदान की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि खबर आयी कि 55,000 रुपयों का अनुदान केवल उन्हीं लोगों को दिया जायेगा जिन्हें पहली किस्त में 10,000 रुपये दिये गए थे। इससे लोगों में असंतोष फैला और बात-चीत का कोई नतीजा न निकलते देख कर 18 फरवरी 2010 को लोगों ने सुपौल जिले के बसन्तपुर प्रखंड कार्यालय का घेराव किया। प्रदर्शनकारियों की उग्र भीड़ को शान्त और तितर-बितर करने के लिए पुलिस को ‘आत्म रक्षा’ में फायरिंग करनी पड़ी। बाद में 49 नामजद और 3000 की अनाम भीड़ के खिलाफ अशान्ति फैलाने के लिए प्रशासन/पुलिस ने मुकद्दमा (केस संख्या 20/10) दायर किया। इनमें से अंतिम सूचना मिलने तक तीन लोगों की गिरफ्तारी हुई है और बाकी लोग फरार हैं।

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Post By: tridmin
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