रिहंद बना भोपाल..

रिहंद
रिहंद

उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जनपद! कभी देश का स्विट्जरलैंड कहा जाता था आज वहां एक और भोपाल जन्म ले चुका है, उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा पर स्थित सोनभद्र के कमारी डांड गांव में रिहंद का जहरीला पानी पीकर पिछले १० दिनों में २० जानें गई हैं, वहीं सैकडों लोगों की हालत बेहद गंभीर है, इन मौतों से घबराए हजारों आदिवासी दूसरे इलाकों में पलायन कर गए हैं।

ये तब हुआ है जबकि विषैले पानी की वजह से हजारों पशुओं की मौत की खबर लगातार सुर्खियों में है। रिहंद बांध में लगभग आधा दर्ज़न बिजलीघरों के अलावा, रसायन बनाने वाली कनोडिया केमिकल और हिंडाल्को इंडस्ट्रीज का कचरा गिरता है, समूचा बांध अथाह प्रदूषण का ढेर बन चुका है, सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों का काम महज चेतावनी देने तक ही सीमित है, सरकार सत्ता से जुडी मजबूरियों की वजह से ख़ामोश है और रिहंद पर निर्भर आदिवासी-गिरिजनों के लिए तिल-तिल कर मरना उनकी नियति बन चुकी है। सोनभद्र के मुख्य चिकित्साधिकारी ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने के बाद इन मौतों पर कहा, 'बांध का पानी निःसंदेह जहरीला हो गया है, प्रभावित इलाके में पेयजल के संसाधन मौजूद नहीं हैं सो लोगों को रिहंद का पानी ही पीना पड़ रहा था, जिसके नतीजे सामने हैं।“मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा लोगों को रिहंद का पानी न पीने की सलाह दी गयी है, लेकिन अफ़सोस है कि भारी तबाही के बावजूद न तो पेयजल के किसी अतिरिक्त स्रोत की व्यवस्था की गयी और न ही प्रभावित क्षेत्रों में चिकित्सकों की तैनाती की गयी है।

सोनभद्र के म्योरपुर ब्लाक में स्थित कमरी डांड और उसके आस-पास के गांवों में रह रहे लगभग २५ हजार आदिवासी मूल रूप में रिहंद बांध के विस्थापित हैं, यहां के रामगोविंद ने बताया, “न तो हमें मुआवजा मिला और न ही नौकरी, सोचा था बांध के किनारे की इस जमीन पर धान उगायेंगे लेकिन क्या पाता था कि हम मौत की खेती करेंगे।“

लगभग ३ घंटे की कठिन यात्रा के बाद जब हम कमारी डांड गांव पहुँचे तो हमें पहले तो चारपाई पर मरीजों को लादकर ले जा रहे दर्जनों लोग नजर आए फिर आश्चर्यजनक तौर पर हमें चारों और मरघट सा सन्नाटा पसरा नजर आया, घरों में बंद तालों के बाबत जब हमने बरही डांड के संतलाल, लक्ष्मण आदि से पूछा तो उंहोंने बताया कि लोग इन अकाल मौतों से डर गए हैं सो गाँव छोड़कर अपने नाते रिश्तेदारों के यहां या फिर कहीं और चले गए हैं। संतलाल ने बताया, “कहने को तो गाँव में १५-१५ कि संख्या में चापाकल लगे हैं लेकिन उनमे से केवल एक दो काम करते हैं, वो भी अगड़ी बिरादरी वाले लोगों के घरों के सामने लगे हैं सो हम पानी वहां से नहीं ले पाते, गाँव की औरतों को लगभग २ किलोमीटर की बेहद थका देने वाली दूरी तय करके पानी लाना पड़ता है, लेकिन जब रिहंद का पानी भी हमारी जिंदगी के लिए खतरा बन गया है तो हम क्या करें? कहाँ जाएँ?” अंजनी के ३५ वर्षीय भाई विजयलाल की मौत तड़प-तड़प कर हो गयी, उंहोंने बताया, “उसके सारे शरीर का रंग पीला हो गया था, सरकारी डाक्टरों ने अपने हाथ खड़े कर दिए तब हम उसे लेकर हिंडाल्को अस्पताल ले गए वहां पर तो इलाज के लिए पहले १० हजार रूपए ले लिए गए, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका, हाँ महज चंद रुपयों के लिए उन्होंने लाश ले जाने से हमें रोक दिया। ज्यादातर ग्रामीणों ने बताया कि इस परिस्थिति में भी जब हम सरकारी अस्पतालों में जा रहे हैं हमें बाहर बाजार से दवा लेने को कहा जा रहा है।“

कमारी डांड और उसके आस पास के लौटान, तीनपहरी, कोदरा डांड, चपरोखंता इत्यादि लगभग सभी गांवों में पेयजल का मुख्य स्रोत रिहंद बांध है, जब हम जैसे तैसे कम्हारी के निकट रिहंद के तट पर पहुंचते हैं तो देखते हैं महिलाओं ने साफ़ पानी के लिए तट से कुछ दूरी पर छोटे छोटे गड्ढे खन रखे हैं और उन गड्ढों का पानी डब्बों में भर रही हैं। पानी को साफ़ करने कि उनकी इस कोशिश की नाकामी पानी में उठ रही बदबू से ही जाहिर हो जाती है, वहां पर मौजूद गीता देवी , लीलावती , शिवलोचनी आदि पीले रंग के इस पानी को दिखाते हुए कहती हैं 'अगर हम यहां का पानी न पिए तो क्या करें? वो लोग चले गए जिनके नाते रिश्तेदार थे हम लोगों को यहीं जीना यही मरना है'। कम्हारी डांड के ग्राम सभा सदस्य रामचंद्र मौत के आंकडों के बारे में बताते हैं कि अब तक कुल २० जाने गयी हैं, जिनमे से ज्यादातर बच्चे हैं। जो लोग मरे हैं उनमे नवरंगी यादव की औरत-३५, लोचन, सोखा, श्यामनारायण की पांच साल की बेटी, घनश्याम का बेटा गूडू-१० वर्ष, रामदुलारे,वीरभुवन-५ वर्ष, सुरेन्द्र का एक बेटा और एक बेटी, नागेन्द्र की लड़की, अमरजीत की लड़की -४.५ वर्ष, गुलाब की लड़की -२ वर्ष -सीताराम की लड़की, बृजबिहारी की नातिन, विजय-३५ वर्ष, देवी की लड़की लोचन आदि शामिल हैं।

प्रभावित इलाके से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लगभग २२ किलोमीटर दूर है, ग्राम सभा में चिकित्सक की तैनाती की गयी है मगर वो कभी नहीं आता। ग्राम प्रधान विश्वनाथ कहते हैं, “कई बार बीमार आदमी रास्ते की दुर्गमता की वजह से ही दम तोड़ देता है, अधिकारियों ने गाँव वालों को पीने का पानी उबाल कर पीने की सलाह तो दे दी लेकिन नए चापाकल लगाये जाने को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया। हमारे गांव में जलस्तर काफी नीचे है इसलिए बोरिंग भी कामयाब नहीं होती।“

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड , केंद्रीय जल आयोग और अन्य एजेंसियों के वैज्ञानिकों ने जिस रिहंद के जल को पीने के अयोग्य करार दिया है उस पानी पर आज भी लाखों लोग निर्भर हैं, आश्चर्यजनक है कि संभावित खतरे की जानकारी के बावजूद पानी के फिल्ट्रेशन की कोई व्यवस्था नहीं की गयी और न ही प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर लगाम कसी गयी है, कनोडिया के कहर पर सभी ने चुप्पी साध रखी है वहीं बिजलीघरों की राख को लेकर कड़ी कार्यवाही न करने के पीछे बिजली की आम आदमी की जरुरत से जुड़ा सरकारी तर्क हमेशा से मौजूद है। स्थिति का अंदाजा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के उस आंकडे से लगाया जा सकता है जिसमे रिहंद के जल की जैविक गुणवत्ता को 'E' ग्रेड दिया गया है यानी कि गंभीर तौर पर प्रदूषित बताया गया है और उसके डाय़ावर्सिटी स्कोर को शून्य बताया गया है। रिहंद के पानी में फ्लोराइड , मरकरी , सल्फर समेत तमाम हानिकारक रसायन खतरनाक हद तक घुले हैं, जो आम आदमी की नसों में अनवरत घुल रहा है। कम्हारी डांड में हो रही मौतें शुरुआत हैं , अगर सरकार और उनके नुमाइंदे नहीं चेते तो कल रिहंद का पानी अनेक लोगों की मौत की वजह बनेगा और निस्संदेह वो मौतें सिर्फ मौतें नहीं सरकारी तंत्र और प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के द्वारा की गयी जनहत्याएं होंगी....

-इस रिपोर्ट के सम्बंध में अतिरिक्त जानकारी के लिए संपर्क करें-

आवेश तिवारी
awesh29@gmail.com
09838346828

 

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