रहट सिंचाई तकनीक के नाम से शायद अब अधिकांश लोग वाकिफ भी नहीं रहे होंगे। इस सिंचाई तकनीक से किसान जहां पर्यावरण का संरक्षण करते थे वहीं बिजली और डीजल की बचत भी होती थी। वर्तमान में बदलती तकनीक और विकास की इस रफ्तार में किसानों को भी पुरानी परंपराओं को बदलने के लिए मजबूर कर दिया है। अति सरल और किफायती तकनीक को इस्तेमाल करने में किसान अब बोझ समझने लगे हैं।
दो बैलों के साथ इस सिस्टम को परंपरागत कुएं में लगाया जाता था और चेन में लगे डिब्बों के जरिये पानी खेतों तक पहुंचाया जाता था। इस सिस्टम में किसी तरह की बिजली अथवा डीजल का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। महज बैलों को चलाने के लिए एक व्यक्ति की जरूरत रहती थी। किसानों की बात पर यकीन करें तो कुछ बैल इस तकनीक के लिए इतने फिट रहते थे कि वे बिना किसी व्यक्ति के इस सिस्टम को चलाते रहते थे। इससे बिजली की भी बचत रहती थी और साथ में पर्यावरण का भी संरक्षण होता था। बिना धुएं और बिना किसी ईधन के इस सिस्टम को चलाया जाता था।
किसानों के मुताबिक इस सिस्टम में मैनुअल पावर का अधिक इस्तेमाल होता था। अधिक लोगों की जरुरत के चलते इस सिस्टम से किसानों को तौबा करनी पड़ी। बैलों को हांकने के लिए ही दो लोगों की जरुरत रहती थी। बिजली सस्ती और सुगमता से मिलने के कारण भी लोगों ने इस सिस्टम को बंद करके इसकी जगह बिजली की मोटर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। कुछ अरसे तक डीजल के ईजन का इस्तेमाल होता था। डीजल महंगा होने के कारण अधिकांश लोग अब बिजली से ही सिंचाई का काम चला रहे हैं।
रहट सिंचाई तकनीक के अस्तित्व को मिटाने में कहीं न कहीं तेजी से हो रही भू-जलस्तर में कमी भी प्रमुख कारण है। ऊना सदर व हरोली के कुछ हिस्से में ही इस सिस्टम का उपयोग किया जाता रहा है, लेकिन कई गांवों में कुओं का जलस्तर गिरने के कारण भी इस सिस्टम से किसानों को मजबूरी में पीछे हटना पड़ा।
कोटला कलां के 75 वर्षीय किसान रामचंद का कहना है कि उनके पिता ने सात सौ रुपये में यह सिस्टम खरीदा था। कई साल तक सब्जी की पैदावार करके कर्जा पूरा चुकाया था। जब कमाई का समय आया तो उस समय डीजल इंजन का जमाना आ गया। लेकिन उन्होंने करीब एक दशक इसी सिस्टम का इस्तेमाल किया। डिब्बों के टूटने और तकनीकी खराबी के कारण इस सिस्टम को उन्होंने वर्ष 2005 में बंद कर दिया।
मलाहत के किसान किशन चंद का कहना है कि सरकार सिस्टम के संरक्षण के लिए सहयोग करती तो आज रहट सिंचाई तकनीक का विस्तार संभव था। रहट सिंचाई तकनीक से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं था। बिना धुएं और ईधन के चलने वाला यह सिस्टम पर्यावरण मित्र था। वर्तमान में बिजली की मोटरें एक मिनट में सैकड़ों लीटर पानी डिस्चार्ज करती हैं लेकिन रहट सिस्टम से पानी जरुरत के मुताबिक इस्तेमाल किया जाता था। वहीं बिजली की भी बचत हो सकती थी।
उधर, उपायुक्त केआर भारती का कहना है कि रहट सिस्टम च्च्छा था, लेकिन इस तकनीक को विकसित करने की जरूरत को महसूस नहीं किया गया। अब बिजली संकट और दूसरी समस्याओं के कारण इस सिस्टम की कमी महसूस की जाने लगी है। इससे जहां जल बचाया जा सकता है वहीं पर्यावरण संरक्षण और बिजली की बचत के इस साधन को फिर से विकसित करने के लिए सामूहिक प्रयास होने चाहिए। इसके लिए किसानों को पहल करनी होगी।
-क्या है रहट सिंचाई तकनीक?
दो बैलों के साथ इस सिस्टम को परंपरागत कुएं में लगाया जाता था और चेन में लगे डिब्बों के जरिये पानी खेतों तक पहुंचाया जाता था। इस सिस्टम में किसी तरह की बिजली अथवा डीजल का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। महज बैलों को चलाने के लिए एक व्यक्ति की जरूरत रहती थी। किसानों की बात पर यकीन करें तो कुछ बैल इस तकनीक के लिए इतने फिट रहते थे कि वे बिना किसी व्यक्ति के इस सिस्टम को चलाते रहते थे। इससे बिजली की भी बचत रहती थी और साथ में पर्यावरण का भी संरक्षण होता था। बिना धुएं और बिना किसी ईधन के इस सिस्टम को चलाया जाता था।
कैसे लुप्त हो गई परंपरा
किसानों के मुताबिक इस सिस्टम में मैनुअल पावर का अधिक इस्तेमाल होता था। अधिक लोगों की जरुरत के चलते इस सिस्टम से किसानों को तौबा करनी पड़ी। बैलों को हांकने के लिए ही दो लोगों की जरुरत रहती थी। बिजली सस्ती और सुगमता से मिलने के कारण भी लोगों ने इस सिस्टम को बंद करके इसकी जगह बिजली की मोटर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। कुछ अरसे तक डीजल के ईजन का इस्तेमाल होता था। डीजल महंगा होने के कारण अधिकांश लोग अब बिजली से ही सिंचाई का काम चला रहे हैं।
जलस्तर में गिरावट
रहट सिंचाई तकनीक के अस्तित्व को मिटाने में कहीं न कहीं तेजी से हो रही भू-जलस्तर में कमी भी प्रमुख कारण है। ऊना सदर व हरोली के कुछ हिस्से में ही इस सिस्टम का उपयोग किया जाता रहा है, लेकिन कई गांवों में कुओं का जलस्तर गिरने के कारण भी इस सिस्टम से किसानों को मजबूरी में पीछे हटना पड़ा।
क्या कहते हैं किसान
कोटला कलां के 75 वर्षीय किसान रामचंद का कहना है कि उनके पिता ने सात सौ रुपये में यह सिस्टम खरीदा था। कई साल तक सब्जी की पैदावार करके कर्जा पूरा चुकाया था। जब कमाई का समय आया तो उस समय डीजल इंजन का जमाना आ गया। लेकिन उन्होंने करीब एक दशक इसी सिस्टम का इस्तेमाल किया। डिब्बों के टूटने और तकनीकी खराबी के कारण इस सिस्टम को उन्होंने वर्ष 2005 में बंद कर दिया।
मलाहत के किसान किशन चंद का कहना है कि सरकार सिस्टम के संरक्षण के लिए सहयोग करती तो आज रहट सिंचाई तकनीक का विस्तार संभव था। रहट सिंचाई तकनीक से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं था। बिना धुएं और ईधन के चलने वाला यह सिस्टम पर्यावरण मित्र था। वर्तमान में बिजली की मोटरें एक मिनट में सैकड़ों लीटर पानी डिस्चार्ज करती हैं लेकिन रहट सिस्टम से पानी जरुरत के मुताबिक इस्तेमाल किया जाता था। वहीं बिजली की भी बचत हो सकती थी।
उधर, उपायुक्त केआर भारती का कहना है कि रहट सिस्टम च्च्छा था, लेकिन इस तकनीक को विकसित करने की जरूरत को महसूस नहीं किया गया। अब बिजली संकट और दूसरी समस्याओं के कारण इस सिस्टम की कमी महसूस की जाने लगी है। इससे जहां जल बचाया जा सकता है वहीं पर्यावरण संरक्षण और बिजली की बचत के इस साधन को फिर से विकसित करने के लिए सामूहिक प्रयास होने चाहिए। इसके लिए किसानों को पहल करनी होगी।
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