रहिमन पानी बिक रहा सौदागर के हाथ

प्रस्तावना


पानी का निजीकरण देश में एक चिंता का विषय बनता जा रहा है।


जब भारत में बिजली क्षेत्र को निजीकरण के लिए खोला गया था, तब कोई बहस या चर्चा नहीं हुई थी। देश के सामने इसे एक निर्विवाद तथ्य, संपन्न कार्य की तरह परोसा गया था। बड़े पैमाने पर बिजली गुल होने का डर दिखाकर निजीकरण को आगे बढ़ाया गया। नतीजा सबके सामने है। सरकारी तौर पर भी कबुला जा चुका है कि सुधार औंधे मुंह गिरे हैं और राष्ट्र को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। और अब पानी के क्षेत्र में ऐसे निजीकरण की राह पकड़ी जा रही है। विश्व बैंक-आईएमएफ द्वारा थोपे गए ढाँचागत समायोजन कार्यक्रम (जिसे एलपीजी, उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण भी कहते हैं) के तहत 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था क्या खुली, एक के बाद दूसरे क्षेत्र निजीकरण के लिए खोले जाने लगे। दरअसल यही सारी दुनिया में हो रहा है। जल क्षेत्र निजीकरण के सबसे ताजे निशाने के रूप में उभरा है। वैसे दक्षिण अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया में पानी का बड़े पैमाने पर निजीकरण एक दशक से चल रहा है।

जब भारत में बिजली क्षेत्र को निजीकरण के लिए खोला गया था, तब कोई बहस या चर्चा नहीं हुई थी। देश के सामने इसे एक निर्विवाद तथ्य, संपन्न कार्य की तरह परोसा गया था। बड़े पैमाने पर बिजली गुल होने का डर दिखाकर निजीकरण को आगे बढ़ाया गया। नतीजा सबके सामने है। सरकारी तौर पर भी कबुला जा चुका है कि सुधार औंधे मुंह गिरे हैं और राष्ट्र को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। और अब पानी के क्षेत्र में ऐसे निजीकरण की राह पकड़ी जा रही है। हम महसूस करते हैं कि इस पर चुप बैठना मुनासिब नहीं है। किसी भी बड़े निर्णय के पहले इस मुद्दे पर व्यापक आम बहस होना चाहिए।

यह पुस्तिका इसी उद्देश्य से तैयार की गई है। इस पुस्तिका में विभिन्न स्रोतों से मिली सूचनाएं इकट्ठी करके भारतीय संदर्भ में उनकी व्याख्या की गई है। हम इन बहुत से स्रोतों के शुक्रगुजार हैं। इन सभी का नाम यहां नहीं दिया जा सका है।

हम उन दोस्तों और सहकर्मियों के भी आभारी हैं, जिन्होंने सूचनाएं जुटाने में मदद की, मसौदे पर अपनी राय रखी और साज-सज्जा में हाथ बंटाया। विशेषकर क्लिफ्टन, जयश्री जनार्दन, माधुरी, नंदिनी ओझा, राकेश दीवान, रेहमत, सुकुमार, शशांक, हिमांशु ठक्कर व मंथन के सहकर्मियों स्वाति शेषाद्रि और मुकेश जाट का मैं शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। मैं कोचाबांबा के टॉम क्रूज का विशेष रूप से आभारी हूं, जिन्होंने अपने कोचाबांबा (बोलीविया) के पानीयुद्ध के शानदार फोटो के इस्तेमाल की इजाज़त जी, साथ ही अमन नम्र का जिन्होंने छत्तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के निजीकरण से संबंधित फोटो मुहैया कराया।

पुस्तिका का हिंदी अनुवाद ईश्वर सिंह दोस्त ने किया है। उम्मीद है कि हिंदी में उपलब्ध हो जाने से इस पूरी बहस में नए लोग जुड़ेगे।

सहयोग इन सबका व कई अन्य लोगों का रहा लेकिन निश्चित ही, किसी भी अनजानी चूक के लिए ज़िम्मेदारी मेरी ही है।

इस दस्तावेज़ के पीछे हमारा इरादा भारत में पानी के निजीकरण के मुद्दे पर एक सोच खड़ी करना और कुछ बुनियादी आंकड़े उपलब्ध कराना है। नए-नए तथ्य व आंकड़े मिलने पर इस दस्तावेज़ में जुड़ते जाएंगे।

हमें उम्मीद है कि यह पुस्तिका इस मुद्दे पर जानकारी बढ़ाने और एक बहस खड़ी करने में मददगार साबित होगी।

दिसंबर 2003
श्रीपाद धर्माधिकारी
मंथन अध्ययन केंद्र, बड़वानी (म.प्र.)

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