रेणुका झील के कछुओं का अस्तित्व खतरे में

रेणुका झील के कछुएं अब संकट में
रेणुका झील के कछुएं अब संकट में

संगड़ाह। देश के उच्च श्रेणी वैट लैंड क्षेत्रों में शामिल प्रदेश की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील श्री रेणुका जी में पाए जाने वाले दुनिया के दुर्लभ श्रेणी के कछुओं व अन्य जल जीवों के संरक्षण के प्रयास न होने से इनका अस्तित्व खतरे में है। विशेषज्ञों के मुताबिक यहां पाए जाने वाले निलसोनिया ह्यूरम, रिवर टैरापिन व पिकॉक सोफ्ट शिल्ड आदि लुप्तप्रायः कछुओं की वंश वृद्धि रुक चुकी है। दुनिया के इंडेंजर्ड अथवा वन्य प्राणी शेड्यूल-एक की श्रेणी में शामिल यहां पाए जाने वाले लुप्तप्रायः कछुओं के छोटे बच्चों का झील में न दिखना इस बात का सबूत है कि इनकी वंश वृद्धि रुक चुकी है। वाडिया इंस्टीट्यूट के भू-वैज्ञानिकों द्वारा करीब 15 हजार वर्ष पुरानी मापी गई 30 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली रेणुका झील में दुर्लभ महाशीर प्रजाति की मछलियों के साथ कई रेप्टाइल संकट में हैं।

रेणुकाजी झील में पाए जाने वाले निलसोनिया ह्यूरम, रिवर, टैरापिन व पिकॉक साफ्ट शिल्ड, कछुओं की वंश वृद्धि में मुख्य बाधा यहां पर्यटकों को सुविधा देने के लिए बनी पक्की सड़क, सड़क के बाहर लगे वन विहार के जंगल व झील के किनारे बने भवन आदि समझे जा रहे हैं। इन दिनों कछुओं का स्पॉनिंग पीरियड शुरू हो चुका है तथा मिट्टी में बिल बनाकर एक मादा कछुआ एक से 20 अंडे देगी, जिनकी हैंचिग अथवा सेंने की प्रक्रिया दो से चार माह में पूरी होने पर बच्चे पैदा होंगे। कछुओं को अपना बिल बनाने के लिए मुलायम कच्ची मिट्टी चाहिए, जबकि झील के पक्के परिक्रमा मार्ग व वन विहार के इन्कलोजर के चलते कछुओं को उपयुक्त जगह नहीं मिल रही है। झील के चारों ओर बने कृत्रिम कंकरीट के ढांचे के अलावा झील में उग रहे जातीय पौधे भी पानी की ऑक्सीजन सोख इसे दुर्लभ मछलियों व कछुओं के लिए विषैला बना देते हैं।

सितंबर, 2010 में झील में रैप्टाइज जीवों पर अध्ययन व खोज कर चुके जेडएसआई कोलकाता के वैज्ञानिक डॉ. वी.सी. मूर्ति झील से अति दुर्लभ कछुए संबंधी रिपोर्ट वन्य प्राणी विभाग को सौंप चुके हैं। वर्ष 2005 में यहां पहली बार वैज्ञानिकों द्वारा कछुओं पर स्टडी की गई। दुर्लभ कछुए इन दिनों रात के समय झील के बाहर बिल बनाने को जगह ढूंढते फिर रहे हैं। वन्य प्राणी विभाग के डीएफओ सुशील ने बताया कि रेणुका जी में कछुए व अन्य जीव-जंतुओं की सुरक्षा व नेस्टिंग प्लेस के प्रति विभाग सतर्क है। उन्होंने कहा कि वन्य प्राणी विहार के नए मास्टर प्लान में भी दुर्लभ जीवों का ध्यान रखा गया है। रेणुकाजी विकास बोर्ड के सीईओ डीआर शर्मा ने बताया कि झील की डी-सिलिटंग के दौरान झील में मौजूद जीवों के प्राकृतिक आवासों का ध्यान रखा जाएगा।
 

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