रेणुका बांध से दिल्ली द्वारा पानी की मांग कितनी जायज?


दिल्ली सरकार हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में 148 मीटर ऊंचे विवादास्पद बांध को बढ़ावा दे रही है एवं वित्तपोषण कर रही है। यमुना नदी की सहायक गिरी नदी पर यह बांध मूलतः दिल्ली में जल आपूर्ति के लिए बनने वाला है। रुपये 3900 करोड़ (सन 2006 के कीमत स्तर पर) की लागत से बनने वाले इस बांध के लिए 90 फीसदी वित्तपोषण केन्द्र सरकार द्वारा मिलने वाले रकम से किया जाना है। वास्तव में, दिल्ली सरकार रेणुका बांध से संबंधित भूमि अधिग्रहण एवं विस्थापन के लिए हिमाचल प्रदेश पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड (एचपीपीसीएल) को रुपये 215 करोड़ पहले ही दे चुकी है, जिससे दिल्ली सरकार 9 गैर मॉनसून महीनों में 23 घन मीटर प्रति सेकंड पानी मिलने की उम्मीद करती है। दिल्ली के कुछ जागरूक नागरिक एवं समूह ने परियोजना एवं दिल्ली की स्थिति के अध्ययन के बाद दिल्ली सरकार के समक्ष कुछ विचारणीय मुद्दे पेश किये हैं।

परिहार्य क्षतिः हाल के एसोचैम अध्ययन सहित तमाम अध्ययनों एवं दिल्ली जल बोर्ड के वक्तव्य के अनुसार, दिल्ली में संचरण एवं वितरण के दौरान टाली जा सकने योग्य पानी की क्षति 35-40 फीसदी होती है, जिसे यहां तक कि विकासशील देशों के मानक के अनुसार भी यह 10-15 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। 23 फीसदी जल आपूर्ति कनेक्शन बगैर मीटर के हैं। दिल्ली जल बोर्ड के ज्यादातर थोक जल मीटर कई सालों से कार्यरत नहीं हैं, इसलिए किस जगह कितनी क्षति हो रही है इसका विश्लेषण संभव नहीं है। ऐसी स्थिति एक दशक से ज्यादा समय से बनी हुई है, लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। दिल्ली जल बोर्ड कॉलोनी स्तर के प्रवेश मार्गों सहित पानी के विभिन्न प्रवेश मार्गों पर पानी के थोक मीटर क्यों स्थापित नहीं कर सकी है? दिल्ली जल बोर्ड क्षति को कम क्यों नहीं कर सकी है? यदि दिल्ली पानी की क्षति को 40 फीसदी से घटाकर तकनीकी रूप से संभावित 10 फीसदी तक कर सके तो, बहुत ही कम लागतों और असरों पर बचने वाले पानी की मात्रा लगभग उतनी ही होगी जितना कि रेणुका बांध से मिलना प्रस्तावित है। इसी तरह, दिल्ली पानी के टाले जा सकने वाले दुरूपयोग को हतोत्साहित करने के लिए मांग पक्ष प्रबंधन के अन्य विकल्पों को शुरू क्यों नहीं कर रही है? यहां यह ध्यान देना भी उतना ही अहम है कि, वर्तमान में दिल्ली में पानी का बहुत ही असमान तरीके से इस्तेमाल हो रहा है। जहां बहुत बड़ी जनसंख्या अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करती है, वहीं ऐसे टापू भी हैं जो बहुत अपव्ययी तरीके से पानी का इस्तेमाल करते हैं। सालों से दिल्ली में ये जानी हुई बात है और दिल्ली सरकार इस स्थिति में बहुत ही कम सुधार कर पायी है। बहुत जल्द ही, हमें महसूस करने की जरूरत है कि जब स्थानीय लोगों द्वारा पानी की प्रतिस्पर्धी और जायज मांग होती है तो दिल्ली दूर-दराज के क्षेत्रों से अपने लिए ज्यादा पानी की मांग नहीं कर सकती।

गैर आवश्यक गतिविधियां: दिल्ली मुख्यतः लम्बी दूरियों से आयात किये जाने वाले पानी पर निर्भर है। इसके बावजूद दिल्ली में लाइसेंस प्राप्त पानी के बॉटलिंग प्लांट (दिल्ली जल बोर्ड एवं रेलवे के प्लांट सहित), गोल्फ कोर्स, वाटर पार्क आदि सहित बहुत सारी टाले जा सकने योग्य जल आधारित गैर जरूरी गतिविधियों की अनुमति जारी है। दिल्ली लम्बी दूरी से पानी लाने को कैसे जायज ठहरा सकती है, जबकि ऐसे गैर-जरूरी पानी की खपत वाली गतिविधियों के चलते रहने की अनुमति है?

वर्षा जल संरक्षण: इसके लिए यहां बात तो बहुत की जाती है और हर साल परंपरगत रूप से विज्ञापनों पर काफी रकम खर्च की जाती है, लेकिन दिल्ली में वर्षा जल संरक्षण को हासिल करने में जमीनी स्तर पर इतनी कम प्रगति क्यों है? सरकारी (केन्द्र, राज्य एवं शहरी प्रशासन) भवनों, दूतावासों, व्यावसायिक भवनों, कार्यालयों, मॉल, मल्टीप्लेक्सों, कॉलेजों, स्कूलों, संस्थागत भवनों, सड़क के सतहों, फ्लाईओवरों, एवं पार्कों व अन्य ऐसे खुले स्थलों में किस अनुपात में वर्षा जल संरक्षण व्यवस्थाओं की स्थापना की गई है? इन सभी से दो साल की अवधि में इसे हासिल करने और असफल रहने की स्थिति में दंडात्मक उपाय करने की बात क्यों नहीं कही जानी चाहिए? क्या दूर दराज के क्षेत्रों से अतिरिक्त पानी की मांग करने से पहले, दिल्ली को अपने तालाबों, बावलियों, झीलों आदि स्थानीय जल व्यवस्थाओं की सुरक्षा नहीं करनी चाहिए? दिल्ली अपने स्थानीय जल व्यवस्थाओं को व्यवस्थित रूप से साल दर साल नष्ट क्यों होने दे रही है? मुरादनगर में स्थानीय किसानों द्वारा गंग नहर से दिल्ली आने वाले पानी पर नियंत्रण कर लिये जाने की हाल की घटना, अतीत में हुई घटनाओं की श्रृंखला की कडी हैं, जहां अपस्ट्रीम की मांगों ने दिल्ली के पानी के उपयोग को बंधक बना लिया। ऐसी घटनाएं दिल्ली को अपनी सीमाओं के अंदर जल प्रबंधन करने पर जोर देती हैं, और मोटे तौर पर वर्षा जल संरक्षण सहित स्थानीय जल स्रोतों पर निर्भर होना है।

भूजल का अति इस्तेमाल एवं रिचार्जः दिल्ली हर साल करीब 480 मिलियन घन मीटर (एमजीडी) भूजल इस्तेमाल करती है (सन 2004 के अनुसार, उसके बाद बढ़ा होगा), जो कि सालाना रिचार्ज क्षमता 280 एमजीडी का करीब 170 फीसदी है। भूजल इस्तेमाल के आंकड़े अनुदार अनुमान हो सकते हैं। जिस गति से हम स्थानीय जल व्यवस्थाओं, रिजों, बाढ़ मैदानों एवं अन्य रिचार्ज व्यवस्थाओं को नष्ट कर रहे हैं, उन्हें देखते हुए वास्तविक रिचार्ज क्षमता कम होने की संभावना है। जबकि, बाढ़ मैदानों, रिज, एवं व्यापक कंक्रीट निर्मित क्षेत्रों को देखते हुए, काफी ज्यादा रिचार्ज क्षमता बची हुई है और इस क्षमता को हासिल करने के लिए दिल्ली सरकार बहुत कम प्रभावी कार्रवाई कर रही है। अपनी इस व्यापक क्षमता को हासिल करने से पहले, दिल्ली द्वारा दूर-दराज के स्रोतों से अतिरिक्त पानी की मांग करना क्या जायज है जब वास्तव में रेणुका जैसे बांधो से प्रस्तावित जल के मुकाबले भूजल भंडारणों में ज्यादा भंडारण क्षमता उपलब्ध हैं?

जल शोधन एवं पुनर्पयोगः दिल्ली वर्तमान में कम से कम 800 एमजीडी अपशिष्ट जल उत्पन्न कर रहा है (दिल्ली जल बोर्ड 800 एमजीडी जल आपूर्ति का दावा करती है एवं अतिरिक्त 200 एमजीडी भूजल उपयोग होता है, मानक अनुमान के अनुसार, 80 फीसदी जल सीवर के तौर पर वापस होता है)। लेकिन दिल्ली के सीवेज शोधन संयंत्रों की डिजाइन क्षमता करीब 520 एमजीडी है, वास्तव में करीब 380 एमजीडी का शोधन हो रहा है। (दिल्ली जल बोर्ड दावा कर रही है कि वह 100 एमजीडी शोधित सीवेज प्रगति पॉवर प्रोजेक्ट, एनडीपीएल, जिंदल, एमसीडी एवं अन्य को बेच रही है।) इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली में डिजाइन के आधार पर स्वयं द्वारा उत्पन्न होने वाले सीवेज को शोधित करने की क्षमता नहीं है, और अशोधित सीवेज सीधे यमुना में प्रवाहित होता है, जो कि जल प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1974 का पूर्णतया उल्लंघन है। यदि दिल्ली को ज्यादा शुद्ध जल मिलता है तो, वह और ज्यादा सीवेज उत्पन्न करेगी, जिससे दिल्ली में और दिल्ली के आगे यमुना नदी की स्थिति और भी बदतर हो जाएगी। यह कानून एवं प्रधानमंत्री के नेतृत्व में राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के घोषित उद्देश्य का उल्लंघन होगा। क्या अपनी स्थिति को ठीक करने के लिए दिल्ली से वर्तमान एवं भविष्य में उत्पन्न होने वाले सीवेज के लिए समुचित क्षमता के संचालित सीवेज शोधन संयंत्रों के स्थापित करने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए? क्या सभी उद्योगों, होटलों, कार्यालय परिसरों, मॉल, मल्टीप्लेक्सों एवं ऐसी इकाईयों से अगले दो सालों में अपने परिसरों में सीवेज शोधन संयंत्र स्थापित करने एवं शोधित जल के हिस्से को पुनर्पयोग करने के लिए, और समय सीमा पूर्ण होने पर हासिल न होने पर दंडात्मक उपाय करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए? दिल्ली में सैकड़ों पार्कों की सिंचाई साफ पानी से किया जाना क्यों जारी है? इन सबको हासिल किये बगैर दिल्ली द्वारा बाहर से ज्यादा साफ जल की मांग क्यों होनी चाहिए?

रेणुका बांध के कारण पर्यावरणीय एवं सामाजिक लागत/विनाश से संबंधित मुद्देः लगता है कि दिल्ली को दूर-दराज के स्रोतों से पानी मांगने की आदत हो गई है। अतीत में इस प्रक्रिया में दिल्ली ने जिन स्रोतों को इस्तेमाल कर लिया है उनमें- भाखड़ा बांध (सतलज नदी), हथिनीकुंड बराज एवं पश्चिमी यमुना नहर (यमुना नदी), रामगंगा बांध (रामगंगा नदी), टिहरी बांध (भागीरथी - गंगा नदी) शामिल हैं। इन परियोजनाओं की वजह से हुए व्यापक विस्थापन एवं पर्यावरणीय विनाश लोगों के मन में ताजा है, प्रभावितों की संख्या बढ़ रही है, उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है बल्कि सिर्फ कीमत अदा करनी पड़ रही है। दिल्ली को ऐसे और ज्यादा विस्थापन और विनाश की मांग करने का क्या अधिकार है?

अब दिल्ली सरकार कह रही है कि वह और ज्यादा पानी खरीदना चाहती है और उसका दावा है कि हिमाचल रेणुका बांध बनाने के माध्यम से पानी बेचने का इच्छुक है। समस्या यह है कि, वास्तविकता थोड़ी जटिल है एवं किसी परिणामों की परवाह किये बगैर दूर-दराज के बांधों से पानी का खरीददार होना, दिल्ली के शासकों का यह दृष्टिकोण यदि सही है तो, यह बहुत चैंकाने वाला है। 4980 लाख घन मीटर उपयोगी जल भंडारण क्षमता वाले रेणुका बांध से 34 गांवों के कम से कम 6000 लोग विस्थापित होंगे, 1600 हेक्टेअर जमीन डूब में आयेगी, जिनमें से ज्यादातर अति उपजाऊ जमीन या घने जैवविविवधता वाले जंगल हैं, जो कि कई लाख पेड़ों को काटते हुए, इस तरह विशाल कार्बन भंडार को नष्ट करते हुए और व्यापक जलवायु परिवर्तन असर लाते हुए (जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना एवं राष्ट्रीय हरित मिशन के घोषित उद्देश्यों का पूर्णतया उल्लंघन करते हुए), नदियों आदि का विनाश करते हुए किया जाना है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि, इससे जबरदस्त विनाश होगा, जिसे टाला जाना संभव प्रतीत होता है। इसके अलावा, रेणुका बांध के पानी और बिजली के बंटवारे के लिए अंतर राज्य सहमति के कानूनी दस्तावेज का अभाव, ऊपरी यमुना नदी घाटी के राज्यों (हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान) से लाभों में भागीदारी की मांग, व्यापक आर्थिक लागत, डाउनस्ट्रीम में मौजूदा पनबिजली परियोजनाओं व पानी के अन्य इस्तेमाल पर गंभीर असर, अपर्याप्त जनसुनवाई और पर्यावरणीय हानि का अपर्याप्त आकलन आदि सहित बहुत सारे अन्य मुद्दे हैं। संक्षेप में कहा जाय तो, दिल्ली द्वारा अपने इस्तेमाल के लिए रेणुका बांध निर्माण की मांग करने एवं उसके लिए सहयोग करने की कोई तर्कसंगत वजह शायद नही हो सकती है।

उपरोक्त मुद्दों को ध्यान में रखते हुए नागरिकों एवं समूहों ने दिल्ली सरकार से आग्रह किया है कि इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें एवं स्थिति की स्वतंत्र समीक्षा करें। दिल्ली को अपने पानी को अपने उपलब्ध दायरे में प्रबंध करने के मामले में पूरे देश के सामने मापदंड पेश करना चाहिए, न कि दूर-दराज के क्षेत्रों से पानी की योजना बनाना व छीनना चाहिए। इस तरह दिल्ली द्वारा रेणुकाजी में गिरी नदी पर बांध परियोजना से पानी लेने की योजना को निरस्त करके देश के अन्य शहरों के लिए अनुकरणीय उदाहरण पेश करने का मौका है

(ज्ञापन को अनुमोदित करने वालों में, वंदना शिवा, रिसर्च फाउंडेशन फॉर साइंस टेक्नॉलाजी एंड इकोलॉजी; मनोज मिश्र, यमुना जिये अभियान; राजेन्द्र सिंह, राष्ट्रीय जल बिरादरी; विजयन एम. जे., दिल्ली फोरम; गोपाल कृष्ण, वाटर वाच एलाएंस; विमल भाई, माटू जनसंगठन; गुमान सिंह, हिमालय नीति अभियान; रजनी कांत मुद्गल, साउथ एशियन डायलॉग ऑन इकोलॉजिकल डेमोक्रेसी; डा. सुधीरेन्द्र शर्मा, दि इकोलाजिकल फाउंडेशन; आर. श्रीधर, इनविरॉनिक्स ट्रस्ट; ममता दास, एनएफएफपीएफडब्ल्यू; विक्रम सोनी, नेचुरल हेरिटेज फर्स्ट; रिचा मिनोचा, जन अभियान संस्था; नागराज अदवे, दिल्ली प्लेटफॉर्म; सुभाष गताडे, न्यू सोशलिस्ट इनिशियेटिव; हिमांशु ठक्कर, सैण्ड्रप; रामास्वामी अय्यर, पूर्व सचिव, जल संसाधन मंत्रालय; परितोश त्यागी, पूर्व चेयरमैन, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड; संजय काक, फिल्मकार; अमिता बाविस्कर, इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ; सुब्रत कुमार साहू, फिल्मकार एवं पत्रकार; तारिणी मनचन्दा, फिल्मकार; रिचर्ड महापात्र; अरूण बिदानी, जल संवाद; हिमांशु उपाध्याय, शोध छात्र; सवेता आनन्द; प्रवीन कुशवाहा; बिपिन चन्द्र, दिल्ली फोरम; रीता कुमारी; नीरज दोषी; स्वाति जैन दोषी; सुधा वासन, दिल्ली विश्वविद्यालय; संजय कुमार; वर्षा मेहता; अफसर जाफरी, फोकस; टिन्नी शाहनी; अरविन्द मलिक; सौम्य दत्ता प्रमुख हैं।)

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