रेडिएशन से सिहर रही प्रकृति

तकनीकी प्रगति ने जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन मानव ने जब-जब तकनीक को अपने निजी स्वार्थों और अति-लाभ के समीकरणों से जोड़कर देखा और उपयोग में लाना शुरू किया, तब-तब उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। रेडिएशन से केवल मानव जीवन ही नहीं, बल्कि पूरी प्रकृति ही साइड-इफेक्ट झेलती दिखाई दे रही है। मोबाइल रेडिएशन के चलते गोरैया, तोता, मैना, कौआ, गाय, कुत्ते, उल्लू तथा उच्च हिमालयी पक्षियों की एक बहुत बड़ी जमात खतरे में है।

रेडिएशन ने पशु-पक्षियों का जीवन बहुत कठिन कर दिया है, यह मानव के लिए और भी ज्यादा खतरनाक है। भारत सरकार की मौजूदा गाइडलाइन ऐसी है जैसे कि किसी इंसान को रोज 19 मिनट तक माइक्रोवेव में भूनें और कहें कि यह सुरक्षित है। नेहा कुमार बताती है कि रेडिएशन के चलते सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, नींद न आना, मेमोरी प्रॉब्लम घुटनों का दर्द, हार्मोनल इम्बैलेंस, दिल के संबंधित बीमारियाँ तथा अंत में कैसर तक होने की आशंका भी पाई। पिछले कुछ दशकों में मोबाइल तकनीक तेजी से प्रचलित हुई है। भारत में बहुत-सी मोबाइल कंपनियां उपभोक्ताओं को अच्छा नेटवर्क देने के लिए होड़ में लगी हैं। सबसे बेहतर नेटवर्क के लिए इन कंपनियों ने शहरों और गांवों को टावर्स से पाट दिया है,बिना इस बात की चिंता किए कि उनके टावर्स से निकली किरणें मानव, प्रकृति और पशु-पक्षियों को किस तरह का नुकसान पहुंचाएगी। अपना खर्च कम करने के लिए कंपनियों ने बहुत ज्यादा पावर के टावर लगा रखे हैं, जबकि होना यह चाहिए कि कम पावर वाले टावर थोड़ी-थोड़ी दूर लगाए जाते जिससे कम से कम नुकसान हो।

अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था, ‘मधुमक्खियां मानव जीवन के लिए इतनी आवश्यक हैं कि यदि किसी कारण से धरती से मधुमक्खियों का जीवन समाप्त होता है 4 वर्ष के भीतर ही मानव जीवन भी समाप्त हो जाएगा।’ उनके कथन के वर्षों बाद मोबाइल टावर्स से निकली इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन किरणें न केवल मानव जीवन अपितु संपूर्ण प्रकृति पर व्यापक दुष्प्रभाव डाल रही है। यह बात जगजाहिर है कि मधुमक्खियां तथा उन जैसी अन्य प्रजातियों के कारण फसलों का परागीकरण होता है। देशभर में हुए कई शोधों में यह बात सामने आई है कि मोबाइल टावर से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन के कारण मधुमक्खियों में कॉलोनी कोलेप्स डिसॉर्डर पैदा हो रहा है, जिससे उन्हें उड़ने में दिक्कत होती है और वे अपना रास्ता भटक जाती है। चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग की प्रोफेसर नीलम कुमार का कहना है कि मधुमक्खियों पर रेडिएशन तीन प्रकार से दुष्प्रभाव डाल रहा-

1. रेडिएशन के चलते मधुमक्खियां रास्ता भूल रही है।
2. रानी मधुमक्खी के अंडे देने की क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है।
3. नर मधुमक्खी जिसे ड्रोन कहते हैं,उनके सीमेन में बायोकेमिकल बदलाव आ रहा है।

नीलम बताती हैं कि यह बात सही है कि मधुमक्खियों के अलावा भी कई पक्षी और कीट हैं, जो परागीकरण में हिस्सा लेते हैं, लेकिन वे संख्या में बहुत कम है। ऐसे में मधुमक्खियों के नष्ट होने पर मानव जीवन पर बड़े पैमाने पर बुरा असर पड़ेगा। इसी तरह प्रकृति में स्थित सभी प्राणियों पर यह अपना बुरा असर छोड़ रहा है- कहीं कम है तो कहीं ज्यादा।

डीएवी विश्वविद्यालय, जालंधर के वाइस चांसलर डॉ. ए.के. कोहली का कहना है, ‘मैं नहीं मानता कि रेडिएशन के चलते मानव जीवन पर बहुत ज्यादा असर पड़ रहा है। मैं यह स्वीकार करता हूं कि इसका बुरा असर है, पर भारत सरकार इसे लेकर पूरी तरह से सजग हो गई है। गोरैया की कमी पर हंगामा मचाया जा रहा है, पर यह मात्र भारत में ही नहीं है, यह तो पूरी दुनिया में हो रहा है। गोरैया के खत्म होने के और भी कारण हैं या हो सकते हैं। कई बार बड़े पक्षी ही गोरैया को खा जाते हैं। जब हम बात मधुमक्खियों की करेंगे तो मैं मानता हूं कि इन पर बुरा असर पड़ा है, पर इससे पूरी तरह से फसल नष्ट हो जाएगी मैं कतई नहीं मानता। मानव जीवन के खत्म होने का बयान तो बचकाना-सा लगता है। मैंने भी रेडिएशन के दुष्प्रभावों की जांच की तो यह पाया कि यह गेहूं की जड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे उसकी पैदावार पर बुरा असर पड़ रहा है। मुर्गियों और चूहों पर शोध करने पर मुझे पता चला कि रेडिएशन के असर से मुर्गियों के ब्रेन का डेवलमेंट कम हो रहा है। और चूहों की याददाश्त कम हो रही है। कोहली बताते हैं कि रेडिएशन का प्रभाव चार बातों पर तय करता है’

1. बॉडी वेट : कम वजन के लोगों, पक्षियों और पौधों पर इसका प्रभाव जल्दी और ज्यादा होता है।
2. जीन : कुछ प्राणियों तथा पौधों का जीन कमजोर होता है, ऐसे में रेडिएशन का बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
3. स्टेज : पौधों या प्राणियों में नए शेल्स बनते समय यदि वे रेडिएशन के प्रभाव में आते हैं तो उन पर बुरा असर पड़ता है।
4. डोज : यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितने समय रेडिएशन के प्रभाव क्षेत्र में रहते हैं।

रेडिएशन के मानव जीवन और पशु-पक्षियों के जीवन पर पड़ रहे दुष्प्रभावों पर काम कर रही मुंबई की नेहा कुमार बताती हैं कि मधुमक्खियों के रेडिएशन के प्रभाव में आने से केरल, बिहार, पंजाब में भारी नुकसान देखने को मिला है। अमेरिका में रेडिएशन का मधुमक्खियों पर इतना बुरा असर पड़ा कि वे विलुप्त होने की कगार पर आ गईं, जिससे वहां का फसल चक्र बिगड़ गया और किसानों को भारी नुकसान हुआ। मामले को गंभीरता से लेते हुए अमेरिकी सरकार ने चीन और ऑस्ट्रेलिया से बहुत बड़े पैमाने पर मधुमक्खियों का आयात किया।

नेहा ने गुड़गांव के एक फार्म हाउस में जाकर रेडिएशन का अध्ययन किया तो पता चला कि जिस क्षेत्र में रेडिएशन का असर है, वहां की फसल भूरे रंग की हो गई है और उसका विकास नहीं हो रहा है। वहीं उसके पास ही जहां पर रेडिएशन का असर कम है, वहां की फसल बहुत अच्छी है। हाल में ही आई गोवा एमएमसी की रिपोर्ट को मानें तो यहां के बरदेज और परनेम नामक गाँवों में नारियल के पेड़ों पर रेडिएशन का बहुत बुरा असर हुआ है। इनका आकार छोटा हो रहा है और बहुत-से नारियलों में पानी ही नहीं होता। एक रिसर्च में मामला सामने आया कि रेडिएशन क्षेत्र में आने वाली गायों के व्यवहार में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। नेहा बताती हैं कि एक व्यक्ति ने उन्हें आकर बताया कि जबसे उनके घर के पास मोबाइल टावर लगा है तब से 5 लीटर दूध देने वाली उनकी गाय अब बमुश्किल दो लीटर ही दूध देती है। कुत्तों की जांच से पता चला कि उनके रीप्रोडक्शन में भारी गिरावट देखने को मिली है। रेडिएशन क्षेत्र में आने से उनकी हार्टबीट बढ़ जाती है और ब्लड काउंट कम हो जाता है। चमगादड़ों पर भी रेडिएशन का भारी असर पड़ा है, इसके चलते उनकी आकस्मिक मौतें हो रही है। एक शोध में पाया गया है कि रेडिएशन के चलते कौवों की संख्या में 30 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई है। दूसरे अन्य पक्षियों की आवाज में भी दिक्कतें पैदा हो रही हैं इंटरनेशनल सेंटर फॉर रेडियो साइंस के विशेषज्ञों की मानें तो 9 से 18 सौ हर्ट्ज लो फ्रिक्वेंसी में उड़ने वाले पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है। वर्तमान समय में दुनिया में पक्षियों की करीब 9,900 ज्ञात प्रजातियाँ हैं और अब तक पक्षियों की 128 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है। बर्ड लाइफ इंटरनेशनल के मुताबिक एशिया महाद्वीप में पाई जाने वाली पक्षियों की 2,700 प्रजातियों में से 323 पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है।

इंसान इतना सक्षम हो गया है कि प्रकृति को चुनौती देने के लिए तैयार है तब उसको यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि प्रकृति जब पलटवार करती है तो मानवता को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। पशु-पक्षी जो मानव के लिए इंडीकेटर का काम करते हैं, उनके माध्यम से प्रकृति उसे आगाह कर रही है, लेकिन हम अगर इस भी न चेते तो चहुंओर विनाश ही विनाश नजर आएगा।

मानव जीवन पर असर


रेडिएशन ने पशु-पक्षियों का जीवन बहुत कठिन कर दिया है, यह मानव के लिए और भी ज्यादा खतरनाक है। भारत सरकार की मौजूदा गाइडलाइन ऐसी है जैसे कि किसी इंसान को रोज 19 मिनट तक माइक्रोवेव में भूनें और कहें कि यह सुरक्षित है। नेहा कुमार बताती है कि रेडिएशन के चलते सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, नींद न आना, मेमोरी प्रॉब्लम घुटनों का दर्द, हार्मोनल इम्बैलेंस, दिल के संबंधित बीमारियाँ तथा अंत में कैसर तक होने की आशंका भी पाई। हमने सरकार और ऑपरेटरों को इस विषय में लिखा पर किसी ने भी हमारी बात नहीं सुनी। 2012 में हमने जयपुर के सुधीर कासलीवाल के घर के पास रेडिएशन की जांच की थी। इस जांच के बाद कासलीवाल और मीडिया की मदद से भारी जागरूकता आई और राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य के सभी स्कूलों और अस्पतालों पर से टावरों को हटाने का निर्देश दे दिया। पर इसके विरोध में मोबाइल कंपनियां सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और इस आदेश पर रोक लगा दी गई।
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