मानव आदिकाल से ही प्राकृतिक वातावरण से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता रहा है। वह अपने जीवन को सरल एवं सुखमय बनाने के लिये प्राकृतिक वातावरण में यथासंभव परिवर्तन भी करता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत वह अनेक वस्तुओं की रचना करता है जो दृश्य होते हैं।
छत्तीसगढ़ में तालाबों का अस्तित्व मानव पर्यावरण अन्तर्सम्बंधों का परिणाम है। वर्ष में वर्षा के द्वारा जल की उपलब्धता 55 से 63 दिनों तक होती है। वर्षा के अतिरिक्त यहाँ जल की उपलब्धता के अन्य स्रोत नहीं हैं अतः शेष समय में जल की आपूर्ति हेतु तालाबों का निर्माण किया गया है।
तालाबों के निर्माण में उपलब्ध सहज तकनीक का उपयोग किया गया हैं। स्थानीय उपलब्ध मिट्टी का उपयोग मिट्टी की दीवार बनाकर जल-संग्रहण हेतु क्षेत्र तैयार किया गया है। सबसे सहज तकनीक एवं सस्ते मानवीय श्रम का उपयोग तालाबों के निर्माण में दृष्टिगत होता है। ग्रामों में जल संग्रहण एवं संवर्धन की यह तकनीक अधिवासों के विकास के समय से ही उपयोग किया जा रहा है। प्रत्येक ग्रामीण आदिवासी में घर के छतों तथा गलियों से निकलने वाले वर्षा-कालीन जल-अधिवासों के निकट की तालाबों में संग्रहित किया जाता रहा है।
कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में तालाबों के द्वारा सिंचित क्षेत्रफल भी पर्यावरणीय समायोजन का प्रतिफल है। धान के खेतों में फसलों को जल आपूर्ति हेतु एकल, युग्म व सामूहिक तालाबों का अस्तित्व मिलता है। तालाबों द्वारा सिंचाई छत्तीसगढ़ की कृषि का अभिन्न अंग रहा है। सिंचाई के अन्य तकनीक का विकास 1890 के पश्चात अंग्रेजी शासन व्यवस्था के अंतर्गत किया गया था। यह व्यवस्था अल्प वर्षा के परिणाम स्वरूप सिर्फ धान के फसल की रक्षा के उद्देश्य से शुरू की गई थी। सिंचाई तकनीक की तृतीय अवस्था 1965-66 के पश्चात कुँओं के निर्माण में प्रारम्भ हुई। उल्लेखनीय है कि यह वर्ष अकाल वर्ष के रूप में जाना जाता है। सिंचाई की नवीनतम तकनीक नलकूप से सिंचाई 1980 के दशक के बाद प्रारम्भ हुई।
तालाबों का वितरण
तालाब छत्तीसगढ़ में कृषि-संस्कृति की अमिट पहचान है। तालाब कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर मानव तथा जलवायु पारिस्थितिकी का परिणाम है। सामान्यतः रायपुर जिले में 2 से 7 तालाब प्रत्येक ग्रामीण अधिवास में पाए जाते हैं। इनकी जलसंग्रहण क्षमता बहुत अधिक नहीं होती, क्योंकि मिट्टी की सतह के नीचे कुडप्पा युगीन शैल संस्तर पाए जाते हैं। जिले में सिंचाई एवं घरेलू उपयोग के लिये तालाबों का उपयोग किया जाता है। ओ.एच. के स्पेट ने छत्तीसगढ़ के तालाबों में सिल्ट (जमाव) का उपयोग धान के खेतों में जैविक खाद के रूप में किए जाने का उल्लेख किया है।
सारणी 2.1 | ||||||
विकासखण्ड | ग्रामों की संख्या | 40 हेक्टेयर से कम सिंचाई क्षमता वाले तालाब | 40 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई क्षमता वाले तालाब | तालाबों की संख्या | जलाश्यों की संख्या | कुल क्षेत्रफल में जल के अंदर भूमि प्रतिशत |
तिल्दा | 156 | 823 | 52 | 875 | 02 | 5.47 |
धरसीवा | 130 | 672 | 50 | 722 | 02 | 5.23 |
आरंग | 134 | 894 | 53 | 947 | 09 | 6.11 |
अभनपुर | 135 | 570 | 25 | 595 | 03 | 4.52 |
बलौदाबाजार | 124 | 527 | 197 | 724 | 02 | 5.74 |
पलारी | 132 | 670 | 216 | 886 | 03 | 6.82 |
सिमगा | 142 | 524 | 264 | 788 | 03 | 5.66 |
कसडोल | 144 | 267 | 65 | 332 | 03 | 3.60 |
बिलाईगढ | 216 | 669 | 201 | 870 | 04 | 4.24 |
भाटापारा | 149 | 446 | 133 | 579 | 02 | 4.14 |
राजिम | 136 | 594 | 22 | 616 | 06 | 4.53 |
गरियाबंद | 156 | 287 | 27 | 314 | 04 | 2.12 |
छुरा | 175 | 340 | 28 | 368 | 08 | 1.95 |
मैनपुर | 100 | 310 | 28 | 338 | 01 | 3.38 |
देवभोग | 169 | 389 | 27 | 416 | 03 | 1.88 |
कुल | 2199 | 7982 | 1388 | 9370 | 55 | 65.39 |
स्रोत: भू-अभिलेख कार्यालय, रायपुर (छ.ग.) |
भू-अभिलेख कार्यालय से प्राप्त उपर्युक्त आंकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि सिंचाई क्षमता के अनुसार तालाबों की वर्गीकृत किया गया है। सारणी में उल्लेखित तालाबों के अतिरिक्त अन्य अवर्गीकृत तालाब भी पाए जाते हैं। जिले में 9370 तालाब हैं, जो सिंचाई एवं घरेलू उपयोग के लिये उपलब्ध हैं। उक्त संख्या में 1388 तालाब ऐसे हैं, जिनकी सिंचाई क्षमता 40 हेक्टेयर से अधिक है तथा 7982 तालाबों की सिंचाई क्षमता 40 हेक्टेयर से कम सिंचाई की है। इनके अतिरिक्त 55 जलाशय हैं, जो शासन के द्वारा अकाल-राहत अथवा धान के पौधों को सूखे से राहत दिलाने के लिये निर्मित किए गए हैं। जिले में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.26 प्रतिशत भाग जल के नीचे है, यद्यपि इनमें तालाबों के अतिरिक्त नदियों एवं नालों का क्षेत्रफल शामिल हैं।
तलाबों का वितरण विभिन्न धरातलीय विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं। महानदी खारुन दोआब (धरसीवां, अभनपुर, आरंग, पलारी, सिमगा, बलौदाबाजार, भाटापारा) के क्षेत्र में प्रत्येक अधिवास में 4 से लेकर 7 तक तालाब पाए जाते हैं। रायपुर उच्च भूमि (गरियाबंद, मैनपुर, देवभोग) में यह संख्या घटकर 2 से लेकर 4 तालाब तक हो जाती है। ट्रान्स महानदी क्षेत्र (कसडोल, बिलाईगढ़) में 3 से 5 तालाब प्रत्येक ग्रामीण अधिवास में पाए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि 40 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई क्षमता वाले तालाब की उपलब्धता भी उपयुक्त धरातलीय विशेषताओं में नियंत्रित होते हैं। ये तालाब प्राचीन तालाब हैं जो लगभग 1950 के पूर्व निर्मित हुए हैं। स्वतंत्रता पश्चात निर्मित तालाब रायपुर उच्च तथा ट्रान्स महानदी क्षेत्र में शासन द्वारा निर्मित किए गए हैं। प्रत्येक वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में तालाबों के वितरण से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्येक वर्ग कि.मी. में 1 तालाब महानदी खारुन दोआब के क्षेत्र में स्थित है। प्रत्येक 10 वर्ग किमी में 5 से 10 तालाब ट्रान्स महानदी क्षेत्र में स्थित है तथा प्रत्येक 10 वर्ग किमी क्षेत्र में 5 से 6 तालाबों का वितरण रायपुर उच्चभूमि में स्थित है उपयुक्त संख्या चट्टानों की उपलब्धता तथा कृषि योग्य भूमि की मात्रा को स्पष्ट करती है।
तालाबों का इतिहास
तालाबों का इतिहास अति प्राचीन है। मानव के उद्भव एवं विकास के साथ ही साथ तालाबों का भी निर्माण हुआ है। प्राचीन काल में जल संचयन करने का अन्य साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण लोगों ने तालाब में भी जल का संग्रहण करना प्रारम्भ किया और इस जल को विभिन्न प्रकार के कार्यों में उपयोग करने लगा। इस काल में तालाब निर्माण का कार्य जमींदार, मालगुजार लोग स्वयं अपने निजी भूमि में तालाब का निर्माण करते थे, जिनका उपयोग लोग सार्वजनिक रूप से करते थे। साथ ही लोग इनका संरक्षण भी स्वयं करते थे। अतः अध्ययन क्षेत्रों में निर्मित तालाबों का अध्ययन आयु या उम्र के अनुसार किया गया है। चयनित तालाबों में से कुछ तालाब ऐसे हैं जिनका निर्माण 1950 के पूर्व निर्मित हुए तथा अधिकांशतः तालाब 1950 के पश्चात निर्मित पाया गया है। इन तालाबों की संख्या विकास खंडानुसार प्रस्तुत है।
सारणी 2.2 निर्माण वर्षों के अनुसार तालाब | |||||
क्रमांक | विकासखण्ड | चयनित ग्रामों की संख्या | चयनित तालाबों की संख्या | तालाबों का निर्माण वर्ष | |
1850 के पूर्व | 1950 के पूर्व | ||||
1 | आरंग | 05 | 29 | 02 | 27 |
2 | अभनपुर | 05 | 24 | 01 | 23 |
3 | बलौदाबाजार | 04 | 21 | 03 | 18 |
4 | भाटापारा | 04 | 33 | 05 | 28 |
5 | बिलाई गढ | 04 | 24 | 03 | 21 |
6 | छुरा | 04 | 21 | 01 | 20 |
7 | देवभोग | 04 | 18 | 02 | 16 |
8 | धरसीवां | 04 | 20 | - | 20 |
9 | गरियाबंद | 04 | 21 | 04 | 17 |
10 | कसडोल | 04 | 17 | 01 | 16 |
11 | मैनपुर | 04 | 20 | - | 20 |
12 | पलारी | 04 | 14 | 02 | 12 |
13 | राजिम | 02 | 06 | - | 06 |
14 | सिमगा | 02 | 06 | - | 06 |
15 | तिल्दा | 03 | 11 | 02 | 09 |
कुल | 57 | 285 | 26 | 259 | |
स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा |
उपरोक्त सारणी 2.2 से स्पष्ट है कि सर्वेक्षित जिले के अध्ययन क्षेत्रों में चयनित तालाबों में से 1950 के पूर्व निर्मित तालाबों की कुल संख्या 26 (9.12 प्रतिशत) एवं 1950 के पश्चात निर्मित तालाबों की संख्या 259 (90.88 प्रतिशत) पाया गया है।
1950 के पूर्व या ब्रिटिश कालीन तालाब:
जिले में 1950 के पूर्व या ब्रिटिश कालीन तालाबों की संख्या मात्र 26 पायी गई है। ब्रिटिश काल में तालाबों का निर्माण मुख्यतः अंग्रेजों के द्वारा एवं जमींदारों तथा मालगुजारों ने करवाया था। इस समय तालाबों की उपयोगिता सीमित थी, साथ ही जनसंख्या बहुत ही कम होने के कारण तालाबों की संख्या भी कम थी। सर्वेक्षित जिले के पन्द्रह विकासखण्डों में ब्रिटिश कालीन तालाबों की संख्या क्रमशः इस प्रकार है:- आरंग, विकासखण्ड अंतर्गत, 02. अभनपुर विकासखण्ड में 01, बलौदाबाजार अंतर्गत 03, भाटापारा विकासखण्ड के अंतर्गत 05, बिलाईगढ़ विकासखण्ड में 03, छुरा में 01, देवभोग विकासखण्ड 02, गरियाबंद अंतर्गत 04, कसडोल विकासखण्ड में 01 एवं पलारी विकासखण्ड अंतर्गत ब्रिटिश कालीन तालाबों की संख्या 02 एवं तिल्दा विकासखण्ड में 02 है।
1950 के पश्चात या वर्तमान कालीन तालाब
1950 के पश्चात या वर्तमान तालाबों की संख्या 259 है। वर्तमान में तालाबों का निर्माण निजी भू-स्वामी द्वारा एवं राहत कार्य के तहत शासन द्वारा ग्राम पंचायत के तहत किया जा रहा है। वर्तमान में तालाबों की उपयोगिता मानव जीवन के सभी पक्षों को पूर्णतः प्रभावित करती है। साथ ही दिन प्रतिदिन जनसंख्या में वृद्धि अल्पकालीन वर्षा आदि कारणों से तालाबों की संख्या में वृद्धि हुई है। अतः अध्ययन क्षेत्रों के चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में वर्तमान कालीन तालाबों की संख्या अधिक पायी गयी है।
तालाबों के स्वामित्व
अध्ययन क्षेत्र के चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में निर्मित तालाबों का वर्गीकरण स्वामित्व के अनुसार किया गया है। जो इस प्रकार है:-
सर्वेक्षित जिले में विकासखण्डानुसार चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित तालाबों में शासकीय ग्राम पंचायत एवं निजी तालाबों की संख्या निम्नानुसार है जिसे सारणी 2.3 में प्रस्तुत किया गया है-
सारणी 2.3 | |||||||||
क्र. | विकासखण्ड | चयनित ग्रामों की संख्या | चयनित तालाबों की संख्या | स्वामित्व अनुसार तालाबों की संख्या | |||||
शासन | % | ग्राम. पं | % | निजी | % | ||||
1 | आरंग | 05 | 29 | 16 | 5.61 | 07 | 2.45 | 06 | 2.10 |
2. | अभनपुर | 05 | 24 | 16 | 5.61 | 03 | 1.05 | 05 | 1.75 |
3. | बलौदाबाजार | 04 | 21 | 15 | 5.26 | 04 | 1.40 | 02 | 0.70 |
4. | भाटापारा | 04 | 33 | 22 | 7.71 | 01 | 0.35 | 10 | 3.50 |
5. | बिलाईगढ़ | 04 | 24 | 16 | 5.61 | 03 | 1.05 | 05 | 1.75 |
6. | छुरा | 04 | 21 | 18 | 6.31 | 01 | 0.35 | 02 | 0.70 |
7. | देवभोग | 04 | 18 | 15 | 5.26 | 01 | 0.35 | 02 | 0.70 |
8. | धरसीवां | 04 | 20 | 18 | 6.31 | - | - | 02 | 0.70 |
9. | गरियाबंद | 04 | 21 | 19 | 6.66 | 02 | 0.70 | - | - |
10. | कसडोल | 04 | 17 | 13 | 4.56 | 03 | 1.05 | 0.1 | 0.35 |
11. | मैनपुर | 04 | 20 | 18 | 6.31 | 01 | 0.35 | 01 | 0.35 |
12. | पलारी | 04 | 14 | 09 | 3.13 | 03 | 1.05 | 0.2 | 0.70 |
13. | राजिम | 02 | 06 | 06 | 2.10 | - | - | - | - |
14. | सिमगा | 02 | 06 | 06 | 2.10 | - | - | - | - |
15. | तिल्दा | 03 | 11 | 08 | 2.80 | 0.3 | 1.05 | - | - |
कुल | 57 | 285 | 215 | 75.44 | 32 | 11.23 | 38 | 13.33 | |
स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा |
उपरोक्त सारणी 2.3 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्रों के चयनित ग्रामीण क्षेत्र में चयनित तालाबों में शासकीय तालाबों की संख्या 215 (75.44 प्रतिशत) ग्राम पंचायत अंतर्गत तालाबों की संख्या 32 (11.23 प्रतिशत) एवं निजी भूस्वामी वाले तालाबों की संख्या 38 (13.33 प्रतिशत) पायी गयी है।
शासकीय तालाब
सर्वेक्षित तालाबों में शासकीय तालाबों की कुल संख्या 215 (75.44 प्रतिशत) पायी गयी है। इनकी संख्या अधिक होने के प्रमुख कारण राहत कार्य होना है। शासकीय निर्मित तालाबों का संरक्षण शासकीय संस्थाओं के द्वारा किया जाता है। विकासखंडानुसार सर्वाधिक शासकीय तालाबों की संख्या भाटापारा, छुरा, धरसीवां, गरियाबंद, मैनपुर अंतर्गत 95 (33.33 प्रतिशत), आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ देवभोग, कसडोल-विकासखण्ड अंतर्गत 91 (31.93 प्रतिशत) एवं पलारी, राजिम सिमगा, तिल्दा-विकासखंड अंतर्गत चयनित ग्रामों में 29 (10.17 प्रतिशत) तालाब शासकीय निर्मित हैं।
ग्राम पंचायत
विकासखंडानुसार चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत के अंतर्गत निर्मित तालाबों की संख्या 32 (11.23) पायी गयी है। ग्राम पंचायत द्वारा निर्मित तालाबों की संख्या कम होने का प्रमुख कारण यह है कि ग्राम पंचायत के तालाबों को शासकीयकृत कर दिया गया है क्योंकि तालाबों का संरक्षण करने में पंचायत असमर्थ थे लेकिन वर्तमान में सभी शासकीय तालाबों के रख-रखाव का कार्य ग्राम पंचायत के अधीन कर दिया गया है। अतः अध्ययन क्षेत्रों में सर्वाधिक ग्राम पंचायत वाले तालाबों की संख्या, अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, कसडोल, पलारी, तिल्दा, विकासखण्ड अंतर्गत चयनित ग्रामों में 21 (7.37 प्रतिशत) आरंग विकासखण्ड अंतर्गत चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में 07 (2.56%) एवं भाटापारा, छुरा, देवभोग, गरियाबंद मैनपुर, विकासखण्ड अंतर्गत चयनित ग्रामों में 04 (1.40 प्रतिशत) तालाब तथा धरसीवां, राजिम, सिमगा विकासखण्ड अंतर्गत चयनित ग्रामों में एक भी तालाब ग्राम पंचायत द्वारा निर्मित नहीं पाया गया है।
निजी तालाब
अध्ययन क्षेत्र में निजी तालाब भी पाये गये हैं जो निजी भूस्वामी द्वारा निर्मित हैं। निजी तालाब का निर्माण जमींदार अथवा किसी मालगुजार अपने निजी कार्यों के लिये या जन-कल्याण की भावना से अपने निजी जमीन पर बनवाते हैं और तालाब का नाम भी उसी के नाम से जाना जाता है जिसका संरक्षण स्वयं उसी के द्वारा किया जाता है। चयनित तालाबों में निजी तालाबों की संख्या 38 (13.33 प्रतिशत) पायी गयी है विकासखण्ड अंतर्गत चयनित तालाबों में सर्वाधिक निजी तालाबों की संख्या आरंग, भाटापारा अंतर्ग ग्रामों में 16 (5.61 प्रतिशत) अभनपुर, बिलाईगढ़ विकासखण्ड अंतर्गत 10 (3.50 प्रतिशत) एवं बलौदाबाजार, छुरा, देवभोग, धरसीवां, कसडोल, मैनपुर, पलारी विकासखण्ड अंतर्गत ग्रामों में 12 (4.23 प्रतिशत) निजी तालाब पायी गयी तथा गरियाबंद, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखण्ड अंतर्गत चयनित ग्रामों में निजी तालाब एक भी नहीं पाया गया।
धरातलीय मिट्टी के अनुसार तालाबों का वर्गीकरण
अध्ययन क्षेत्र में निर्मित तालाबों का वर्गीकरण मिट्टियों के अनुसार किया गया है। चयनित तालाबों में अलग-अलग प्रकार की मिट्टियाँ पायी गई हैं। अतः विकासखंडानुसार चयनित तालाबों की संख्या को मिट्टीयों के अनुसार सारणी 2.4 में प्रस्तुत किया गया है।
सारणी 2.4 तालाब की धरातलीय मिट्टी | |||||||||
क्र. | विकासखण्ड | चयनित ग्रामों की संख्या | चयनित तालाबों की संख्या | चयनित तालाब की धरातलीय मिट्टी | |||||
कन्हार | % | मटासी | % | भाटा | % | ||||
1. | आरंग | 05 | 29 | 15 | 5.26 | 11 | 3.85 | 03 | 1.05 |
2. | अभनपुर | 05 | 24 | 10 | 3.50 | 10 | 3.50 | 04 | 1.40 |
3. | बलौदाबाजार | 04 | 21 | 08 | 2.80 | 09 | 3.15 | 04 | 1.40 |
4. | भाटापारा | 04 | 33 | 11 | 3.85 | 13 | 4.56 | 09 | 3.15 |
5. | बिलाईगढ़ | 04 | 24 | 06 | 2.10 | 12 | 4.21 | 06 | 2.10 |
6. | छुरा | 04 | 21 | 07 | 2.45 | 09 | 3.15 | 05 | 1.75 |
7. | देवभोग | 04 | 18 | 06 | 2.10 | 07 | 2.45 | 05 | 1.75 |
8. | धरसीवां | 04 | 20 | 09 | 3.15 | 05 | 1.75 | 06 | 2.10 |
9. | गरियाबंद | 04 | 21 | 07 | 2.45 | 07 | 2.45 | 07 | 2.45 |
10. | कसडोल | 04 | 17 | 03 | 1.05 | 08 | 2.80 | 06 | 2.10 |
11. | मैनपुर | 04 | 20 | 08 | 2.80 | 08 | 2.80 | 04 | 1.40 |
12. | पलारी | 04 | 14 | 05 | 1.75 | 04 | 1.40 | 05 | 1.75 |
13. | राजिम | 02 | 06 | 02 | 0.70 | 02 | 0.70 | 02 | 0.70 |
14. | सिमगा | 02 | 06 | 01 | 0.35 | 04 | 1.40 | 01 | 0.35 |
15. | तिल्दा | 03 | 11 | 04 | 1.40 | 04 | 1.40 | 03 | 1.05 |
कुल | 57 | 285 | 102 | 35.79 | 113 | 39.65 | 70 | 24.56 | |
स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा |
उपरोक्त सारणी 2.4 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्रों में चयनित 285 तालाबों में कन्हार मिट्टी द्वारा निर्मित तालाब की संख्या 102 (35.79 प्रतिशत), मटासी मिट्टी द्वारा 113 (39.65 प्रतिशत) एवं भाटा मिट्टी द्वारा निर्मित तालाबों की संख्या 70 (24.56 प्रतिशत) पायी गयी है। चयनित तालाबों में सर्वाधिक मटासी मिट्टी एवं न्यूनतम भाटा मिट्टीयों में तालाब निर्मित है।
कन्हार मिट्टी वाले तालाब
चयनित 285 तालाबों में कन्हार मिट्टी में पाये गये तालाबों की संख्या 102 (35.79 प्रतिशत) है। कन्हार मिट्टी में जल-ग्रहण क्षमता अधिक होती है। साथ ही वाष्पीकरण भी कम होती है। कृषि की दृष्टि से कन्हार मिट्टी में विविध प्रकार के फसलों का उत्पादन संभव होता है। इस मिट्टी में रबी और खरीफ की फसलें बोई जाती हैं। इसलिये अधिकांशतः तालाब कन्हार मिट्टी में निर्मित होती है। अतः अध्ययन क्षेत्रों में सर्वाधिक कन्हार मिट्टी द्वारा निर्मित तालाबों की संख्या अभनपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़ छुरा, देवभोग, गरियाबंद, मैनपुर विकासखण्ड अंतर्गत 72 (25.26 प्रतिशत) आरंग अंतर्गत चयनित ग्रामों में 15 (5.26 प्रतिशत) एवं कसडोल, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखण्ड अंतर्गत 15 (5.26 प्रतिशत) तालाब कन्हार मिट्टी में निर्मित है।
मटासी मिट्टी के तालाब
चयनित तालाबों में से 113 (39.65 प्रतिशत) मटासी मिट्टी के तालाब हैं। मटासी मिट्टी में जल ग्रहण क्षमता कम होती है। वाष्पीकरण भी कन्हार की अपेक्षा अधिक होती है। अधिकांशतः मटासी मिट्टी का क्षेत्र एक ही फसल में उपयोगी पाया गया है। इनमें प्रमुख धान के फसल होते हैं। अन्य फसलों के उत्पादन में पानी की आवश्यकता की पूर्ति मटासी तलाबों में संभव नहीं होती। इस मिट्टी में सिर्फ खरीफ की फसल ही तैयार हो पाती है। इन्हीं कारणों से ग्रीष्म ऋतु में अधिकांश तालाब सूख जाते हैं। इस मिट्टी में निर्मित तालाबों का जल वर्षा ऋतु में हल्का मटमैला एवं शीतकाल में नीला आसमानी हो जाता है, लेकिन ग्रीष्म में पुनः मटमैला हो जाता है।
अतः अध्ययन क्षेत्रों में सर्वाधिक मटासी मिट्टी के तालाब आरंग, अभनपुर, बलौदा बाजार, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर विकासखण्ड अंतर्गत चयनित ग्रामों में 69 (24.21 प्रतिशत) भाटापारा, बिलाइगढ़ अंतर्गत 25 (8.71 प्रतिशत) एवं धरसींवा पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा, विकासखण्ड अंतर्गत चयनित ग्रामों में 19 (6.67 प्रतिशत) तालाब मटासी मिट्टी में निर्मित पाये गये हैं।
भाठा मिट्टी के तालाब
चयनित तालाबों में से 70 (24.56 प्रतिशत) भाठा मिट्टी द्वारा निर्मित पाये गये हैं। जलग्रहण क्षमता कम पायी जाती है तथा वाष्पीकरण की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिसके कारण तालाबों में जलस्तर निम्न पाया जाता है तथा ग्रीष्म ऋतु में तालाब सूख जाते हैं। इस मिट्टी में मुख्य रूप से एक ही फसल उगाई जाती है केवल वर्षा ऋतु के दौरान बाकी समय इसका उपयोग नहीं हो पाता। यह मिट्टी मानवजीवन में अन्य कार्यों के लिये उपयोगी होती है, जैसे - ईंट-निर्माण, मकान निर्माण में सहायक होती है। इसमें जल प्रायः भूरा मटमैला होता है, लेकिन जल अन्य कार्यों में उपयोगी होती है।
अतः अध्ययन क्षेत्रों में सर्वाधिक भाठा मिट्टी द्वारा निर्मित तालाबों की संख्या आरंग अभनपुर, बलौदाबाजार, छुरा, देवभोग, मैनपुर, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा, विकासखण्ड में 36 (12.63 प्रतिशत) बिलाईगढ़, धरसीवां, गरियाबंद कसडोल अंतर्गत 25 (8.77 प्रतिशत) एवं भाटापारा विकासखण्ड में 09 (3.16 प्रतिशत) तालाब भाठा मिट्टी में निर्मित पाये गये हैं।
तालाबों को प्रभावित करने वाले कारक
तालाबों को प्रभावित करने वाले कारक को मुख्य रूप से निम्नांकित भागों में बाँटा गया है।
1. प्राकृतिक पक्ष
2. सामाजिक पक्ष
3. आर्थिक पक्ष
तालाबों के प्राकृतिक पक्ष: तालाबों के प्राकृतिक पक्षों को निम्न भागों में विभक्त कर अध्ययन किया गया है, जो इस प्रकार है-
1. धरातलीय ढाल
2. जलवायु
3. चट्टानों की प्रकृति एवं प्रकार
(1) धरातलीय ढाल:- तालाबों को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक कारक में धरातलीय ढाल प्रमुख तत्व है जिन तालाबों में धरातलीय ढाल अधिक होती है, वहाँ पर जलस्तर ऊँचा होता है, क्योंकि वर्षा पश्चात जल ढाल की ओर प्रवाहित होते हुए तालाब में प्रवेश कर जाती है। प्रत्येक तालाब का अपना जल संग्रहण क्षेत्र होता है। जल-संग्रहण क्षेत्र का क्षेत्रफल मुख्य जल के द्वारा निर्धारित होता है। यह 1/2 किमी से लेकर 1.5 किमी तक हो सकता है। समतल भूमि पर जल संग्रहण की मात्रा तालाबों की गहराई पर निर्भर करती है। उथले तालाबों में वाष्पीकरण की अधिकता से ग्रीष्म ऋतु में जलाभाव की स्थिति निर्मित हो जाती है।
(2) जलवायु: तालाब को जलवायु पूर्णतः प्रभावित करती है, इसके अंतर्गत महत्त्वपूर्ण कारक वर्षा एवं तापमान होते हैं। तालाबों के द्वारा वर्षा के जल को संग्रहण किया जाता है, जो मनुष्य के दैनिक जीवन में हर प्रकार के कार्यों में उपयोगी है। जिले में वर्षा सामान्यतः 55 से 63 दिन तक होती है। उस दौरान वर्षा का जल तालाब में संरक्षित करके वर्ष भर मानव उपयोग के लिये सहायक होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब सर्वसुविधा एवं कम लागत में तैयार होता है।
तापमान भी तालाब को प्रभावित करता है जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाता है तो जल में वाष्प अधिक बनने लगता है, जिससे तालाब में जल-स्तर घटने लगता है और अध्ययन क्षेत्रों में देखा गया है कि इन्हीं कारणों से अधिकांशतः तालाब ग्रीष्म ऋतु में सूख जाते हैं, क्योंकि सर्वाधिक तापमान मई व जून माह में बढ़ता है। अतः जलवायु तालाब को पूर्णतः प्रभावित करती है।
(3) चट्टानों की प्रकृति एवं प्रकार: तालाब को प्रभावित करने वाले कारकों में से चट्टानों की प्रकृति एवं प्रकार भी प्रभावित करती है। अध्ययन क्षेत्रों में कुछ ऐसे भी तालाब हैं, जो चट्टानी क्षेत्रों में निर्मित महानदी खारुन-दोआब के क्षेत्र में कुडप्पायुगीन क्षेत्र एवं चूना पत्थर पाए जाते हैं। तालाबों का सर्वाधिक घनत्व इन्ही शैल संस्तरों में उपलब्ध है। चूना पत्थर वाले भागों में तालाबों की स्थिति के कारण भूगर्भित जल का संग्रहण पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। तालाबों में जल संग्रहण से तथा भूगर्भिक जलस्तर के निर्मित होने से यहाँ नलकूप के माध्यम से भूमिगत जल का दोहन किया जा रहा है। जिले में उच्च भूमि के क्षेत्र आग्नेय एवं ग्रेनाइट शैल वाले हैं। इन शैल संस्तरों के कारण तालाब निर्माण की लागत में वृद्धि होती है तथा भूमिगत जल की उपलब्धता भी न्यूनतम हो जाती है।
तलाबों के सामाजिक पक्ष
सामाजिक पक्ष के अंतर्गत मुख्य रूप से तालाबों का उपयोग पूजा पाठ, शादी-विवाह, देव-विसर्जन एवं मृतक कार्यों में किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब मानव जीवन के प्रमुख अंग माने जाते हैं। लोग अपनी दिनचर्या में उत्पन्न किसी न किसी प्रकार के कार्य तालाब से पूर्ण करते हैं। अध्ययन क्षेत्रों के तालाबों में विभिन्न प्रकार के मंदिर निर्मित होते हैं, जहाँ लोग आत्मा की शांति के लिये पूजा-पाठ के कार्य पूर्ण करते हैं। इन मंदिरों में मुख्य रूप से शिवजी, शीतला माता एवं हनुमान जी के मंदिर सर्वेक्षित अधिकांशतः तालाबों में पाये गये हैं। साथ ही शादी-विवाह के कार्यों में तालाब जल का उपयोग किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के विसर्जन कार्य भी तालाब से ही पूर्ण होते हैं। इन देवी देवताओं में प्रमुख गणेश जी, माँ दुर्गा एवं गौरा, गौरी एवं जग-जवरा होते हैं। साथ ही मृतक कार्य में भी तालाब जल का उपयोग नाहवन आदि के कार्यों को संपन्न करते हैं। अतः सामाजिक पक्ष भी तालाब को पूर्णतः प्रभावित करता है।
तालाबों के आर्थिक पक्ष
तालाब जल में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पायी जाती हैं। इन वनस्पतियों में से कुछ मानव उपयोगी होती हैं, जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से मानव जीवन पर पड़ता है। इनमें से प्रमुख रूप से कमल, ढेस, सिंघाड़ा एवं अन्य कंद-मूल भी उपलब्ध होते हैं, जिन्हें लोग तालाब से निकालकर बाजारों में बेचते हैं और अपना भरण-पोषण करते हैं। साथ ही मुख्य रूप से तालाबों में मत्स्य पालन की उचित व्यवस्था होती है। तथा इससे आर्थिक आय के स्रोत अधिक प्राप्त होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांशतः लोग मत्स्य पालन कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाते हैं।
अतः अध्ययन क्षेत्रों के सर्वेक्षित तालाबों में से अधिकांशतः तालाबों में मत्स्य पालन किया जाता है। मत्स्य पालन की व्यवस्था शासकीय एवं निजी दोनों रूप में की जाती है। इस तरह से आर्थिक स्थिति में सहायक होते हैं। साथ ही वर्षा के अभाव में या अनिश्चितकालीन वर्षा होने की स्थिति में तालाबों के जल से सिंचाई कार्य कर फसलों को तैयार किया जाता है। इस प्रकार तालाब आर्थिक पक्ष को भी पूर्णतः प्रभावित करता है।
भौगोलिक पृष्ठभूमि
2.1 तालाबों का वितरण
2.2 तालाबों का इतिहास
2.3 तालाबों का स्वामित्व
2.4 तालाबों की धरातलीय मिट्टी
2.5 तालाबों को प्रभावित करने वाले कारक
शोधगंगा (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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5 | तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष (Social and cultural aspects of ponds) |
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7 | तालाब जल कीतालाब जल की गुणवत्ता एवं जल-जन्य बीमारियाँ (Pond water quality and water borne diseases) |
8 | रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन : सारांश |
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