हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित इस द्वीप को श्रीलंका समाजवादी गणतंत्र राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। यह केन्द्रीय पहाड़ों तथा तटीय मैदानों से मिलकर बना है। यहां की वार्षिक वर्षा 2500 मिलीमीटर से 5000 मिलीमीटर तक है। तापमान 27 डिग्री से 45 डिग्री तक रहता है । चारों तरफ समुद्र से घिरा होने के कारण अर्द्ध उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्र है। यहां की औसत आर्द्रता 70 मिली मीटर, रात को 90 मिलीमीटर तक होती है।
अब यह सोने की लंका नहीं बल्कि जंगलों की लंका है। इस देश में सवा लाख साल पूर्व की मानवबस्तियों का प्रमाण तथा 5 हजार वर्ष का लिखित इतिहास है। 16वीं शताब्दी के समय इस देश में चाय, रबर, चीनी तथा जिस शब्द के नाम से इस देश का नामकरण हुआ दालचीनी”, जिसे सिंगला भाषा में श्रीलंका बोलते हैं, यह होती है। कोलम्बो जो यहां की राजधानी है। 15वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने यहां अपना महल बनाया था और फिर आस-पास के इलाके में उन्होंने ही अपना राज्य कायम कर लिया।
1630 में श्रीलंका के निवासियों ने डच की मदद मांगी और उनका राज्य कायम कराया। डचों ने इन पर कर बढ़ा दिया, उससे इनकी हालत और खराब हो गई। 18वीं शताब्दी आते-आते अंग्रेजों का राज्य कायम हो गया। 1858 में अंतिम राज्य, केंडी के राजा ने भी आत्मसर्म्पण कर दिया तो सम्पूर्ण श्रीलंका पर अंग्रेजों का अधिकार कायम हो गया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 4 फरवरी 1948 को इस देश को आजादी मिली और श्रीलंका में समाजवादी राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हो गई। 22 मई 1972 में यह गणराज्य बना। यहां का क्षेत्रफल 65610 वर्ग किलोमीटर है। अब यह देश श्रीलंका समाजवादी जनतंत्र व गणतंत्र के नाम से जाना जाता है।
श्रीलंका में रामराज्य काल में एक बहुत बड़ा भौतिक सुख-सुविधाओं को पाने वाले वैज्ञानिक का राज्य था, जिसका नाम रावण था। वह रावण आज के आधुनिक विकास की तर्ज पर जल्दी से जल्दी प्रकृति का शोषण करके, उसके ऊपर अतिक्रमण करने की योजना बना रहा था। इस योजना की शुरुआत उसने अपना सोने का महल बनाने से की थी। उसके जीवन का लक्ष्य प्रकृति पर हर प्रकार से नियंत्रण करना ही
था।
मुझे यह लगता है कि, रामायण जिस काल में लिखी गईं उससे पूर्व यहां पर यूरोपियन डच व पुर्तगालियों का राज्य था। तब उन्होंने यहां की दालचीनी, रबर, चाय आदि के व्यापार में अपना प्रभुत्व जमा लिया था और उसी की कमाई से कोलम्बो में अपना बड़ा दुर्ग निर्माण किया था। यह दुर्ग रावण का चित्र और कल्पनाएं प्रस्तुत करता है। श्रीलंका की यात्रा से तो समझ में आता है कि, यह एक बहुत गहरा, हरा-भरा, जल-जंगल व जंगली जानवरों से भरा पूरा प्रदेश था। यहां की वर्षा नदियों को शुद्ध सदानीरा रखती थी और यह प्राकृतिक समृद्धि का सुन्दर राष्ट्र रहा होगा, क्योंकि अभी भी यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य यह कहानी अपने आप सुना देता है। इस प्राकृतिक रम्य क्षेत्र में जिसने भौतिक विकास, लालची निर्माण शुरू किया था, उसे रामायण में रावण
कहा था।
श्रीलंका में अतिवृष्टि और मिश्रित खेती तथा कम वर्षा वाले भी क्षेत्र हैं। उनमें भी हमारे राजस्थान से 40 गुना अधिक वर्षा होती है। इसलिए यह एक पानीदार राष्ट्र है। लेकिन यहां की व्यापारिक खेती में, यहां के शुष्क जल क्षेत्रों में भी वर्षा जल का सामुदायिक संरक्षण सुन्दर ढंग से किया है। इसलिए अभी यहां जल प्रदूषण का संकट तो है, पर जल उपलब्धता की कमी नहीं है। यहां बाढ़-सुखाड़ दोनों हैं लेकिन दुनिया की तरह उतनी भयाभय नहीं है। इसलिए श्रीलंका को जलसंकट राष्ट्र कहना मेरे लिए असंभव है मैं इस राष्ट्र को जल समृद्ध राष्ट्र कह सकता हूं। यहां का जल अन्य राष्ट्रों की अपेक्षा आपदा नहीं है।
श्रीलंका की नदियां बहुत सारे बांध बनने के बाद भी प्रदूषित सदानीरा हैं। यहां की नदियों में दूषित जल है। खेती उद्योग के लिए अब नए प्रबंधन भी आरंभ हुए हैं।
भारतीय पौराणिक काव्यों में लंका का वर्णन रामायण में ईसा पूर्व से है। ईसा पूर्व दूसरी सदी से चौथी सदी के बीच का है, जिसमें यहां राक्षस राज्य रावण के रूप में प्रस्तुत है। बौद्ध ग्रंथ, दीपवंश और महावंश में इसे भारतीयों के आगमन से पूर्व यक्ष और नागों का वास माना जाता था। संभवतः रावण को प्रकृति विनाशक के रूप में देखा। इसलिए जो प्रकृति का शोषण, अतिक्रमण करता है, उसे बुरा माना जाता है और जो प्रकृति से लेने-देने का अनुशासन रखते हैं, उन्हें देवता माना जाता है।
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