डाॅ. प्रभु जी ने अपनी चर्चा को समाप्त करते हुए कुछ उपयोगी सुझाव देते हुए कहा कि पानी रखने के लिए टोटी लगे घड़े का उपयोग करें और क्लोरीन टैबलेट डालकार-छः घण्टे रहने दें। फिटकिरी को एक मग पानी में घोल लें, फिर उसे एक प्लास्टिक की बाल्टी के पानी में डाल दें। चार घण्टे छोड़ दें। फिटकिरी एण्टिसेप्टिक है। इससे कोई स्वास्थ को नुकसान नहीं होता।
साझे आयोजक:- विवेकानन्द युवा कल्याण केन्द्र, पडरौना, पूर्वांचल समृद्धि मंच, पृथ्वीपुर अभ्युदय समिति, लखनऊ इन्विरामेंटल डवलपमेंट एसिस्टेंस प्रा. लि., लखनऊ, मणि ग्रामोत्थान संस्थान गोरखपुर, गोरखपुर इन्विरामेंटल एक्शन ग्रुप, गोरखपुर एवं उदित नारायन पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, पडरौनागोष्ठी के संयोजक प्रो. प्रभु जी ने प्रथम वक्ता के रूप में विषय पर चर्चा करते हुए कहा, कि लगभग चार अरब वर्ष पहले पृथ्वी पर मनुष्य का प्रादुर्भाव हुआ। तब से पृथ्वी का दोहन प्रारम्भ हुआ। जिसे हम आज विकास कहते हैं, वास्तव में वह प्रकृति का दोहन है। प्रकृति के इस दोहन का ही परिणाम जलवायु परिवर्तन है। सबसे बड़ा परिवर्तन जल स्रोतों का प्रदूषित होना है। जल के प्रदूषित होने के कारण अनेक रोगों की वृद्धि हो रही है। प्रायः सभी स्थानों का जल प्रदूषित हो गया है, किन्तु पूर्वान्चल विशेष रूप से प्रभावित है। यहाँ स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। स्थिति भयावह हो चुकी है।
इसके पश्चात श्री अहसान साहब ने जलवायु परिवर्तन की विभीषिका की चर्चा करते हुए कहा कि जनसंख्या वृद्धि के कारण यह समस्या और भी जटिल होती जा रही है। पानी का केवल प्रदूषण ही नहीं बढ़ा है, बल्कि पानी की आवश्यकता भी बढ़ गई है। आगे की स्थिति और भी खराब होने वाली है। अब स्थिति ऐसी है कि हमें जागरूक होकर कुछ करने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर अफसोस प्रकट किया कि यद्यपि हम लोग इस भयानक परिस्थिति को जान चुके हैं, तथापि कुछ कर नहीं रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम अपनी जानकारी को तो शेयर करें ही, यह भी दृढ़ निश्चय करें कि क्या कार्य करना है। यह अत्यंत आवश्यक है।
मुख्य अतिथि मण्डलायुक्त श्री आर.के. ओझा ने कहा कि, शुद्ध पानी की उपलब्धता इस समय की एक ज्वलन्त समस्या है। इस समस्या के सम्बन्ध में चर्चा तो खूब हो रही है किन्तु कुछ ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। केवल सरकार पर निर्भर रहना ठीक नहीं है। श्री ओझा ने बताया कि कुल 820 ब्लॉकों में 215 ब्लॉक अधिक दोहन वाले ब्लॉक हैं। पुराने जलाशयों के समाप्त हो जाने से समस्या अधिक भयावह हो गयी है। शासन इस दिशा में जागरूक है। सन् 2013, में भूगर्भ जल नीति बनायी गयी। भूगर्भ जल की कमी समस्या को और जटिल बना रही है।
बाढ़ और सूखा इन दोनों समस्याओं का समायोजन किया जाना जरूरी है। यह कार्य केवल सरकार के भरोसे नहीं हो सकता। स्वंय सेवी संस्थाओं का अधिक से अधिक सहयोग आवश्यक है। अध्यक्ष डाॅ. जगदीश सिंह ने जलवायु परिवर्तन को एक हिडेन एजेण्डा अर्थात गुपचुप किए जाने वाले कार्यक्रम की संज्ञा देते हुए यह बताया कि बहुत से सामर्थ्य-वान इस सम्बन्ध में बहुत ही लापरवाही भरा कार्य कर रहे हैं। जलवायु की अनिश्चितता, जलवायु के सम्बन्ध में सबसे निश्चित तथ्य हैं।
जलवायु तो अनिश्चित होती ही है। जलवायु कभी भी यूटर्न ले सकती है। आज हम ग्लोबल वार्मिंग की बात कर रहे हैं वह ग्लोबल कूलिंग में बदल सकती है। डाॅ. सिंह ने तापमान के निर्धारण की प्रक्रिया को समझाते हुए बताया कि औद्योगीकरण और नगरीकरण इसके प्रमुख करण हैं। अधिक मात्रा में जल का दोहन एक भीषण समस्या है। जल को अधिक से अधिक समय तक धरती पर सुरक्षित रखना बहुत आवश्यक है।
इस हेतु पानी वाली जमीनों (वेट लैण्ड) के उचित प्रबन्धन की आवश्यकता है। इस हेतु ‘ब्लू रिवोल्यूसन’ यानि मछली पालन में क्रांतिकारी कदम उठाने की आवश्यकता है। नदियों में न्यूनतम जल स्तर बना रहे और ऊपर बिजली-नीचे मछली की योजना पूरी की जाय। जलीय जीवों के जीवन में कोई बाधा न आए इसका प्रयास किया जाए। डाॅ. सिंह ने जल में अवशिष्ठ पदार्थ न डाले जाने का सुझाव देते हुए जल के विषय में जल चेतना विकसित करने की बात कही। अधिक से अधिक जलाशयों को बनवाने का सुझाव भी डाॅ सिंह ने दिया।
जलवायु परिवर्तन जैसी कोई चीज नहीं है, यह एक पक्ष है और दूसरा पक्ष जलवायु परिवर्तन के एक बड़ी तात्कालिक समस्या मानने का है। जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण की चिन्ता बढी़ है। डॉ. जगदीश सिंह ने इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि प्रतिकूल जलवायु का सुधार कैसे हो। वनों का इस सन्दर्भ में सबसे अधिक महत्व है। वनीकरण करना आवश्यक है। वृक्षों की खेती की जानी चाहिए। तालाब और पोखरों की संख्या बढ़ायी जाय। बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र में जामुन, बरगद और बांस के लगाने से बहुत काम हो सकता है।
श्री मो. अहसान ने इसी विषय पर चर्चा करते हुए पेड़ों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यदि वनों की व्यवस्था ठीक कर दी जाय तो जल की व्यवस्था अपने आप हो जायेगी। पेड़ लगाने की संस्कृति पैदा की जाय। वेट लैण्ड को पुर्नजीवित करने की आवश्यकता है।
ई. रविन्द्र श्रीवास्तव और बजरंग सिंह जी ने विभिन्न खोजों के निष्कर्षों को प्रदर्शित करते हुए अनेक क्षेत्रों में जल की वर्तमान स्थिति को प्रदर्शित किया।
प्रो. शिव शंकर वर्मा ने इस सत्र में जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन हुआ है और उसका प्रभाव पूरी तरह दिखायी दे रहा है। वर्षा कम हुई है। मौसम बदला है। कृषि के दिनों की संख्या घटी है। पानी के स्तर में क्षेत्रीय भिन्नता है। जनसंख्या वृद्धि जलवायु परिवर्तन का एक कारण है। भारत में जनसंख्या वृद्धि चार गुना हो गयी है। इसके साथ ही नगरीकरण भी बहुत बढ़ा है।
सन 1800 में केवल 3 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में रहती थी, अब लगभग 54 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में रह रही है। औद्योगिकीकरण और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन भी इसका कारण है। सागर का जल स्तर बढ़ रहा है। इन सभी समस्याओं के निवारण के लिए जन सामान्य में चेतना जगाने की आवश्यकता है जिससे विकास और प्रदूषण में सामान्जस्य स्थापित किया जा सके।
डाॅ. शक्ति कुमार, प्रभु जी ने चर्चा प्रारम्भ करते हुए गोरखपुर मण्डल के जल की स्थिति पर प्रकाश डाला। इस मण्डल में कहीं भी जल मानक के अनुसार शुद्ध नहीं है। गोरखपुर नगर की स्थिति और भी खराब है। पेट की बीमारियों विशेषकर पेचिस का प्रकोप जल के शुद्ध न होने के कारण है। साहबगंज और पाण्डेय हाता की दशा सबसे खराब है महाराजगंज की स्थिति भी बदतर है। गोरखपुर के जल में आर्सेनिक नहीं है, किन्तु तेल और कुछ मिनरल्स की मात्रा अधिक है।
सन 1998-2004 के बीच पीलिया रोग (जॉण्डिस) की अधिकता गोरखपुर में थी। 2006 में गैस्ट्रिक की अधिकता हुई। अब नगर में जागरूकता आयी है। फिल्टर बहुत मँहगा है। डाॅ. प्रभु जी ने अपनी चर्चा को समाप्त करते हुए कुछ उपयोगी सुझाव देते हुए कहा कि पानी रखने के लिए टोटी लगे घड़े का उपयोग करें और क्लोरीन टैबलेट डालकार-छः घण्टे रहने दें। फिटकिरी को एक मग पानी में घोल लें, फिर उसे एक प्लास्टिक की बाल्टी के पानी में डाल दें। चार घण्टे छोड़ दें। फिटकिरी एण्टिसेप्टिक है। इससे कोई स्वास्थ को नुकसान नहीं होता।
गंगा नदी के जल की चर्चा हुई तो बताया गया कि गंगा नदी के जल में बैक्ट्रिरिया को खाने वाला वायरस पाया जाता है। डाॅ. राम शिवम मिश्र और डाॅ. संजीव कुमार सिंह ने भी जल के महत्व, शुद्धता और उपलब्धता के विषय में अपने विचारों को व्यक्त किया।
अंतिम सत्र की अध्यक्षता वि. युवा कल्याण केन्द्र के अध्यक्ष श्री केदार नाथ मिश्र ने की। मुख्य वक्ता के रूप में डाॅ. वेद प्रकाश पाण्डेय ने अन्तर चेतना का सोया रहना वर्तमान की भयावह संकट का कारण बताया और उसे जगाने का आह्वान करते हुए वार्ता प्रस्तुत की। अध्यक्ष ने अपने उद्बोधन में जल की शुद्धता के विषय में तुलसी और नीम के पत्तों के सम्बन्ध में व्यापक रूप से प्रयोग करने और उसके परिणाम को परखने का सुझाव दिया।
अन्त में गोष्ठी के संयोजक डाॅ. शक्ति कुमार, प्रभु जी ने सम्पूर्ण आयोजन की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सभी सहयेागी संस्थाओं एवं सहयोगियों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डाॅ. राणा प्रताप सिंह के द्वारा सम्पादित पत्रिका “कहार” जो ग्रामीण चेतना को जाग्रत करने के लिए प्रकाशित की जा रही है के प्रथम अंक एवं श्री रामप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा सम्पादित ‘ग्रामोत्थान संवाद’ के पाँचवें अंक की पत्रिका का विमोचन हुआ। ये दोनों पत्रिकाएं ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं से लेखकों और पाठकों को दो-चार कराती हैं।
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