राष्ट्रीय जलीय जीव : गंगा की डॉल्फिन


गांगेय डॉल्फिनजल में रहने वाली डॉल्फिन मनमौजी जीव है, जो कभी बरसात की रिमझिम फुहारों से प्रसन्न हो उठती है तो कभी जोर से बिजली चमकने और बादल गरजने पर खड़ी होकर बार-बार पानी में उछलती हुई सुहाने मौसम का मजा लेती है। इस मनमौजी जीव के खुशमिजाजी के अनेक किस्से हैं जो सदियों से मानव को चकित करने वाले रहे हैं। डॉल्फिन का मानव के प्रति विशेष व्यवहार भी शोध का विषय रहा है। माना जाता है कि धरती पर डॉल्फिन का उद्भव करीब दो करोड़ वर्ष पहले हुआ और अन्य स्तनधारियों की तरह डॉल्फिन ने भी लाखों वर्ष पूर्व जल से जमीन में बसने की कोशिश की। लेकिन धरती का वातावरण डॉल्फिन को रास नहीं आया और फिर उसने वापिस पानी में ही बसने का मन बनाया।

डॉल्फिन की एक विशेषता तरह-तरह की आवाजें निकालना है। प्रकृति ने डॉल्फिन के कंठ को अनोखा बनाया है, जिससे यह विभिन्न प्रकार की करीब 600 आवाजें निकाल सकती हैं। डॉल्फिन सीटी बजा सकने वाली एकमात्र स्तनपायी जलीय जीव है। यह म्याऊं-म्याऊं भी कर सकती है तो मुर्गे की तरह कुकड़ू-कू भी। डॉल्फिन द्वारा तरह-तरह की अवाजें निकाल सकने के कारण इसे ‘आवाजों का पिटारा‘ भी कहा जाता है। इस जीव के संरक्षण के लिये संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) की सहयोगी संस्था व्हेल और डॉल्फिन संरक्षण सभा द्वारा इस बुद्धिमान जीव के प्रति जागरूकता फैलाने और इसके संरक्षण के उद्देश्य से वर्ष 2007 को ‘‘डॉल्फिन वर्ष’’ के रूप में मनाया गया। हमारे देश में भी वर्ष 2009 में गंगा की डॉल्फिन को “राष्ट्रीय जलीय जीव” घोषित किया गया है। भारत सरकार ने डॉल्फिनों का व्यक्तित्व स्वीकार किया है। भारत के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने यह निर्णय लिया है। इसके अलावा मंत्रालय ने इन जीवों को बंद रखते हुए इनके शो करने पर प्रतिबंध लगाया है। भारत दुनिया का ऐसा पहला देश है जिसने डॉल्फिन की आत्मचेतना और बुद्धिमत्ता को मान्यता दी है।

सामाजिक प्राणी


डॉल्फिन, मानव की भांति सामाजिक प्राणी है। इस जीव का गर्भधारण काल दस महीनों का होता है। डॉल्फिन एक बार में एक ही बच्चे को जन्म देती है। प्रसव के कुछ दिन पहले से गर्भवती डॉल्फिन की देखभाल के लिये पाँच-छह मादा डॉल्फिन उसके आस-पास रहती हैं। प्रसव के पूरे समय जो लगभग दो घंटे का होता है उस समय डॉल्फिनों का एक समूह, माँ और नवजात डॉल्फिन की मदद को तैयार रहता है। बच्चे के जन्म के समय डॉल्फिनों का समूह मानव की भांति प्रसन्न होकर उत्सव मनाता है। चूँकि डॉल्फिन में मछलियों की भांति श्वसन प्रणाली नहीं होती है, इसलिए उन्हें सांस लेने के लिये जल की सतह पर आना पड़ता है। इसी कारण प्रसव के बाद नवजात शिशु को शुद्ध हवा की आपूर्ति के लिये अन्य डॉल्फिनें उसे जल की सतह पर लाती हैं। मानव की भाँति माँ डॉल्फिन भी बच्चों का लालन-पालन बड़े प्यार से करती है। डॉल्फिन के बच्चे एक साल तक स्तनपान करते हैं।

इस दौरान डॉल्फिन बच्चे को जीवन यापन के लिये शिकार करने और तैराकी में निपुण बनाती है। अधिकतर कम उम्र की डॉल्फिन तट के समीप आकर झुंड में खेलती हैं। डॉल्फिन का बच्चा घूम-फिर कर अपनी माँ की सीटी की आवाज को पहचान कर उसके पास आ जाता है। अपने संपूर्ण जीवनकाल, जो तीस वर्ष तक हो सकता है, में अधिकतर डॉल्फिन अपने पूरे परिवार या केवल माता-पिता के साथ रहते हैं। डॉल्फिन आपस में एक-दूसरे की मदद करती हैं। एक डॉल्फिन अन्य डॉल्फिन के भाषा संकेतों को समझ आपस में बोलकर संचार स्थापित करती हैं। डॉल्फिन अत्यंत बुद्धिमान एवं सामाजिक प्राणी है।

संकट में गांगेय डॉल्फिनडॉल्फिन के अनेक लक्षण जैसे यौनव्यवहार एवं सामाजिक सहयोग की भावना इनके और मानव के मध्य कई समानताओं को दर्शाते हैं। डॉल्फिन 5 फुट से 18 फुट तक की लंबी हो सकती है। इसका निचला हिस्सा सफेद और पार्श्व भाग काला होता है। इसका मुँह पक्षियों की चोंच की भांति होता है। डॉल्फिन के शरीर पर बाल नहीं होने के कारण यह अपने शरीर का तापमान स्थिर रखने में असमर्थ होने के कारण से प्रवास यात्राएं करती है। डॉल्फिन के सामान्य तैरने की गति 35 से 65 किलोमीटर प्रति घंटे होती है, लेकिन गुस्से में यह अधिक तेज करीब 90 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से तैरती हुई बिना रूके करीब 113 किलोमीटर तक यात्रा कर सकती है। डॉल्फिन को समुद्र में जहाजों के साथ मीलों तक तैराकी का विशेष शौक होता है। डॉल्फिन जल में करीब 300 मीटर गहरा गोता लगा सकती है। जब यह गोता लगाती है तो इसकी हृदयगति आधी रह जाती है, ताकि ऑक्सीजन की जरूरत कम पड़े और यह अधिक गहराई तक गोता लगा सके। यह कुशल तैराक जीव 5 से 6 मिनट तक जल के अंदर रह सकता है।

चतुर जीव


डॉल्फिन की चरणबद्ध रूप से सीखने की प्रवृत्ति इसको सभी जलचरों में सर्वाधिक बुद्धिमान जीव बनाती है। इसका मनुष्यों के साथ, विशेष रूप से बच्चों के प्रति विशेष लगाव होता है। डॉल्फिन को इंसानों के साथ खेलना अच्छा लगता है। काफी समय से डॉल्फिन मनोरंजन का साधन रही है। यह प्रशिक्षण से विभिन्न प्रकार के खेल भी दिखाती है। डॉल्फिन कभी गेंद को अपनी नाक पर उछालती है तो कभी पानी में लबीं छलांग लगाने के अतिरिक्त यह रिंग में से भी निकल सकती है। प्रशिक्षण से डॉल्फिन तरह-तरह के करतब करती है, लेकिन हाँ अगर डाॅल्फिन गुस्से में है तो यह कोई करतब नहीं दिखाती।

खुशमिजाज जलीय जीव


डॉल्फिन सभी समुद्रों में मिलती है लेकिन भूमध्यसागरीय समुद्र में इनकी संख्या सर्वाधिक है। पूरे विश्व में डॉल्फिन की 40 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें से मीठे पानी की डॉल्फिन प्रजातियों की संख्या चार है। भारत की सोंस भी मीठे पानी की प्रसिद्ध डॉल्फिन प्रजाति है जो यहाँ की नदियों में पाई जाने वाली डॉल्फिन प्रजातियों में प्रमुख है। डॉल्फिन की इस प्रजाति का सोंस इसके द्वारा सांस लेने और छोड़ने के क्रम में निकलने वाली एक विशेष ध्वनि पर रखा गया है। सोंस का प्रथम वैज्ञानिक अध्ययन सन 1879 में जॉन एंडरसन ने किया। लेकिन मुख्य रूप से सोंस संरक्षण के कार्यों में 1972 से तेजी आई और तब से इस विलक्षण जलीय जीव को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 द्वारा संरक्षित जीवों की श्रेणी में रखा गया।

डॉल्फिनसोंस की बनावट समुद्री डॉल्फिन से अलग होती है। भारत में पाई जाने वाली सोंस के छोटे दाँत होने के कारण अधिकतर यह अपने भोजन को निगलती है। प्रकृति ने इसे विशिष्ट श्रवण शक्ति प्रदान की है। डॉल्फिन की अद्भुत श्रवण शक्ति इसके जीवन यापन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ये दूर से आती ध्वनि तंरगों को पहचान लेती है। यह पानी में 24 किलोमीटर की दूरी तक की ध्वनियों को सुनने की अद्भुत क्षमता रखती है। डॉल्फिन का आवाज को सुनकर पहचानने का विलक्षण गुण उन्हें भोजन की दिशा की सूचना देता है। सोंस का मुख्य भोजन वह छोटी मछलियाँ होती हैं जो पानी में उगने वाली घास या खरपतवार को खाती हैं। नदी पारितंत्र में छोटी मछलियों की संख्या सीमित रहने से तथा जलीय वनस्पतियों की पर्याप्तता से पानी में ऑक्सीजन की उचित मात्रा पाई जाती है। इस प्रकार सोंस जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका अदा करती है।

कहीं विलुप्त न हो जाए डॉल्फिन


भारत में डॉल्फिन का शिकार, दुर्घटना और उसके आवास से की जा रही छेड़छाड़ इस जीव के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाए हुए है। डॉल्फिन स्वच्छ व शांत जल क्षेत्र को पसंद करने वाला प्राणी है। लेकिन मशीनीकृत नावों जैसी मानवीय गतिविधियों से नदी में बढ़ रहा शोर इनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। डॉल्फिन के आवास क्षेत्रों से की जा रही छेड़छाड़ जैसे बाँधों का निर्माण और मछली पालन से भी डॉल्फिन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बढ़ती सैन्य गतिविधियाँ, तेल और गैस शोध कार्य से समुद्र में फैलते ध्वनि प्रदूषण से डॉल्फिन भी अछूती नहीं रही हैं। जलवायु परिवर्तन से डॉल्फिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने से इनकी संख्या लगातार कम होने वाली है। जल में बढ़ता रासायनिक प्रदूषण भी इनकी कार्यकुशलता पर असर डाल रहा है।

भारत के नदियों में बढ़ते प्रदूषण से डॉल्फिनों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। जहाँ दो दशक पूर्व भारत में इनकी संख्या 5000 के आस-पास थी, वहीं वर्तमान में यह संख्या घटकर करीब डेढ-दो हजार रह गई है। ब्रह्मपुत्र नदी में भी जहाँ 1993 में प्रति सौ किलोमीटर में औसत 45 डॉल्फिन पाई जाती थी वहीं यह संख्या 1997 में घटकर 36 रह जाना इस अनोखे जीव की संख्या में तेजी से कमी की सूचना देता है। भारत में नदी की गहराई कम होने और नदी जल में उर्वरकों व रसायनों की अत्यधिक मात्रा मिलने से भी डॉल्फिन के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।

डॉल्फिन का शिकार अधिकतर उसके तेल के लिये किया जाता है। अब वैज्ञानिक डॉल्फिन के तेल की रासायनिक संरचना जानने का प्रयत्न करने में लगे हुए हैं, ताकि वैकल्पिक तेल के निर्माण से डॉल्फिन का शिकार रूक जाए। भारत में डॉल्फिन के शिकार पर कानूनी रोक लगी हुई है। हमारे देश में इनके संरक्षण के लिये बिहार राज्य में गंगा नदी में विक्रमशिला डॉल्फिन अभ्यारण्य बनाया गया है। यह अभ्यारण्य सुलतानगंज से लेकर कहलगाँव तक के 50 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

आओ बचाएँ इस अनोखे जलीय जीव को


नदी पारिस्थितिकी तंत्र में जंगल के बाघ के समान शीर्ष पर विद्यमान होने के कारण स्तनधारी जीव सोंस का संरक्षण आवश्यक है। सोंस की नदी आहार श्रृंखला में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह हानिकारक कीड़े-मकोड़ों के अंडों को भी खाती है। इस प्रकार सोंस जल को स्‍वच्‍छ रख कई जलजनित बीमारियों को फैलने से रोकती है। इस अद्भुत जीव की जलीय तंत्र में अहम हैसियत को ध्यान में रखते हुए हमें इसको बचाने के प्रयास में योगदान देना होगा ताकि डॉल्फिन सदियों तक प्रकृति की गोद में खेलती रहे।

सम्पर्क


नवनीत कुमार गुप्ता
परियोजना अधिकारी, विज्ञान प्रसार, सी-24, कतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली-110016


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