राजस्थान में फ्लोरोसिस का कहर

फ्लोरोसिस से पीड़ित बछड़ा (फोटो साभार - प्रो. शांतिलाल चौबीसा)
फ्लोरोसिस से पीड़ित बछड़ा (फोटो साभार - प्रो. शांतिलाल चौबीसा)

फ्लोरोसिस से पीड़ित बछड़ा (फोटो साभार - प्रो. शांतिलाल चौबीसा) राजस्थान के सभी 33 जिलों की ग्रामीण बसाहटों में पेयजल के स्रोतों में फ्लोराइड की अधिकता ने एक बड़ी स्थानीय समस्या का रूप ले लिया है। इन इलाकों के लगभग सभी नलकूपों, हैंडपम्पों आदि से प्राप्त भूजल में फ्लोराइड की मात्रा तयशुदा मानक से काफी अधिक पाई जाती है। ‘ए ब्रीफ एंड क्रिटिकल रिव्यु ऑफ एंडेमिक हाइड्रोफ्लोरोसिस इन राजस्थान, इंडिया’ नाम से प्रकाशित शोधपत्र में निम्स विश्वविद्यालय, राजस्थान के एडवांस साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के बायोटेक्नोलॉजी विषय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर शांतिलाल चौबीसा ने इस विषय पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया है।

उनके अनुसार राज्य के किसी भी जिले की ग्रामीण बसाहटों में भूजल के विभिन्न स्रोतों से प्राप्त पानी में फ्लोराइड की मात्रा ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैण्डर्ड द्वारा निर्धारित मानक एक मिलीग्राम प्रति लीटर से काफी अधिक है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रति लीटर पानी में फ्लोराइड की उपस्थिति के लिये उच्चतम निर्धारित मात्रा 1.5 मिलीग्राम से भी अधिक है। राज्य में पानी के इस्तेमाल से मनुष्य तथा जानवरों में फ्लोरोसिस जनित रोगों की समस्या का रूप इतना वृहद हो जाने के बाद भी दक्षिणी राजस्थान के कुछ हिस्सों को छोड़कर कई जिलों में अभी तक इसका व्यापक अध्ययन नहीं किया गया है। इस रिव्यु आर्टिकल के माध्यम से प्रोफेसर शांतिलाल चौबीसा ने इस समस्या की समीक्षा करने के साथ भविष्य में जिन क्षेत्रों में इस दिशा में काम किये जाने की जरुरत है उनकी भी पहचान की है।

(लेखक अन्तरराष्ट्रीय फ्लोराइड जर्नल के क्षेत्रीय सम्पादक हैं)

विस्तृत जानकारी के लिये पीडीएफ देखें।

 

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