राजस्थान के प्रमुख जल विवाद

राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य होने के साथ ही देश का सबसे बड़ा रेगिस्तानी भाग राजस्थान में ही स्थित है और पानी राज्य के हिस्से में देश का सबसे कम मात्रा में है। राज्य में कृषि व पशुपालन मूल व्यवसाय होने की वजह से यहां पानी की आवश्यकता अधिक है, क्योंकि वर्षा यहां सबसे कम होने के साथ-साथ यहां का तापमान अधिक रहता है। राज्य का 60 प्रतिशत हिस्सा रेगिस्तानी है। इन सारे हालातों के बाद भी राजस्थान के साथ पड़ौसी राज्यों का जल-विवाद अशोभनीय है।

राजस्थान के तीन अन्तर्राज्य जल-विवाद मोटे-तौर पर है। जिनको केन्द्र सरकार द्वारा गम्भीरता से लेकर राजस्थान की भौगोलिक व आर्थिक स्थिति की देखते हुए राज्य को हक दिलवाने में भूमिका निभानी चाहिए। साथ ही राज्य की जनता व जन-प्रतिनिधियों को समय रहते हुए इन विवादों का निपटारा कराने की पुरजोर कोशिश करनी चाहिए।

राज्य के सबसे बड़े जल स्त्रोत रावी, व्यास, सतलुज नदी से मिलने वाला पानी है जिसमें से पंजाब व हरियाणा को भी पानी उपलब्ध होता है। इस पूरे तन्त्र पर नियन्त्रण हेतु केन्द्र सरकार ने एक निगम का गठन किया हुआ है जिसका नाम – ‘भाखड़ा व्यास प्रबन्धन निगम’ है। इन तीनों नदियों से प्राप्त पानी व पानी का वितरण, प्रबन्धन, रखरखाव, ये समस्त कार्य इसी निगम के पास है। लेकिन पंजाब सरकार ने आज तक रोपड़, हरिके एवं फिरोजपुर हैडवर्कस का नियन्त्रण भाखड़ा व्यास प्रबन्धन निगम को नहीं सौंपा है। जो कि गैर-कानूनी है, जबकि पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 अनुच्छेद 79 के प्रावधान के अन्तर्गत इन तीनों हैडवर्कस का नियंत्रण इसी निगम के पास होना चाहिए। इसका 8.6 एम.ए.एफ. पानी राजस्थान राज्य का हिस्सा है, जोकि सम्पूर्ण पानी का 52.47 प्रतिशत है। ऐसी स्थिति में उक्त निगम में एक पर्मानेंट मेम्बर राजस्थान से होना चाहिए, लेकिन इसके विपरीत राज्य का कोई मेम्बर आज तक नहीं रहा जो कि पंजाब पूर्व गठन अधिनियम 1966 के अनुच्छेद 79 के उपानुच्छेद 2(9) में साफ है कि चैयरमेन व दो परमानेन्ट मैम्बर की नियुक्ति का अधिकार केन्द्र सरकार के पास है। तथा चैयरमैन प्रभावित राज्यों के अलावा व दो परमानेन्ट सदस्य तीन राज्यों से जिसमें से एक सदस्य ऊर्जा व एक सदस्य सिंचाई का होता है।

इन सदस्यों में आज तक राजस्थान को एक बार भी सदस्य नहीं बनाया गया है जो कि सरासर अन्याय है। जबकि हरियाणा व पंजाब ने अपने एक-एक सदस्य बना रखे हैं। हरियाणा के पास सदस्य सिंचाई व पंजाब के पास सदस्य ऊर्जा है।

‘‘रावी, व्यास, सतलुज ही,
है राज्य के सबसे बड़े जल-स्तोत्र।
जल मानव की सबसे महती आवश्यकता,
इस हेतु हुई भाखड़ा व्यास प्रबन्धन निगम की खोज (स्थापना)
अन्तर-राज्य जल विवाद ने,
किया थार के साथ अन्याय।
निगम में राज्य की हो सदस्यता,
तभी होगा राज्य के साथ न्याय।।’’


राजस्थान का बी.बी.एम.बी. में प्रतिनिधित्व परमानेन्ट सदस्य के रूप में नहीं होने से हर छोटे-बड़े काम में राज्य के हक के साथ खिलवाड़ किया जाता है। अतः सबसे पहले राजस्थान की जनता के हक में केन्द्र सरकार को तुरन्त फैसला करना चाहिये जिससे राज्य को मिलने वाले पानी व उसकी गतिविधियों से अवगत करवाया जा सके।

इसके साथ ही राज्य को रावी-व्यास के अतिरिक्त पानी में से जो हिस्सा देना तय हुआ है उसमें से 0.17 एम.ए.एफ. पानी आज तक राज्य को उपलब्ध नहीं हो पाया है। यह पानी पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के मुख्यमंत्रियों द्वारा 15 जनवरी 1982 के निर्णय से पहले ही राज्य का 1 लाख एकड़ फीट पानी कम कर दिया गया। इसके बाद 0.47 एम.ए.एफ. पानी देना तय हुआ, जिसमें से 30 एम.ए.एफ. पानी राजस्थान को दक्षिणी घग्घर एवं झण्डेवाला वितिरिका के लिए उपलब्ध है जो सिद्धमुख नोहर सिंचाई क्षेत्र हेतु किया जाता है तथा दक्षिणी घग्घर एवं झण्डे वाला वितरिकाएं राजस्थान फीडर, जो कि हरिके बैराज से उगमित होती है, को स्थानान्तरित की जाती है। शेष 0.17 एम.ए.एफ. पानी 1 लाख 70 हजार एकड़ फीट पानी भाखड़ा मैन लाईन के मार्फत सिद्धमुख नोहर क्षेत्र को देना तय था लेकिन यह पानी आज तक उपलब्ध नहीं करवाया गया है तथा सरहिन्द फीडर से जो पानी उपलब्ध करवाया जा रहा है इसमें भी अनियमितताएं की जा रही है।

इतना ही नहीं – इसके अलावा राजस्थान सरकार को केन्द्र सरकार से मांग करनी चाहिए कि मानसून के समय सतलुज नदी जो कि फिरोजपुर से पाकिस्तान रही है उसको हरिके बैराज से सरहिन्द फीडर द्वारा राजस्थान को जल उपलब्ध करवाया जाये जिससे राज्य में कृत्रिम भूजल रिचार्ज हेतु आवश्यक मात्रा में जल उपलब्ध हो।

यमुना का पानी


यमुना का पानी ताजे वाले हैड से राजस्थान को आवंटित है जो राजस्थान के चूरू व झुन्झुनू जिलों में सिंचाई व पीने के लिए उपयोग में लाया जायेगा। इस पानी हेतु 1994 में पांच राज्यों के (हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व दिल्ली) मुख्यमंत्रियों के मध्य समझौते में राजस्थान को ताजे वाले हैड से 1917 क्युसेक व औखला हैड से 1281 क्युसेक पानी भरतपुर के लिए दिया जाना तय हुआ जो कि 14 अपे्रल 2002 के केन्द्रीय जल आयोग को भिजवाया गया जिसे उसकी तकनीकी परामर्शदाती समिति द्वारा 7 फरवरी, 2003 को परियोजना का अनुमोदन करने के पश्चात् केन्द्रीय जल-आयोग ने 12 मार्च, 2003 को स्वीकृति जारी कर दी। उसके बाद जल की उपलब्धता के लिए एक रिव्यु कमेटी का गठन किया गया, जिसने अपनी रिपोर्ट दे दी है। उस रिपोर्ट में पानी की उपलब्धता के बारे में बताया गया है। अब सिर्फ राजस्थान व हरियाणा सरकार के मध्य एम.ओ.यू. होना बाकी है।

इस सम्बन्ध में राजस्थान सरकार का मत है कि हरियाणा ताजे वाले हैड से पानी पश्चिमी यमुना, कैनाल व उसकी प्रणाली को रिमोड लिंग करके उस पानी को राजस्थान की सीमा तक पहुंचाया जाये। जिसकी रिमोडलिंग का खर्चा राजस्थान सरकार वहन करेगी तथा ऐसा करना तकनीकी वित्तीय दृष्टि से सही भी है। जबकि हरियाणा सरकार वैस्टर्न यमुना कैनाल के बराबर अलग अपनी कैनाल बनाकर पानी ले जाने की बात करती है। जो कि सरासर गलत है, क्योंकि यह सब समय निकालने के बहाने है। केन्द्र सरकार को इसमें हस्तक्षेप करके हरियाणा सरकार को एम.ओ.यू. के लिए दबाव डालने की जरूरत हैं क्योंकि चूरू व झुन्झुनू जिले डार्क जोन में आते है। तथा इस कारण से जल स्तर भी तेजी से गिरा है। इससे कुछ ही वर्षों में यहां पीने के पानी की भारी मात्रा में किल्लत हो सकती है तथा इस क्षेत्र में यमुना के पानी के अलावा और कोई साधन सम्भव नहीं है।

अतः शीघ्र ही यह प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिये तथा केन्द्र सरकार को रेगिस्तान में पानी की उपलब्धता के लिए विशेष प्रयास करने की जरूरत है। इसके अलावा इस क्षेत्र में यमुना से सिंचाई प्रस्तावित है। यह क्षेत्र भी भूजल रिचार्ज के लिए अच्छा है। यहां भूमिगत एक्वाफायर स्थित है जहां कृत्रिम रूप से भूमि में रिचार्ज किया जा सकता है। भरतपुर में भी औखला हैड से पानी आना प्रस्तावित है उसका भी एम.ओ.यू. द्वारा साइन होना बाकी है। उसका भी इसके साथ ही काम शुरू करने की जरूरत है।

‘‘अगर कल का सूरज दे उजाला,
तो एक कदम हम और एक कदम तुम बढ़ाओ।
थान में माटी के झरने तो बहते ही हैं यारों।
आओ ! अब जरा पानी की नदियां भी बहाओ।।’’


माही का पानी


माही नदी मध्यप्रदेश से प्रतापगढ़ होते हुए बांसवाड़ा में आती है और यहीं से वो गुजरात में प्रवेश करती है। इस नदी हेतु 10 जनवरी,1966 को एक समझौता हुआ जिसमें गुजरात व राजस्थान सरकार के मध्य 12 अप्रेल, 1966 को प्रस्ताव के रूप में आया। इसमें गुजरात को माही डेम से 40 टी.एम.सी. पानी उपलब्ध करवाया जायेगा तथा उसके बदले गुजरात सरकार द्वारा डेम के निर्माण हेतु लागत में हिस्सा देना तय हुआ, लेकिन यह पानी गुजरात के खेड़ा जिले में सिंचाई हेतु उपलब्ध कराना था, क्योंकि जब खेड़ा जिले में नर्मदा का पानी आ जायेगा तो राजस्थान सरकार गुजरात की लागत को वापस दे देगी तथा यह पानी राजस्थान में ही उपयोग हेतु रहेगा।इसी तरह कडाणा बांध में भी राजस्थान के साथ इकरार हुआ था, जिसमें कि पूरा पानी राजस्थान से ही आता है। माही, बनास, सोमकला, अम्बा व जाखम बांध का पानी कडाणा बांध में ही जाता है।

अतः राजस्थान सरकार को बांध के निर्माण हेतु कुछ हिस्सा देना था व राजस्थान के हिस्से में आने वाले पानी की मात्रा कडाणा में 28 टी.एम.सी. है। इसके बावजूद खेड़ा जिले में सिंचाई नर्मदा से शुरू हो चुकी है। गुजरात सरकार ने कडाणा से, उसी पानी से अपनी चार झीलें (पंचमहल, साबरकांढ़ा, पाटन तथा बनासकांढ़ा) – जो गुजरात के उत्तर में स्थित है, में नई कैनाल बनाकर सिंचाई सुविधा दे दी है। इस कैनाल का नाम – ‘सुजलम-सुफलम’ रखा गया है। इससे सिंचाई किये जाने वाला पानी मूल रूप से राजस्थान का हक है लेकिन गुजरात सरकार इस सम्बन्ध में मुकर रही है कि उसने ऐसी कोई नई कैनाल नहीं बनाई है। साथ ही वो नर्मदा से खेड़ा जिले में सिंचाई को भी मना कर रही है। इतना ही नहीं गुजरात सरकार नर्मदा व माही को इन्टर लाकिंग भी कर दिया है।

इस तरह कुल मिलाकर राजस्थान का कडाणा में पहुंचने वाले पानी का 68 टी.एम.सी. पानी है। 40 टी.एम.सी. माही का व 28 टी.एम.सी. पानी कडाणा के समझौते के अनुसार कुल 66 टी.एम.सी. पानी राजस्थान राज्य का हिस्सा है। जो गुजरात सरकार से लेना भी बहुत जरूरी है। लेकिन हम उसे बांसवाड़ा में नहीं रोक सकते हैं, क्योंकि बांसवाड़ा जिला इनकी सीमा के पास स्थित है, इसके साथ ही बांसवाड़ा की समुद्रतल से ऊंचाई बाकी क्षेत्र से कम है, इस वजह से अन्य क्षेत्र में पानी ले जाना बहुत अधिक खर्चीला है। इसलिये राज्य सरकार को इसके बदले सरदार सरोवर से नर्मदा का पानी ले लेना चाहिये।

नर्मदा का पानी पहले ही राजस्थान में 5 लाख एकड़ फीट तक सिंचाई हेतु उपयोग में लाया जाता है तथा 0.11 एम.ए.एफ. पानी पीने के उपयोग में आता है। जिससे 2.5 लाख हैक्टेयर जमीन भी सिंचित होती है। अतः इस कैनाल के हिस्से का अतिरिक्त पानी मिल जायेगा। इस पानी से पाली, बाड़मेर, जालोर के क्षेत्र को सिंचित क्षेत्र में तब्दील किया जा सकता है। साथ ही इस क्षेत्र में स्थित भूमिगत एक्वाफायर में कृत्रिम रिचार्ज भी किया जा सकता है।

‘‘हो मनुज के अथक प्रयास,
तो माटी भी लगती स्वर्ण की भांति।
माटी मे दबी नरमी ही,
माटी को थार से ग्रीन बनाती।।’’


‘‘थार मे ओझल वीर-जागो, बनो गम्भीर’’

‘‘घी ढ़ुले तो की कोनी होवे,
पानी ढ़ुले तो जल जावे जीव।
आदमी, जानवर सबने चहिजे,
बिन पानी तो मर जावे मीन।
यों पानी को करतब ही तो,
आमियां (मिनका ने) ने देवे जीव।
यों पानी ही तो जगत रो,
है साची (सच्ची), मजबूत नींव।।’’


राजस्थान की परिस्थितियों का बखान करती इस कहावत को वर्तमान में नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि पानी का राजस्थान के लोगों की नजर में क्या महत्व रहा है। आज जब बूंद-बूंद पानी का महत्व लोगों के दिलो-दिमाग से एक सम्भावित भय के रूप में हावी हो रहा है उसका कारण यही है विकास के साथ तेज होती जिंदगी से पानी के इस महत्व पर किये जा रहे प्रयास सार्थक परिणाम नहीं दे रहे हैं।

भौगोलिक पृष्ट भूमि में देखे तो देश के उत्तर-पश्चिम की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित राजस्थान का क्षेत्रफल 342329 वर्ग कि.मी. है जो स्वयं इसकी जरूरतों के महत्व को जाहिर करता है। क्योंकि क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रदेश है।

राजस्थान विभिन्न भौगोलिक स्थितियों को अपने अन्दर समाहित किये हुए है लेकिन यदि पूरे राजस्थान में एक समानता का भी मन हो तो वह पानी के व्यवस्थीकरण एवं प्रबन्धन की कमी तथा उसके उपयोग में बढ़ती जाने वाली असावधानियों का बेहद अभाव (चाहे अरावली की श्रंखलाएं हो, बृज क्षेत्र या थार किसी न किसी रूप में पानी का अभाव) व कुप्रबंधन समीक्षा के विकराल रूप को जाहिर करता है।

राजस्थान देश के क्षेत्रफल का10.47 प्रतिशत हिस्सा है तथा यहां के पानी के बारे में यदि आंकलन करें तो राजस्थान के हिस्से में देश के कुल पानी का 1.27 प्रतिशत हिस्सा आता है। स्थिति और भी विकराल तब हो जाती है जब राजस्थान का उत्तर-पश्चिम का जो हिस्सा पाकिस्तान की सीमा से लगता है वो घना रेगिस्तान है। यहां वर्षा का प्रतिशत बहुत कम है। हांलाकि राजस्थान में वर्षा का औसत प्रतिशत 543 मी.मी. है, लेकिन इसमें वो कुछ क्षेत्र भी शामिल है। जैसे –

झालावाड़ जिला जहां वर्षा का प्रतिशत 938 मी.मी. है। लेकिन कुछ हिस्सों को यदि छोड़ दिया जाये तो थार के रेगिस्तान से लेकर अरावली की पहाड़ियों तक के हिस्से में वर्षा का औसत 345 मी.मी के लगभग रहता है जो बेहद कम है।

राजस्थान के लोगों के साथ प्रकृति ने जो नाइंसाफी की है उसका दोष तो भाग्य के सिर फोड़ा जा सकता है लेकिन यहां के लोगों की राजनैतिक व्यवस्था ने भी इस समस्या को समाधान की ओर ले जाने के बजाए बढ़ाने का काम किया है। पानी की स्थिति पर आम आदमी का बेरूखापन भी उतना ही जिम्मेदार है।

दुनिया में पानी की कमी के शिकार लोग हमारे यहां से भी ज्यादा है लेकिन उन्होंने पानी के उपयोग एवं प्रबन्धन को इतना व्यावहारिक बना दिया है कि प्रकृति द्वारा दी गई समस्या पर उन्होंने विजय प्राप्त कर ली है, लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हम आज भी चेत नहीं रहे हैं। अपने बच्चों के भविष्य बनाने की दौड़ में यह भूल गये कि उन आने वाली पीढ़ियों के लिए हम उस सूखे की तैयारी कर रहे हैं जिससे मानव जीवन को खतरा हो जायेगा।

राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में पानी की समस्याओं पर होने वाली संगोष्ठियां तथा कमेटियां धीरे-धीरे पानी का पुलंदा बनती चली गयी, लेकिन धन के अपव्यय के अलावा लोगों को कुछ नहीं मिलता विभिन्न सरकारी एजेन्सियां तथा एन.जी.ओ. राजस्थान के ए.सी. कमरों में बैठकर योजना बनाते रहे तथा पानी रसातल में जाता रहा।

राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव तथा भ्रष्टाचार ने जीवन के लिए अतिआवश्यक इस समस्या के समाधान के लिए सार्थक प्रयास नहीं किए गये, जिसका परिणाम है कि आज हम पानी के अभाव की त्रासदी के मुहाने पर खड़े है। सभी राजनैतिक दलों, मीडिया तथा अन्य सभी सामाजिक संगठनों को इस विषय पर एक मत होकर राजनैतिक आकांक्षाओं को विषय से दूर करते हुए सबल प्रयास ही तो है जो हमें इस समस्या के समाधान की ओर ले जा सकते हैं। आम लोगों को पानी के प्रति जिम्मेदाराना व्यवहार की भावना को जीवित करके एक समान प्रबन्धन को जीवन देना ही भविष्य है।

राजस्थान की भौगोलिक स्थिति में अरावली पर्वतमाला का बड़ा महत्व है। यह पर्वमाला राजस्थान को भौगोलिक रूप से दो हिस्सो में विभाजित करती है, पहला भाग उत्तर-पश्चिम का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा है जो रेगिस्तानी है। इसी हिस्से में पानी की बड़ी समस्या है क्योंकि पहले तो यहां वर्षा कम होती है। दूसरा यहां की मिट्टी की किस्म में तापमान अधिक रहने से लम्बे समय तक गर्मी बनी रहती है। हालांकि इन्हीं अरावली पर्वतमालाओं में स्थित सबसे ऊंची चोटी माउंट आबु है। जहां 1500 एम.एम. से 1700 एम.एम. वर्षा होती है, लेकिन उसकी, थार रेगिस्तान में जो पानी की भयावह स्थिति है उसके समाधान में कोई भूमिका नहीं है।

व्यवहारिक नजरिए से राजस्थान में आंकड़ो से दूर यहीं हम पानी की स्थिति पर विचार करते हैं तो यहां के लोगों की कठिन जीवन-शैली का अन्दाज लगाया जा सकता है। आजादी के बाद से नहरों एवं बांधों के माध्यम से पानी की समस्या से निजात पाने के जो प्रयास सरकार ने किए हैं, उसके अलावा देखे तो इंसान से लेकर पशुधन तक का पूरा जीवन वर्षा और वर्षा के समय में इकट्ठे किये जाने वाले पानी पर ही निर्भर करता है। जिसकी अनिश्चितता की कल्पना मात्र मानव के जीवन को झकझोर देती है।

यदि परम्परागत स्त्रोतों के (वर्षा) अलावा अन्य स्त्रोतों के निर्माण के प्रयास नहीं किए गए तो आने वाले समय में लोग पानी से प्यास बुझाने के लिए एक-दूसरे के ही जीवन के प्यासे हो जायेंगे और यही समस्या मानव सभ्यता के विनाश का कारण बन सकती है।

अतः

‘‘देख दुर्भाग्य धीरज न खोना,
शीघ्र सौभाग्य फेरा लगेगा ।
रात जितनी अंधेरी रहेगी,
भोर उतना ही उजरा लगेगा ।’’


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