राजनीति के चश्मे से न देखें परियोजनाओं को

बाँध परियोजनाओं के माध्यम से उत्तराखंड में ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति चल रही है। शुरूआती दौर से स्थानीय जनता बाँधों का विरोध करती आयी है तो कम्पनियाँ धनबल और प्रशासन की मदद से अवाम के एक वर्ग को बाँधों के पक्ष में खड़ी करती रही है। ‘नदी बचाओ आन्दोलन’ की संयोजक और गांधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन भट्ट का कहना है कि ऊर्जा की जरूरत जरूर है, लेकिन सूक्ष्म परियोजनायें प्रत्येक गाँव में बनाकर बिजली के साथ रोजगार पैदा करना बेहतर विकल्प है। कम्पनी व ठेकेदार लॉबी बड़े कमीशन के लालच के कारण ही बड़ी परियोजनाओं की हिमायती हैं। क्या बड़े टनल और डैम रोजगार दे सकेंगे। लोगों ने अपनी बहुमूल्य कृषि भूमि परियोजनाओं के लिये दी। बाँध बनने तक रोजगार के नाम पर उन्हें बरगलाया गया तथा उत्पादन शुरू होते ही बाँध प्रभावित लोग परियोजनाओं के हिस्से नहीं रहे। मनेरी भाली द्वितीय पर चर्चा करते हुए राधा बहन ने विफोली गाँव का दर्द बताया, जहाँ प्रभावित ग्रामीणों ने अपनी जमीन और आजीविका के साथ बाँध कर्मचारियों की विस्तृत बस्ती की तुलना में वोटर लिस्ट में अल्पमत में आकर लोकतांत्रिक अधिकार भी खो दिया।

राधा बहन के अनुसार यह बात गलत है कि जनता परियोजनाओं का विरोध नहीं करती। भुवन चन्द्र खण्डूरी के मुख्यमंत्री रहते लोहारीनाग पाला के लोगों ने काली पट्टी बाँध कर उनका विरोध किया था। श्रीनगर परियोजना में महिलाओं ने दो महीने तक धरना-प्रदर्शन कर कम्पनी की नींद उड़ा दी थी। लोहारीनाग पाला परियोजना भूकम्प के अति संवेदनशील जोन में आती है। देवाल-थराली में प्रस्तावित बाँधों का विरोध करने वाले मदन मिश्रा के अनुसार भूकम्प के जोन-5 में अतिसंवेदनशील स्थान पर बनने वाली सुरंग आधारित परियोजनाओं में उपयोग किए जा रहे विस्फोटकों के कम्पन से ऊपर के गाँव दरकेंगे तथा सूखते जल स्रोत और टूटती चट्टानें क्षेत्र को नरक बना देंगी। विस्फोटकों का यह दुष्परिणाम तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना में चाँई गाँव झेल रहा है। यहाँ के लोगों ने 1998-99 से परियोजना का विरोध किया था, लेकिन जेपी कम्पनी धनबल से शासन-प्रशासन को अपने साथ खड़े करने में सफल रही। आठ साल बाद, 2007 में चाँई गाँव की सड़कें ध्वस्त हो गईं, मलवा नालों में गिरने लगा, जल निकासी रुकने से गाँव के कई हिस्सों का कटाव व धँसाव होने लगा। पेड़, खेत, गौशाले व मकान भी धँस गये। करीब 50 मकान पूर्ण या आंशिक रूप से ध्वस्त हुए तथा 1000 नाली जमीन बेकार हो गयी। 520 मेगावाट वाली इस परियोजना में युवाओं को किटकन ठेकेदारी, गाड़ियों को कम्पनी में किराये पर लगाकर व अन्य तरीकों से आर्थिक लाभ देकर तोड़ लिया गया। परियोजना में 2002 में कार्य प्रारम्भ किया गया, जिसमें तपोवन से लेकर अणमठ तक जोशीमठ के गर्भ से होकर सुरंग बननी है। निर्माणाधीन टनल से 25 दिसम्बर 2009 से अचानक 600 लीटर प्रति सेकेंड की गति से पानी निकलने कम्पनी से भूगर्भीय विश्लेषण का पर्दाफाश हो गया। उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट टिहरी बाँध का जलस्तर 820 से 830 मी. करने की राज्य सरकार को खबर तक न होने पर आश्चर्य जताते हैं और चिन्यालीसैंण में भूस्खलन व मकानों के जमींदोज होने को हिमालय का प्रतिकार बताते हैं।

पिण्डर घाटी की जन सुनवाई को हजारों की संख्या में लोगों ने विफल कर दिया। चिपको आन्दोलन की प्रणेता गौरा देवी के गाँव रैणी के नीचे भी टनल बनाना इस महान आन्दोलन की तौहीन है। वर्षों पूर्व रैणी के महिला मंगल दल द्वारा इस परियोजना क्षेत्र में पौधे लगाये गये थे। मोहन काण्डपाल के सर्वेक्षण के अनुसार परियोजना द्वारा सड़क ले जाने में 200 पेड़ काटे गये और मुआवजा वन विभाग को दे दिया गया। पेड़ लगाने वाले लोगों को पता भी नहीं चला कि कब ठेका हुआ। गौरा देवी की निकट सहयोगी गोमती देवी को दुःख है कि पैसे के आगे सब बिक गये। रैणी से 6 किमी दूर लाता में एन.टी.पी.सी द्वारा प्रारम्भ की जा रही परियोजना में सुरंग बनाने का गाँव वालों ने पुरे जोर से विरोध किया। मलारी गाँव में भी मलारी झेलम नाम से टीएचडीसी विद्युत परियोजना लगा रही है। मलारी के महिला मंगल दल ने कम्पनी को गाँव में नहीं घुसने दिया तथा परियोजना के बोर्ड को उखाड़कर फैंक दिया। कम्पनी ने कुछ लोगों पर मुकदमे लगा रखे हैं। इसके अलावा धौलीगंगा और उसकी सहायक नदियों में पीपलकोटी, जुम्मा, भ्यूँडार, काकभुसण्डी, द्रोणगिरी में प्रस्तावित परियोजनाओं का प्रबल विरोध है।

13 अक्टूबर 2009 को कुलसारी में हुई जनसुनवाई कम्पनी प्रशासन द्वारा बाँध प्रभावित क्षेत्र से करीब 17 किमी दूर करने के बावजूद भी 1,300 लोग इसमें पहुँचे। कम्पनी द्वारा अखबारों के नैनीताल जिला संस्करणों में इसका विज्ञापन दिया गया। लोगों के लिए ‘थ्री स्टार’ भोजन परोसा गया, जिसे उन्होंने गुस्से से फेंक दिया। पांडाल को उखाड़ दिया। दूसरी जन सुनवाई 22 जुलाई 2010 को देवाल में आयोजित की गई। इसमें करीब 6000 लोगों ने भागीदारी की। लोगों ने एकजुट होकर डैम नहीं चाहने बावत ज्ञापन एसडीएम चमोली को दिया। इस जनसुनवाई में सीडीओ चमोली ने ग्रामीण जनता को विश्वास में लेते हुए गाँव स्तर पर जनसुनवाई करने की बात कही। 15 सितम्बर 2010 को थराली तहसील में देवाल, थराली, नारायण बगड़ की सैकड़ों जनता ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया।

पूर्ण हो चुकी परियोजनाओं में पुनर्वास की नीति का मखौल बन गया है। वनाधिकार कानून 2006 के तहत जरूरी होने पर पुनर्वास पैकेज बनाने तथा ग्राम पंचायत में इसे तय किये जाने की व्यवस्था है। लेकिन पंचायत की भूमिका को हमेशा दरकिनार किया गया। अधिक से अधिक घर-जमीन डूबने पर ही उसे पुनर्वास के योग्य माना गया। 30 से 50 साल उम्र वाली परियोजनायें इतने वर्ष बाद खण्डहर रह जायेंगी। कंकरीट व बजरी भी तब स्थानीय जनता के नहीं रहेंगे, क्योंकि जमीन तो कम्पनी के पास है। निश्चित ही 600 से ऊपर बन रही इन परियोजनाओं के बनने व उजड़ने तक ये क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य खोकर रेगिस्तान में तब्दील हो जायेंगे। सुरंगो के पानी निगलने से जलीय जीवों की खाद्य श्रृंखला व सामाजिक सरोकारों पर संकट आ गया है। परियोजना प्रभावित क्षेत्र के एक सज्जन ने बताया उनके श्मशान में क्रियाकर्म के लिए पानी तक नहीं है। शिकायत करने पर कम्पनी के अधिकारी कहते हैं एक दिन पूर्व मृत्यु की सूचना दे दो, सुरंग से पानी श्मशान तक छोड़ देंगे!
 

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