बकुलाही का मुद्दा सिर्फ प्यासे समाज अथवा बकुलाही के भगीरथ समाज शेखर का अकेला नहीं रहा बल्कि अब यह मुद्दा अर्थात बकुलाही का पुनरोद्धार राज और समाज की साझा ज़िम्मेदारी बन गया है। जिसे युद्ध स्तर पर पूरा करने का प्रयास ‘राज और समाज’ दोनों कर रहे है। ‘राज और समाज’ के साझा प्रयास एवं साझी संस्कृति का यह उदाहरण प्रदेश का एक नायाब उदाहरण बन चुका है। बकुलाही नदी की धारा को 25 वर्ष पहले कुछ निहित स्वार्थों की खातिर बीच से ‘लूप कटिंग’ कर तकरीबन 18 किमी. छोटा कर दिया गया था। इस कृत्य के बाद 18 किमी. के इर्द-गिर्द बसे करीब 25 खुशहाल गाँवों से उनकी हरियाली रूठती चली गई। जल स्तर नीचे गिरता चला गया।
प्रतापगढ़ के दक्षिणांचल में ज्वालामुखी की तरह सुलग रहे बकुलाही के मुद्दे को लगता है एक राह मिल गई है। पानी के प्यासे समाज के एक लंबे संघर्ष के बाद प्यास बुझाने की उम्मीद जाग गई है। बकुलाही पुनरोद्धार अभियान के बैनर तले जो जनांदोलन चल रहा था, उसे उसका अभीष्ट नजर आने लगा है। समाज शेखर की अगुवाई में अपनी नदी, अपने पानी के लिए ‘प्यासा समाज’ ने जागृति का जो शंखनाद किया उससे ‘राज’ की तन्द्रा टूट गई और समाज के इस महायज्ञ में आहुति डालने के लिए ‘राज’ आगे बढ़कर ‘समाज’ के बगल खड़ा हो गया।समाज एक व्यापक शब्द है। नियम, कायदे कानून, राज, सरकार ये सारे शब्द सिर्फ ‘समाज’ के लिए ही गढ़े गए हैं। समाज की व्यवस्था में बेहतरी के प्रयास हमेशा राज की तरफ से होते रहते हैं। जब एक व्यापक समाज अपने मूल अधिकारों से वंचित रहने की त्रासदी झेलता है तो उसके अंदर आक्रोश पनपता है। यही आक्रोश कभी-कभी आंदोलनों जनसंघर्षों, जनांदोलनों का रूप लेकर ‘खम ठोकता’ आगे बढ़ने लगता है। जनसंघर्षों के ऐसे नाज़ुक मोड़ पर ‘राज’ की ज़िम्मेदारी काफी बढ़ जाती है। ऐसे संवेदनशील मौके पर बड़े ही धैर्य एवं सूझ-बूझ की जरूरत होती है। राज और समाज दोनों को ही धैर्य का परिचय देना पड़ता है।
बकुलाही जनसंघर्ष को भी इसी संवेदनशीलता से होकर गुजरना पड़ा है। अभियान के संयोजक समाज शेखर एवं राज के प्रतिनिधि युवा जिलाधिकारी विद्याभूषण दोनों ने ही उसी सूझ-बूझ एवं धैर्य का परिचय देते हुए कंधे से कंधा मिलाकर लाखों लोगों की प्यास बुझाने हेतु एक ‘साझा कार्यक्रम’ बनाया और उसे क्रियान्वित भी कर रहे हैं यह पूरे प्रदेश का एक अनुकरणीय एवं नायाब उदाहरण है। राज और समाज का साझा प्रयास एवं साझी जिम्मेदारियों को निभाने से ही समाज या राज्य का भला हो सकता है। ‘राज और समाज’ की साझा संस्कृति पर यदि ईमानदारी से आगे बढ़ा जाए तो यह प्रयोग दुनिया में सर्वाधिक आशानजक परिणाम देगा जैसा कि बकुलाही मुद्दे पर मिल रहा है।
अट्ठारह किमी बकुलाही नदी को 25 वर्षों पूर्व जैसी धारा प्रवाहित करने हेतु राज ने मनरेगा की ताकत झोक दी है और समाज के अपनी सामुदायिक शक्ति। साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ उठाना ये पंक्तियाँ ऐसे ही मौकों के लिए लिखी गई थी। अपने निर्धारित कि.मी. के रेंज में मनरेगा के सैकड़ों मज़दूर मनरेगा नियमों के अधीन नदी की खुदाई कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर अपने निर्धारित कि.मी. के दायरे में समाज के सहयोग से लगाई जेसीबी मशीने चिग्घाड़ रही हैं उद्देश्य सिर्फ इतना कि बकुलाही को उसकी पुरानी धारा पुराने स्वरूप में बहाल कर सन् 1952 की स्थिति में लाना है ताकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मानीय अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
घर-घर दीप जलाओ भईया, लौट आईं बकुलाही मईया
प्रतापगढ़ के दक्षिणांचल में कई वर्षो से चल रहे ‘बकुलाही पुनरोद्धार अभियान’ के अनवरत संघर्षों का नतीजा अब सामने आने लगा है। समाज की प्यास और पानी के मुद्दे ने ‘राज’ एवं ‘सरकार’ दोनों को ‘समाज के बगल लाकर खड़ा कर दिया। अब बकुलाही का मुद्दा सिर्फ प्यासे समाज अथवा बकुलाही के भगीरथ समाज शेखर का अकेला नहीं रहा बल्कि अब यह मुद्दा अर्थात बकुलाही का पुनरोद्धार राज और समाज की साझा ज़िम्मेदारी बन गया है। जिसे युद्ध स्तर पर पूरा करने का प्रयास ‘राज और समाज’ दोनों कर रहे है। ‘राज और समाज’ के साझा प्रयास एवं साझी संस्कृति का यह उदाहरण प्रदेश का एक नायाब उदाहरण बन चुका है।
बकुलाही नदी की धारा को 25 वर्ष पहले कुछ निहित स्वार्थों की खातिर बीच से ‘लूप कटिंग’ कर तकरीबन 18 किमी. छोटा कर दिया गया था। इस कृत्य के बाद 18 किमी. के इर्द-गिर्द बसे करीब 25 खुशहाल गाँवों से उनकी हरियाली रूठती चली गई। जल स्तर नीचे गिरता चला गया। करीब 1 लाख की आबादी के समक्ष घोर जल संकट उत्पन्न हो गया। सन् 2003 में जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने इन गाँवों का दौरा किया और कहा कि बकुलाही की पुरानी धारा को वापस लाए बिना इस जल संकट से छुटकारा नहीं मिल सकता। यह बात उस समय अनेक समाज सेवियों ने सुनी परन्तु एक युवा के मन पर इसका सर्वाधिक असर हुआ। यहीं से उसने संकल्प लिया कि 25 गाँवों के प्यासे लोगों को उनकी नदी लौटानी पड़ेगी और वह युवा थे समाज शेखर जो आज बकुलाही समाज का नेतृत्व कर रहे हैं।
पहली बार जब बकुलाही समाज सन् 2011 में श्रमदान हेतु बकुलाही तट पर भयहरणनाथ धाम पर बुलाया गया तो स्वयं प्रणेता समाज शेखर को भी नहीं पता था कि यही से बकुलाही पुनरोद्धार जनांदोलन की नींव रखी जाएगी। हजारों की झुंड में जाने, अनजाने, चेहरे, आए थे श्रमदान के लिए, होने लगा बकुलाही की धारा को पुराने मार्ग पर ले जाने का प्रयास। यहीं वह टर्निंग प्वाइंट था जहाँ से सामूहिक श्रमदान का स्वरूप धीरे-धीरे जन संघर्ष में तब्दील होता चला गया। 25 वर्षों की संचित प्यास ने आज जन को इस तरह नाराज़ कर रखा था कि जरा सी प्रशासनिक छेड़छाड़ क्या हुई वही प्यासा समाज सड़क पर आ गया और कटरा गुलाब सिंह सहज रूप से कई घंटे ठप्प रहा।
उपरोक्त घटना के बाद बकुलाही नदी को पुरानी धारा को बहते देख (कुछ दूर तक ही ) जनता का उत्साह अपरिमित हो गया। जन सहयोग मिला हजारों मज़दूर जेसीबी मशीनों के साथ नदी को उसका स्वरूप देने में जुटे। बकुलाही की धारा को एक बांध बनाकर पुराने रास्ते पर जाने की बात चल रही थी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भूगर्भजल सप्ताह का संदेश जारी किया जिस पर बकुलाही समाज ने एक कच्चा बांध बनाकर नदी की धारा को पुराने राह पर लाने की कोशिश की। कुछ दिनों तक बकुलाही अपनी पुरानी धारा में बही परन्तु कच्चा बांध ढह गया और बकुलाही समाज को एक संदेश दे गया कि बकुलाही नदी की 18 किमी. पुरानी राह पर प्रवाहित करना असंभव नहीं।
इसी बीच प्रतापगढ़ के तत्कालीन जिलाधिकारी हृदेश कुमार बकुलाही समाज को बुलाकर समाज से रूबरू हुए। बकुलाही का भ्रमण किया तथा बकुलाही समाज के मंच पर आकर उन्होंने प्यासे समाज को उनका पानी, उनकी नदी लौटने की प्रतिज्ञा ली। बकुलाही की नाप-जोख हुई। ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप मे एक बड़ा ‘दोमुहां’ डैम बनाने की बात चली। परन्तु इंजीनियरों के समक्ष 25 वर्षों के अतिक्रमण से बकुलाही नदी की कम हुई गहराई एवं उसकी चौड़ाई बाधा के रूप में खड़ी थी।
यही वह समय था जब डीएम हृदेश कुमार स्थानांतरित हुए और नए जिलाधिकारी विद्याभूषण ने कार्यभार संभाला। युवा डीएम विद्याभूषण ने जल सत्याग्रह समाज यात्रा की अगुवाई कर रहे समाज शेखर को वार्ता हेतु आमंत्रित किया तथा बकुलाही का क्षेत्र भ्रमण की इच्छा जताई। भ्रमण के दौरान जिलाधिकारी ने सभी सरकारी अमलो को बुलाकर नदी खुदाई करने का काम शुरू कराया। उन्होंने राज की ओर से मनरेगा मज़दूरों को लगाया ओर समाज की ओर से श्रमदानी एवं जेसीबी मशीनें लगा दी गई। कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। अब वह दिन दूर नहीं जब बकुलाही अपनी 18 किमी. पुरानी धारा में हरहराती लहराती प्रवाहित होगी। यह राज एवं समाज दोनों के साझा प्रयास का परिणाम हैं ऐसे सभी सामाजिक कार्यों के लिए आज राज एवं समाज दोनो की साझा ज़िम्मेदारी, साझा कार्यक्रम एवं साझी - संस्कृति ही समाज एवं राज दोनों का भला कर सकती है। डीएम विद्याभूषण ने यह अनूठा प्रयोग कर 25 वर्षों से अपनी नदी अपने पानी के लिए आंदोलित जनता के मन में आशा की एक ऐसी ज्योति जला दी है कि अपने वाला भविष्य, 18 किमी. बकुलाही की पुरानी धारा को प्रवाहित करके लाखों लोगों की खुशहाली फिर से लौटाएगा। हरियाली दिखेगी। जलस्तर ऊपर आएगा। प्रवासी पक्षी मुड़कर वापस आएंगे। पशु-पक्षी, सभी आनंद मनाएंगे और यह क्षेत्र फिर से समृद्ध हो जाएगा।
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