राहत कोष की बंदरबांट


पश्चिम बंगाल का कुलतली इलाका। यहां 30 वर्ष से रहता आया अनिल नस्कर का परिवार तीन महीने पहले सड़क पर आ गया। मछली के कारोबार पर निर्भर इस परिवार के पास कभी तीन एकड़ की एक झील हुआ करती थी पर बंगाल की खाड़ी में पिछले साल आए चक्रवाती तूफान आएला ने उस झील को नमक मिले पानी से ऐसा खराब किया कि अब उसमें मछली पालन ठप है। यही वजह रही कि अनिल नस्कर स्थानी सूदखोरों से लिया धन नहीं लौटा पाए। सूदखोरों ने उसकी जमीन नीलाम करा ली और उन्हें घर से बेघर कर दिया। अनिल नस्कर लापता है और उसके परिवार के 10 अन्य सदस्य दूसरों के खेतों में दिहाड़ी मजदूर का काम करने का मजबूर हैं।

इस परिवार की दुर्गति से साफ जाहिर है कि इन्हें सरकारी मदद नहीं मिली। सवाल यह है कि करोड़ों रुपए की वित्तीय मदद का आखिर हुआ क्या? आइए अब एक और तथ्य से अवगत हों। कुलतली से अगला ब्लॉक है हिंगलगंज। यहां के एक ही परिवार के पांच सदस्यों को अलग-अलग परिवार गिनाकर 10-10 हजार रुपए की राहत राशि दिलाई गई। हिंगलगंज पंचायत समिति और कालीतला पंचायत समिति के रिकॉर्ड देखें तो पता चलता है कि इस इलाके में आएला तूफान के पहले जितने परिवार रहते थे, उनमें तूफान के बाद करीब 30 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई। दुर्भाग्य से ऐसे ‘परिवारों’ में अनिल नस्कर जैसों के नाम नहीं हैं, जो बरसों से वहां रहते आए हैं। इस बारे में हिंगलगंज के बीडीओ इंद्रकुमार नस्कर एक लाइन की टिप्पणी करते हैं, ‘रिलीफ फंड’ के आवंटन की जांच पर कोई सवाल नहीं खड़ा करना चाहेगा क्योंकि जो अधिकारी ऐसा करेंगे उनकी हत्या तक कर दी जाएगी।

पिछले साल 25 मई को आए चक्रवाती तूफान आएला से सुंदरवन (दक्षिण 24 परगना) समेत बंगाल के समुद्रतटीय इलाकों में सुनामी से भी ज्यादा तबाही हुई थी। तीन-चार दिनों तक चले इस कहर से सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे और 20 लाख से ज्यादा लोग आधिकारिक तौर पर बेघर हुए थे। जान-माल की भीषण की क्षति के मद्देनजर राज्य सरकार को कई चरणों में केंद्र सरकार से एक हजार करोड़ रुपए की मदद मिली। सैद्धांतिक तौर पर बंगाल सरकार ने इसमें 25 फीसदी रकम जोड़कर पीड़ितों की मदद की लेकिन आएला प्रभावित विभिन्न इलाकों के दौरे से साफ दिखा कि एक साल बाद भी राहत की धारा जमीन तक पहुंचने से पहले ही बीच में कहीं सूख गई।

हिंगलगंज ब्लॉक का उदाहरण इसे स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है। इस ब्लॉक में तूफान से पहले 23 हजार मकान थे लेकिन जब तूफान पीड़ितों की लिस्ट बनी तो मकानों की संख्या बढ़कर 33 हजार हो गई। प्रशासन ने स्थानीय पंचायत की मदद से पीड़ितों की लिस्ट बनवाई थी। इस ब्लॉक में नौ ग्राम पंचायत हैं। 2005 के आंकड़ों के अनुसार, यहां के कालीतला, गोविंदकाठी, साहेबखाली, योगेशगंज और दुलदुली में बीपीएल-एपीएल परिवारों की संख्या 20 हजार थी। पांच साल में पांच फीसदी बढ़ोत्तरी की दर से यह संख्या 21 हजार होती है। एक अंदाज के अनुसार, प्रशासन ने यह संख्या 23 हजार मान ली थी लेकिन तूफान पीड़ितों की संख्या में 10 हजार की बढ़ोत्तरी कर अकेले इसी ब्लॉक में 10 करोड़ रुपए के गबन का अनुमान लगाया जा रहा है। हिंगलगंज पंचायत समिति में तृणमूल का बोर्ड है। समिति के अध्यक्ष अबू बकर गाजी इस आंकड़े का खंडन करते हैं लेकिन अपनी खास शैली में। उनका कहना है, ‘गबन 10 करोड़ का नहीं, लगभग पांच करोड़ का हुआ है।’ तो फिर आप जांच क्यों नहीं कराते? जवाब मिलता है, ‘पंचायत स्तर पर चार सदस्यीय कमेटी बनी थी। चारों अलग-अलग राजनीतिक दलों से थे। जाहिर है, जो भी लिस्ट बनी, उसमें ‘सर्वदलीय सहमति’ थी। इस सूची में कालीतला में 3,677 मकानों की जगह 4,154 मकान हो जाते हैं। इसी तरह गोविंदकाठी में 3,555 की जगह 4,233 योगेशगंज में 4,842 की जगह 5,317 और दुलदुली में 4,698 की जगह 5,632 जैसे बदलाव दिखते हैं। इस ‘सर्वदलीय सहमति’ को हिंगलगंज के निताई मंडल स्पष्ट करते हैं, ‘इलाके में बुजुर्ग माता-पिता के परिवार में सभी सदस्यों को अलग-अलग मकान का मालिक बनाकर लिस्ट में दर्ज कर दिया गया। कई परिवारों ने पांच गुना ज्यादा मुआवजा उठाया, हालांकि उन्हें कमीशन भी देना पड़ा।’ निमाई मंडल आगे कहते हैं, ‘जिस इलाके में जितना पानी, उस इलाके में उतना कमीशन।’ दो नंबर साहेबखाली अंचल में एक-दो तल्ले की कंक्रीट की इमारत के मालिक तीन भाइयों ने अलग-अलग नाम से मकान का मुआवजा उठाया। मकान बाढ़ में बह जाने का तीन गुना मुआवजा।

बीडीओ के अनुसार, स्थानीय बैंकों के मैनेजर रोजाना ही काउंटर के सामने मारपीट की शिकायत करते हैं। स्थानीय नेता लाभान्वितों को लेकर बैंक पहुंचते हैं। रुपए मिलते ही शुरू हो जाती है बंदरबांट। स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों का दावा है कि इस बंदरबांट में स्थानीय पंचायतों और राजनीतिक दलों के लोग मिल-जुलकर मलाई चाट रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर नेताओं द्वारा दी गई लिस्ट पर प्रशासन ने बगैर जांच के ठप्पा क्यों लगा दिया?

इधर कुलतली के दक्षिण गोरानघाटी से 60 परिवार अपनी जमीन छोड़कर पलायन कर गए हैं। कर्ज नहीं चुका पाने के कारण स्थानीय महाजनों ने उनकी जमीनें और मछली पालन के तालाब छीन लिए हैं। यहां के अधिकांश मछुआरों ने 20 से 70 हजार रुपए का कर्ज ले रखा था। आएला तूफान में वह पूंजी भी डूब गई। कम से कम 100 ग्राम पंचायतों में मछली पालन का धंधा ठप हो गया है।

खारे पानी से भरे तालाबों में दोबारा मछली पालन का काम खर्चीला होगा। जाधवपुर विश्वविद्यालय के सिद्धार्थ दत्त के अनुसार, इन तालाबों में आठ से नीचे का पीएच स्तर पाने के लिए पहले पूरे पानी को दमकल से बाहर निकालना होगा और फिर तलछट की पपड़ी हटानी होगी।

फिर समस्या कच्चे बांधों की भी है। सरकार ने 115 करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं लेकिन 10 फीसदी बांधों की मरम्मत नहीं हो सकी है। ऐसे में छोटे-मोटे तूफान भी यहां की जिंदगी को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर जाते हैं। तूफान के फौरन बाद गोसाबा, पाथरप्रतिम, कुलतली, नामखाना, हिंगलगंज, बासंती, सागर, मौसुनी गथखाली, सोनारगांव, बाली दो, पाखीरालय, सातखेलिया, कालीदासपुर, कुमीरमारी और छोटोमुल्लाचक ब्लॉकों के सौ से अधिक राहत शिविर खोले गए थे। इन राहत शिविरों की जगह लोग अब भी शरण लिए हुए हैं लेकिन शिविर लापता हैं। पहले से ही जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे सुन्दरवन के लोगों के सामने चक्रवाती तूफान ‘आएला’ के गुजर जाने के बाद जीवन के लिए संघर्ष की नई चुनौती सामने है। लेकिन भूखे-प्यासे और जिंदगी से जद्दोजहद करते लोगों की परवाह बंदरबांट में जुटे लोग कहां करने वाले।’
 
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