पुरा- बाढ़ अध्ययन की आकल्पन में उपयोगिता

पुरा- बाढ़
पुरा- बाढ़

सामान्य अर्थों में बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसकी मानव चिरकाल से अनुभूति करता आ रहा है और इसके मापन के तरह-तरह के वैज्ञानिक तरीके विकसित करने के प्रयास होते रहे हैं। वर्तमान युग संगणक युग माना जाता है। जलविज्ञान ने इसकी सहायता से पिछले कुछ दशकों में अच्छी प्रगति की है। पुरा - बाढ़ तकनीक के माध्यम से ऐसी बाढ़ जो सौ दौ सौ अथवा हजारों साल पहले कभी किसी नदी में आई थी उनके परिणाम काफी हद तक शुद्ध रूप से मापे जा सकते हैं तथा इनका उपयोग जलविज्ञानीय अध्ययनों तथा आकल्पन में किया जा सकता है।

बाढ़ या जलप्रवाह से संबंधित आंकड़े जो वर्तमान में सामान्यतया उपलब्ध हैं वह पिछले 40 से 50 वर्ष तक ही हैं। हालांकि वर्षा पर करीब 100 वर्ष या इससे भी अधिक आंकड़े उपलब्ध हैं। जलप्रवाह पर सीमित जानकारी का उपयोग अभी तक भारत में बांध या अन्य जल विन्यासों के आकल्पन हेतु किया जाता रहा है

गणितीय भाषा में इस 40-50 वर्ष की जानकारी को 200, 500 या 1000 वर्षों तक आगे बढ़ाया जाता है तथा इस दौरान सम्भावित बाढ़ जो किसी नदी में आ सकती है उसको उस नदी पर बनने वाले विन्यास के आकल्पन का आधार मान लिया जाता है। उपरोक्त सीमित जानकारी में अपेक्षित बढ़ोत्तरी उस नदी के पुराबाढ़ अध्ययन द्वारा की जा सकती है जिसका उपयोग उपलब्ध जानकारी के साथ कर बेहतर तथा विश्वसनीय परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

पुराबाढ़ अध्ययन से संबंधित विवरण निम्न प्रकार है:-

पुराबाढ़ अध्ययन

इस अध्ययन से जिन प्राकृतिक संकेतकों का लाभ उठाया जाता हैं वह ऐसी चीजें होती हैं जो किसी विशेष बाढ़ के परिमाण तथा यह कितने वर्ष पहले आई थी, उस पर प्रकाश डाल सकें। इनमें प्राकृतिक लकड़ी के जले हुए अवशेष मुख्य हैं जिनको चारकोल कहा जाता है।

चारकोल के दो विशेष गुण होते हैं:-
  •  यह पानी से हल्का होता है।
  •  इसमें से एक विशेष प्रकार की रेडियोधर्मी बीटा किरण निकलती रहती है जिससे इसका परमाणुवीय आकार बदलता रहता है। पहला गुण किसी विशेष बाढ़ के परिमाण ज्ञात करने तथा द्वितीय गुण उस बाढ़ के समय पैमाने पर आयु ज्ञात करने के काम आता है।

नदी का जल मानसून के समय में अपने साथ बालू के कण या अन्य प्रकार की गन्दगी लिए हुए होता है जो विशेष परिस्थितियां मिलने पर बालू के कणों को उस जगह अवक्षेपित कर चला जाता है तथा उस समय चारकोल जो सतह पर बहते रहते हैं वह भी इन्हीं के साथ-साथ उन जगहों पर छूट जाते हैं तथा आयु निर्धारण में सहायक होते हैं।

विशेष परिस्थितियां

जिस जगह पर ये बालू, चार कोल आदि एकत्रित होते हैं इस ढेर को विज्ञानीय भाषा में एस0डब्लू0डी0 कहा जाताहै।  ये एस0डब्लू0डी0 उन जगहों पर एकत्रित होते हैं जहां पर जल प्रवाह वेग करीब-करीब शून्य हो जाता है। बालू कणों का इकाई भार पानी से अधिक होने की वजह से ये नदी किनारे पर बैठ जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में नदी संगम उपयुक्त होते हैं जहां पर मुख्य नदी से सहायक नदी करीब करीब 90 अंश पर मिलती है। एस0डब्लू0डी0 को सहायक नदी के तटों पर देखा जा सकता है।

अध्ययन के चरण
पुरा बाढ़ अध्ययन को निम्न चरणों में संपादित किया जाता है:

 

  • उपयुक्त एस0डब्लू0डी0 जगहों का सर्वेक्षण
  • चारकोल का एकत्रीकरण
  • चारकोल की प्रयोगशाला जांच तथा आयु आकलन
  • नदी के आकार का सर्वेक्षण तथा एस0डब्लू0डी0 तलों का सर्वेक्षण
  • आम्भस विश्लेषण
  • बारम्बारता बण्टन विश्लेषण

चरण संख्या 5 एवं 6 को कम्प्यूटर की सहायता से सम्पादित किया जाता है तथा इनसे किसी विशेष बाढ़ के क्रमशः परिमाण तथा विभिन्न विवरण अवधि के बाढ़ परिमाण ज्ञात किए जाते हैं जिनका उपयोग आकल्पन में किया जाता है।

उपयोगिता

पुरा बाढ़ तकनीक एक प्रमाणिक तकनीक है। विकसित देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, आस्ट्रेलिया आदि में इसका उपयोग आकल्पन में आवश्यक तौर पर किया जा रहा है परन्तु भारत में अभी यह तकनीक उतनी प्रचलित नहीं है। हालांकि कुछ नदियों में जैसे नर्मदा, गोदावरी आदि में इस तकनीक द्वारा जलीय जानकारी उपलब्ध करने के प्रयास किये गये हैं। सम्भव है निकट भविष्य में इसको भी भारतीय जलविज्ञान में एक प्रामाणिक विधि के रूप में दर्ज कर लिया जाये।

स्रोत - राष्टीय जल विद्यान संस्था 

Path Alias

/articles/pura-badh-adhyayan-ki-occalpan-mein-upayogita

×